उस ने घड़ी देखी और उठने को हुई, तभी नर्स लीला आ कर बोली, “आप जा रही हैं मैडम. अभीअभी एक डिलिवरी केस आ गया है. अभी तक डाक्टर श्वेता नहीं आई हैं. ऐसे में उसे क्या कहूं?”

वह जाते जाते रुक गई. अभी आधे घंटे पहले वह आपरेशन थिएटर से निकली थी कि एक नया केस सामने आ गया है. वह करे तो क्या करे. आज मुन्ने का जन्मदिन है. कोरोना और लौकडाउन की वजह से घर में और कोई शायद ही आए या न आए, इसलिए उस ने उस से प्रोमिस कर रखा था कि वह शाम तक अवश्य आ जाएगी.

कुछ सोच कर वह बोली, “ठीक है, मरीज को चेक करने में हर्ज ही क्या है. तब तक डाक्टर श्वेता आ जाएंगी.”

उस ने पुनः गाउन और ग्लव्स पहने. पीपीई किट्स का पूरा सेट्स पहन कर वह लीला के साथ ओपीडी की ओर बढ़ गई.

“मैडम, वह कोरोना पेशेंट भी है,” लीला ने उसे चेतावनी सी दी, “आप को इस में देर लग सकती है. आप धीरे से निकल लें. आप की ड्यूटी तो पूरी हो ही चुकी है. डाक्टर श्वेता जब आएंगी, वे देख लेंगी.”

“अपनी आंखों के सामने पेशेंट को देख हम भाग नहीं सकते लीला,” डाक्टर सरिता मुसकरा कर बोली, “कितनी उम्मीद के साथ एक पेशेंट अस्पताल में हमारे पास आता है. हम उसे अनदेखा नहीं कर सकते. तब और, जब हम इसी के लिए सरकार से सुविधाएं और वेतन पाते हों. और डिलिवरी के मामले में तो यह एक नहीं, दोदो जिंदगियों का सवाल हो जाता है.”

उस के सामने एक महिला प्रसव पीड़ा से कराह रही थी. पेशेंट का चेकअप करने के बाद वह थोड़ी विचलित हुई. मगर शीघ्र ही वह खुद पर नियंत्रण सी करती बोली, “कौम्पिलिकेटेड केस है लीला. इस का सिजेरियन आपरेशन करना होगा. तुरंत टीम को तैयार हो कर आने को कहो.”

“आप भी मैडम क्या कहती हैं. श्वेता मैडम को आने देतीं.”

“मैं जो कहती हूं, वो करो ना. मैं इसे छोड़ कर कैसे जा सकती हूं? वार्ड बौय को तैयार हो कर शीघ्र आने को बोलो. हम देर नहीं कर सकते.”

अपनी टीम के साथ इस सिजेरियन आपरेशन को करने में उसे 3 घंटे लग गए थे. जनमे हुए स्वस्थ शिशु को देख उस ने संतोष की सांस ली. आवश्यक चेकअप करने के उपरांत यह पता चलने पर कि वह कोरोना निगेटिव है, उस ने उसे मां से अलग रखने का निर्देश दिया. वह शिशु चाइल्ड केयर में शिफ्ट कर दिया गया था. वापस अपने चैंबर में आ कर उस ने गहरी सांस ली.

उस ने दीवार घड़ी पर नजर डाली. 9 बजने वाले थे. पीपीई किट्स खोलने के दौरान वहां मौजूद नर्स राधा ने उसे जानकारी दी, “आप के फोन पर अनेक मिस काल आए हैं. चेक कर लीजिए.”

वह पसीने से तरबतर थी. पहले उस ने स्वयं को सैनिटाइज किया. उसे पता था कि वे सभी फोन घर से ही होंगे. मुन्ने का या मुकेश का ही फोन होगा. मगर उस में एक फोन डाक्टर श्वेता का भी था. बिना मास्क उतारे उस ने काल बैक किया. श्वेता उधर से बोल रही थी, “क्या कहूं डाक्टर सरिता, पता नहीं कैसे मेरी सास कोरोना पोजिटिव निकल आई हैं. उसी की तीमारदारी और भागदौड़ में पूरा दिन निकल गया. अभी भी घर में ही उन की देखरेख चल रही है.

“क्या कहें कि घर में कितना समझाया कि कहीं बाहर नहीं निकलना है. फिर भी वह एक कीर्तन मंडली में चली गई थीं. और वहीं संक्रमित हो गईं. अब बहू कुछ भी हो, ससुराल में उस की बात कितनी रखी जाती है, तुम तो जानती ही हो. पतिदेव बोले कि पहले घर के मरीज को देखो. तब बाहर की देखने की सोचना.”

“ठीक ही कह रहे हैं,” सरिता ने स्थिर हो कर जवाब दिया, “अपना भी खयाल रखना.”

अब वह मुकेश को फोन लगा कर उस से बात कर रही थी, “क्या कहूं, ऐन वक्त पर एक डिलिवरी केस आ गया. आपरेशन करना पड़ गया.”

“कोई बात नहीं,” जैसी कि उसे उम्मीद थी, वे बोले, “मैं ने तो आज छुट्टी ले ही ली थी. इसलिए सब प्रबंध हो गया था. हां, मुन्ना थोड़ा अपसेट जरूर है कि केक काटते वक्त तुम नहीं थीं.”

“क्या कहूं, काम ही मुझे ऐसा मिला है कि घर पर चाह कर भी ध्यान नहीं दे पाती. फिर भी आज तो आना ही था. मैं ने यहां सब को कह भी रखा था. मगर डाक्टर श्वेता अपनी सास के कोरोना संक्रमित हो जाने के कारण आ नहीं पाईं. फिर मुझे ही सब इंतजाम करना पड़ गया. अब काम से मुक्ति मिली है, तो थोड़ी देर में वापस आ रही हूं.”

उस ने अब ड्राइवर को फोन कर उस की जानकारी ली. वह अभी तक अस्पताल में ही था. वह उस से बोली, “सौरी मुरली, मुझे आज देर हो गई. निकलने ही वाली थी कि एक पेशेंट आ गया, जिसे देखना बहुत जरूरी था. तुम गाड़ी निकालो. मैं आ रही हूं.”

बाहर अस्पताल परिसर में ही नहीं, सड़क पर भी लौकडाउन की वजह से
गजब का सन्नाटा था. अस्पताल के मुख्य फाटक से बाहर निकलते ही जैसे उस ने चैन की सांस ली. लगभग हर मुख्य चौराहे पर पुलिस का पहरा था. एकदो जगह पुलिस ने गाड़ी रुकवाई भी, तो वह ‘एम्स में डाक्टर है, वहीं से आ रही है,’ सुन कर अलग हट जाते थे.

घर आने पर उस ने देखा, मुन्ने का मुंह फूला हुआ है. “आई एम सौरी, बेटे… मैं तुम्हें समय नहीं दे पाई.”

इस के अलावा भी वह कुछ कहना चाहती थी कि उस के पति मुकेश बोले, “मानमनुहार बाद में कर लेना. अभी तुम अस्पताल से आई हो. पहले नहाधो कर फ्रेश हो लो. गरमी तो बहुत है. फिर भी गरम पानी से ही नहानाधोना करना. मैं ने गीजर चालू कर दिया है. ये कोरोना काल है. समय ठीक नहीं है.”

अपने सारे कपड़े टब में गरम पानी में भिगो कर उस ने उन्हें यों ही छोड़ दिया. अभी रात में वह स्नान भर कर ले, यही बहुत है. स्नान कर के जब वह बाहर आई, तो मुन्ने की ओर देखा. गालों पर आंसुओं की सूखी धार थी शायद, जिसे महसूस कर वह तड़प कर रह गई. वह निर्विकार भाव से उसे ही देख रहा था. मुकेश वहीं खड़े थे. उन्होंने ही चुप्पी तोड़ी, “तुम्हारी मम्मी, दोदो जान की रक्षा कर के आ रही है. थैंक्यू बोलो मम्मी को.”

वह कुछ बोलता कि उस ने आगे बढ़ कर मुन्ने को छाती से लगा लिया, “मुन्ना मुझे समझता है. चलो, पहले मैं तुम्हारा केक खा लूं. वह बचा है या खत्म हो गया.”

“नहीं, मैं ने पहले ही एक टुकड़ा काट कर अलग रख दिया था,” मुन्ने के बोल अब जा कर फूटे, “और पापा ने होम डिलिवरी से मेरा मनपसंद खाना मंगवा दिया था.”

“तो तुम लोगों ने खा लिया न?”

“नहीं, तुम्हारे बिना हम कैसे खा लेते?” मुकेश तपाक से बोले, “मुन्ने का भी यही खयाल था कि जब तुम आओगी, तभी हम साथ खाना खाएंगे.”

“अरे, 11 बज रहे हैं. और तुम लोगों ने अभी तक खाना नहीं खाया.”

वह डाइनिंग टेबल की ओर मुन्ने का हाथ पकड़ बढ़ती हुई बोली, “चलोचलो, मुझे भी भूख लग रही है.”

बच्चा जात, आखिर अपना दुख भूल ही जाता है. खाना खाते हुए पूरे उत्साह के साथ मुन्ना बताने लगा कि पड़ोस के उस के साथियों में कौनकौन आया था, किस ने गाना गाया, किस ने डांस किया वगैरह. और किस ने क्या गिफ्ट किया.

खाना खाने के बाद वह मुन्ने को ले उस के कमरे में आई और उसे थपकियां देदे कर उसे सुलाया. फिर वह अपने कमरे में आई. वहां पलंग पर मुकेश पहले ही नींद के आगोश में जा चुके थे. उसे मालूम था कि उस की अनुपस्थिति में उन को कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी. घर में उस के अलावा बूढ़े सासससुर भी तो हैं, जिन्हें उन लोगों को ही देखना होता है. नींद तो उसे भी कस कर आ रही थी. मगर जब वह बिस्तर पर गिरी, तो सामने जैसे वह नवजात शिशु आ कर खड़ा हो गया था. जैसे कि वह उसे धन्यवाद दे रहा हो. जब वह छोटी थी, तभी उस की बड़ी बहन इसी तरह घर में प्रसव वेदना से छटपटा रही थी. उस के मम्मीपापा उसे कितने शौक से अपने घर में लाए थे कि पहला बच्चा उस के मायके में ही होना चाहिए. मगर डाक्टर की जरा सी लापरवाही कहें या देरी, उस का आपरेशन नहीं हो पाया था और वह और उस का नवजात बच्चा दोनों ही काल के मुंह में समा गए थे. तभी उस ने संकल्प किया था कि वह डाक्टर बनेगी.

कितनी मेहनत करनी पड़ी थी उन दिनों. पापा एक साधारण क्लर्क ही तो थे. फिर भी उन की इच्छा थी कि वह डाक्टर ही बने. अपनी तरफ से उन्होंने कोई कोरकसर नहीं रख छोड़ी थी और उस का हमेशा हौसला बढ़ाते रहे. यही कारण था कि पहले ही प्रयास में उस ने मेडिकल की परीक्षा क्वालीफाई कर ली थी. यह संयोग ही था कि अच्छे नंबरों की वजह से उस का चयन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अस्पताल के लिए हो गया था. यहां उस ने अपना सारा ध्यान गाइनोकोलौजी पर लगाया, जिस में उसे सफलता मिली थी. आज उसी के बल पर वह यहां पटना के ‘एम्स’ में जानीमानी गाइनोकोलौजिस्ट है.

शुरूशुरू में कितनी तकलीफ हुई थी. सभी पापा से कहते “बेटी को सिर्फ ऊंची पढ़ाई पढ़ा कर क्या होगा. उस की शादी के लिए भी तो दहेज के लिए ढेर सारा रुपया चाहिए. वह कहां से लाओगे?” और पापा बात को हंस कर टाल जाते थे. वह तो मुकेश के पापा थे, जिन्होंने उन्हें इस समस्या से उबार लिया.

“मेरा बेटा पत्रकार है. स्थानीय अखबार में उपसंपादक है,” वे बोले थे, “अगर तुम को आपत्ति न हो, तो मैं उस के लिए तुम्हारी बेटी को बहू के रूप में स्वीकार कर लूंगा. और इस के लिए किसी दहेज या लेनदेन की बात भी नहीं होगी.”

और इस प्रकार वह मुकेश की पत्नी बन इस घर में आ गई थी.

“मैं जिस काम से जुड़ा हूं, उसे सेवाभाव कहते हैं,” मुकेश एक दिन उस से हंस कर बोले थे.

“और तुम भी जिस पेशे से जुड़ी हो, वह भी सेवाभाव ही है. तो क्या तुम्हें दिक्कत नहीं आएगी?”

“यह सेवाभाव ही तो है, जो हम में हिम्मत और समन्वय का भाव उत्पन्न करता है,” उस ने भी हंस कर ही जवाब दिया था, “और जब हम दूसरों के लिए कुछ कर सकते हैं, जी सकते हैं, तो अपनों के लिए तो बेहतर ढंग से जी सकते हैं, रह सकते हैं.”

अचानक मुकेश उसे देख चौंके और बोले, “अरे, अभी तक सोई नहीं. सो जाओ भई, जितना समय मिले, आराम कर लो. क्या पता कि कब अस्पताल से तुम्हारा बुलावा आ जाए. इस कोरोना काल में वैसे भी सबकुछ अनिश्चित है. ऐसे में तुम्हारे कर्तव्य बोध को देख हमें भी रश्क होने लगता है.”

उस ने हंस कर अपनी आंखें बंद कर ली थीं.

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