‘‘विशाल आज औफिस के काम से दिल्ली आया हुआ था. काम निबटा कर शाम में वह टाइम पास के लिए एक मौल में आ गया और वहां फूड कोर्ट में बैठ कर चाइनीज खाने लगा. सामने एक कुरसी पर उसे एक 7-8 साल की लड़की नजर आई जिस के बालों के स्टाइल ने उसे अंशु की याद दिला दी. वह ध्यान से बच्ची को देखने लगा. बगल से उस की सूरत काफी कुछ अंशु जैसी ही थी. उसी की तरह बैठ कर ड्राइंग बना रही थी. उस की मम्मी शायद खाने का और्डर देने गई थी.

तभी बच्ची की बगल में एक युवक आ कर बैठा तो बच्ची ने जोर से कहा, ‘‘अंकल, यहां हम बैठे हुए हैं. आप दूसरी टेबल पर चले जाओ. मेरी मम्मी आने वाली है.’’

युवक बच्ची को इस तरह निर्भीकता से बोलता देख कर सकपका गया और तुरंत वहां से उठ कर दूर जा कर बैठ गया. बच्ची खुद में ही मुसकराई और फिर से अपने काम में लग गई.

बच्ची ने एक बार फिर उसे अंशु की याद दिला दी. अंशु भी तो ऐसी ही निर्भीक और साफसाफ बात कहने वाली लड़की थी.

अंशु के साथ उस का रिश्ता करीब 3 साल चला था. अंशु इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी और गर्ल्स होस्टल में रहती थी. विशाल भी उसी कालेज में था. दोनों को ही आदत थी कि दोनों शाम के समय लाइब्रेरी चले जाते थे. वहीं उन की मुलाकात हुई और फिर बातों का दौर ऐसा चला कि दोनों में अच्छीखासी दोस्ती हो गई.

अंशु हमेशा हर जगह अपने हक के लिए आवाज उठाती और पार्टटाइम काम कर के अपना खर्च खुद निकालती. वह खूबसूरत तो थी ही बुद्धिमान भी थी. विशाल उस के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित था. एक दिन उस ने अंशु से अपने दिल की बात की तो अंशु ने भी उस के प्यार को स्वीकार कर लिया.

इस के बाद दोनों एकदूसरे के बहुत क्लोज आ गए और 5-6 माह लिव इन में भी रहे. विशाल को वह रात आज भी याद है जब दोनों एकदूसरे की बांहों में थे. प्यार की तपिश उन के जिस्मों को भिगो रही थी.

उसी दौरान अंशु ने विशाल से सवाल किया, ‘‘विशु हमारी जाति अलग है. मैं ऊंची जाति की हूं जबकि तुम यादव हो. आज नहीं तो कल हमें अपने घर वालों से शादी की अनुमति लेनी होगी. सोचो अगर वे नहीं माने तो क्या होगा खासकर तुम्हारे घर वाले तो जैसाकि तुम बताते हो इस मामले में बहुत स्ट्रिक्ट हैं. यदि उन्होंने इनकार कर दिया तो क्या करोगे?’’

विशाल ने कहा, ‘‘डौंट वरी, मैं मना लूंगा. यह बात अलग है कि वे जान से मारने की धमकी भी दे सकते हैं.’’

अंशु हंस कर बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकती हूं. तुम बताओ तुम क्या करोगे?’’

‘‘मैं भी तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं,’’ कह कर उस ने अंशु पर अपने बांहों का घेरा और मजबूत कर दिया.

अंशु मुसकरा दी. उसे विशाल के प्यार पर विश्वास था और उसे लगता था कि विशाल उस का साथ कभी नहीं छोड़ेगा. वे दोनों हमेशा एक हैप्पी कपल्स बन कर रहेंगे.

इस बात के कुछ समय बाद ही जब छुट्टियों में विशाल घर गया तो घर वालों ने उसे शादी के लिए एक लड़की की तसवीर दिखाई. विशाल ने उन्हें अपने और अंशु के रिश्ते के बारे में सब सच बता दिया.

विशाल के पिता ने साफ लफ्जों में कहा, ‘‘कान खोल कर सुन ले, तेरी शादी हमारी जाति में ही होगी. हम यादव हैं और हमें इस का गुरूर है. हम लड़की यादव ही लाएंगे वरना तुम दोनों का सीना और मेरी बंदूक.’’

विशाल ने फिर एक शब्द भी नहीं कहा और पिता की मरजी के आगे तुरंत घुटने टेक दिए. पिता ने छुट्टियां खत्म होने से पहले ही उस की शादी करा दी ताकि लड़का कोई और ड्रामा न करे.

छुट्टियों के बाद जब विशाल वापस पहुंचा तो उस की अंशु का सामना करने की हिम्मत नहीं हुई और वह अंशु के आने से पहले ही अपना सामान ले कर दूसरी जगह शिफ्ट हो गया.

इधर अंशु छुट्टियों के बाद लौटी तो बहुत खुश थी. मगर जब घर पहुंची तो विशाल को सामान समेत गायब देख कर उसे सब समझ में आ गया. फिर भी वह एक बार विशाल से मिल कर बात करना चाहती थी. उस ने विशाल को फोन किया और उसे शाम को मिलने बुलाया.

विशाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अंशु का सामना कैसे करे और उसे सारी सचाई कैसे बताए. वह कई दिनों तक बहाने बनाता रहा और अंशु से मिलने से बचता रहा. मगर एक दिन अंशु खुद उस के नए बसेरे तक पहुंच गई.

अंशु को देखते ही विशाल की धड़कनें तेज हो गई. वह बस इतना ही कह सका, ‘‘सौरी अंशु, पर मैं ने शादी कर ली है. मेरे पिता ने जबरन मेरी शादी किसी और से करा दी और मैं कुछ नही कह सका.’’

अंशु चुपचाप उसे देखती रही और फिर बिना कुछ कहे वहां से चली गई. वह दिन था और आज का दिन. विशाल को न तो दोबारा अंशु नजर आई और न ही उसे जीवन में फिर कभी कहीं सुकून मिल पाया. अंशु के साथ उस के जीवन का सारा सुकून खो चुका था.

आज उस बच्ची को देख कर उसे लग रहा था जैसे सालों बाद वह अंशु को देख रहा हो. तभी उस ने देखा सचमुच अंशु हाथ में खाने की प्लेट लिए बेटी के पास आ रही है. वह वहीं चेयर पर बैठ गई और दोनों मांबेटी मिल कर खाने लगे.

विशाल चुपचाप उठा और उन के सामने की चेयर पर बैठ गया. विशाल को देखते ही अंशु की भौंहें तन गईं. विशाल हाथ जोड़ कर कहने लगा, ‘‘आई एम सौरी. माफ कर दो मुझे.’’

अंशु ने उस समय कुछ नहीं कहा. खाना खा कर उस ने बेटी को पास ही गेम सेक्शन में खेलने के लिए भेजा और फिर विशाल की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘अब बोलो क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘यह मेरी बेटी है न अंशु. सच बताओ?’’

अंशु हौले से मुसकराई और बोली, ‘‘वह तुम्हारी यानी एक भगौड़े बाप की नहीं बल्कि मेरी यानी एक आत्मनिर्भर मां की बेटी है. तुम कहो अब क्या कहने के लिए आए हो?’’

‘‘तुम ने शादी नहीं की अंशु?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों? अब तक मेरे प्यार में हो न. मेरी वजह से ही तुम ने शादी नहीं की न?’’ विशाल ने पूछा.

‘‘हां तुम्हारी वजह से ही शादी नहीं की. मगर इस मुगालते में बिलकुल मत रहना कि अब भी तुम्हारे प्यार में हूं. दरअसल, मैं जिंदगी में कभी तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती. इतने डरपोक और गैरजिम्मेदार इंसान से मैं कोई रिश्ता रखने की सोच भी नहीं सकती. उस एक फैसले के साथ तुम ने सिर्फ मेरा दिल ही नहीं तोड़ा था विश्वास भी तोड़ दिया था. समझे तुम?’’

‘‘मुझे माफ कर दो अंशु. सच में मुझ में हिम्मत ही नहीं थी. पिताजी के गुस्से के आगे मैं कुछ बोल ही नहीं सका. मुझे लगा कि कहीं वे मेरे साथ तुम्हें भी नुकसान न पहुंचा दें इसलिए उन की बात मान गया.’’

‘‘मगर मैं ने कहा था न कि मैं मरने के लिए तैयार हूं. तुम एक बार मुझे सबकुछ बता कर मेरी मरजी तो पूछते,’’ अंशु ने कहा.

‘‘नहीं अंशु मेरे घर वाले यादव जाति के अलावा और किसी से मेरी शादी कराने को तैयार ही नहीं थे. उन्होंने मारने की धमकी दी तो मैं डर गया. मैं तुम्हारे जितना हिम्मती नहीं. हाल यह है कि अब सुकून के 2 पलों के लिए तरस गया हूं. हमेशा लगता है जैसे तुम्हारे साथ गलत करने का फल ही मु?ो इस तरह मिल रहा है. पिताजी के कहने पर मैं ने जिस लड़की से शादी की उस ने आज तक मु?ो पिता बनने का सुख नहीं दिया.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह सरपंच है और उस का मकसद राजनीति में जाना और बड़ा नेता बनना है. उस ने शादी के कुछ दिन बाद ही मुझे यह सब बता दिया था. जब वह पहली बार प्रैगनैंट हुई थी उस समय चुनाव आने वाले थे. इसलिए उस ने मुझे बताए बगैर ही अबौर्शन करा लिया. दूसरी बार फिर से उस ने अबौर्शन करवाया तो उसे ऐसी अंदरूनी चोट लगी कि अब वह कभी मां नहीं बन सकती. मेरी जिंदगी अधूरी रह गई,’’ कहते हुए वह रो पड़ा.

अंशु ने कहा, ‘‘इस तरह रोने से क्या होगा. तुम उसे छोड़ कर दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘वे लोग बहुत प्रभाव वाले हैं. उन की यादव समुदाय में बहुत चलती है. उन के साथ पंगा लेना महंगा पड़ जाएगा. वैसे भी वे लोग पिताजी के बहुत करीबी हैं और पिताजी उन्हें कभी नाराज नहीं करेंगे. मेरी पत्नी मुझे तलाक देगी नहीं और पिताजी उस के खिलाफ जाएंगे नहीं.’’

‘‘तो फिर भुगतो न. अपने घर वालों के हिसाब से चलो. मुझ से क्या चाहते हो?’’ अंशु ने सवाल किया.

‘‘तुम मुझे मेरी बेटी से कभीकभी मिलने दिया करो बस यही चाहता हूं. प्लीज अंशु.’’

‘‘नो वे. तुम मेरी बेटी से मिलने की बात तो सोचना भी नहीं. मेरी बेटी सिर्फ मेरी है. उसे मैं ने जन्म दिया है. मैं ने पालापोसा है और वह मेरे जैसी बनेगी तुम्हारे जैसी नहीं. तुम्हारे घर का जैसा माहौल है उस में तुम्हारे जैसा डरपोक इंसान ही बन सकता है. मैं अपनी बेटी को अपनी तरह हिम्मती बना रही हूं. मैं दिल्ली किसी काम से आई थी. आज ही चली जाऊंगी. मैं कहां किस शहर में रहती हूं इस की भनक भी तुम्हें नहीं लगने दूंगी.

‘‘मेरी बेटी से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं यह याद रखना. जिंदगी में कभी उस से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

मगर अंशु बस एक बार सोचो, वह मेरी संतान है. उस के सिवा मेरी कोई औलाद भी नहीं. उसे मेरा नाम मिल जाएगा तो मेरी पैतृक संपत्ति पर उस का हक हो जाएगा,’’ विशाल ने लालच का पासा फेंकने की कोशिश की.

अंशु भड़क उठी, ‘‘तुम यह अच्छी तरह समझ लो कि तुम्हारी संपत्ति की मुझे या मेरी बेटी को कोई जरूरत नहीं. उसे पता भी नहीं कि उस का बाप जिंदा है. मैं ने उसे यही बताया है कि एक ऐक्सीडैंट में उस के पिता की मौत हो चुकी है.’’

‘‘अगर मैं ने उसे बता दिया कि उस का बाप जिंदा है फिर क्या करोगी?’’ विशाल ने धमकी दी.

‘‘उसे कुछ बताने की सोचना भी मत. चलो आज एक धमकी मैं भी देती हूं. अगर तुम ने आइंदा मु?ा से या मेरी बेटी से मिलने या उसे हासिल करने की कोशिश भी की न तो मैं तुम पर बलात्कार का आरोप लगा दूंगी. अपनी बच्ची को बलात्कार का नतीजा कह दूंगी. इस के बाद तुम जेल में सड़ते रहना. तुम्हारी कोई नहीं सुनेगा. समझे तुम?’’ स्पष्ट शब्दों में कह कर अंशु बेटी को ले कर चली गई.

विशाल फिर कुछ नहीं कह सका. आंखों में पछतावे के आंसू लिए वहीं खड़ा रह गया.

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