दुनिया का सब से खूबसूरत और मजबूत रिश्ता मां और बच्चे का होता है. मां अपनी संतान के लिए जान भी दे सकती है. बच्चा भी मां के सब से ज्यादा करीब होता है और इमोशनली कनैक्टेड होता है. मां ही होती है जो बच्चे को अच्छी तरह सम?ाती है. कोई भी बच्चा अपनी हर समस्या सब से पहले अपनी मां के साथ शेयर करना चाहता है. मां और बच्चे का यह रिश्ता बेहद खूबसूरत और अनोखा होता है पर कभीकभी कुछ माताएं अनजाने में अपनी संतान के प्रति ऐसा व्यवहार रखने लगती हैं जिस की वजह से बच्चा न सिर्फ मानसिक तौर पर मां से दूर हो जाता है बल्कि दोनों के बीच भावनात्मक लगाव भी कम हो जाता है. ऐसे में मां को इन बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए:

अपने एक बच्चे को ज्यादा प्यार देना

अगर किसी महिला के 2 या 2 से अधिक बच्चे हैं और उस का ध्यान केवल एक ही पर रहता है या फिर एक को ज्यादा मानती है और दूसरों को समानरूप से प्यार नहीं दे पाती है तो यह एक बहुत बड़ी गलती है. ऐसा कर के वह न सिर्फ अपनी उस संतान को स्वयं से बल्कि अपने भाईबहनों से भी दूर करती जाती है. बच्चे भावुक होते हैं. जब उन्हें मां के द्वारा इग्नोर किया जाता है या डांटफटकार मिलती है तो उन के भीतर हीनभावना का विकास हो जाता है जो उन के भविष्य के लिए सही नहीं होता है. इसलिए मां को चाहिए कि अपने सभी बच्चों को हमेशा बराबर प्यार दे.

हर बार बच्चे को दोष देना

मातापिता भी इंसान हैं और इस नाते गलतियां कर सकते हैं. मगर कई घरों में मांबाप हमेशा खुद को सही मानते हैं और बच्चे को ही दोषी मान कर डांटने लगते हैं. अगर आप भी हर बात पर खुद को सही और अपनी संतान को गलत ठहराने की कोशिश करते हैं तो यह आप दोनों के रिश्ते के लिए सही नहीं है. इस से बच्चे के मन में आप के प्रति विद्रोह की भावना घर कर जाती है जो आगे चल कर उसे विकृत मानसिकता का इंसान बना सकती है. मां खासतौर पर ममता और प्यार की प्रतिमूर्ति होती है और कोई भी बात प्यार से समझ सकती है. इसलिए अपने बच्चे के प्रति कभी कठोर रुख न अपनाएं बल्कि उसे प्यार से डील करें.

दोस्त की भूमिका

एक मां को अपने बच्चे के लिए कभीकभी दोस्त की भूमिका भी निभानी चाहिए. उस के साथ बातें कर के उस के मन की हालत सम?ानी चाहिए. इस से दोनों के बीच रिश्ता गहरा होता है. मगर साथ में यह भी पता होना चाहिए कि कब अपनी संतान का दोस्त बन कर व्यवहार करना है और कब एक मां के रोल को निभाना है क्योंकि अगर हर समय दोस्ती ही दर्शाई तो उस का व्यवहार आप के लिए बदल सकता है.

बच्चे के जज्बात समझें

अगर आप हमेशा अपनी बात ऊपर रखती हैं और चिड़चिड़ी रहती हैं तो आप का बच्चा आप से खुल कर बात नहीं कर सकेगा. अगर आप का बच्चा किसी बात पर आप से नाराज है तो उसे मनाने का प्रयास जरूर करें. अगर आप उसे दुखी ही छोड़ देती हैं तो यह आप के लिए सही नहीं है. आप उसे सम?ाएं फिर प्यार से गले लगा लें. इस से बच्चा आप से और भी गहराई से जुड़ जाएगा.

पौजिटिव अप्रोच

आप के बच्चे का ओवरऔल व्यवहार कैसा है या वह कितनी सकारात्मक सोच वाला तमीजदार बच्चा है यह काफी हद तक मां का बच्चे के प्रति सकारात्मक रवेए और परवरिश की देन होती है. कुछ शोध बताते हैं कि जिन बच्चों का अपनी मां के साथ पौजिटिव बौंड होता है वे अपनी युवास्था में भी संतुलित व्यक्तित्व वाले और सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं. मां के साथ अच्छे रिश्ते को जीने वाले ज्यादातर बच्चे हिंसा या क्रोध से दूर रहते हैं.

मां के साथ मजबूत रिश्ता

बच्चे जैसा माहौल घर में देखते हैं वैसा ही वो अपने जीवन में अपनाते भी हैं. कुछ नए शोध बताते हैं कि जिन बच्चों की अपनी मां के साथ स्ट्रौंग रिलेशनशिप होती है वे हमेशा अपनी मां की फीलिंग्स की कद्र करते हैं. अगर उन की मां और उन के पापा के बीच किन्हीं बातों को ले कर ?ागड़े होते हैं या उन के पापा हिंसक व्यवहार करते हैं तो ऐसे बच्चे को अपनी मां की भावनाओं की बेहतर सम?ा होती है.

बच्चे बनते हैं इमोशनली स्ट्रौंग

एक बच्चे का सब से ज्यादा लगाव अपनी मां से होता है. वह केवल भोजन के लिए ही अपनी मां पर निर्भर नहीं होता है बल्कि उस का इमोशनल अटैचमैंट भी होता है. इसी वजह से मां से बच्चे का संवाद उस के मानसिक और भावनात्मक व्यवहार को प्रभावित करता है.

जब बच्चे को घर में अच्छा माहौल, मां की सपोर्ट और भरपूर प्यार मिलता है तो वह खुद को सुरक्षित महसूस करने लगता है और उस में जीवन के प्रति पौजिटिव थिंकिंग पैदा होती है. जिस घर में मां बच्चे के साथ बातें कर के उस की हर परेशानी का हल निकालती रहती है और बच्चे का हौसला बढ़ाती है तो ऐसे बच्चे इमोशनली स्ट्रौंग बनते हैं.

अमेरिका की इलिनोइस यूनिवर्सिटी की स्टडी के अनुसार जब बच्चा अपनी मां के साथ खेलता है तो उस दौरान मां और बच्चा दोनों एकदूसरे के संकेतों का सहज रूप से जवाब दे रहे होते हैं. यह सकारात्मक बातचीत बच्चे के हैल्दी सोशल और इमोशनल डैवलपमैंट में हैल्प करती है.

बच्चे को प्यार से समझएं

मां और बच्चे का रिश्ता बहुत मजबूत होता है. लेकिन समय के साथ हर रिश्ते में कुछ बदलाव होते हैं. उन बदलावों को अपना कर ही आप आगे बढ़ सकते हैं. इसलिए एक उम्र के

बाद बच्चे के साथ हमेशा एक दोस्त की तरह रहें ताकि वह अपनी बात आप से बिना किसी डर के शेयर कर पा सके. जब आप के बच्चे से कोई गलती हो जाए तो गुस्से से डांटने के बजाय उसे प्यार से समझाएं. इस से वह आप की बातों को अच्छे से समझेगा और आप के बीच का रिश्ता मजबूत होगा.

बच्चे को समय दें

आज के समय में ज्यादातर महिलाएं जौब करती हैं. ऐसे में घर और काम के बीच समय निकाल पाना बहुत मुश्किल होता है. अत: वह बच्चे को पूरा समय नहीं दे पाती. अगर आप के साथ भी ऐसा है तो परेशान न हों. बस यह कोशिश करें कि घर में आप के पास जितना भी समय है बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. याद रखें सही से बात न हो पाने के कारण रिश्तों में दूरियां आ जाती हैं, साथ ही बच्चों के भटकने का खतरा भी रहता है. इसलिए आप जब घर में हों तो फोन में लगे रहने के बजाय अधिक से अधिक समय बच्चे से बातें करें, उस के साथ ऐंजौय करें, खाना बनाएं या कुछ और बच्चे को कुछ नया सिखाएं.

हमेशा अपने बच्चे के बर्थडे के दिन उसे सब से पहले विश करें. इस से आप के बच्चे को इस बात का एहसास रहेगा कि उस की आप की जिंदगी में बहुत अहमियत है. इस दिन अपने बच्चे के लिए कुछ स्पैशल करें. उस की पसंद की चीज खरीद कर दें. उस की मनपसंद जगह पर घूमने जाएं. पूरे परिवार के साथ पिकनिक का प्रोग्राम भी बना सकती हैं.

बच्चों को सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल ऐसे सिखाएं

आजकल के बच्चे यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स का काफी उपयोग करते हैं और इन साइट्स को देख कर बहुत कुछ सीखते हैं. ऐसे में मातापिता के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वे अपने बच्चों को इन वैबसाइट्स का सही इस्तेमाल सिखाएं और उन की हाई क्वालिटी कंटैंट चुनने में मदद करें.

इस संदर्भ में सीनियर साइकोलौजिस्ट डा. ज्योति कपूर, फाउंडर मनस्थली, गुरुग्राम कुछ सुझाव दे रही हैं जो आप की अपने बच्चे को गाइड करने में सहायता कर सकते हैं:

डिसिप्लिन और लिमिटेशन मैंटेन रखें

बच्चों को सोशल मीडिया और यूट्यूब का उचित और सीमित इस्तेमाल करने की सीख दें. उन्हें एक समयसीमा दें और बताएं कि वे इतने समय तक ही यूट्यूब या सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं. उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि इन सब में ज्यादा समय लगाना हानिकारक हो सकता है. उन के लिए दूसरी गतिविधियों में भी समय बिताना जरूरी है.

  1. कंटैंट की क्वालिटी चैक करें

बच्चों को यह समझाएं कि सभी कंटैंट बराबर नहीं होते हैं और उन्हें हमेशा अच्छे स्टैंडर्ड और वैल्यूज का ध्यान रखना चाहिए. उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वे किसी भी वीडियो, चैनल या पेज की औथैंटिसिटी जरूर वैरीफाई करें, साथ ही वे उन्हीं चीजों पर फोकस करें जो उन की जानकारी के लिए जरूरी हों.

2. सामाजिक विषयों पर देखे गए कंटैंट पर बातचीत करें

अपने बच्चों के साथ उन के देखे गए सोशल कंटैंट के बारे में चर्चा करें. उन से उन के देखे गए वीडियो, पेज के बारे में प्रश्न करें और उन की सोच और विचारों को प्रोत्साहित करें. ऐसा करना उन्हें समझने का और अपनी बात रखने का अवसर देगा और उन्हें अच्छी और बुरी सामग्री के बीच अंतर महसूस होगा.

3. सतर्कता और सुरक्षा के बारे में बात करें

बच्चों को सोशल मीडिया और यूट्यूब पर सुरक्षित रहने के बारे में जागरूक करें. उन्हें अपनी व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा करने की सीख दें. अनजान लोगों के साथ बातचीत न करने और किसी भी अनुचित कंटैंट की रिपोर्ट करने का तरीका सिखाएं.

4. संवाद

बच्चों के साथ प्यार से पेश आएं और उन के साथ संवाद बनाए रखें. उन की रुचियों और उन के द्वारा देखे गए कंटैंट पर चर्चा करें. यह उन्हें बताएगा कि आप उन की सोच, रुचियों और इंटरनैट पर देखे जाने वाले कंटैंट को महत्त्व देती हैं. इस से वे कुछ भी देखने के बाद खुद ही आप को बताएंगे और आप हमेशा उन पर नजर रख सकेंगी या उस कंटैंट में दिखाई गई अच्छी बातें उन्हें समझ सकेंगी

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