निशा की नीद ,आधी रात को अचानक खुल गयी. सीने में भारीपन महसूस हो रहा था .दोपहर को अख़बार में पढ़ी खबर ,फिर से दिमाग में कौंध उठी .’अस्पताल ने  महिला को मृत घोषित किया , घर पहुंचकर जिन्दा हो गयी, दुबारा एम्बुलेंस बुलाने में हुई देरी ,फिर मृत ‘ .

कही कुछ दिन पूर्व ही उसकी ,  मृत घोषित हुई माँ, जीवित तो नहीं थी ,क्या उसे भी किसी दूसरे अस्पताल से जांच करवा लेनी थी ?कही  माँ कोमा में तो नहीं चली गयी थी और हम लोगो ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया हो ? वो बैचेनी से , कमरे के चक्कर काटने लगी .

कुछ दिन पूर्व ही निशा और उसका पति सर्दी जुखाम बुखार से पीड़ित हो गये थे उसी दौरान , आधे किलोमीटर की दूरी पर, रहने वाली उसकी माँ , मिलने आई थी .उस समय तक वे दोनों वायरल फीवर ही समझ रहे थे, कोरोना  रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही वे, खोल में सिमट गए . वे दोनों तो ठीक हो गए मगर माँ अनंत यात्रा को चली गयी .निशा अपने को दोषी मान, सदमे से उबर नहीं पायी हैं.दिनभर तो बैचेन रहती हैं, रात को भी कई बार नीद टूट जाती हैं .

तभी उसके पति संकल्प की, नीद टूट गयी  .वो निशा को यूँ चहलकदमी करते देख बौखला गया .

“साला दिन भर काम करो ,मगर फिर भी रात को दो घड़ी चैन की नीद नहीं ले सकता ” गुस्से से अपनी तकिया उठाकर, ड्राइंग रूम में सोने चला गया .

निशा  फफक कर रो पड़ी . निशा के आँसू लगातार, उसके गालों को झुलसाते हुए बहे जा रहे हैं .उसके दिमाग में उथल पुथल मच उठी .संकल्प , कंधे में हाथ रख कर, सहानुभूति के दो शब्द कहने की जगह , उल्टा और भी ज्यादा चीख पुकार मचाने लगा  हैं . उसे अपने सास ,ससुर के अंतिम संस्कार के दिन याद आने लगे . पूरे बारह दिनों तक, एक समय का भोजन बनाना,खाना  और जमीन में सोना .तेरहवी के दिन ,सुबह नौ बजे तक ,पूरी सब्जी से लेकर मीठे तक सभी व्यंजन बनाकर ,पंडित को जिमाना .मित्रों ,सम्बन्धियों ,पड़ोसियों के लिए  तो हलवाई गा था ,मगर फिर  भी ,दिन भर कभी कोई बर्तन, तो कभी अनाज ,सब्जी की उपलब्धता बनाये रखना, उसी के जिम्मे था ,साथ ही  आने जाने वाले रिश्तेदारों, की विदाई भी देखनी थी . साल भर लहसुन, प्याज का परहेज भी  किया गया  .

ये सारे कर्तव्य निभाकर उसे क्या मिला ? इस कोरोना काल में ,जब भोज और भीड़ दोनों ही नहीं हैं. सब ऑनलाइन कार्यकम किये जा रहे हैं .क्या उसका हक नहीं बनता हैं कि वो अपने मायके में बैठकर, दो आँसू बहा सके . मगर नहीं संकल्प ने फरमान सुना दिया जब ऑनलाइन तेरहवी हैं तो तुम भी, घर से जुड़ जाओं, वहां जाकर क्या करोगी ?  .क्या करूंगी ? क्या करूंगी ? अरे भाई बहन, एक दूसरे के कंधे में सिर रख कर, रो लेंगे ,एक दूसरे की पीठ सहला कर, सांत्वना दे देंगे और क्या करूंगी ? जाने वाला तो चला गया मगर उसकी औलादों को आपस में, मिलकर रोने का ,हक भी नहीं हैं. जो दूर हैं, वे नहीं आ सकते मगर वो तो इतनी पास में है ,फिर भी नहीं जा सकती ?

उसे आज भी याद हैं ,जब बाईस घंटे की रोड यात्रा कर,भूखी प्यासी वो, अपनी सास के अंतिम संस्कार में ससुराल पहुँची थी तो  कार से उतरते ही लगा था कि चक्कर खा  कर गिर जायेगी .मगर फिर भी ,अपने को , सम्भाल कर जुट गई थी सारे रस्मों रिवाज को निभाने के लिए .

संकल्प तो दमाद हैं ,उसके हिस्से कोई कारज नहीं हैं ,न ही एक समय खाने की, बाध्यता हैं ,फिर भी वो इतना क्यों चिल्लाता हैं ? निशा समझ नहीं पाती .उसे सूजी हुई आँखों से खाना बनाते देखकर,  भी नाराज हो उठता हैं .

“ खाना बनाने का मन न हो तो रहने दो . एहसान करने कि जरूरत नहीं ,मैं खुद बना लूँगा ”

निशा सोचती रह जाती कि संकल्प के  माता ,पिता के अंतिम संस्कार के नाम पे, वो  बारह दिनों तक, एक समय का सादा भोजन  बनाती,खाती  रही और उसकी माँ के अंतिम संस्कार के समय , संकल्प को ,तीनों समय भोजन ही नहीं बल्कि सुस्वादु भोजन चाहिए . उसका मन उचाट हो उठा .

तेरहवी के दिन भाई का फोन आया “ क्या तुम आज आओगी ?या आज भी अपने घर से,ऑनलाइन  शामिल होगी ?”

“पूछ कर बताती हूँ ” निशा ने फोन काट दिया .उसका दिल भर आया खुद को जेल में बंद कैदी से भी, बद्तर महसूस होने लगा .कैदी  को भी अंतिम संस्कार में शामिल,होने  को ,पैरोल पे छूट दी जाती  हैं .

तभी उसका फोन बज उठा .कनाडा  में बसे,मनोचिकित्सक  बेटे मिहिर  का विडिओ कॉल  था .

“ माँ प्रणाम ,आज जब मामा के घर जाओगी तो डबल मास्क लगा लेना .एक जोड़ी कपड़े ले जाना .वहां पहुँच कर स्नान कर  लेना .वापस लौट कर घर आओ तो फिर से स्नान कर लेना ”

“ पता नहीं ,नहीं  जाऊँगी शायद  ” उसकी आँखे भर आई .

“ क्यों ? लोग ऑफिस तो जा रहे हैं न ? फेस शील्ड भी लगा लेना ”

“ नहीं जाऊँगी ,कभी नहीं  जाऊँगी ,जब माँ ही नहीं रही तो कैसा मायका ,मायका भी खत्म ” वो फफक पड़ी .

“ क्या हुआ माँ ? नहीं जाओगी तो आपके मन का बोझ बना रहेगा .जाओं मिल आओ .मामा मामी से मिलकर ,आमने सामने बैठकर, अपने बचपन के किस्से ताज़ा करों.तभी आपका मन हल्का होगा  ”

“ नहीं मैं ,अब कभी नहीं जाऊँगी ” निशा अपने को काबू न कर सकी, फोन एक तरफ रखकर, जोर जोर से रोने लगी .

“ माँ प्लीज सुनो, फोन मत काटना, प्लीज सुनो न माँ sss ” उसकी आवाज लगातार ,कमरे में गूंजती रही .

निशा ने ,अपने आँसू पोछकर,  फोन उठा लिया .

“ पापा कहाँ हैं ?फोन नहीं उठा रहे हैं ?” उसने पूछा .

“ बाथरूम में हैं. फोन चार्ज हो रहा हैं ”

“ पापा ऑफिस जा रहे हैं ?”

“हाँ ”

“ आपने खाना बना लिया ? पापा ने आज छुट्टी नहीं ली ”

“  हाँ बना दिया ,दोपहर का टिफ़िन भी बना दिया हैं. कोई छुट्टी नहीं ली ,तेरे पापा ने  ” वो आक्रोशित हो उठी .

“ पापा ने कुछ कहा हैं क्या आपसे ?”

“हाँ बहुत कुछ कहा हैं .क्या बताऊँ और क्या न बताऊँ ” उसके आँसू बह चले .

“ क्या कहा ? मुझे सब बताओं ” मिहिर साधिकार बोला .

“ अपनी मम्मी  की बीमारी का, सुनकर जब मैं वहां गयी तो मुझे, मम्मी  ने अपने पास रोक लिया था, फिर दो दिन बाद वो चल बसी .उसके बाद दो चार दिन तो मुझे होश ही नहीं था .एक हफ्ते बाद जब घर लौटी तो तेरे पापा बहुत चिल्लाये. कहने लगे जब इतने दिन वहां रुकी हो तो वही  जाकर रहो, अब साल भर शोक मनाकर, बरसी कर के ही आना ” निशा अपना चेहरा ढाप के रोने लगी.

“अच्छा और क्या कह रहे थे ?”

“ मेरे घर से जाओं ,मुझे अकेला रहने दो ,मुझे तुम्हारा चेहरा नहीं देखना  .सुबह शाम लड़ने का ,बहाना ढूंढते रहते हैं ”

“ ऐसा कब से कर रहे हैं? आपने पहले क्यों नहीं बताया ?”

“लगभग दो महिने से ,मैने सोचा ऑफिस का स्ट्रेस हैं, मगर अब मुझसे बर्दास्त नहीं हो रहा हैं .मेरे रोने से भी इनको आफत होने लगी हैं .क्या मै अपनी माँ की मौत पर, रोने का हक भी नहीं रखती ? क्या मैं रोबोट हूँ ?जो इनके मनोरंजन के हिसाब से चलूँगी ” निशा गुस्से से तमतमा उठी.

“ मम्मी, पापा को ऑफिस जाने दो फिर आप मामा के पास चली जाना और पापा के ऑफिस से आने से पहले लौट आना .पापा को अकेला मत छोड़ना ,मुझे लगता हैं पापा को कोरोना संक्रमण के बाद  आईसीयू साइकोसिस या डेलिरियम ने अपनी चपेट में ले लिया हैं ”मिहिर गंभीरता से बोला .

“ ये क्या होता हैं ? ” निशा हैरानी से बोली .

“ जब किसी बीमारी के होने पर, जान जाने का जोखिम दिखाई दे तो दिमाग बेहोशी की हालत में चला जाता हैं .ऐसे मनोरोगी अटपटे जवाब ,खाना या दवा के नाम पर झगड़ा करते हैं अक्सर अपना नाम ,स्वजन के नाम तक भी भूल जाते हैं .पापा के ऑफिस के कई सदस्य , उनके बचपन के  मित्र व् रिश्तेदारों में , अभी साल भर में कई मौते हुई हैं और अब नानी भी .अपने माता पिता के बाद ,वे नानी को बहुत मानते थे .ऐसे में , अचानक नानी के भी चले जाने से, उन्हें भी सदमा लगा हैं मगर वे अपने को एक्स्प्रेस नहीं कर पा रहे हैं .वे मनोरोग का शिकार बन रहे हैं ”.

“ क्या करूं ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा ” निशा अपना सर पकड़ कर बैठ गई .

“ आप शांत रहें ,उन्हें हल्ला करने दे .अब से रोज ,मैं उनकी काउंसिलिंग करूँगा  पता लगाता हूँ कि वे अवसाद या एंग्जायटी के शिकार तो नहीं बन गये .यदि फायदा न दिखा  तो आपको दवा बता दूँगा . वैसे मुझे लगता हैं, दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी और अगर देनी पड़ी तो भी , आप घबराइयेगा नहीं .एक दो महीने में पापा  ,अपने पुराने मूड में लौट आयेगें ”.

“तेरी बातें मुझे समझ नहीं आ रही ,मगर मैं अब इन्हें और इनके व्यंग बाणों को और बर्दास्त नहीं कर सकती” निशा दुखी होकर बोली .

“आपको पता हैं पोस्ट कोविड  पेशेंट की, रिसर्च में ये देखने में आया हैं कि कई देशों में ,डाइवोर्स रेट बढ़ गया हैं   ” अभी मिहिर की  बात, पूरी भी नहीं हुई थी कि संकल्प बाथरूम से बाहर आ गया और निशा को फोन करते हुए देख भड़क उठा .

“ अभी तक अपने भाई से ,फोन पर बात कर रही हो ? जब मैं बाथरूम गया था तब उसका फोन आया था . अभी तक तुम्हारी पंचायत खत्म नहीं हुई .आज मुझे खाना मिलेगा या मैं खुद बनाऊं ?”

“लो मिहिर का फ़ोन हैं ,आप को पूछ रहा हैं .मैं किचिन सम्भालती हूँ “

“और सुनाओं कनाडा के क्या हाल हैं ”

“ पहले ही मनोरोगी कम नहीं थे, अब तो इनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही हैं

“अरे अपने प्रोफेशन की , बातें छोड़ ,कोई लड़की पसंद की  हो ,तो वो बता ”

“ पापा पहले महामारी से तो बचे, फिर धूमधाम से इंडिया आकर शादी करूँगा .अरे हाँ ,आज आप मम्मी को ऑफिस जाते समय ,नानी के घर छोड़ देना .लॉक डाउन हैं उन्हें कोई सवारी भी न मिलेगी ”

“ मेरी चुगली कर रही होगी कि मैं मायके जाने नहीं देता ,हैं न  ” संकल्प का  चेहरा तनाव से तन गया .

“ ऐसा कुछ नहीं है .मैंने ही जाने को बोला हैं .उन्हें आप छोड़ आना, ऑफिस से आते समय ले आना .उनका दिल बहल जाएगा ”

“ पर वहां तो सब ऑनलाइन रिश्तेदार जुड़ रहे  है.  हमने कितनी धूमधाम से तेरे दादा दादी की , तेरहवी की थी .मैंने कहा  कि चाहे एक पंडित ही घर बुला कर कार्यकम सम्पन्न कर लो मगर नहीं .मेरी कौन सुनता हैं ?”

“ आप को क्या करना पापा ?वैसे भी अभी भीड़ करने की जरूरत नहीं हैं.रिश्तेदार भी सब समझते हैं .मम्मी ही पास में हैं उन्हें आप पहुंचा देना .ठीक हैं पापा मैं अब सोऊंगा ,कल सुबह फिर  बात करेंगे.प्रणाम पापा ”

रसोई में भोजन परोसती निशा के दिमाग में, पिछले दो महीनों की ढेर सारी झड़पे कौंध गयी .अब उसे याद आया कि ये सब झड़पे कोरोना पॉजिटिव होने के बाद से शुरू हुई थी .जो धीरे धीरे बढकर विकराल रूप में सामने आ चुकी हैं .अब वो क्या करे? क्या संकल्प मनोरोगी बनता जा रहा हैं और  वो भी अवसाद का शिकार बनती जा रही हैं ? उसकी आँखे बहने को बेताब होने लगी .

नहीं वो कमजोर नहीं पड़ेगी.इस महामारी के खौफ़  से उसे बाहर निकलना ही होगा .अपने डर को काबू  में ,करना ही होगा   .उसने अपने आँसूं पोछे और उसके हाथ तेजी से सलाद काटने लगे .

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