किसी भी उत्सव पर घरों, दुकानों, दफ्तरों को सजाना आम बात है. दीवाली, ओणम, ईद में तो ऐसा करते ही हैं पर शादी के समय जो कुछ किया जाता है उस से जगह एकदम चमचमा उठती है और मेहमान खुश हो कर आते हैं और वाहवाह कर के जाते हैं. अमीर तो बहुत कुछ करते हैं पर अब गरीब भी देखादेखी ऐसा कुछ करने लगे हैं. आज एक गरीब किसान मजदूर भी शादी पर क्व3-4 लाख खर्च कर डालता है, चाहे पैसा कहीं से भी आए.

भारत सरकार ने नरेंद्र मोदी को उभारने के लिए जी-20 सम्मेलन के लिए ऐसा ही कुछ किया. पूरी दिल्ली को लड़की वालों के घर की तरह सजाया गया और अपनी गरीबी, फटेहाली, बदबू, टूटे मकानों को छिपाने की पूरी कोशिश की गई. नरेंद्र मोदी यह कहते अघाते नहीं कि भारत विश्व की चौथीपांचवीं अर्थव्यवस्था है और इसीलिए बड़ेबड़े नेता आ रहे हैं. खर्च हो रहा है तो वाजिब है मगर यह न समझें कि आने वाले बरातियों को भारत की असलियत नहीं मालूम है.

140 करोड़ लोगों का देश होने की वजह से भारत चौथेपांचवें नंबर पर चाहे हो और उस की अर्थव्यवस्था 3 ट्रिलियन डौलर से ज्यादा हो पर यह न भूलें कि जी-20 की चमकदमक यह नहीं छिपा सकती कि आम भारतीय की आय

2,030 डौलर प्रतिवर्ष है जबकि नंबर 1 देश अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 70 हजार डौलर है, हमारे औसत आदमी से 35 गुना ज्यादा. चीन में भी प्रति व्यक्ति आय 13 हजार डौलर है.

इसीलिए जी-20 पर किया खर्च सिर्फ अपनों को झूठी तसल्ली दिलाने की कोशिश है. गरीब के घर में छक कर खाते बाराती जानते हैं कि चमचम आशियाने के पीछे कैसा जर्जर मकान है और यह शानोशौकत न जाने कितने दिन पेट काट कर सोने की वजह से है.

जी-20 का सरगना होना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के इस क्लब में एकएक कर के हर देश मेजबान बनता है. पिछले साल इंडोनेशिया था, अगले साल ब्राजील होगा. दोनों की कुल संपदा कम है पर दोनों के ही नागरिक भारत के नागरिकों से ज्यादा अमीर हैं.

जी-20 ने कोई ऐसा फैसला नहीं लिया है जिस से भारत को कोई फायदा हुआ है. जो बाइडन, ऋषि सुनक आदि से मेलमुलाकातों का मतलब यह नहीं कि वे अब भारत का लोहा मानने लगेंगे. 2003 में भी भारत ने मेजबानी की थी पर तब ऐसा हल्ला नहीं मचाया गया था क्योंकि इस में सभी देशों के राष्ट्रप्रमुख नहीं थे और केवल मं   झले स्तर पर मीटिंगें दिल्ली में हुई थीं.

2007 के बाद राष्ट्रप्रमुख आएंगे यह फैसला किया गया. भारत को जी-20 की चेयरमैन पिछले साल इंडोनेशिया से मिली थी और यह ऐसा नहीं कि हमारे यहां कोई बरात आ रही हो. यह केवल राष्ट्रप्रमुखों की किट्टी पार्टी है जिस में 2-3 के अलावा सब आए और मेजबान के रूप में हम ने सिर्फ ठहरने व खानेपीने की व्यवस्था की.

जो फैसले हुए वे पहले से तय ऐजैंडे पर थे और भारत का कोई दखल नहीं था. रूस के पुतिन नहीं आए और चीन के जिनपिंग भी नहीं आए.

इस मौके पर ढोल पीटने की जरूरत नहीं थी. हां, शहर को सजाना ठीक था पर उस तरह से नहीं जिस तरह किया गया. दिल्ली अब फालतू में कुछ दिन दूसरे शहरों से बहुत चमचमाती नजर आएगी जिस में श्रेय सिर्फ मोटे खर्च का है. गरीब भारतीय ने सूट पहन कर मेजबानी की है.

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