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मेन सड़क पार करने में सुमना की हालत बिगड़ जाती है. दूसरे लोग तो जल्दी से पार हो जाते हैं, पर वह जब सारी गाडि़यां निकल जाती हैं और दूर तक कोई गाड़ी आती नहीं दिखती, तभी झट से कुछ तेज चल कर आधी सड़क पार करती है. फिर दूसरी तरफ से गाडि़यां पार हो जाती हैं तब आधी सड़क पार करती है. पहले वह सड़क अकेले पार करती थी. पर अब उस के दोनों हाथ व्हीलचेयर पकड़े रहते हैं, जिस पर बैठे रहते हैं उस के पति सुहैल.

‘‘तुम सड़क पार करने में बहुत डरती हो,’’ सड़क पार होने के बाद सुहैल ने पीछे मुड़ कर कहा.

‘‘सच में बहुत डर लगता है. ऐसा लगता है जैसे गाड़ी मेरे शरीर पर ही चढ़ जाएगी और बड़ी गाडि़यों को देख तो मैं और डर जाती हूं. लेकिन आप साथ में रहते हैं तो हिम्मत बंधी रहती है कि चलो पार हो जाऊंगी.’’ दोनों बातें करतेकरते स्कूल गेट के पास आ गए. तभी सुमना के पर्स में रखा मोबाइल बजने लगा. कंधे से झूल रहे पर्स में से उस ने मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर आ रहे नाम को देख काटते हुए बोली, ‘‘पापा का फोन है. आप को क्लास में पहुंचा कर उन से बात करूंगी.’’

‘‘तुम्हारे पापा तुम्हें अपने पास बुला रहे हैं न...?’’ सुहैल का चेहरा उतर गया.

‘‘नहीं तो,’’ सुमना साफ झूठ बोल गई, ‘‘यह आप से किस ने कह दिया? वे तो ऐसे ही हालचाल जानने के लिए फोन करते हैं. आप क्लास में चलिए.’’ सुमना व्हीलचेयर पकड़े सुहैल को 9वीं कक्षा में ले गई और खुद पढ़ने स्कूल के बगल में कालेज में चली गई. वह बी.ए. फर्स्ट ईयर में थी. एक पीरियड खत्म होने के बाद वह आई और सुहैल को 10वीं कक्षा में ले गई. फिर अपनी क्लास में आई. वहां 45 मिनट पूरे होने के बाद भी मैडम इतिहास पढ़ाती ही रहीं तो वह खड़ी हो कर बोली, ‘‘ऐक्सक्यूज मी मैम, सुहैलजी को 8वीं कक्षा में छोड़ने जाना है और उन की दवा का भी समय हो गया है. मैं जाऊं?’’

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