निर्मल ड्रैसिंग रूम में अपने कपड़े बदल कर खेल के मैदान में आया. प्रदेश के खेलकूद के दलों के लिए परीक्षाएं चल रही थीं, और निर्मल को पूरा विश्वास था कि वह लौंग जंप (लंबाई की कूद) में सफलता पाएगा. कालेज के खेलों में वह हमेशा लौंग जंप में प्रथम स्थान पाता आया था और डिग्री हासिल करने के बाद वह पिछले 2 सालों से लगातार अभ्यास कर रहा था.

निर्मल ने नीचे झंक कर अपनी पोशाक को जांचा. गंजी, निकर, मोजे, जूते, सब नए, सब बड़ी नामी कंपनियों के बने हुए, सब बेहद कीमती थे. उस के पिता ने उसे जबरदस्ती यह पोशाक पहनाई थी. आखिर वह एक बड़े आदमी का बेटा था, वह साधारण कपड़े कैसे पहन सकता था. ‘चुनने वाले तुम्हारी एक झलक देखते ही तुम्हें चुन लेंगे,’ उन्होंने कहा था.

निर्मल ने बहुत कोशिश की कि वह अपने पिता को समझए कि चुनने वाले यह नहीं देखेंगे कि उस ने कैसी पोशाक पहनी है. वे यह देखेंगे कि उस ने कितनी लंबी छलांग लगाई है. पर उस के पिता उस की बात सुनने को तैयार ही नहीं थे. निर्मल मन में प्रार्थना कर रहा था कि उस के नए जूते उस के पैरों को कोई दिक्कत न दें.

निर्मल लौंग जंप अखाड़े की ओर जा रहा था कि उस ने देखा, बाईं तरफ महिलाओं की 400 मीटर दौड़ की परीक्षा चल रही थी. उस के देखतेदेखते दौड़ने वाली लड़कियां भागती हुई आईं और जो उन सब से आगे थी उस ने फीता तोड़ा. उस ने तीनचार कदम और लिए और फिर जमीन पर गिर गई. तुरंत उस के चारों ओर लोग इकट्ठा हो गए. निर्मल भी उन में शामिल हो गया. लड़की बेहोश सी पड़ी थी.

कई लोग एकसाथ बोलने लगे और हड़बड़ी मच गई. इतने में लड़की ने अपनी आंखें खोलीं और उठ कर बैठ गई. अपने चारों ओर भीड़ देख कर शरमा गई और बोली, ‘‘चिंता मत कीजिए, मुझे कुछ नहीं हुआ है. माफ कीजिए, पर मैं ने दौड़ में अपनी पूरी जान लगा दी थी, इस कारण शायद मैं कुछ समय के लिए बेहोश हो गई थी. पर अब मैं बिलकुल ठीकठाक हूं.’’

निर्मल को उस की गहरी आवाज पसंद आई. उस ने यह भी देखा कि उस का चेहरा साधारण सा था, पर फिर भी मोहक प्रभाव का था. मन ही मन उस ने सोचा कि वह उस लड़की के बारे में और जानकारी हासिल करेगा.

लड़की खड़ी ही हुई थी कि एक अधिकारी वहां आया और उस से बोला ‘‘मुबारक हो मिस सुमन. आप 400 मीटर दौड़ की विजेता हैं, इस कारण आप प्रदेश के दल की सदस्य चुनी गई हैं. इस विषय में आप को जल्दी ही अधिकारपूर्वक सूचना दी जाएगी.’’

‘अब मैं कम से कम उस का नाम तो जानता हूं. उस से दोस्ती करना आसान होगा,’ निर्मल ने सोचा. फिर वह अपनी लौंग जंप की परीक्षा देने गया. उस ने आसानी से प्रदेश की टीम में अपनी जगह बना ली.

अगले कुछ दिनों के दौरान निर्मल ने सुमन के बारे में काफी जानकारी हासिल की, पर ऐसे तरीके से कि लोगों को शक न हो कि वह उस लड़की में कोई खास रुचि ले रहा है.

उस ने पता किया कि लड़की का पूरा नाम सुमन गुप्ता था और उस के पिता की एक बाजार में किराने की दुकान थी. उस को यह भी पता चला कि सुमन खेलकूद की शौकीन थी. 400 मीटर की दौड़ के अलावा वह हौकी और बास्केटबौल भी खेला करती थी. निर्मल ने तय किया कि वह सुमन से किसी न किसी बहाने ‘गलती’ से मिलेगा.

दो दिनों के बाद उसे मौका मिला. निर्मल अभ्यास पूरा कर के ड्रैसिंग रूम की ओर लौट रहा था कि सुमन नजर आई. उस ने अपनी दौड़ उसी समय पूरी की थी और कमर पर हाथ रखे हांफती हुई खड़ी थी.

निर्मल उस के पास से गुजरने का बहाना बनाते हुए उस से बोला ‘‘आप बहुत अच्छी तरह दौड़ती हैं.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सुमन ने गहरी सांसों के बीच जवाब दिया.

‘‘मैं निर्मल पांडे हूं. मैं लौंग जंप दल का सदस्य हूं,’’ कहते हुए निर्मल ने अपना हाथ बढ़ाया.

सुमन ने नाम के लिए हलके से उस के हाथ को छूते हुए हिलाया. ‘‘मेरा नाम सुमन गुप्ता है. मैं 400 मीटर दौड़ लगाती हूं.’’

बात आगे बढ़ाने के लिए निर्मल के पास कोई बहाना नहीं था. इस कारण उस ने विदाई ली, ‘‘आप से मिल कर खुशी हुई मिस सुमन. आशा है हम फिर मिलेंगे. गुड बाय.’’

निर्मल सुमन को अपने खयालों से निकाल नहीं सका. वह कोई न कोई बहाना बना कर, उस से तकरीबन रोज मिलने लगा. धीरेधीरे उसे महसूस होने लगा कि उस को सुमन से प्यार हो गया है.

निर्मल एक समझदार लड़का था. वह यह अच्छी तरह समझता था कि शादीब्याह के मामलों में जल्दबाजी अच्छी नहीं होती है. इन पर बहुत गंभीरता से विचार करना पड़ता है. इस कारण सुमन से शादी के बारे में काफी गहराई से वह सोचने लगा.

सुमन और उस की शादी की पहली रुकावट तो साफ नजर आ रही थी, जिस को पार करना तकरीबन असंभव लग रहा था. वह यह था कि निर्मल एक उच्च श्रेणी का ब्राह्मण था और सुमन कायस्थ थी. उस का पिता पुराने खयालात का एक सनातन पंथी था, जो दूसरी जाति की लड़की से शादी के लिए कभी राजी नहीं होता. खासकर नीची जाति की लड़की से तो बिलकुल भी नहीं.

निर्मल के पिता उस का रिश्ता एक कायस्थ लड़की के साथ शायद फिर भी मान जाते अगर वे किसी करोड़पति की बेटी होती. पर सुमन के पिता तो मामूली दुकानदार थे और निर्मल के पिता एक उद्योगपति, जिन के पास दो कारखानों के अलावा आधे दर्जन शोरूम थे. अपने से इतनी नीची सामाजिक स्थिति वाले खानदान की लड़की को अपनी बहू के रूप में वह कभी नहीं स्वीकार करते.

निर्मल को पता था कि अगर वह हिम्मत कर के अपने पिता के सामने सुमन से शादी की बात छेड़ता तो उस के पिता का बदला हुआ स्वरूप क्या होगा. वे कभी नहीं मानते कि वे जाति के आधार पर रिश्ता ठुकरा रहे हैं. पर वह अपने मन की बात छिपा कर कुछ ऐसे बोलते, ‘निर्मल बेटे, मुझे इस शादी से कोई एतराज नहीं है. आखिरकार लड़की तुम्हारी पसंद की है. उस में कई गुण होंगे. पर यह सोचो कि लोग क्या कहेंगे. सुधीर पांडे, करोड़ों का मालिक, शहर का सब से बड़ा उद्योगपति, वह अपने एकमात्र बेटे की शादी एक छोटे से दुकानदार की बेटी से करवा रहा है. जरूर दाल में कुछ काला है. लड़के ने लड़की के साथ कुछ गड़बड़ की होगी और इसी कारण मजबूरन यह शादी करनी पड़ रही है. निर्मल बेटे, तुम लोगों के मुख को बंद नहीं कर सकोगे. इस तरह की दर्जनों अफवाहें फैलेंगी. तुम्हारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी, साथसाथ मेरे भी नाम और इज्जत के चिथड़े हो जाएंगे.’

सोचतेसोचते निर्मल को एक नया खयाल आया. ‘जरा धीरेधीरे चल मिस्टर’ उस के दिमाग ने उसे टोका. ‘तुम इतने आगे कैसे निकल गए? तुम्हें पक्का यकीन है कि सुमन तुम से शादी करना चाहेगी? तुम ने अभी तक उस से पूछा तक नहीं है और तुम चले हो उस के बारे में अपने पिता से बात करने. अगर तुम अपने पिता को किसी तरह मनवा ही लो और फिर सुमन तुम से शादी करने के लिए इनकार करे तो फिर तुम कहां के रहोगे?’ मन ही मन में निर्मल ने निर्णय लिया कि जब वह अगली बार सुमन से मिलेगा तो उस के सामने शादी का प्रस्ताव अवश्य रखेगा.

दो दिनों बाद निर्मल और सुमन फिर मिले. निर्मल डर रहा था कि कहीं सुमन बुरा मान कर उसे डांट न दे. डर के मारे वह हकलाने लगा.

‘‘क्या बात है निर्मल?’’ सुमन ने पूछा. ‘‘तुम ऐसे तो पहले कभी नहीं बात करते थे. लगता है तुम कुछ सोच रहे हो और बोल कुछ और रहे हो. सचसच बताओ तुम कहना क्या चाहते हो.’’

निर्मल ने अपनी पूरी हिम्मत इकट्ठी की और बोल ही दिया ‘‘सुमन मैं तुम से प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं.’’

सुमन चौंकी पर थोड़ी देर चुप रही. वह कुछ सोच रही थी.

निर्मल को चिंता होने लगी. तब सुमन ने जवाब दिया. ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी बनने से इनकार नहीं करूंगी. मुझे इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है. मैं तुम्हें काफी अच्छी तरह जानती हूं और तुम मुझे भले आदमी लगते हो. पर तुम तो जानते हो कि मैं एक हिंदुस्तानी लड़की हूं. मेरे खयालात इतने आधुनिक नहीं हैं कि मैं अपनी मनमरजी से शादी के लिए हां कर दूं. मुझे अपने मातापिता से बात कर के उन की आज्ञा लेनी होगी.’’

‘‘मैं तुम्हारी बात समझता हूं,’’ निर्मल ने कहा. दोनों के बीच कुछ देर और बात हुई और यह तय हो गया कि दोनों अपनेअपने मातापिता से बात करने के बाद ही मामला आगे बढ़ाएंगे.

निर्मल को यह पता नहीं था कि सुमन को अपने मातापिता को मनाने में कितनी दिक्कत होगी, पर उस को पक्का यकीन था कि उस के अपने सामने जो समस्या थी, उसे सुलझना तकरीबन असंभव था.

निर्मल को एक पूरा दिन लगा एक संभव योजना बनाने में, जिस से शायद सुमन से शादी का रास्ता खुल जाए.

उस दिन शाम को जब वह अपने मातापिता के साथ खाना खाने बैठा तो बातोंबातों में उस ने आकस्मिक स्वर में कहा, ‘‘हमारे यहां एक बहुत सुंदर रूसी लड़की है. उस का नाम मारिया है और वह तैराकी की कोच है. वैसे तो उस की उम्र 35 साल है पर देखने में 20-22 साल की लगती है. मैं उसे बहुत पसंद करता हूं और हम दोनों एकदूसरे से लंबीलंबी बात करते रहते हैं.’’

निर्मल ने देखा कि उस के पिता और उस की माता एकदूसरे से नजर मिला रहे थे. उस ने आगे कुछ और नहीं कहा और अपने खाना खाने में व्यस्त हो गया. उस के मातापिता भी चुप ही रहे. अगले दिन प्रशिक्षण के दौरान निर्मल सुमन से मिला.

‘‘मैं तुम्हारे लिए अच्छी खबर लाई हूं,’’ सुमन ने उस से कहा. ‘‘मैं ने अपने मातापिता से तुम्हारे बारे में बातचीत की. शुरूशुरू में तो वे कुछ हैरान थे और शायद नाखुश भी कि मैं ने अपना वर स्वयं चुन लिया था. काफी बहस के बाद मैं ने उन को यकीन दिला दिया कि मामला कुछ गड़बड़ी का नहीं है और उन को तुम्हारे मातापिता से मिलने को राजी किया. तुम कहां तक पहुंचे हो?’’

‘‘मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ निर्मल ने जवाब दिया, ‘‘मुझे थोड़ा और समय चाहिए. पर तुम चिंता मत करो, मुझे पक्का विश्वास है कि मेरे मातापिता तुम्हें बहू के रूप में स्वीकार कर लेंगे.’’

उस दिन शाम को निर्मल ने अपनी योजना के अनुसार अगला कदम उठाया. खाना खाते हुए उस ने कहा, ‘‘आज उस रूसी लड़की मारिया और मेरी काफी लंबीचौड़ी और गहराई में बातचीत हुई. हम अपने भविष्य के बारे में काफी देर तक विवेचन करते रहे. पिताजी, मैं उसे जल्दी ही यहां बुलाना चाहता हूं ताकि वह आप लोगों से मिले.’’

‘‘निर्मल,’’ उस के पिता ने गुस्से भरी आवाज में उसे टोका. ‘‘मैं आशा करता हूं कि तुम इस लड़की से शादी करने की नहीं सोच रहे हो, क्योंकि अगर तुम्हारा ऐसा इरादा है तो मैं इसे कभी मंजूरी नहीं दूंगा. मेरे खानदान का लड़का एक विदेशी लड़की से शादी करे, वह भी जो शायद ईसाई धर्म की है और मेरे लड़के से अधिक उम्र की है. मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा. लोग मेरा हंसीमजाक उड़ाएंगे. मैं तुम्हें उस लड़की से फिर मिलने से मना करता हूं.’’निर्मल के दिल में खुशी हुई. उसे लग रहा था कि उस की योजना सफलता के रास्ते पर थी. पर उस ने मुख ऐसे बनाया जैसे वह कच्चा करेला खा रहा था. खाने को बीच में छोड़ कर वह खड़ा हो गया. ‘‘मैं और नहीं खाऊंगा,’’ कहते हुए वह अपने कमरे की ओर चला.

‘‘निर्मल बेटे…’’ उस की मां ने करुण स्वर में उसे रोकने की कोशिश की, पर निर्मल ने उन की ओर देखा तक नहीं.

‘‘जाने दो,’’ उस के पिता ने कहा. ‘‘अगर आज रात भूखा रहेगा तो शायद उस के दिमाग में कुछ अक्ल आएगी.’’

निर्मल अपने कमरे में गया और वहां अपनी भूख उन सैंडविच से मिटाई, जिन्हें वह घर आते समय बाजार से खरीद कर लाया था.

अगले दिन सुबह का नाश्ता खाते समय उस ने अपने चेहरे को बुरा सा बना रखा था और बातचीत सिर्फ हां या न तक सीमित रखी. उस के मातापिता भी कुछ खास नहीं बोले. उस रात को वह काफी देर से घर आया.

खाने की टेबल पर बैठते ही उस ने दुखभरी आवाज में कहा, ‘‘मैं ने मारिया को समझ दिया कि हम दोनों भविष्य में फिर कभी न मिल सकेंगे, मेरे मातापिता उसे पसंद नहीं करते हैं. नापसंदी का कारण उस का विदेशी होना है. उस ने मुझ से काफी बहस की, पर अंत में मान गई कि आज से हमारे रास्ते अलग होंगे.  मुझे आशा है कि अपने बेटे का दिल तोड़ कर आप लोग अब संतुष्ट हैं.’’

‘‘शाबाश बेटे,’’ उस के पिता ने कहा. ‘‘मैं जानता था कि तुम एक आज्ञाकारी पुत्र हो.’’

निर्मल की मां ने कुछ नहीं कहा पर उस के चेहरे से लग रहा था कि उन के दिमाग से काफी बोझ उठ गया है.

दो दिनों बाद निर्मल ने अपनी अगली चाल चली. ‘‘पिताजी,’‘ उस ने कहा, ‘‘एक सुमन नाम की लड़की है. वह दौड़ लगाती है और वह प्रदेश के खेलकूद दल की सदस्य है. वह मेरी दोस्त है और कई दफे घर से लाया हुआ नमकीन या मीठा स्नैक मुझे भी खिलाती है. मैं उसे घर पर चाय के लिए बुलाना चाहता हूं.’’

जैसे निर्मल ने सोचा था वैसा ही हुआ. उस के पिता की आंखों में चमक आ गई, ‘‘क्या वह भारतीय नागरिक है?’’ उन्होंने पूछा, ‘‘क्या वह हिंदू है?’’

‘‘हां, वह तो नागरिक और हिंदू दोनों है,’’ निर्मल ने जवाब दिया. ‘‘पर इन बातों और उस की चाय पर आने में क्या रिश्ता है? मैं

समझ नहीं.’’

उस के पिता ने जवाब में दो और सवाल पूछे, ‘‘उस की आयु क्या है और क्या वह शादीशुदा है?’’

‘‘वह मुझ से करीब 2 साल छोटी है और अभी तक कुंआरी है,’’ निर्मल ने अपनी आवाज आश्चर्यजनक बनाने की कोशिश की, ‘‘पर मैं पूछता हूं कि इन सवालों का सुमन का चाय पर आने से क्या लेनादेना है?’’

‘‘तुम सुमन को चाय पर अवश्य बुलाओ,’’ उस के पिता ने कहा, ‘‘और उस को बोलो कि वह अपने साथ अपने मातापिता को भी लाए, ताकि तुम्हारी मां और मुझे भी कोई बातचीत करने  को मिले.’’

यह तो स्पष्ट था कि निर्मल का पिता जल्दी से जल्दी उसे किसी ‘देसी’ लड़की के साथ बांधना चाहता था, इस से पहले कि वह किसी और फिरंगी महिला के जाल में फंसे.

दोनों बुजुर्ग जोडि़यों की मुलाकात बहुत संतोषजनक रही. निर्मल को अपनी मां के बारे में कोई चिंता नहीं थी. वह जानता था कि आमतौर पर महिलाएं एकदूसरे से आसानी से घुलमिल जाती हैं. ऊपर से उस की मां इतने अमीर आदमी की पत्नी होने के बावजूद एक साधारण सी महिला थीं जो सब से दोस्ती रखती थीं. उस की चिंता अपने पिता के बारे में ही थी कि कहीं वे अपने वैभव की ताकत दिखा कर सुमन के पिता को नीचा दिखाने की कोशिश न करें.

निर्मल को चिंता करने की जरूरत नहीं थी. दोनों पिताओं ने जल्दी ही एक पारस्परिक शौक ढूंढ़ा- क्रिकेट. कुछ ही समय बाद दोनों खिलाडि़यों के बारे में और इन के टैस्ट मैचों और सैंचुरियों पर लंबी बातचीत में लीन हो गए थे.

निर्मल और सुमन की शादी जल्दी पक्की हो गई. कुछ ही दिनों बाद दोनों तरफ के घरवालों, रिश्तेदारों से सलाह ले कर, शादी की तारीख 6 हफ्ते बाद की रखी गई.

शादी उतनी धूमधाम से नहीं हुई जितनी निर्मल के पिता चाहते थे, पर उन दिनों प्रदेश में गैस्ट कंट्रोल और्डर (मेहमान नियंत्रण आदेश) लागू था जो बहुत सख्ती से बाध्य किया जा रहा था. इस के अनुसार मेहमानों की संख्या अधिक से अधिक 50 हो सकती थी. खाने के पकवानों पर भी बहुत पाबंदी थी. इस के बावजूद शादी की रस्मों में कोई बाधा नहीं पड़ी.

उस रात सजीधजी सुमन शादी के सजाए हुए बिस्तर पर बैठी निर्मल का इंतजार कर रही थी. कुछ देर बाद कमरे का दरवाजा खुला और निर्मल अंदर आया. ‘‘अब तो मैं तुम्हें ‘हे प्रिय’ कह सकता हूं क्योंकि अब  हम पतिपत्नी हैं,’’ उस ने कहा और जेब से एक छोटी सी  बोतल निकाली.

सुमन कुछ हैरान हुई और उस ने पूछा, ‘‘बोतल में क्या है?’’

‘‘खून,’’ निर्मल ने जवाब दिया.

सुमन चौंक गई, ‘‘खून, किस का खून?’’

‘‘तुम्हारा खून,’’ निर्मल ने कहा.

‘‘मैं कुछ समझ नहीं.’’ सुमन का दिमाग चकरा रहा था.

‘‘मेरी प्यारी सुमन,’’ निर्मल ने समझया. ‘‘मैं ने तुम्हें बता दिया था कि मेरे परिवार वाले सनातन पंथी हैं. उन की सोच पुराने जमाने की है. वे सुहागरात के बाद कल सुबह हमारे पलंग के चादर पर तुम्हारे खून का दाग देखना चाहते हैं. अगर दाग उन्हें नहीं मिले तो वे समझेंगे कि तुम कुंआरी नहीं थीं और तुम्हारी जिंदगी नरक बना देंगे और शायद मुझे मजबूर कर देंगे कि तुम को तलाक दे दूं.’’

‘‘हो… नहीं,’’ सुमन बोल उठी.

‘‘पर तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है,’’ निर्मल ने उसे समझया, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम जैसी खेलकूद में भाग लेने वाली लड़कियों का हाइमन अकसर तनाव के कारण फट जाता है. इस वजह से सुहागरात के यौन संबंध के समय खून नहीं निकलता तो अगर तुम पलंग से उठ जाओ तो मैं चादर पर तुम्हारा कुछ खून गिरा दूं.’’

सुमन से कुछ जवाब देते न बना.

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