हिंदू विरासत कानून है एक अजीब प्रावधान है. 1956 में बने विरासत कानून में यह भी डाला गया है कि किसी व्यक्ति के मरने के बाद संपत्ति पत्नी और बच्चों में बराबर बंटने के साथ बराबर का हिस्सा मां को भी मिलेगा. यह एकदम अव्याहारिक व अनैतिक कानूनी प्रावधान है जिस का कोई सिरपैर नहीं है.

जब कानून बना था तो कहा गया था कि यह मां की सुरक्षा के लिए था पर यह तो कई बेटेबेटियों और पति के जिंदा रहने वाली मां को मिलने वाला हक है. बेटे के मरने के बाद अक्सर मांबाप विधवा और उस के बच्चों को पूरा हिस्सा न मिले इसलिए उस हक का उपयोग करते हैं.

स्वयं इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए इस कानून का उपयोग किया था और मेनका, व वरुण को संजय गांधी की मृत्यु के बाद बराबर का हिस्सा इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री को देना पड़ा था. मेनका गांधी अपने हिस्से में बंटबारा न हो इस के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई थी पर इंदिरा गांधी नहीं मानी थी जबकि उस समय वह प्रधानमंत्री की और उस के साथ राजीव गांधी, सोनिया, प्रियंका और राहुल थे. मेनका और वरुण का एक हिस्सा कम किया था.

हां, यह जरूर सुनने में आया कि संजय गांधी की संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा जो इंदिरा को मिला था इंदिरा गांधी ने वरुण गांधी को गिफ्ट कर दिया था और इस तरह छोटा सा वरुण संजय गांधी की संपत्ति का 2 तिहाई मालिक हो गया था और मेनका एक तिहाई की मालिक रह गई थी.

यह कानून जवान बेटों की मृत्यु पर जम कर इस्तेमाल किया जाता है. वृद्ध पिता मरते हैं तो उस समय उस की मां जिंदा नहीं होती इसलिए वो बड़ा नहीं बनता या जब विधवा हाथपैर मार कर जिंदा रहने का प्रयास कर रही हो तब प्रोटिडेंट फंड, फिक्सडिपोजिट, जौयंट प्रौपर्टी में मृत पति को मिला हिस्सा, मकान आदि पर सास अपने पति के पिता और भाईबहन के कहने पर हक जमाने लगे, यह बहुत गलत है.

जो लोग कहते हैं कि हिंदू कानून गंगा जल सा साफ और गौमूत्र सा पवित्र है, उन्हें ख्याल रखना चाहिए कि हिंदू संपत्ति, विवाद, गोद, विरासत कानून अनैतिकता से भरे हैं. 1956 व 2005 में कुछ सुधार हुए हैं पर समाज आज भी युवा औरतों के प्रति ही नहीं बूढ़ी औरतों के प्रति भी आज भी पौराणिकवाद में जी रहा है जब औरत होने का मतलब आहितर्य, सीता या द्रौपदी होना ही था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...