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सब की नजरें रीवा की तरफ उठ गई थीं. उन की परवाह किए बगैर वह सीधे भावेश के पास आई और गले लग कर अपनत्व का परिचय दे दिया.

भावेश ने पूछा, ‘‘क्या लोगी ठंडा या गरम?’’

‘‘अभी ब्लैक कौफी चलेगी. बाद में सोचते हैं क्या लेना है.’’

भावेश ने कौफी और्डर की. दोनों साथ मिल कर उस का मजा लेने लगे.

भावेश बोला, ‘‘यहां कितने साल हो गए हैं?’’

‘‘3 साल. बाबूजी की मौत के बाद मैं शहर आ गई थी.’’

‘‘वे होते तो शायद तुम इतना बड़ा कदम नहीं उठा पाती.’’

‘‘उन के जाने के बाद घर की हालत ठीक नहीं थी. इसी वजह से मुझे शहर आना पड़ा.’’

‘‘मां से मिलने जाती होंगी?’’

‘‘अभी नहीं जा पाई. सोच रही हूं उन्हें यहां बुला लूं. पता नहीं आने के लिए तैयार होंगी भी या नहीं.’’

‘‘मां बच्चों की खातिर हर परिस्थिति में एडजस्ट हो जाती है तुम बुलाओगी तो जरूर आएंगी.’’

‘‘मुझे अब गांव का वातावरण रास नहीं आता. यहां की आदत हो गई है.’’

‘‘यहां कहां काम करती हो? कौन सी कंपनी जौइन की है?’’

‘‘तुम्हारी तरह बड़ी कंपनी नहीं है.’’

‘‘मैं ने तुम्हें अपनी कंपनी का नाम भी नहीं बताया.’’

‘‘मैं ने कल तुम्हारा विजिटिंग कार्ड देख कर तुम्हारे बारे में पता लगा लिया. जीने के लिए बहुत कुछ सीखना पड़ता है और साथ ही समझते भी करने पड़ते हैं,’’ बातें करते हुए काफी देर हो गई थी.

‘‘आज बातों से ही पेट भरने का इरादा है क्या?’’ रीवा बोली.

‘‘तुम बताओ क्या लोगी?’’

‘‘मुझे वाइन पसंद है और तुम्हें?’’

‘‘मैं बीयर ले लूंगा. खाना भी और्डर कर देते हैं. आने में टाइम लगेगा.’’

‘‘नौनवैज में कुछ भी चलेगा. वैसे मुझे फिश ज्यादा पसंद है.’’

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