धर्म एक लूट का धंधा है, यह तो हम अरसे से कह ही रहे हैं पर हर अंधभक्त यह जानता है कि धर्म के नाम पर वह पगपग पर लुटता है और फिर भी उस का ब्रेनवाश इस कदर किया जाता है कि धर्म में लूट को भाग्य का फल मानता है और कहीं पूजापाठ के बाद उसे कोई लाभ हो जाए तो वह धर्म का कमाल मानता है.

चारधामों का प्रचार हाल में खूब जोरशोर से किया गया है और लाखों धर्मांधों को पर्यटन और पूजापाठ के दोहरे गुण गिना कर उन्हें इन स्थलों पर भेजा जा रहा है. अब पता चला है कि चारधाम के नाम पर लूट बाकायदा कंप्यूटर विज्ञान के साथ होने लगी है और अंतर्यामी चारधामों के देवता इसे रोकने में हमेशा की तरह असफल हैं.

साइबर ठगों ने चारधामों की यात्राओं की बुकिंग करने के लिए फर्जी वैबसाइटें बना रखी हैं जो गूगल को पैसे देने पर सब से ऊपर आ जाती हैं. लोग इन वैबसाइटों पर हर तरह की सुविधा, पक्की बुकिंग, टाइम, दाम, जगह जब पाते हैं तो उन्हें विश्वास हो जाता है और नैटवर्किंग या क्रैडिट कार्ड से भुगतान कर डालते हैं.

ये शातिर लोग हैलिकौप्टर बुकिंग, मंदिर टिकट बुकिंग, ट्रैवल बुकिंग, होटल बुकिंग, पंडित बुकिंग, स्वास्थ्य सेवा बुकिंग करते हैं और पैसे पहले रखा लेते हैं. शुरू में इन्हें सेवा लेने के जम कर फोन भी आते हैं और एक बार पैसे खाते से गए नहीं कि सन्नाटा छा जाता है. बेईमानीईमानदारी का चोलीदामन का साथ है. दोनों साथ चलते हैं पर जिस धर्म को जीवन को सुधारने, शराफत सिखाने, कल्याण करने और लक्ष्मी बरसाने वाला कह कर रातदिन प्रचारित किया जाता है वहीं पहले कदम पर लूट होनी शुरू हो जाए तो आश्चर्य तो नहीं लगता पर धर्म की पोल जरूर खोलता है.

धर्म का बाजार लूटता है. दुनियाभर में भव्य चर्च, मसजिदें, बौध बिहार, गुरुद्वारे, मंदिर उस चंदे और दान से बने हैं जो काल्पनिक वादों के बल पर वसूला गया है. हर धर्म में पोल ही पोल हैं और इसीलिए हर धर्म पोल खोलने को ईशनिंदा कहता है और राजाओं व सरकारों को पटा कर ईशनिंदा को धार्मिक भावनाएं भड़काने का नाम दे कर अपराध घोषित कर रखा गया है.

जो वैबसाइटें बेईमानी कर के पैसा लूट रही हैं वे असल में तो चंदा और दान ही जमा कर रही हैं. क्व10 हजार चढ़ाओ अवश्य संतान होगी. अदालत में केस डालेंगे, शेयरों के दाम बढ़ेेंगे, जल्दी शादी होगी और हैलिकौप्टर बुकिंग मिलेगी, टैक्सी स्टेशन पर खड़ी मिलेगी, गाइड हर जगह मिलेगा के  झूठों में आखिर अंतर क्या है. न पहले मामले में कुछ मिलता है न दूसरे में. धर्मांध तो खोएगा ही, चाहे मूर्ति के आगे खोए या मूर्ति के असलीनकली एजेंट के आगे.

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