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इधर रमला सोच रही है कि कितना अच्छा इंसान था रूपेश? जो कुछ उस के पति ने उस के बारे में बताया उस से मिल कर उस पर विश्वास नहीं होता. घर में कड़ा अनुशासन था. दोनों छिपछिप कर मिलते थे. रूपेश आदर्श और सचाई की मूर्ति था. लड़कियों की तरफ तो कभी आंख उठा कर भी नहीं देखता था. मैं उसे किताबी कीड़ा कह कर चिढ़ाती थी तो वह कहता था देखना ये किताबें ही मुझे जीवन में कुछ बनाएंगी.

‘‘और पेंटिंग...?’’ मैं पूछती.

‘‘वह तो मेरी जान है... घर आओ किसी दिन. मेरा कमरा पेंटिंग्स से भरा पड़ा है. रमला जीवन में सबकुछ छोड़ दूंगा पर चित्रकारी कभी नहीं.’’

तब रमला को उस की हर बात में सचाई लगती थी.

‘‘अरे सर,’’ मौल तो पीछे रह गया. हम काफी आगे आ गए हैं.

रमला की तंद्रा टूटी थी. सोच को अचानक ब्रेक लगा.

‘‘ओह, मिहिर हम यहीं उतरते हैं. तुम गाड़ी को पार्क कर के आओ तब तक हम मौल तक पहुंचते हैं,’’ रूपेश ने गाड़ी रोकी और चाबी मिहिर को दे कर रमला के साथ मौल की ओर चल पड़ा.

पता नहीं औफिस में आए गैस्ट पहुंच गए होंगे या नहीं, रूपेश सोच रहा था.

तभी रूपेश का मोबाइल बजा. बात खत्म कर के रमला से बोला, ‘‘हमारे गैस्ट शौपिंग के लिए नहीं आ रहे हैं... चलो सामने बैंच पर बैठते हैं.’’

बैंच पर बैठ कर पता नहीं क्यों उस का मन बेचैन था.

‘‘रमला आज मैं तुम्हें अपने जीवन का सच बताना चाहता हूं.’’

‘‘सच? कैसा सच...? मेरे पति आने वाले हैं,’’ वह घबरा गई थी कि रूपेश पता नहीं क्या कहने जा रहा है.

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