‘स्वास्थ्य समृद्धि का सुंदर साथ, काला कंचन भर दोनों हाथ’

हम बात कर रहें काले कड़कनाथ मुर्गे की, जो मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में विशेष तौर पर पाया जाता है. कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. गोविंद कुमार वर्मा बताते हैं, "कड़कनाथ के पालन से पालक तीन-चार महीने में अच्छी आमदनी कर सकता है. इन मुर्गों का पालन विशेष रूप से आदिवासी समाज की महिलाएं करती हैं. कड़कनाथ की बिक्री से परिवार का खर्चा आसानी से चल जाता है. तथा कड़कनाथ नस्ल का संरक्षण भी होता है. इससे महिलाओं में आत्मनिर्भरता आती है. सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनुदान की व्यवस्था भी की है.

 सरकारी अनुदान

सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु गरीब आदिवासी लोगों के लिए विशेष तौर पर महिलाओं को 80 प्रतिशत का अनुदान कर रही है. इस योजना के अंतर्गत बिना लिंग भेद के 28 दिवसीय 40 रंगीन चूजों की इकाई प्रदान की जाती है. इसके पालन के लिए 4,400 रुपए जिसके अंतर्गत औषधि, टीकाकरण एवं परिवहन की लागत के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है.  

 कई बीमारियों से लड़ने में कारगर है कड़कनाथ मुर्गा

कड़कनाथ मुर्गे की मांग पूरे देश में होने लगी है. इसकी खासियत यह है कि इसका खून और मांस काले रंग का होता है. लेकिन, यह मुर्गा दरअसल अपने स्वाद और सेहतमंद गुणों के लिये अधिक मशहूर है. कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला चिकन है. शोध के अनुसार, इसके मीट में सफ़ेद चिकन के मुकाबले "कोलेस्ट्रॉल" का स्तर कम होता है. अमीनो एसिड" का स्तर ज्यादा होता है.

एक किलोग्राम का मुर्गा 1000-1200 रुपए में बिक जाता है और अंडा भी 70-80 रुपए में बिकता है.

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