सुबह होतेहोते महल्ले में खबर फैल  गई थी कि कोने के मकान में  रहने वाले कपिल कुमार संसार छोड़ कर चले गए. सभी हैरान थे. सुबह से ही उन के घर से रोने की आवाजें आ रही थीं. पड़ोस में रहने वाले उन के हमउम्र दोस्त बहुत दुखी थे. वास्तव में वे मन से भयभीत थे.

उम्र के इस पड़ाव में जैसेतैसे दिन कट रहे थे. सब दोस्तों की मंडली कपिल कुमार के आंगन में सुबहशाम जमती थी. कपिल कुमार को चलनेफिरने में दिक्कत थी, इसलिए सब यारदोस्त उन के यहां ही एकत्रित हो जाते और फिर कभी कोई ताश की बाजी चलती तो कभी लूडो खेला जाता. कपिल कुमार की आवाज में खासा रोब था. ऊपर से जिंदादिली ऐसी कि रोते हुए को वे हंसा देते.

विनोद साहब तो उन की खबर सुन कर सुन्न रह गए. बिलकुल बगल वाला घर उन का ही था. इसलिए सब से पहले खबर उन्हें ही मिली. विनोद साहब अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे. उन के दोनों बेटे अमेरिका में सैटल थे. कभीकभी मौत का ध्यान कर वे डर जाया करते थे कि अगर वे पहले चले गए तो उन की पत्नी अकेली रह जाएगी, तब उन की भोली पत्नी कैसे पैंशन और बैंक आदि के काम कर पाएगी. दोनों बेटे अपनीअपनी नौकरी में इतने मस्त थे कि वे कभी एक हफ्ते से ज्यादा इंडिया आए ही नहीं.

विनोद साहब काफी ईमानदार व मिलनसार व्यक्ति थे. वे कपिल कुमार से 3 साल बड़े थे. उन्हें मन ही मन काफी विश्वास था कि आगे उन्हें कुछ होगा तो वे उन की पत्नी की जरूर मदद कर देंगे. परंतु कपिल कुमार की अकस्मात मौत की खबर ने उन की चिंता बढ़ा दी थी.

चाय का ठेला लगाने वाला नानका सुबह उन के घर आ कर खबर पक्की कर गया था. वह सुबकसुबक कर रो रहा था. कपिल कुमार अकसर उसे छेड़ा करते थे. उस की शादी नहीं हुई थी. पर अपना घर बसाने का उस के मन में बहुत चाव था. वह पंजाब के होशियारपुर का रहने वाला था. उस के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे. उसे विधवा मौसी ने पाला था. फिर वह भी कैंसर से बीमार हो कर ऊपर वाले को प्यारी हो गई थी. उस का मन संसार से विरक्त हो गया था.

वह घरबार छोड़ कर इधरउधर घूमता रहा. एक दिन विनोद साहब को ट्रेन में मिला था. उस के बारे में जान कर वह उसे सम झाबु झा कर साथ ले आए थे. उन्होंने अपनी मंडली की मदद से उस को चाय का ठेला लगवा दिया था. दिनभर उस के ठेले पर अच्छा जमघट लगा रहता. उस की मीठी बोली का रस लोगों के दिलों तक पहुंच जाता था और सब उस के कायल हो जाते थे. सारा दिन मंडली का चायनाश्ता उस की जिम्मेदारी थी. वे लोग भी उस का खूब खयाल रखते. कभी उस को बड़ा और्डर मिल जाता तो वे सब उस की मदद करने बैठ जाते. उन से उस का कुछ बंधा हुआ नहीं था. जब जिस का मन होता वह उसे पकड़ा देता और उस ने भी उन के साथ कुछ हिसाबकिताब नहीं रखा था. नानका के लिए वे सभी लोग खून से बड़े रिश्ते वाले थे.

उन लोगों के दिए प्यार और अपनेपन ने उस के शुष्क मन में हरियाली भर दी. आज कपिल कुमार के जाते ही उस को लगा कि उस का अपना उसे छोड़ कर चला गया. उन की मंडली के खन्ना साहब को भी जब से खबर मिली थी तब से वे भी काफी उदास थे. मन ही मन सोच रहे थे कि उन सब का घोंसला टूट गया. दिल चाह रहा था कि दौड़ कर कपिल कुमार के घर पहुंच जाएं पर पांव थे कि साथ नहीं दे रहे थे. शायद मन ही मन अपना भविष्य वे कपिल कुमार में देख कर डर गए थे.

उन के बेटे ने जब से खबर सुनाई थी, वे सोच में डूबे थे. पता नहीं जिंदगी का मोह था या सचाई से सामना करने का डर जो उन्हें अपने जिगरी यार के घर जाने से रोक रहा था. उन के कानों में कपिल कुमार के जोरदार ठहाकों की आवाज गूंज रही थी. कल शाम ही लूडो खेलते हुए वे जब बाजी जीत गए तो बोले थे, ‘मु झ से कोई जीत नहीं सकता.’

सरदार इंदरपाल का भी यही हाल था. वे कपिल कुमार के घर सुबह ही पहुंच गए थे. उन की बौडी के पास बैठे वे पथरा से गए थे. परिवार के रोने की आवाजें रहरह कर उन के कानों में गूंज रही थीं. ‘पापाजी की तसवीरों में से अच्छी सी तसवीर निकालो…’, ‘बेटे को खबर कर दी…’,  ‘अच्छा दोपहर तक पहुंचेगा…’ ‘बेटी आ गई…’ अचानक रोने की आवाज तेज हो गई. उन के भाईबहन पहुंच गए थे. सरदार इंद्रपाल को मालूम था कि कपिल कुमार के अपने भाई से रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं थे पर अंतिम यात्रा में सब को शामिल होना था.

सरदार इंद्रपाल अपने ही विचारों में खो गए. उन का एक ही बेटा था. अपना सबकुछ लगा कर उसे पढ़ायालिखाया. अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में काम करता था. डौलरों में तनख्वाह मिलती थी, खूब पैसा भेजता था. शुरू में तो हमेशा कहता था, ‘कुछ साल का अनुभव लेने के बाद वापस आ जाएगा, तब अपने देश में उसे अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’ धीरेधीरे उसे अपने भविष्य के आगे बेटे का भविष्य दिखाई देने लगा. इंद्रपाल पत्नी के साथ अपने पुश्तैनी मकान में रह गए और फिर एक दिन पत्नी भी छोड़ कर चली गई. अब तो ये यारदोस्त की मंडली ही उन के लिए सबकुछ थी.

आज उन में भी एक विकेट गिर गया. कपिल कुमार के घर से बाहर आ कर उन का दिल बहुत भावुक हो गया. उन्होंने बेटे को फोन मिलाया. ‘‘क्या हुआ पापाजी, सब ठीक है न?’’ उस की आवाज की घबराहट सुन कर सरदार इंद्रपाल को अपनी गलती का एहसास हुआ. वहां इस समय मध्यरात्रि थी.

अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए बोले, ‘‘हां पुत्तर, सब ठीक है. रात को बुरा सपना आया था, सो तुम सब की खैरियत जानने के लिए फोन किया था. टाइम का खयाल ही दिमाग से निकल गया.’’

बेटे के दिल तक पिता की व्याकुलता पहुंच चुकी थी. उस ने धीरे से कहा, ‘‘पापाजी, क्या हुआ है?’’‘‘मेरा यार कपिल सानू छड के चला गया,’’ कहतेकहते वे बच्चों की तरह बिलख कर रोने लगे. बेटे ने कई तरह से उन को दिलासा दिया और जल्दी ही आने का वादा कर के उन्हें शांत किया.

इधर बंगाली बाबू का भी घर पर यही हाल था. जब से कपिल कुमार की डैथ का उन्हें पता चला, तब से वे न जाने कितनी बार टौयलेट जा कर आए थे. वे शुरू से कम बोलते थे, पर मितभाषी होने पर भी कुदरत ने इमोशंस उन को भी कम नहीं दिए थे. वे अच्छे सरकारी ओहदे से रिटायर्ड थे. बहुत से लोगों से उन की जानपहचान थी. परंतु रिटायरमैंट के बाद संयोग से जिस भी दोस्त को फोन किया, तो पता चला कि वह इस लोक को छोड़ गया. तब से उन के मन में वहम हो गया, इसलिए उन्होंने फोन करना ही छोड़ दिया.

सब उन का मजाक उड़ाते कि उन के फोन करने और न करने से कुछ बदलने वाला नहीं है. पर वे मुसकरा कर कहते ‘फोन न करने से मेरे मोबाइल में उन का नंबर बना रहता और दिल को तसल्ली रहती है कि मेरे पास अभी भी इतने सारे दोस्त हैं,’ उन की पत्नी कब से पैरों में चप्पल डाले तैयार खड़ी थी पर बंगाली बाबू के पेट में बारबार मरोड़ उठने लगते थे. आखिर हिम्मत कर के वे अपने यार के अंतिम दर्शन के लिए निकल पड़े. रितेश साहब इन सब से कुछ विपरीत थे. वे सुबह ही कपिल

कुमार के घर पर आ कर पूरा इंतजाम संभाल रहे थे. शादीब्याह हो या किसी का मरना, वे इसी तरह अपनी फ्री सेवा प्रदान करते हैं. किसी के बिना कुछ कहे सब इंतजाम वे अपने से कर लेते थे, फिर कपिल तो उन का यार था. इस में कैसे वे पीछे रह जाते. बाहर तंबू लगवाते वे सोच रहे थे कि बाकी दोस्त कहां रह गए. सब की मनोदशा का उन को कुछकुछ अंदाजा था. नानका वहां पहले से पहुंचा हुआ था. घर के बाहर लगे लैटर बौक्स से पानी का बिल हाथ में लिए आया और फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘हर बार साहब मु झे पहले जा कर बिल भरने की हिदायत देते थे और सब के बिल इकट्ठे कर के देते थे. अब मु झे कौन…’’ रितेश साहब ने उसे अपने कंधे से लगा लिया और उसे चुप कराने लगे. नानका सब का दुलारा था. पानी का बिल हो या किसी बीमार रिश्तेदार को देखने जाना हो, सब का यह मुंहबोला बेटा हमेशा उन के साथ जाता था. वह कब उन के दुखसुख का साथी बन गया था, यह किसी को नहीं पता था.

दोपहर तक कपिल कुमार का बेटा परिवार सहित आ गया. सभी रिश्तेदार भी धीरेधीरे जमने शुरू हो गए. कपिल कुमार की मित्रमंडली भी उन के घर के आगे जमा हो गई. आती भी कैसे नहीं, यार को अंतिम यात्रा में कंधा देना था. अर्थी के उठाते ही एक बार फिर रुदन का स्वर ऊंचा हो गया. महल्ले के कोने में खड़ा नानका चाय वाले की आंखें नम हो आई थीं. इस मित्रमंडली की वजह से उस का मनोरंजन होता रहता था, वरना आजकल तो सब लोग घर में ही घुसे रहते हैं, कोई किसी से बात कर के राजी ही नहीं है.

शाम होतेहोते सबकुछ खत्म हो गया. जिस आदमी के ठहाकों से पूरी गली गूंजती थी, वहां आज मातम छाया था. सब अपने घरों में जा कर दुबक गए.

रितेश साहब ने हिम्मत की और कपिल कुमार के घर के आंगन में पहुंच गए. घरपरिवार के लोग अंदर थे. बाहर मित्रमंडली की कुरसियां तितरबितर थीं. धीरेधीरे उन्होंने कुरसियों को सहेजना शुरू किया और बड़े जतन से उसे सटाने लगे. वे बीच में कोई जगह खाली नहीं छोड़ना चाहते थे, शायद ऐसा करने से तथाकथित यमराज उन दोस्तों तक न पहुंच पाए. बाहर हलचल की आवाज सुन कर कपिल कुमार का बेटा बाहर आ गया.

उन्हें कुरसी लगाते देख कर बोला, ‘‘अंकल, कोई आने वाले हैं?’’ ‘‘हां बेटा, हम सब की मजलिस का समय हो गया है,’’ कहतेकहते फफक कर रोने लगे. उन्हें किसी तरह चुप करवा कर कपिल कुमार का बेटा उन्हें उन के घर छोड़ कर आया.

3-4 दिनों में ही सब क्रियाकर्मों के साथ उस ने सामान का निबटारा शुरू कर दिया. सब सामान पुराना था, इसलिए बेहतर यही सम झा गया कि आसपड़ोस वालों को या गरीबों को दे दिया जाए. कपिल कुमार की मित्रमंडली का मन था कि सभी कुरसियां वह ज्यों की त्यों छोड़ दे पर सकुचाहट की वजह से प्रकट में कोई नहीं बोला.  शायद, दोबारा अपनी मंडली को एकसाथ एकत्रित करने का साहस बटोर रहे थे.

चौथे के अगले दिन उन्हें पता चला कि सब सामान इधरउधर दे कर मकान का भी सौदा हो गया है. मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर व्यावहारिक होने में अब कम ही समय लगता है. नम आंखों के साथ कपिल कुमार का बेटा सब से विदाई ले कर चला गया.

उस के जाते ही सारे दोस्त अपनेअपने घरों से निकल आए जैसे उस के जाने का इंतजार कर रहे हों. कपिल कुमार के घर के बाहर एक कोने में टैंट वाले की दरी अभी भी पड़ी थी. चुपचाप सारे दोस्त असहज हो कर भी उसी दरी पर बैठने की कोशिश करने लगे. उम्र के इस मोड़ पर चौकड़ी मार कर बैठना मुश्किल था, सब निशब्द थे पर उन के मौन में भी एक प्रश्न था कि कल से कहां बैठने का इंतजाम करना है.

महल्ले के कोने में खड़ा चायवाला नानका अचानक से हाथ जोड़े उन के सामने आ कर खड़ा हो गया.  ‘‘साहब, कपिल कुमार के बेटे ने सारी कुरसियां मु झे दे दी हैं. आप सब से विनती है कि आप चल कर मेरी दुकान पर बैठें. आप सब हैं, तो इस महल्ले में रौनक है, वरना आजकल कौन किसी से बात करता है.’’

कुछ ही देर में चाय वाले के यहां उन सब का नया घोंसला तैयार था और वे सब बैठे लूडो खेलने की तैयारी में लगे थे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...