ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसआर्डर) एक मानसिक विकार और दीर्घकालिक स्थिति है जो लाखों बच्चों को प्रभावित करती है और अक्सर यह स्थिति व्यक्ति के वयस्क होने तक बनी रह सकती है. एडीएचडी के साथ जुड़ी प्रमुख समस्याओं मे ध्यानाभाव (ध्यान की कमी), आवेगी व्यवहार, असावधानी और अतिसक्रियता शामिल हैं. अक्सर इससे पीड़ित बच्चे हीन भावना, अपने बिगड़े संबंधों और विद्यालय में खराब प्रदर्शन जैसी समस्याओं से जूझते रहते हैं. माना जाता है कि ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार अनुवांशिक रूप से व्यक्ति मे आता है. जिस घर-परिवार में तनाव का माहौल रहता है और जहां पढ़ाई पर अधिक जोर देने की प्रवृत्ति रहती है वहां यह समस्या अधिक होती है. रिसर्च के अनुसार, भारत में लगभग 1.6% से 12.2% तक बच्चों में एडीएचडी की समस्या पाई जाती है.

आईएमए के अध्यक्ष डा. के.के. अग्रवाल ने कहा कि एडीएचडी वाले बच्चे बेहद सक्रिय होते हैं और इस रोग से पीड़ित ज्यादातर बच्चों में व्यवहार की समस्या (बिहेवियरल प्राब्लम्स) देखने को मिलती है. इसलिए उनकी देखभाल करना और उन्हें कुछ सिखाना बेहद मुश्किल हो जाता है. यदि इस कंडीशन को शुरू में ही काबू न किया जाए तो यह बाद में समस्याएं पैदा कर सकती हैं.

एडीएचडी की समस्या ज्यादातर प्री-स्कूल या केजी तक के बच्चों में होती है. कुछ बच्चों में किशोरावस्था की शुरुआत में भी स्थिति खराब हो सकती है. यह व्यस्कों में भी हो सकता है. हालांकि एडीएचडी का स्थायी उपचार नहीं है, फिर भी उपचार से इसके लक्षणों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. एडीएचडी का उपचार मनोवैज्ञानिक परामर्श, दवायें, एजुकेशन या ट्रेनिंग से भी किया जा सकता है.

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