कालेज कैंटीन में अपने मित्रों के संग मस्ती के आलम में था.

‘‘चलो मित्रो, सिनेमा देखने का बहुत मन कर रहा है. थोड़ा मौल घूमते हैं, फिर फिल्म भी देख लेंगे,’’ रोहन ने अपनी राय रखी.

‘‘हूं, वैसे मेरा भी क्लास अटैंड करने का मन नहीं,’’ अनिरुद्ध ने रोहन की बात का समर्थन किया.

मुदित ने कुछ सोचा और फिर हामी भर दी, ‘‘चलो मित्रो, लेकिन किधर चलने का इरादा है?’’

तीनों मित्र कालेज से बाहर आए. औटो में बैठ कर 3-4 मिनट में सिटी वौकमौल पहुंच गए.

तीनों मित्रों ने समय व्यतीत करना था. एक बार पूरा मौल घूम लिया और उस के बाद फूड कोर्ट में बैठ कर लंच किया.

मौल में ही पीवीआर था, वहीं मूवी देखने चले गए. मूवी के इंटरवल के दौरान रोहन पौपकौर्न खरीद रहा था. मुदित वौशरूम गया.

यह क्या एकदम सामने उस के पिता शूशू कर रहे थे. बृजेश का मुंह दीवार की ओर था. उन्होंने मुदित को नहीं देखा. लेकिन मुदित पिता को देख कर घबरा गया और चुपचाप बिना शूशू किए अपनी सीट पर बैठ गया.

मुदित का ध्यान अब सिनेमा स्क्रीन के स्थान पर अपने पिता पर था. वे फिल्म देख रहे हैं. उन का औफिस तो नेहरू प्लेस में है. यहां साकेत में क्या कर रहे हैं? माना किसी क्लाइंट से मिलने आए होंगे लेकिन फिल्म देखने में 3 घंटे क्यों खराब करेंगे? वह तो कालेज स्टूडैंट है. कालेज में मौजमस्ती चलती है, लेकिन उस के पिता भी औफिस छोड़ मौजमस्ती करते हैं इस बात का खयाल मुदित को पहले कभी नहीं आया. उस की नजर अंदर आने वाले गेट पर टिकी हुई थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...