कर्ली हेयर, खुबसूरत नाकनक्श और हंसमुख अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा ने इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. दिल्ली की एक पंजाबी परिवार में जन्मी सान्या ने दिल्ली से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. वह एक ट्रेन्ड बैले डांसर भी है. बहुत कम लोग जानते है कि बचपन में सान्या हकलाया करती थी, जिसे उन्होंने समय के साथ दूर किया.
सान्या वर्ष 2013 में, डांस रियलिटी शो ‘डांस इंडिया डांस‘ में भाग लेने के लिए मुंबई आई थी, लेकिन दुर्भाग्यवश शीर्ष 100 से आगे नहीं जा सकी, हालांकि, उन्होंने इस शो में भाग लेने में नाकाम रहने के बादनृत्य छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें लगता था कि ये क्षेत्र उनके लिए ठीक नहीं है,लेकिन मुंबई में रहने के लिए कोशिश करने लगी, इसके लिए उन्होंने शुरुआत में कई विज्ञापनों में मॉडलिंगकिया, लेकिन उनका अभिनय कैरियर की शुरुआत 2016 में आमिर खान की स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म दंगल से की थी, जिसमें उन्होंने पहलवान बबीता फोगाट का किरदार निभाया था.इसके बाद उन्होंने कॉमेडी-ड्रामा फिल्म ‘बधाई हो’,‘फोटोग्राफ’, ‘लूडो’, ‘पगलेट’आदि कई फिल्मों, शोर्ट फिल्मों और वेब सीरीजमें अभिनय किया.सान्या के लिए बॉलीवुड बिल्कुल नई दुनिया थी, क्योंकि उनका कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था. इसलिए उन्हें पहचान बनाने में मुश्किल हुई और ये सबके लिए मुश्किल होता है,लेकिन इसे उन्होंने अधिक महत्व नहीं दिया. उनका कहना है कि हर किसी को कुछ उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है. सान्या ने अभिनय से पहले आमिर खान के प्रोडक्शन हाउस में कुछ दिनों तक इंटर्न के रूप में भी काम किया इससे उन्हें फिल्मों के बारें में जानकारी अच्छी मिली थी और अभिनय करने में भी आसानी हुई.
नेटफ्लिक्स पर आने वाली कॉमेडी ड्रामा फिल्म ‘कटहल’ में सान्या, पुलिस ऑफिसर महिमा की मुख्य भूमिका निभा रही है. उन्होंने गृहशोभा के साथ ख़ास बातचीत की, आइये जाने सान्या मल्होत्रा के जर्नी की कहानी उनकी जुबानी.
सान्या को हमेशा अलग प्रकार की फिल्मों में काम करना पसंद है, इसलिए वह हर तरह की भूमिका जो रियल लाइफ से जुडी हो उसमें काम करना पसंद करती है. इस फिल्म की खास बात के बारें में जिक्र करती हुई वह कहती है किमैंने कभी ऐसी कहानी के साथ काम नहीं किया है, इसके लेखक अशोक मिश्रा है. यह एक रियल लाइफ की कहानी है और बहुत अधिक रिलेटेबल भी है. इसमें कॉमेडी और मस्ती दोनों है, क्योंकि यहाँ एक राजनेता के दो कटहल चोरी हो जाती है, जिसे पूरा पुलिस फ़ोर्स खोज रहा है, ये बहुत ही मजेदार कांसेप्ट है. वन लाइनर सुनते ही मुझे बहुत पसंद आ गया था और मुझे इसे करने की इच्छा पैदा हुई. कटहल की पूरी शूटिंग ग्वालियर में हुई है. कठिन नहीं था, क्योंकि डायरेक्टर का निर्देशन बहुत अच्छा है, लेकिन संवाद को पकड़ना मेरे लिए मुश्किल था. ग्वालियर की भाषा को सीखने में कुछ समय लगा. एक बार भाषा पर पकड़ हो जाने पर केवल शूट में ही नहीं, बाकी समय में भी मैं वैसी ही भाषा बोलने लगी थी.
पुलिस की भूमिका को निभाना सान्या के लिए आसान नहीं था,वह कहती है कि पुलिस की भूमिका निभाना मेरे लिए एक गर्व की बात है,पुलिस की वर्दी मैंने फिल्म में पहनी है, पर उसकी डिग्निटी और रेस्पोंसिबिलिटी का एहसास मेरे अंदर आया है. इसके लिए मैं ग्वालियर गई थी, वहां पर पुलिसवालों ने मेरा बहुत साथ दिया, मुझे उनके काम करने के तरीके को समझना था. मैं वहां लेडी पुलिस ऑफिसर से मिली, उनके साथ 2 दिन समय बिताई. वहां मैंने उनके काम को देखकर बहुत प्रभावित भी हुई, क्योंकि वह महिला ऑफिसर अपनी ड्यूटी के साथ-साथ घर भी सम्हाल रही थी. ये सामंजस्य सिर्फ एक महिला पुलिस ही कर सकती है.वह एक पत्नी के साथ-साथ माँ भी है. ये सब मेरे लिए प्रेरणादायक रही.
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नहीं बनी टाइपकास्ट
टाइपकास्ट न होने को लेकर सान्या का कहना है कि मैंने सीरियस और ड्रामा हर तरह की फिल्में की है. यही वजह है कि मुझे अलग वैरायटी की फिल्मों में अभिनय का मौका भी मिला है,दंगल,पटाखा, लूडो, पगलेट आदि सारी फिल्में एक दूसरे से अलग और ख़ास चरित्र की है. कभी ड्रामा, कभी रोमांस, कभी कॉमेडी, कभी एक्शन है. मैं खुद को खुशनसीब समझती हूँ कि निर्देशक भी मुझे अपनी फिल्मों में इमेजिन करते है और मुझे एप्रोच करते है. मुझे एक्टिंग करना बहुत पसंद है और आप जो भी करवा लो, कर सकती हूँ.
हर फिल्म ने सिखाया बहुत कुछ
दंगल से अबतक की जर्नी में आप खुद कितनी ग्रो की है? पूछने पर अभिनेत्री का कहना है, मुझे लगता है कि कुछ सालों तक मैं अपने काम से खुश नहीं रहती थी. फिल्में रिलीज भी हुई, सबने प्रशंसा भी की, लेकिन मुझे कुछ कमी मुझमे नजर आती थी, लगता था मैं कुछ और अधिक अच्छा कर सकती हूँ. धीरे-धीरे अब लगने लगा है कि मैं ठीक हूँ और अच्छा काम कर रही हूँ, ये शिफ्ट फिल्म ‘पगलैट’ के बाद मुझमे आई है, क्योंकि इस फिल्म के बाद मेरे कैरियर में भी काफी बदलाव आया. मुझे काफी कॉन्फिडेंस मिला. अब मैं समझने लगी हूँ कि मेरी जर्नी अब ठीक चल रही है.
करती हूँ मेहनत
एक्टिंग में रियलिटी को दर्शाने के लिए सान्या बहुत मेहनत करती है, वह हंसती हुई कहती है कि मैं बहुत मेहनत खुद से करती हूँ,लेकिन फिल्ममेकिंग एक टीम एफर्ट है. मैं रोल छोटा हो या बड़ा मेहनत में कोई कमी नहीं करती और चरित्र को समझने की पूरी कोशिश करती हूँ. स्क्रिप्ट में मैं खुद से क्या डाल सकती हूँ इसकी कोशिश पहली फिल्म दंगल से ही रही है. वैसे देखा जाय तो एक कलाकार से अधिक डायरेक्टर का ही फिल्म को बनाने में योगदान होता है. वे जैसा चाहते है, एक्टिंग वैसी ही करनी पड़ती है. आगे मैं फिल्म, जवान, साम बहादुर आदि कई फिल्में कर रही हूँ.
है चुनौती ओटीटी को
सान्या आगे कहती है कि ओटीटी से फिल्म इंडस्ट्री में बहुत बदलाव आया है,क्रिएटिविटी बहुत बढ़ी है, शोर्ट फिल्म, वेब सीरीज,आदि बहुत कुछ बनाया जा रह है, इससे केवल कलाकार को ही नहीं, लेखक, निर्देशक, टेकनीशियन आदि सभी को काम मिल रहा है, ओटीटी के लिए फिल्में अधिक रिलेटेबल और अच्छी कहानियों को दिखाने की चुनौती है.
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हँसे खुलकर
सान्या की हंसमुख चेहरे के राज के बारें में पूछने पर हंसती हुई कहती है कि मेरी हंसमुख होने की वजह मेरी सोच है और मैं किसी बात को कभी भी अधिक नहीं सोचती, कम चीजों में ही खुश रहती हूँ और खुश रहना मुझे अच्छा लगता है. भूमिका कितनी भी सीरियस हो या कॉमेडी, मुझे हंसने के लिए कुछ खोजना नहीं पड़ता. फिल्मे भी मैं मनोरंजन वाली करना चाहती हूँ, क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन में समस्याएं है और सीरियस फिल्में देखना कोई पसंद नहीं करता.
माँ है मेरी दोस्त
माँ के साथ बिताये पल के बारें में पूछने पर सान्या कहती है कि मैं अपनी माँ के साथ हर बात को शेयर करती हूँ, ऐसा किये बिना मुझे चैन नहीं होता. ये बचपन से मेरी आदत है. स्कूल से घर आने के बाद जब माँ किचन में रोटियां बना रही होती थी, मैं दरवाजे के आगे खड़ी होकर स्कूल में टीचर, बच्चों आदि से जुडी सारी बातें घंटो शेयर करती थी. आज भी अगर मुझे किसी प्रकार की कोई समस्या है तो माँ से शेयर अवश्य करती हूँ. माँ से अधिक वह मेरी दोस्त है. माँ के हाथ का बना राजमा चावल मुझे बहुत पसंद है. अभी मैं दिल्ली में हूँ, उन्हें पता है, लेकिन अभी तक राजमा चावल भेजा नहीं है. मैं एकबार उन्हें फिर से याद दिलाने वाली हूँ.
दिया सन्देश
मेरा मेसेज सभी से है कि हमेशा अच्छी और मनोरंजक फिल्में देखे, क्योंकि इससे मूड पर असर करता है, आप ख़ुशी का अनुभव कर सकते है. खुश रहना जीवन में बहुत जरुरी है. वयस्कों से लेकर यूथ सभी को जीवन में खुश रहने के बारें में खुद को सोचना है, ख़ुशी कोई देता नहीं, उसे खुद ही ढूँढना पड़ता है. मैंने इन कॉमेडी फिल्मों को कई बार देखा है, जिसमे अंगूर, हेराफेरी, हाउसफुल आदि फिल्में है, इसे देखने से मेरे अंदर ख़ुशी का अनुभव होता है और मेरा मूड अच्छा हो जाता है.