रूपापत्रिका ले कर बैठी ही थी कि तभी कालबैल की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने उस की बचपन की सहेली शिखा खड़ी थी. शिखा उस की स्कूल से ले कर कालेज तक की सहेली थी. अब सुजीत के सब से घनिष्ठ मित्र नवीन की पत्नी थी और एक टीवी चैनल में काम करती थी.

रूपा के मन में कुछ देर पहले तक शांति थी. अब उस की जगह खीज ने ले ली थी. फिर भी उसे दरवाजा खोल हंस कर स्वागत करना पड़ा, ‘‘अरे तू? कैसे याद आई? आ जल्दी से अंदर आ.’’

शिखा ने अंदर आ कर पैनी नजरों से पूरे ड्राइंगरूम को देखा. रूपा ने ड्राइंगरूम को ही नहीं, पूरे घर को सुंदर ढंग से सजा रखा था. खुद भी खूब सजीधजी थी. फिर शिखा सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘इधर एक काम से आई थी… सोचा तुम से मिलती चलूं… कैसी है तू?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तू अपनी सुना?’’

सामने स्टैंड पर रूपा के बेटे का फ्र्रेम में लगा फोटो रखा था. उसे देखते ही शिखा ने कहा, ‘‘तेरा बेटा तो बड़ा हो गया.’’

‘‘हां, मगर बहुत शैतान है. सारा दिन परेशान किए रहता है.’’

शिखा ने देखा कि यह कहते हुए रूपा के उजले मुख पर गर्व छलक आया है.

‘‘घर तो बहुत अच्छी तरह सजा रखा है… लगता है बहुत सुघड़ गृहिणी बन गई है.’’

‘‘क्या करूं, काम कुछ है नहीं तो घर सजाना ही सही.’’

‘‘अब तो बेटा बड़ा हो गया है. नौकरी कर सकती हो.’’

‘‘मामूली ग्रैजुएशन डिग्री है मेरी. मु झे कौन नौकरी देगा? फिर सब से बड़ी यह कि इन को मेरा नौकरी करना पसंद नहीं.’’

‘‘तू सुजीत से डरती है?’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है? पतिपत्नी को एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल तो रखना ही पड़ता है.’’

शिखा हंसी, ‘‘अगर दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर हो तो?

यह सुन कर रूपा  झुं झला गई तो वह शिखा से बोली, ‘‘अच्छा तू यह बता कि छोटा नवीन कब ला रही है?’’

शिखा ने कंधे  झटकते हुए कहा, ‘‘मैं तेरी तरह घर में आराम का

जीवन नहीं काट रही. टीवी चैनल का काम आसान नहीं. भरपूर पैसा देते हैं तो दम भी निकाल लेते हैं.’’

शिखा की यह बात रूपा को अच्छी नहीं लगी. फिर भी चुप रही, क्योंकि शिखा की बातों में ऐसी ही नीरसता होती थी. रूपा की शादी मात्र 20 वर्ष की आयु में हो गई थी. लड़का उस के पापा का सब से प्रिय स्टूडैंट था और उन के अधीन ही पी.एचडी. करते ही एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव लग गया था. मोटी तनख्वाह के साथसाथ दूसरी पूरी सुविधाएं भी और देशविदेश के दौरे भी.

लड़के के स्वभाव और परिवार की अच्छी तरह जांच कर के ही पापा ने उसे अपनी इकलौती बेटी के लिए चुना था. हां, मां को थोड़ी आपत्ति थी लेकिन सम झने पर वे मान गई थीं. पापा मशहूर अर्थशास्त्री थे. देशविदेश में नाम था.

रूपा अपने वैवाहिक जीवन से बेहद खुश थी. होती भी क्यों नहीं, इतना हैंडसम और संपन्न पति मिला था. और विवाह के कुछ अरसा बाद ही उस की गोद में एक प्यारा सा बेटा भी आ गया था. शादी को 8 वर्ष हो गए थे. कभी कोई शिकायत नहीं रही. वह भी तो बेहद सुंदर थी. उस पर कई सहपाठी मरते थे, पर उस का पहला प्यार पति सुजीत ही थे.

बेटी को सुखी देख कर उस के मातापिता भी बहुत खुश थे.

बात बदलते हुए रूपा ने कहा, ‘‘छोड़ इन बातों को… इतने दिनों बाद मिली है… चल सहेलियों की बातें करती हैं.’’

शिखा थोड़ी सहज हुई. बोली, ‘‘तू भी तो कभी मेरी खबर लेने नहीं आती.’’

‘‘देख  झगड़े की बात नहीं… सचाई बता रही हूं… कितनी बार हम लोगों ने तु झे और नवीन भैया को बुलाया. भैया तो एकाध बार आए भी पर तू नहीं… फिर तू ने तो कभी हमें बुलाया ही नहीं.. अच्छा यह सब छोड़. बोल क्या लेगी चाय या ठंडा? गरम सूप भी है.’’

‘‘सूप ही ला… घर का बना सूप बहुत दिनों से नहीं पीया.’’

थोड़ी ही देर में रूपा 2 कप गरम सूप ले आई. फिर 1 शिखा को पकड़ा और दूसरा स्वयं पकड़ कर शिखा के सामने बैठ गई. बोली, ‘‘बता कैसी चल रही है तेरी गृहस्थी?’’

जब रूपा सूप लेने गई थी तब शिखा ने घर के चारों ओर नजर डाली थी. वह सम झ गई थी कि रूपा बहुत सुखी और संतुष्ट जीवन जी रही है. उस का स्वभाव ईर्ष्यालु था ही. अत: सहेली का सुख उसे अच्छा नहीं लगा. वह रूपा का दमकता नहीं मलिन व दुखी चेहरा देखना चाहती थी.

शिखा यह भी सम झ गई थी कि उस के सुख की जड़ बहुत मजबूत है. सहज उखाड़ना संभव नहीं. आज तक वह उसे हर बात में पछाड़ती आई है. पढ़ाई, लेखन प्रतियोगिता, खेल, अभिनय, नृत्य व संगीत सब में वह आगे रहती आई है. रूपा है तो साधारण स्तर की लड़की पर कालेज का श्रेष्ठ हीरा लड़का उस के आंचल में आ गया था. फिर समय पर वह मां भी बन गई. पति प्रेम, संतान स्नेह से भरी है वह. ऊपर से मातापिता का भरपूर प्यार, संरक्षण भी है उस के पास. संपन्नता अलग से.

यह सब सोच शिखा बेचैन हो उठी कि जीवन की हर बाजी उस से जीत कर यह अंतिम बाजी उस से हार जाएगी… पर करे भी तो क्या? कैसे उस की जीत को हार में बदले? कुछ तो करना ही पड़ेगा… पर क्या करे? सोचना होगा, हां कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही होगा. रूपा में बुद्धि कम है. उसे बहकाना आसान है, तो कोई रास्ता निकालना ही पड़ेगा… जरूर कुछ सोचेगी वह.

मां से फोन पर बातें करते हुए रूपा ने शिखा के अचानक आने की बात कही तो वे शंकित

हो उठीं, ‘‘बहुत दिनों से उसे देखा नहीं… अचानक तेरे घर कैसे आ गई?’’

रूपा बेटे को दूध पिलाते हुए सहज भाव से बोली, ‘‘नवीन भैया तो आते रहते हैं… वही नहीं आती थी… उन से दूर की रिश्तेदारी भी है. सुजीत के भाई लगते हैं और दोस्त तो हैं ही. पर आज बता रही थी कि पास ही चैनल के किसी काम से आई थी तो…’’

‘‘मु झे उस पर जरा भी विश्वास नहीं. मु झे तो लगता है तेरा घर देखने आई थी,’’ मां रूपा की बात बीच ही में काटते हुए बोली.

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