Top 10 Majedar Kahaniya: गृहशोभा डिजिटल पर आपको मिलेगी मनोरंजन से भरपूर फैमिली स्टोरी, सोशल स्टोरी, रोमांटिक स्टोरी और क्राइम स्टोरी. आज हम आपके के लिए लेकर आए बेहतरीन मजेदार कहानियाँ. गृहशोभा की ये खास मजेदार कहानियां पढ़कर आपको भरपूर ज्ञान मिलेगा. इन कहानियों को पढ़कर आपको जीवन को समझने की राह मिलेंगी. गृहशोभा मैगजीन पर पढ़े बेहतरीन अनसुनी हिंदी कहानियाँ . जो अवश्य ही आपके जीवन में सफलता लाएंगी और नए व सकारात्मक आयाम.
Best funny stories: इन कहानियों को पढ़कर आपको नैतिक शिक्षा का ज्ञान प्राप्त होगा
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तबादला: उसे कौनसा दंश सहना पड़ा
‘‘इन से मिलिए, यह मेरे विभाग के वरिष्ठ अफसर राजकुमारजी हैं. जब से यह आए हैं स्वास्थ्य विभाग का कामकाज बहुत तेजी से हो रहा है. किसी भी फाइल को 24 घंटे के अंदर निबटा देते हैं,’’ स्वास्थ्य मंत्री मोहनलाल ने राजकुमार का परिचय अपनी पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रामचंद्रजी से कराया. रामचंद्र ने एक उड़ती नजर राजकुमार पर डाली और बोले, ‘‘आप के विभाग में मेरे इलाके के कई डाक्टर हैं जिन के बारे में मुझे आप से बात करनी है. मैं अपने सचिव को बता दूंगा. वह आप से मिल लेगा. आप जरा उन पर ध्यान दीजिएगा.’’
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2. फेसबुक फ्रैंडशिप: वर्चुअल दुनिया में सचाई कहां है
शुरुआत तो बस यहीं से हुई कि पहले उस ने फेस देखा और फिदा हो कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. रिक्वैस्ट 2-3 दिनों में ऐक्सैप्ट हो गई. 2-3 दिन भी इसलिए लगे होंगे कि उस सुंदर फेस वाली लड़की ने पहले पूरी डिटेल पढ़ी होगी.
लड़के के फोटो के साथ उस का विवरण देख कर उसे लगा होगा कि ठीकठाक बंदा है या हो सकता है कि तुरंत स्वीकृति में लड़के को ऐसा लग सकता है कि लड़की उस से या तो प्रभावित है या बिलकुल खाली बैठी है जो तुरंत स्वीकृति दे कर उस ने मित्रता स्वीकार कर ली.
यह तो बाद में पता चलता है कि यह भी एक आभासी दुनिया है. यहां भी बहुत झूठफरेब फैला है. कुछ भी वास्तविक नहीं. ऐसा भी नहीं कि सभी गलत हो. ऐसा भी हो सकता है कि जो प्यार या गुस्सा आप सब के सामने नहीं दिखा सकते, वह अपनी पोस्ट, कमैंट्स, शेयर से जाहिर करते हो.
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3. मैं चुप रहूंगी: विजय की असलियत जब उसकी पत्नी की सहेली को पता चली
पिछले दिनों मैं दीदी के बेटे नीरज के मुंडन पर मुंबई गई थी. एक दोपहर दीदी मुझे बाजार ले गईं. वे मेरे लिए मेरी पसंद का तोहफा खरीदना चाहती थीं. कपड़ों के एक बड़े शोरूम से जैसे ही हम दोनों बाहर निकलीं, एक गाड़ी हमारे सामने आ कर रुकी. उस से उतरने वाला युवक कोई और नहीं, विजय ही था. मैं उसे देख कर पल भर को ठिठक गई. वह भी मुझे देख कर एकाएक चौंक गया. इस से पहले कि मैं उस के पास जाती या कुछ पूछती वह तुरंत गाड़ी में बैठा और मेरी आंखों से ओझल हो गया. वह पक्का विजय ही था, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से तो वह इन दिनों अमेरिका में है. मुंबई आने से 2 दिन पहले ही तो मैं मीनाक्षी से मिली थी.
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4. सपना: कैसा था नेहा का सफर
सरपट दौड़ती बस अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी. बस में सवार नेहा का सिर अनायास ही खिड़की से सट गया. उस का अंतर्मन सोचविचार में डूबा था. खूबसूरत शाम धीरेधीरे अंधेरी रात में तबदील होती जा रही थी. विचारमंथन में डूबी नेहा सोच रही थी कि जिंदगी भी कितनी अजीब पहेली है. यह कितने रंग दिखाती है? कुछ समझ आते हैं तो कुछ को समझ ही नहीं पाते? वक्त के हाथों से एक लमहा भी छिटके तो कहानी बन जाती है. बस, कुछ ऐसी ही कहानी थी उस की भी… नेहा ने एक नजर सहयात्रियों पर डाली. सब अपनी दुनिया में खोए थे. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें अपने साथ के लोगों से कोई लेनादेना ही नहीं था. सच ही तो है, आजकल जिंदगी की कहानी में मतलब के सिवा और बचा ही क्या है.
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5. भरोसेमंद- शर्माजी का कड़वा बोलना लोगों को क्यों पसंद नही आता था?
‘‘बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर. अच्छी बात है वरना अकसर लोग मुझे पसंद
नहीं करते.’’
‘‘अरे, ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?’’
‘‘मैं नहीं कह रहा, सिर्फ बता रहा हूं आप को वह सच जो मैं महसूस करता हूं. अकसर लोग मुझे पसंद नहीं करते. आप भी जल्द ही उन की भाषा बोलने लगेंगे. आइए, हमारे औफिस में आप का स्वागत है.’’
शर्माजी ने मेरा स्वागत करते हुए अपने बारे में भी शायद वह सब बता दिया जिसे वे महसूस करते होंगे या जैसा उन्हें महसूस कराया जाता होगा. मुझे तो पहली ही नजर में बहुत अच्छे लगे थे शर्माजी. उन के हावभाव, उन का मुसकराना, उन का अपनी ही दुनिया में मस्त रहना, किसी के मामले में ज्यादा दखल न देना और हर किसी को पूरापूरा स्पेस भी देना.
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6. वजूद से परिचय: भैरवी के बदले रूप से क्यों हैरान था ऋषभ?
7. आदमी का स्वार्थ: पेड़ के पास क्यों आता था बच्चा
उस बालक को मानो सेब के उस पेड़ से स्नेह हो गया था और वह पेड़ भी बालक के साथ खेलना पसंद करता था. समय बीता और समय के साथसाथ नन्हा सा बालक कुछ बड़ा हो गया. अब वह रोजाना पेड़ के साथ खेलना छोड़ चुका था. काफी दिनों बाद वह लड़का पेड़ के पास आया तो बेहद दुखी था.
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8. हिमशिला : माँ चुपचाप उसकी और क्यों देख रही थी
उस ने टैक्सी में बैठते हुए मेरे हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच भींचते हुए कहा, ‘‘अच्छा, जल्दी ही फिर मिलेंगे.’’
मैं ने कहा, ‘‘जरूर मिलेंगे,’’ और दूर जाती टैक्सी को देखती रही. उस की हथेलियों की गरमाहट देर तक मेरे हाथों को सहलाती रही. अचानक वातावरण में गहरे काले बादल छा गए. ये न जाने कब बरस पड़ें? बादलों के बरसने और मन के फटने में क्या देर लगती है? न जाने कब की जमी बर्फ पिघलने लगी और मैं, हिमशिला से साधारण मानवी बन गई, मुझे पता ही नहीं चला. मेरे मन में कब का विलुप्त हो गया प्रेम का उष्ण सोता उमड़ पड़ा, उफन पड़ा.
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9.भाभी हमारे यहां ऐसे ही होता है
निधिकी शादी को 5 वर्ष हो चुके थे. सासससुर और पति नितिन के साथ उस ने बेहतर सामंजस्य बैठा लिया था, लेकिन उस की नकचढ़ी ननद निकिता अब भी मानती नहीं थी कि निधि उन के घर की परंपरा को निभा पा रही है.
अकसर निकिता किसी न किसी बात पर मुंह बना कर बोल ही देती, ‘‘भाभी, हमारे यहां ऐसा ही होता है.’’
उस की यही बात निधि को चुभती थी. शुरूशुरू में अपने कमरे में जा कर रोती भी थी. पति नितिन को भी बताया तो उन्होंने भी यह कह कर टाल दिया, ‘‘उस की बात को दिल से मत लगाओ, घर में सब से छोटी है, सब की प्यारी होने से थोड़ी मुंहफट हो गई है. अनसुना कर
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10. बेकरी की यादें: नया काम शुरु करने पर क्या हुआ दीप्ति के साथ
मिहिरऔर दीप्ति की शादी को 2 साल हो गए थे, दोनों बेहद खुश थे. अभी वे नई शादी की खुमारी से उभर ही रहे थे कि मिहिर को कैलिफोर्निया की एक कंपनी में 5 सालों के लिए नियुक्ति मिल गई. दोनों ने खुशीखुशी इस बदलाव को स्वीकार कर लिया और फिर कैलिफोर्निया पहुंच गए.
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