घड़ीका अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो ल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने हिला कर कहा.

मैं उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे ? चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू...सोनू...स्कूल नहीं जाना क्या?’’

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तु से छोटा है पर तुझे से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे 7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह चिल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर झटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

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