‘‘अरे…अरे, संदीप क्या बात है? क्या हुआ?’’ उस ने हैरत से पति का सुस्त चेहरा देखा और उन का जवाब मिलने तक एक कप अदरक, कालीमिर्च व अजवायन की चाय बना कर उन के हाथ में दे दी.

‘‘आज दोपहर में हरारत सी हो गई. इसीलिए जल्दी लौट आया,’’ कह कर संदीप ने चाय का घूंट भरा, ‘‘वाह अमृत, बहुत आराम मिल रहा है.’’

तभी दोनों बेटियां भी उन्हीं के पास आ गईं, ‘‘अरेअरे, पापा आप को इस कुरसी पर और आराम से बैठना चाहिए,’’ कह कर 5 और 7 साल की बेटियां एकएक कुशन ले कर उन की पीठ से लगाने लगीं.

‘‘थैक्स बेटी, बहुत आराम मिला. खेलने जा रहे हो?’’

‘‘हांहां,’’ कह कर दोनों मां से पूछने लगीं, ‘‘पापा इतने हौलेहौले क्यों बोल रहे हैं?’’

‘‘वह आज पापा को फीवर आ गया है.’’

मां की बात सुनी तो, ‘‘अच्छा,’’ कह कर दोनों वहीं खड़ी हो गईं.

‘‘अरे, प्यारे बच्चों जाओ खेलने जाओ बच्चों,’’ मां ने जैसे ही कहा दोनों अपनाअपना बौल ले कर पार्क में चली गईं. वहां जा कर खूब खेलनेकूदने के बाद दोनों ने अपने सारे साथियों को सनसनीखेज खबर सुनाई, ‘‘पता है हमारे पापा को स्विमिंग, स्कैटिंग, बैडमिंटन, टैनिस, हौर्स राइडिंग सब आता है. पर…’’

‘‘अरे, मुग्धा व पावनी पर क्या? आगे भी तो बताओ,’’ बाकी दोस्तों ने उत्सुकता से चकित हो कर पूछा.

‘‘वह आज उन्हें फीवर आ गया है. तुम्हें देखने हैं? बोलो… बोलो?’’

‘‘अरे, हांहां देखने हैं, ‘‘और फिर पूरी धमाचौकड़ी पहुंच गई सीधा उस कमरे में जहां बुखार से कराहते संदीप आंखें बंद कर लेटे

हुए थे.

‘‘यह देखो पापा का माथा गरम है न… हाथ भी, गरदन भी. यहां सब जगह फीवर आ गया है.’’

वे सब नादान और प्यारे बच्चे बारीबारी से अपनी शीतल हथेलियों

से तपती त्वचा को स्पर्श करते जा रहे थे. वह तो संदीप को बच्चों के साथ रहने और खेलने की आदत बरसों से थी. उन के सभी मित्र अपने बच्चे उन्हीं के संरक्षण में छोड़ दिया

करते थे. इसलिए आज इतने ज्वर

में भी वे बच्चों की इतनी तीखी चिल्लपौं से न तो खीजे और न

ही  झल्लाएं.

‘‘मां हमारे दोस्त आए हैं,’’ जब

दोनों बच्चों ने बताया तो वे उस समय गरम

पानी की थैली बना रही थीं. वे अपने घर में

बच्चों की किलकारियों से गदगद हो उठीं और बच्चों को उन का पसंदीदा मिल्कशेक बना

कर दिया.

तभी बाई का फोन आया कि वह 2 दिन नहीं आ सकेगी.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ कह कर उन्होंने अपने घर जाते बच्चों को अलविदा कहा और फिर सिंक में भरे बरतन मांज कर रात के लिए भोजन की तैयारी करने लगीं. बच्चों के स्टडीरूम से कागज फटने और कैंची चलने की आवाज सुनाई दी तो चौंक कर स्टडीरूम में गईं. देखा कि प्लास्टिक की कैंची से कागज को सैट कर बेटियां अपनी कौपी में कवर चढ़ा रही हैं.

‘‘मां आप बिजी थीं न इसलिए हम ने

सोचा अपना काम खुद कर लेते हैं और मां आप हमें भी मूंग की खिचड़ी खिला दो,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘न, न, बच्चों, तुम्हारे लिए आलू के परांठे तुम्हें सेंकने जा रही हूं. सब तैयारी कर ली है,’’ मां ने कहा.

‘‘अच्छा मां हम दोनों एक ही प्लेट में खा लेंगी,’’ और फिर वे खुद ही रसोई मे पहुंच गईं और धुले हुए सूखे बरतन सैट करने लगीं.

मां संदीप को खिचड़ी खिला दवा दे दी. फिर अपनी उन सहेलियों के संदेश फोन पर देख कर जवाब लिखने लगीं, जिन्हें उन्होंने दोपहर बाद घबरा कर तनाव में संदीप को बुखार आ रहा है, ऐसा संदेश भेजा था.

रात उन्हें न जाने क्यों बहुत देर से नींद

आई और फिर पता ही नहीं चला कि कब

सुबह के 5 बज गए. वे उठ कर तत्परता से रसोई में जुट गईं. बच्चियां टिफिन ले कर हंसतीहंसती स्कूल चली गईं. मां ने संदीप को दूध का दलिया खिला कर आराम करने को कहा.

अभी सुबह के 10 ही बजे होंगे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. उस की सारी सहेलियों का एकसाथ आगमन हुआ. उन की चिंताभरी परवाह ने उन्हें गदगद कर दिया.

‘‘संदीपजी अरे, कैसे आया बुखार?’’

‘‘ये सब आवाजें उन्हें रसोई में सुनाई दे रही थीं और वे अपनी सहेलियों के भरपूर स्नेह से भावविह्वल हो रही थीं.

कड़क चाय ले कर जब वे उन के पास गईं तो देखा कि सहेलियों की गपशप एकदूसरे से हो रही है और संदीपजी इस शोर के बीच भी गजब के खर्राटे भर रहे थे.

‘‘ओह, दवा का असर है,’’ उन्होंने अपनी सहेलियों से कहा और फिर रसोई में चली गईं.

वे सब उन के पास रसोई में आ कर ही चाय पीने लगीं. सहेलियों ने ही सिंक में भरे सुबह के सारे बरतन मिल कर साफ कर दिए और दोपहर के भोजन में यथासंभव मदद कर के सब

चली गईं.

पता ही नहीं चला कि कब बेटियां स्कूल से लौट आईं और सब से पहले पापा का बुखार अपने हाथों थर्मामीटर से जांच कर खुद ही

कहने लगीं, ‘‘मां, हम वही खाएंगे जो पापा खा रहे हैं.’’

उस के बाद छोटी बेटी पूछने लगी, ‘‘पापा, आप को यह बुखार कब तक रहेगा?’’

‘‘3 दिन तक रहेगा,’’ जवाब उस की बड़ी बहन ने दिया, ‘‘पापा से डाक्टर ने फोन पर यही कहा है. मैं ने स्पीकर में सुना था.’’

इसी बीच संदीप के मित्र भी आते रहे. मां शाम से रात तक काम में लगी रहतीं.

इस बीच उन्हें एहसास हुआ कि वे पिछली रात नाममात्र को ही सोई हैं इसलिए आंखें मुंद रही हैं.

रात के खाने और संदीप को दवा दे कर वे जैसे ही बिस्तर पर गईं एकदम से निढाल हो गईं.

सुबह जागीं तो घबरा ही गईं. 8 बज रहे थे.

‘‘ओह,’’ कह कर उन्होंने उठना चाहा पर पूरा बदन दर्द से टूट रहा था.

‘‘सो जाओ मुहतरमा,’’ कह कर पति ने कक्ष में प्रवेश किया. उन के हाथों में एक ट्रे थी जिस में चाय का कप रखा था.

‘‘अरेअरे, संदीप तुम्हें बुखार था. मैं इसीलिए यहां आ कर सो गई. मु झे जागने में बहुत देर हो गई. बच्चों का स्कूल…’’ कह वे उठने की नाकाम कोशिश करने लगीं.

संदीप ने उन से अनुरोध किया, ‘‘सुनो मेरी अर्ज मान लो… यह चाय पी कर

लेटे रहो.’’

‘‘ओह, पर बच्चे?’’ वे चाय के एक घूंट में ही तरोताजा हो गई थीं. फिर उठीं और संदीप का माथा छू कर देखा. बुखार बिलकुल नहीं था. उन्हें शांति मिली. परदा उठा कर दूसरे कमरे में देखा तो बच्चियां गहरी नींद में थीं.

उन का चिंताभरा चेहरा देख कर संदीप ने अनुरोध किया, ‘‘जी, गृहलक्ष्मीजी मैं बिलकुल फिट और हिट हूं, आप चुपचाप बैठे रहो और सुनो आज रविवार है.’’

‘‘ओह, अच्छा…’’ कह उन्होंने चैन से

चाय पी.

‘‘मैं अब नाश्ता तैयार कर रहा हूं और एक सलाह दे रहा हूं कि सेवा संतुलित हो कर ही किया करो. देखो, तुम ने 2 दिन मेरी इतनी ज्यादा तीमारदारी की कि अब तुम्हें खुद बुखार ने

जकड़ लिया.’’

‘‘आप ने कैसे पता लगाया?’’

‘‘अपनी हथेली के थर्मामीटर से,’’ कह

कर संदीप ने हंस कर एक और कप चाय उन्हें थमा दी.

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