मनोरंजन की दुनिया में क्रिएटिव हेड और प्रोड्यूसर शिखा शर्मा को हमेशा से अच्छी और मनोरंजक कहानियां कहने का शौक था. इसके लिए पहले उन्होंने कई कॉर्पोरेट संस्थानों में काम किया और फिल्मों के लिखने से लेकर रिलीज होने और दर्शकों की रिव्यु को समझने तक काम किया और उन्होंने उन कहानियों को पर्दे पर लाने की कोशिश की,जो उन्होंने अपने आसपास देखी हो और दर्शकों तक पहुंचना जरुरी था. इस श्रृंखला में शिखा ने पहले फिल्म मकबूल, के लिए पोस्ट-प्रोडक्शन एसिस्टेंट, फिल्म शेरनी, छोरी, शकुंतला देवी, दुर्गामती, ‘हश हश’, नूर आदि कई फिल्मो की निर्माता और लेखक है. उन्हें बचपन से फिल्में देखने का बहुत शौक था. कई बार उन्हें महसूस होता था कि कई ऐसी कहानियां हमारे आसपास है, जिससे लोग छुपते है, जबकि ऐसी कहानियां समाज और परिवार में जागरूकता फ़ैलाने का काम करती है. अपनी इस पैशन को शिखा आज भी जारी रखे हुए है. उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बातचीत कर बताया कि जिस प्रकार एक पुरुष को आगे लाने में महिला का योगदान होता है, वैसी ही मेरी सफलता में मेरे पति आरिफ शेख का बहुत बड़ा हाथ रहा है.

मिली प्रेरणा

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर शिखा बताती है कि बचपन से ही मुझे और मेरे पेरेंट्स को फिल्में देखने का शौक था. बचपन में मैंने कई फिल्में देखी है. ये फिल्में हमेशा मुझे फेसिनेट करती थी, क्योंकि मुझे स्टोरी कहने की जरुरत थी. इसलिए मैंने फिल्म मेकिंग में डिग्री ली और क्रिएटिव हेड के रूप में एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम करने लगी, लेकिन इम्पैक्ट फुल फैक्ट्स को सामने लाने की इच्छा हमेशा रही और तब मुझे मकबूल और मंगल पांडे फिल्म के लिए प्रोडक्शन एक्सिक्यूटिव बनने का मौका मिला. इसके बाद दूसरी कंपनी में मुझे कंटेंट डेव्लोप करने का मौका मिला और मैंने फिल्म शोर इन द सिटी, द डर्टी पिक्चर, क्या सुपर कूल है हम आदि कई फिल्मों के कंटेंट पर काम किया. उस दौरान मुझे एक अच्छी टीम के साथ काम करने का अवसर मिलता रहा. मैंने सोचा यही सबसे अच्छा मौका है, क्योंकि मुझे कम मेहनत से अच्छे निर्देशक, टेक्निशियन,क्रीयेटर्स आदि सब मिल गए थे. मैंने उन सबके साथ मिलकर कहानी कहने की शुरुआत की.

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मकसद कहानियों को कहना

इसके आगे शिखा कहती है कि मैं बोर्न दिल्ली में हुई थी, मेरे पिता ट्रांसफरेबल जॉब में थे इसलिए मुंबई आना हुआ और मैं पिछले 18 साल से मुंबई में काम कर रही हूँ. इस क्षेत्र में आने से पहले मैंने एक शार्ट फिल्म बनाई. कैंपस प्लेसमेंट से ही मुझे काम मिला और आगे बढती गई. मेरी डीएनए में ही ऐसी शौक थी, क्योंकि मैं हमेशा एक मीनिंग फुल और प्रेरणा दायक कहानियाँ कहना चाहती थी, जिसमें मनोरंजन के साथ कुछ मेसेज भी हो.

ओटीटी है वरदान

महिला होने पर भी शिखा को काम में कोई मुश्किल नहीं होती, क्योंकि उन्होंने फिल्म मेकिंग की बारीकियों को नजदीक से देखा है. अभी कई महिला निर्माता इंडस्ट्री में है. वह हंसती हुई कहती है कि स्टोरी टेलर्स के लिए ये समय बहुत एक्साईटिंग है, जहाँ पर निर्देशक और पूरी यूनिट एक साथ काम कर रही है और काम जल्दी भी हो रहा है. ओटीटी के माध्यम से बोल्ड, रियल और एक्शन की कहानियाँ शामिल हो रही है. पहले इन फिल्मों को पैरेलल सिनेमा कहाजाता था, पर अब ये लाइन बहुत ब्लर हो चुकी है. आज अच्छी तरह से एक राइटर अपनी बात रख सकती है, क्योंकि अच्छी कहानियों के लिए दर्शक उत्सुक रहते है. इस समय लेखक, निर्देशक, निर्माता सभी को फायदा इंडस्ट्री से हो रहा है. छोरी,शेरनी जैसी अच्छी फिल्में भी ओटीटी पर है, जिसे दर्शको ने काफी पसंद किया है. ख़ुशी की बात यह है कि इन फिल्मों में लेखक अपनी कहानी सबके सामने रख पाए है और लोगों को इन फिल्मों से मनोरंजन भी मिला है. साथ ही वे अपने घर पर बैठकर आराम से अपने डिवाइस पर इन फिल्मों को देख सकते है. इससे अलग रामसेतु जैसी बड़ी फिल्में थिएटर के लिए भी बन रही है.

दिल के करीब

शिखा हर तरह की कहानी कहने की कोशिश कर रही है, लेकिन ‘हश हश’शो की कहानी उनके दिल के काफी करीब है.जिसे इन हाउस डेवलप किया गया है,जो बहुत सारी औरतों के जीवन पर आधारित है, जो अलग-अलग चरित्र की होते हुए खुबसूरत और मीनिंगफुल है. ये औरते अलग-अलग परिस्थिति में कैसे रियेक्ट करती है. ये सारी कहानियाँ उनके आसपास घटी है और वह उससे बहुत प्रेरित है.

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जरुरी है मेंटल हेल्थ पर जागरूकता फैलाना

मेंटल हेल्थ के बारें में शिखा कहती है कि आज यह एक बड़ी समस्या है. इससे बच्चे ही नहीं बड़े भी प्रभावित है और दर्शकों के बीच इसकी जागरूकता फैलाने की जरुरत है, क्योंकि केवल शरीर ही बीमार नहीं होता, बल्किमानसिक स्वास्थ्य भी बीमार हो सकता है. कुछ लोग ऐसे है, जो इन बातों को कहना नहीं चाहते, शर्म महसूस करते है,इसे लोग एक टैबू के रूप में लेते है, उन्हें लगता है कि मानसिक बीमारी के बारें में बात करने पर लोग मजाक बनायेंगे.इसके लिए हमें बच्चों को समझाना पड़ेगा कि मानसिक समस्या कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती. इसके अलावा क्रिएटर का ये सामाजिक दायित्व है कि वे इस बात को कहानी और मनोरंजन के माध्यम से दर्शकों को समझा पाए. इस पर काम चल रहा है. आगे रामसेतु, जलसा, छोरी 2 आदि कई फिल्मों पर काम चल रहा है और कुछ को लिखने का काम चल रहा है.

परिवार का सहयोग

परिवार के सहयोग के बारें में शिखा का कहना है कि सपोर्ट न मिलने पर काम करना मुश्किल होता है. परिवार के सहयोग से ही मुझे हर रोज कुछ नया काम करने की प्रेरणा मिलती है, जिसमें मेरा बेटा, पति, माँ और सास सभी है. मेरे पति आरिफ शेख फिल्म एडिटर है, काम के दौरान ही मैं उनसे मिली थी. मेरा 11 साल का बेटा कियान शर्मा शेख भी फिल्मों का बहुत शौक़ीन है, पर अभी इस फील्ड में बिलकुल आना नहीं चाहता. उसको क्रिकेट में रूचि है और उसमे ही कुछ करना चाहता है. कोविड में जिंदगी ने बहुत कुछ समझा दिया है, उसे समझते हुए काम करे और आगे बढ़े. साथ ही अपने स्वास्थ्य की देखभाल अवश्य करें.

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