मंदिर के ऊपरी भाग में बने स्पैशल कमरे से नीचे का सारा नजारा दिखाई देता था. वे इस कमरे में आराम करते हुए मंदिर में आने वाले भक्तों को देखते रहते थे. वैसे तो उन्हें मर्द भक्तों से इतना मतलब नहीं रहता था, पर उन में से वे केवल ऐसे भक्तों पर ही निगाह गड़ाए रहते थे, जो उन्हें पैसे वाला दिखाई देता था. इस से उलट वे मंदिर में आने वाली उन लड़कियों और औरतों को खास निगाह से देखते थे, जो गरीब घरों की होती थीं.

वे अपने कमरे से ही उन के चेहरे को पढ़ लेते थे. उन में से जिन में उन्हें कोई उम्मीद नजर आती, उन्हें अपने दूसरे कमरे में बुला लिया जाता. इस दूसरे कमरे से ही इस कमरे तक आने का सफर तय होता था. वे ‘इच्छाधारी बाबा’ कहे जाते थे.

अब थोड़ा ‘इच्छाधारी बाबा’ का इतिहास जान लेते हैं. उस का असली नाम मूलचंद था. वह शुरू से ही शानशौकत से जीने के सपने देखा करता था, पर वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था, तो उसे जो सरकारी नौकरी मिली, वह क्लर्क की थी.

यह नौकरी भी मूलचंद को इस वजह से मिल गई थी कि उस के पिताजी भी सरकारी नौकर थे और रिटायर होने से पहले एक हादसे में उन की मौत हो गई थी.

मूलचंद को आसानी से नौकरी मिली तो उस के सपने जोर मारने लगे. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उस के पास घपला करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

क्लर्क की तनख्वाह तो इतनी होती नहीं कि वह उस में ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके. घपला किया और पकड़ा गया.

मूलचंद ने जितने रुपयों का घपला किया था, उन को अपने एक दोस्त  के पास रख दिया था, ताकि  अगर  वह पकड़ा भी जाए तो उस के पैसे महफूज रहें.

मूलचंद को भरोसा था कि वह पकड़े जाने के बाद इन्हीं पैसों की रिश्वत खिला कर अपनेआप को बेदाग साबित कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं. न केवल उसे नौकरी से निकाल दिया गया, बल्कि उस के खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी गई. रिपोर्ट दर्ज होते ही उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. डर के मारे वह फरार हो गया.

पुलिस मूलचंद को ढूंढ़ती फिर रही थी और वह यहांवहां छिपते हुए दिन काट रहा था. पुलिस के साथ आंखमिचौली के दौरान ही वह एक मंदिर के पुजारी के पास पहुंचा. उस पुजारी ने उसे छिपने में बहुत मदद की.

बाद में मूलचंद को पता चला कि वह पुजारी खुद भी सालों से ऐसे ही पुलिस से छिपता फिर रहा है. उस ने तो अपनी पत्नी का ही खून कर दिया था.

मूलचंद ने भी सोचा, ‘कितने लोग ऐसे ही अपनेआप को छिपाए हुए हैं, तू भी यही चोला पहन ले…’

मूलचंद तब तक वहां छिपा रहा, जब तक उस के बाल और दाढ़ीमूंछ नहीं आ गई. फिर एक दिन वह भगवा चोला पहन कर वहां से निकल पड़ा. उस ने अपना नया नाम ‘इच्छाधारी बाबा’ रख लिया था. अब उसे पुलिस का कोई डर नहीं था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपना जो नया ठिकाना बनाया, वह एक रईस रम्मू का पुरखों का मंदिर था. इस मंदिर में बहुत सारी जमीन लगी हुई थी. इस जमीन को रम्मू ही जोतता था और सारा पैसा अपने इस्तेमाल में ही खर्च करता था.

रम्मू को अपने पुरखों से इस वजह से चिढ़ होती थी कि इतनी सारी जमीन मंदिर में लगा दी और इतनी कीमती जमीन पर मंदिर बना दिया. वह मंदिर जिस जगह पर बना था, उस की कीमत आज लाखों रुपए में हो गई थी.

धीरेधीरे जब रम्मू ने मंदिर में खर्चा कराना बंद कर दिया, तो महल्ले के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के मंदिर  को चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली.

कहीं मंदिर पूरी तरह से हाथ से न निकल जाए, इस भावना के चलते रम्मू मंदिर में अपना दबदबा बनाए रखता था. उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी, जो मंदिर से आमदनी करा सके.

मूलचंद यानी ‘इच्छाधारी बाबा’ से रम्मू की एक डील हुई थी. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने उसे हर साल एकमुश्त मोटी रकम देने का लिखित करार कर दिया था. इस के बदले रम्मू ने पूरा मंदिर उसे सौंप दिया.

रम्मू का भार हलका हो गया. अब उसे अपने पुरखों से इतनी नाराजगी भी नहीं रही. इसी बीच ‘इच्छाधारी बाबा’  मंदिर से पैसा कमाने की कला सीख चुका था.

वह महल्ला अच्छे लोगों का था, इसलिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को अपनी कमाई को ले कर कोई शक था भी नहीं. अब समाज में इज्जत भी मिलने लगी थी. वह तू से आप हो गया था.

रम्मू ने ‘इच्छाधारी बाबा’ की योजना के मुताबिक उन्हें बड़ी धूमधाम और उन से जुड़ी अनेक कहानियों का प्रचार कर मंदिर में बैठा दिया. मंदिर में एक पंडित था रामलाल, जो कुछ मंत्र वगैरह पढ़ लेता था. वह मंदिर में भगवान की पूजा करता और अपना पंडिताई धर्म निभा लेता. सपने तो वह भी बहुत सारे पाले हुए था, पर उस के पास ‘इच्छाधारी बाबा’ की तरह खुद पर यकीन और चालाकियां नहीं थीं.

‘इच्छाधारी बाबा’ को एक ऐसा ही आदमी तो चाहिए ही था, इसलिए उन्होंने उस पंडित रामलाल के सिर पर अपना हाथ रख कर यह भी सम झा दिया कि अगर उस ने उन के कामों में रोड़े अटकाए तो उस की खैर नहीं.

रामलाल वैसे भी ‘इच्छाधारी बाबा’ को देख कर घबरा चुका था, उन की धमकी को सुन कर और भी घबरा गया. वह ‘इच्छाधारी बाबा’ के पैरों में गिर गया और कसम खा ली कि बाबा के न केवल सारे कामों में वह हिस्सेदार बनेगा, साथ ही हर राज को भी बरकरार रखेगा.

‘इच्छाधारी बाबा’ को अपना जलवा बनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. वे जल्दी ही सम झ गए थे कि जो अपने चेहरे पर जितनी मुसकान लिए रहता है, उस के दिल में उतने ही दर्द छिपे होते हैं. उन्हें केवल उन दर्दों को कुरेदना ही था.

एक औरत सविता पर उन की निगाह पहले ही दिन पड़ गई थी. वह मंदिर गाहेबगाहे आ जाती थी और जोरजोर से बातें करती और हंसती रहती. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने सविता को ही अपना पहला शिकार बनाया.

सविता के कोई औलाद नहीं थी और उम्र भी ढलती जा रही थी. पति दूसरे शहर में काम करता था. वह 15 दिनों में एक बार ही आता, वह भी एक दिन के लिए.

सविता ने यह सब ‘इच्छाधारी बाबा’ को बता दिया. उस की बातें सुन कर बाबाजी की हवस जाग गई. फिर एक दिन सविता को अपने कमरे में बुला कर बाबाजी ने उस की कोख में अपना बीज रोप दिया.

सविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह पेट से हो गई और बाबाजी के लिए खिलौना बन गई. वे जब चाहते, उसे बुला लेते और अपने कमरे में मौज करते.

सविता का पेट अब बाहर की ओर निकला दिखाई देने लगा था. बाबाजी का मजा खत्म हो गया था. सविता ने एक दूसरी औरत को उन के कमरे में पहुंचा दिया था. धीरेधीरे ‘इच्छाधारी बाबा’ के पास औरतों की लाइन लगने लगी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की नजर अब नवीन पर गई. नवीन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. वह सुबह फैक्टरी जाने के पहले मंदिर में आ कर भगवान के दर्शन करता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ की निगाह उस पर गड़ चुकी थी. वैसे तो वे बहुत ही कम सुबह जल्दी सो कर उठते थे और कभीकभार ही सुबह की पूजा में शामिल होते थे. पर अब वे रोज आने लगे थे.

नवीन को अपने जाल में फंसाने के लिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. सविता ने नवीन के लिए एक खूबसूरत लड़की का इंतजाम कर दिया था.

‘इच्छाधारी बाबा’ के कमरे में नवीन की मुलाकात उस लड़की से कराई गई और उन के बिस्तर पर जाते ही वीडियो बना लिया गया. नवीन अब बाबाजी के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था.

इस मंदिर को और बड़ा नवीन ने ही कराया था. इसी दौरान बाबाजी ने ऊपरी भाग में अपने लिए एक ऐसा कमरा बनवा लिया था, जिस की कांच की दीवारों से वे तो बाहर  झांक सकते थे, पर कोई और बाहर से कमरे में नहीं  झांक पाता था. कमरे की मोटी कांच की दीवारों के अंदर से बहुत जोर की आवाज भी बाहर नहीं निकल पाती थी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की दुकानदारी चल निकली थी. मंदिर में भक्तों का जमावड़ा बढ़ने लगा था और पैसा बरसने लगा था. बाबाजी ने पैसा कमाने का एक और खेल चालू कर लिया था. उन के पास अब औरत भक्तों की तादाद खूब  हो गई थी. इन में वे तो शामिल थीं ही, जिन की गोद भर चुकी थी और वे भी थीं, जिन्हें केवल बाबाजी के साथ से मजा मिलता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपने अमीर भक्तों तक इन औरतों को पहुंचना शुरू कर दिया. बाबाजी के पास उन सब औरतों के वीडियो तो थे ही, इसलिए चाह कर भी वे उन के आदेश को मानने से इनकार नहीं कर पाती थीं. बाबाजी को इस नए कारोबार से ज्यादा आमदनी हो रही थी.

रम्मू ने जब अपना पुरखों का मंदिर ‘इच्छाधारी बाबा’ को किराए पर दिया था, तब उसे भी उम्मीद नहीं थी कि बाबाजी इस मंदिर को इतना चमत्कारिक बना देंगे कि पैसा बरसने लगेगा. उसे तो लग रहा था कि कुछ ही दिनों में बाबाजी मंदिर छोड़ कर भाग खड़े होंगे, पर अब जब मंदिर की चर्चा दूरदूर तक होने लगी थी, तो उसे बाबाजी से जलन होने लगी थी. उसे लगने लगा था कि वह ठगा गया है. वह अब उन्हें मंदिर से भगाने की जुगत में लग गया था.

एक दिन ‘इच्छाधारी बाबाजी’ अपने भक्तों के साथ नाच रहे थे. उन्होंने जिस औरत का हाथ पकड़ा हुआ था, उसे वे पहली निगाह में ही पसंद कर चुके थे. उन्होंने अपने कांच वाले कमरे से ही उस औरत को एक बच्चे और मर्द के साथ आते देख लिया था.

उस औरत की उम्र ज्यादा नहीं थी. उस के लंबे बाल कमर के नीचे तक लहरा रहे थे. बाबाजी ने उस औरत को दर्शन देने का मन बना लिया था, इसलिए वे अपने कमरे से नीचे आ गए थे.

उस औरत ने अपने सिर पर आंचल रख कर पूरी श्रद्धा के साथ बाबाजी के चरणों पर अपना सिर रख दिया और बाबाजी ने आशीर्वाद देने के बहाने उस की पीठ को सहला दिया.

इस के बाद बाबाजी उस औरत का हाथ पकड़ कर नाचने लगे. मंदिर के अहाते में जमा सभी भक्त भी बाबाजी के साथ नाच रहे थे. वे उसे यहांवहां छू रहे थे. वह औरत भी उन्हें छूने का भरपूर मौका दे रही थी.

थोड़ी देर के बाद वह औरत बाबाजी के कमरे में उन के सामने बैठी थी. बाबाजी उसे एकटक निगाहों से देख रहे थे. जैसे ही उन्होंने उस औरत के चेहरे पर आने वाली लट को हटाते हुए अपनी बांहों में लेने की कोशिश की, तभी उस औरत ने अपनी कमर में छिपी पिस्तौल को निकाल कर बाबाजी के माथे पर अड़ा दिया.

‘इच्छाधारी बाबा’ अभी भी मदहोश ही थे. उन्होंने पिस्तौल की परवाह किए बिना एक बार फिर उस औरत को बांहों में लेने की कोशिश की, पर अब की बार पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो तेज आवाज के साथ कांच की दीवार से जा टकराई.

गोली की आवाज बाहर नहीं गई थी, पर अंदर ही उस ने इतना धमाका किया था कि बाबाजी का सारा नशा गायब हो चुका था.

‘इच्छाधारी बाबा’ को गिरफ्तार कर लिया गया था. दरअसल, पुलिस ने ही यह सारा प्लान बनाया था. वह खूबसूरत औरत एसपी थी, जिस ने बाबाजी को अपने मोह जाल में फंसाया था.

पुलिस ने एक दिन पहले ही कुछ औरतों को एक होटल से गिरफ्तार किया था. उन्होंने ही मंदिर में चल रहे इस गोरखधंधे का खुलासा किया था. बाबाजी के कमरे से गंदी किताबों के अलावा नशीली दवाएं भी बरामद हुई थीं. ‘इच्छाधारी बाबा’ का पुराना कच्चाचिट्ठा भी खुल चुका था.

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