अपने अपार्टमैंट के फोर्थ फ्लोर की गैलरी में बारिश में भीगती खड़ी आयशा के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे उस की आंखों से गिरते आंसू ही बारिश बन कर बरस रहे हैं और आज पूरे शहर को बहा ले जाएंगे. इस से पहले तो पुणे में ऐसी बारिश कभी नहीं हुई थी.

तभी आयशा का फोन बजा, लेकिन वह अपनेआप में कुछ इस तरह खोई हुई थी कि उसे फोन की रिंग सुनाई ही नहीं दी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे इतनी जल्दी यह दिन देखना पड़ेगा. वह जानती थी ईशा उस का साथ छोड़ देगी, लेकिन इतनी जल्दी यह नहीं सोचा था. ईशा को तो अपना प्रौमिस तक याद नहीं रहा. उस ने कहा था जब तक वह मौसी नहीं बन जाती वह कहीं नहीं जाएगी. लेकिन वह अपना वादा तोड़ कर यों उसे अकेला, तनहा छोड़ कर चली गई. क्या यही थी उस की दोस्ती?

तभी मोबाइल दोबारा बजा और निरंतर बजता ही रहा. तब जा कर आयशा का ध्यान उस ओर गया और उस ने फोन उठाया.

फोन ईशा की छोटी बहन इषिता का था. फोन उठाते ही इषिता बोली, ‘‘दीदी, आज रात

ही हम नागपुर लौट रहे हैं. दीदी का सामान पैक करते हुए दीदी की अलमीरा से हमें आप के

नाम का एक बंद लिफाफा मिला है, उस में

शायद कोई चिट्ठी है. आप चिट्ठी लेने आएंगी

या फिर औफिस से लौटते हुए जीजाजी कलैक्ट कर लेंगे?’’

यह सुनते ही आयशा बोली, ‘‘नहीं… नहीं… मैं अभी आती हूं.’’

‘‘लेकिन दीदी अभी तो तेज बारिश हो

रही है. आप कैसे आएंगी?’’ इषिता शंका जताते हुए बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, मेरे यहां से वहां की दूरी महज 10 मिनट की है,’’ कह कर आयशा ने फोन रख दिया और बिना छाता लिए भागती हुई ईशा के घर की तरफ दौड़ी.

आज यह 10 मिनट का फासला तय

करना आयशा के लिए काफी लंबा लग रहा था. उसे लग रहा था जैसे उस के कदम आगे बढ़

ही नहीं रहे हैं. रोज तो वह औफिस आतेजाते

ईशा से मिलते हुए जाती थी और पिछले 1 साल से तो वह लगभग रोज ही ईशा से मिलने जाने लगी थी. जब से उसे इस बात की खबर लगी

थी कि ईशा को कैंसर है, तब तो उसे कभी ईशा के घर की दूरी इतनी लंबी नहीं लगी फिर आज क्यों लग रही है. शायद इसलिए कि आज दरवाजे पर मुसकराती हुई उसे ईशा नहीं मिलेगी.

जब से आयशा ने होश संभाला है तब से ईशा और वह फ्रैंड्स हैं. दोनों नागपुर में एक ही सोसाइटी में रहते थे और दोनों का घर भी अगलबगल ही था. था क्या अब भी है. जब आयशा करीब 7 साल की थी, तब ईशा अपनी मम्मी और छोटी बहन इषिता के साथ इस सोसाइटी में शिफ्ट हुई थी. ईशा की मम्मी तलाकशुदा और वर्किंग लेडी थी इसलिए ईशा और इषिता का ज्यादातर समय आयशा के ही घर बीतता था.

आयशा और ईशा हमउम्र थे इसलिए दोनों के बीच बहुत जल्दी गहरी दोस्ती हो गई. बचपन से ही ईशा बहुत खूबसूरत थी. गोरा रंग, काले घने बाल, नीलीनीली आंखें. उस की आंखें बेहद आकर्षक थीं. जो भी उसे देखता उस की सुंदर आंखों की तारीफ किए बिना नहीं रह पाता. वहीं आयशा साधारण नैननक्श की और सांवली थी.

बेसुध सी पूरी तरह से भीगी आयशा ईशा के फ्लैट पहुंची तो उसे इस हाल में देख ईशा की मम्मी और बहन हैरान रह गए. ईशा की मम्मी सामान पैक करना छोड़ दौड़ कर आयशा के करीब आ कर बोलीं, ‘‘यह क्या है आयशा बेटा. हम सब जानते थे न ईशा को जाना ही है फिर

सच को स्वीकारने में तुम्हें इतनी तकलीफ क्यों हो रही है?

आयशा इस बात का कोई जवाब दिए बगैर ईशा की मम्मी से लिपट फूटफूट कर रो पड़ी. तभी इषिता वह लिफाफा ले कर आ गई और आयशा की ओर बढ़ाती हुई बोली, ‘‘दीदी यह लो.’’

आयशा लिफाफा ले कर चुपचाप घर लौट गई. बारिश भी अब थम चुकी थी. घर लौटते वक्त आयशा के मन में इस लिफाफे को ले कर एक बेचैनी सी उठ रही थी. आयशा को अपनी और ईशा की हर छोटीछोटी बात याद आने लगी थी.

आयशा आज भी नहीं भूली है जब कोई ईशा की सुंदरता की तारीफ करता तो उसे कभी इस बात का बुरा नहीं लगता था, लेकिन यदि कोई आयशा की तारीफ करता तो ईशा फौरन चिढ़ जाती और घंटों आयशा से मुंह फुलाए बैठी रहती. आयशा उसे मनाती, उस का होमवर्क भी कंप्लीट कर देती तब कहीं जा कर वह मानती.

आयशा और ईशा दोनों एक ही क्लास में थे इसलिए जब भी क्लास में होमवर्क ज्यादा मिलता ईशा कोई न कोई बहाना बना कर आयशा से नाराज होने का ढोंग करती ताकि वह उस का भी होमवर्क कर दे. आयशा यह बात जानते हुए कि ईशा अपना होमवर्क कंप्लीट कराने के लिए यह सब स्वांग रच रही है, उस का होमवर्क बिना कुछ कहे कंप्लीट कर देती और फिर ईशा आयशा को गले लगा लेती.

सभी को ईशा की सुंदरता और आयशा का सौम्य स्वभाव भाता. समय अपनी गति से चल रहा था और वक्त के साथसाथ ईशा की खूबसूरती और ज्यादा मादक होती जा रही थी. ईशा को अपनी खूबसूरती पर गुमान था. आयशा सांवली अवश्य थी, लेकिन एक आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी.

ईशा की खूबसूरती के सभी दीवाने थे, लेकिन जहां पढ़ाई या कुशल व्यवहार की बात आती आयशा बाजी मार जाती. लेकिन इन सब के वाबजूद दोनों में पक्की दोस्ती थी इसलिए दोनों ने हाई स्कूल पासआउट होने के बाद एक ही इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन ले लिया, जहां उन की मुलाकात क्षितिज से हुई जो उन्हीं की आईटी ब्रांच का सीनियर स्टूडैंट था और कालेज का सब से ज्यादा हैंडसम, डैसिंग, स्मार्ट और इंटैलिजैंट लड़का था जिस पर कालेज की सभी लड़कियां मरती थीं, लेकिन वह लड़का मरमिटा आयशा पर.

आयशा ने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था उस के जैसी साधारण सी दिखने वाली लड़की पर कभी कोई इतना हैंडसम लड़का मरमिटने को तैयार होगा.

लेकिन जब ईशा क्षितिज का पैगाम ले कर आई तो आयशा को उस लैटर पर, ईशा पर और खुद पर यकीन ही नहीं हो रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उस लैटर का 1-1 शब्द ईशा का है बस लिखावट किसी और की है.

आयशा यह सब सोचती घर पहुंच गई. वह अपने पति के आने से पहले इस लैटर को इत्मीनान से अकेले में पढ़ना चाहती थी क्योंकि उस की सास को ईशा पसंद नहीं थी. इस वजह से उस के पति भी ईशा से थोड़ी दूरी बना कर रखते थे. लेकिन उसे कभी ईशा से मिलने, उस के घर जाने या दोस्ती समाप्त करने को नहीं कहा इसलिए दोनों की दोस्ती पहले जैसी ही चलती रही.

लिफाफा खोलते हुए आयशा के हाथ कांपने लगे. उस ने जैसे ही

लिफाफा खोल कर चिट्ठी निकाली उस में से मंगलसूत्र गिरा. आयशा हैरान रह गई. आयशा के इतना मनाने और कहने के बावजूद ईशा ने तो शादी करने से मना कर दिया था फिर यह मंगलसूत्र उस ने क्यों खरीदा था? उस ने फौरन उस मंगलसूत्र को उठा लिया और गौर से देखने लगी. यह मंगलसूत्र बिलकुल वैसा ही था जैसा शादी के बाद पहली रात को उस के पति ने उसे उपहारस्वरूप दिया था. आयशा सोच में पड़ गई और उस के अंदर एक अजीब सी हलचल मचने लगी.

आयशा ने फौरन चिट्ठी खोली और पढ़ने लगी. उस में लिखा था, ‘‘डियर आयशा…

‘‘कभी सोचा न था कि मु?ो तुम्हें यह सब लिखना पड़ेगा, लेकिन अगर तुम्हें सचाई बताए बगैर मैं तुम्हारी दुनिया से यों चली जाती तो शायद मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाती. मेरे मन को कभी सुकून नहीं मिलता. जब तुम यह लैटर पढ़ रही होगी मैं इस दुनिया और तुम सब से बहुत दूर जा चुकी होऊंगी.

‘‘मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. तुम हमेशा मेरी सच्ची सखी रही पर मैं कभी तुम्हारी सच्ची सहेली नहीं बन पाई.’’

यह सब पढ़ कर आयशा के माथे पर पसीने की बूंदें और शिकन की लकीरें खिंच गईं. ये सब बेकार की बातें ईशा ने क्यों लिखी हैं? वह एक बहुत ही अच्छी और सच्ची दोस्त थी. उस ने ही तो उसे यकीन दिलाया था कि क्षितिज उस से बेहद प्यार करता है वरना हाथ में क्षितिज का लव लैटर होने के बावजूद वह

यह मानने को कहां तैयार थी कि क्षितिज उस से प्यार करता है. वह खुद भी कहां जान पाई थी कि वह क्षितिज से प्यार करती है. इस बात का एहसास भी तो ईशा ने ही उसे कराया था. लेकिन आगे पढ़ते ही उस का यह भ्रम टूट गया. आगे लिखा था-

‘‘आयशा, तुझे यह जान कर बहुत दुख

होगा और मुझ पर गुस्सा भी आएगा कि क्षितिज तुझ से कभी प्यार नहीं करता था. उस दिन जो लैटर मैं ने तुझे ला कर दिया था वह क्षितिज ने जरूर लिखा था, लेकिन तेरा वह शक

बिलकुल सही था, उस लैटर का 1-1 शब्द

मेरा था.’’

यह पढ़ते ही आयशा की आंखें झिलमिला गईं कि इतना बड़ा झूठ, इतना बड़ा विश्वासघात. ईशा और क्षितिज इतने सालों से उस की भावनाओं के साथ खेल रहे थे. आखिर क्यों?

जैसेजैसे आयशा लैटर पढ़ती जा रही थी वैसेवैसे उसे अपने सवालों के जवाब के साथसाथ ईशा और क्षितिज की सचाई सामने आती जा रही थी और उस की आंखों से झूठ का परदा उठता जा रहा था.

आगे लिखा था, ‘‘तुम जानना चाहती होगी कि जब क्षितिज तुम से प्यार नहीं करता था तो उस ने तुम्हें लव लैटर क्यों लिखा? उस ने तुम्हें लैटर इसलिए लिखा क्योंकि वह चाहता था कि तुम उसे प्यार करने लगो और ऐसा ही हुआ. तुम उस से प्यार करने लगी और मैं यह जानते हुए कि क्षितिज तुम से प्यार नहीं करता, मैं ने तुम्हें यह यकीन दिला दिया कि वह तुम से प्यार करता है और तुम्हें भी यह एहसास दिला दिया कि तुम भी क्षितिज से प्यार करती हो.

‘‘आयशा, मैं तुम्हारी दोषी हूं, मैं ने तुम्हें धोखा दिया, लेकिन मैं ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मैं अपना प्यार बांटने को तो तैयार थी लेकिन खोने को कतई नहीं. तुम्हें याद होगा

एक दिन तुम ने मुझ से पूछा था, जब तुम मेरे घर पर आई थी और अचानक तुम्हें मेरी मैडिकल फाइल दिख गई जिस पर प्रैगनैंसी पौजिटिव था. तुम जानना चाहती थी न उस बच्चे का पिता कौन है. उस रोज तो मैं तुम्हें बता नहीं पाई थी, लेकिन आज मैं तुम से छिपाऊंगी नहीं क्योंकि तुम्हें यह जानने का हक है. उस बच्चे का पिता कोई और नहीं क्षितिज ही था लेकिन क्षितिज

नहीं चाहता था, इसलिए मुझेअबौर्शन कराना पड़ा. क्षितिज मुझे तभी से चाहने लगा था जब

से उस ने मुझे कालेज कंपाउंड में तुम्हारे साथ देखा था और फिर धीरेधीरे मैं भी उस से प्यार करने लगी.

‘‘क्षितिज और मैं उस वक्त भी एकदूसरे से प्यार करते थे जब मैं ने तुम्हें क्षितिज का लव लैटर दिया था. कालेज कंप्लीट होते ही मैं और क्षितिज शादी करना चाहते थे, लेकिन क्षितिज की मम्मी को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. वे नहीं चाहती थीं उन के घर की बहू विजातीय हो या फिर किसी ऐसे घर से आए जिस के मातापिता का तलाक हो चुका हो.

‘‘क्षितिज भी अपनी मम्मी के विरुद्ध जा कर मुझ से शादी नहीं करना चाहता था क्योंकि वह यह नहीं चाहता था कि समाज के आगे उस की वजह से उस के मातापिता का सिर झूके इसलिए उस ने तुम्हें अपने प्यार में फंसाने का जाल बुना और मैं ने उस का साथ दिया.

‘‘मैं ने तुम्हें कई बार यह सचाई बतानी चाही, लेकिन हर बार क्षितिज को खोने का डर मुझे रोक देता. फिर जब एक साल पहले मुझे

यह पता चला कि मेरे यूटरस में कैंसर है और

मैं बस कुछ दिनों की मेहमान हूं तो क्षितिज ने

भी मु?ा से अपना पल्ला झड़ लिया क्योंकि अब मैं उस की शारीरिक भूख को शांत करने में असमर्थ थी. उस समय मैं बिलकुल तनहा हो

गई थी. कई बार चाहा कि तुम्हें सबकुछ बता

दूं फिर अपने जीवन के अंतिम दिनों में तुम्हें अपनी यह सचाई बता कर तुम्हारी आंखों में

अपने लिए घृणा और नफरत नहीं देखना

चाहती थी इसलिए नहीं बताया, लेकिन यह बोझ ले कर मैं मरना भी नहीं चाहती. आयशा तुम से हाथजोड़ कर माफी चाहती हूं. प्लीज मुझे माफ कर देना.’’

तुम्हारी लिख नहीं पाऊंगी इसलिए

केवल ‘ईशा.’

लैटर पढ़ते हुए आयशा की आंखों से गिरे आंसुओं की बूंदों से लैटर भीग गया

था. तभी आयशा के पति आ गए. उन्हें देख आयशा ने लैटर एक ओर रख दिया.

आयशा के पति आयशा को रोता देख उस के करीब आ कर उसे अपनी बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘आयशा, तुम कब तक ईशा के जाने के गम में आंसू बहाती रहोगी. उसे तो जाना ही था सो वह चली गई. मम्मी एकदम सही कहती थीं कि वह अच्छी लड़की नहीं थी इसलिए तो बिना शादी के प्रैंगनैंट हो गई थी तुम तो केवल उस का एक ही अबौर्शन जानती हो न जाने उस ने ऐसे कितने अबौर्शन कराए होंगे. तभी तो उस के यूटरस में कैंसर हुआ और न जाने उस का कितने लोगों के साथ संबंध रहा होगा.’’

यह सुनते ही आयशा चीख पड़ी और एक जोरदार तमाचा अपने पति के गाल पर मारती हुई बोली, ‘‘अपनी बकवास बंद करो क्षितिज.

ईशा बुरी लड़की नहीं थी. तुम ने अपने स्वार्थ

और हवस के लिए उसे बुरा बना दिया. वह बेचारी तो यह समझ ही नहीं पाई कि तुम उस से कभी प्यार ही नहीं करते थे. काश, वह समझ गई होती क्योंकि अगर तुम उस से प्यार करते तो कभी मुझ से शादी नहीं करते. अपने प्यार को पाने के लिए दुनिया से, समाज से लड़ जाते. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि तुम तो केवल अपनेआप से प्यार करते हो. समाज में अपनी झूठी शान के लिए तुम ने मुझ से शादी की और मेरी और ईशा की दोस्ती की आड़ में अपनी हवस को शांत किया,’’ कहते हुए आयशा ने मंगलसूत्र और लैटर क्षितिज के हाथों में थमा दिया और फोन लगाने लगी.

दूसरी ओर से फोन उठाते ही आयशा बोली, ‘‘आंटी, मैं भी आप दोनों के साथ हमेशा के लिए नागपुर चल रही हूं.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...