हम अखबार में सब से पहले राशिफल पढ़ते हैं, फिर मौसम का हाल देखते हैं. उस के बाद ही घर से निकलते हैं.

उस दिन राशिफल में लिखा था, ‘दिन खराब गुजरेगा, बच कर रहें. और मौसम के बारे में बताया गया था कि आज गरजचमक के साथ बौछारें पड़ेंगी.’

मगर सुबह से शाम हो गई, लेकिन गरजचमक के साथ बौछारों का कोई अतापता न था. लेकिन शाम को घर में कदम रखते ही श्रीमतीजी गरजचमक के साथ जरूर बरसीं, ‘‘तुम्हें तो कौड़ी भर भी अक्ल नहीं है. तुम से ज्यादा अक्लमंद तो रमाबाई है.’’

रमाबाई मेमसाहब के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर खुशी से फूल कर कुप्पा हो रही थी और हमें शरारत भरी निगाहों से देख रही थी. हम कुछ सम  झ पाते उस से पहले ही रमाबाई ने इठलाते हुए कहा, ‘‘साहब, कल जो साड़ी आप लाए थे आज मेमसाहब उसे पहन कर अपनी सहेलियों से मिलने गई थीं. मेमसाहब ने जब उन्हें बताया कि यह क्व2,500 की है तो मिसेज शर्मा तुरंत बोलीं यह तो सड़कछाप सेल में क्व350 में मिल रही थी. फिर मिसेज शर्मा ने आप को खरीदते भी देखा था. अब मेमसाहब की तो फजीहत हो गई…’’

हम सोच रहे थे कि इतने बड़ेबड़े घोटाले हो रहे हैं, जनता चिल्ला रही है, लेकिन घोटालेबाजों की श्रीमतियां हमेशा कहती हैं कि उन के पति निर्दोष हैं, लेकिन हमारी श्रीमती तो …बाप रे बाप, पूरी छिलवा हैं, छिलवा. 1-1 कर जब तक सभी परतें नहीं निकाल लें, तब तक उन्हें चैन ही नहीं मिलता है.

अगले दिन के अखबार में मौसम के बारे में लिखा था कि आसमान साफ रहेगा और राशिफल में भविष्यवाणी थी कि जेब हलकी रहेगी. हम सोच रहे थे कि चलो आज का दिन अच्छा बीतेगा, सब कुछ साफ और हलका रहेगा. लेकिन औफिस जाते समय पैंट की जेबें टटोलीं तो मालूम हुआ कि वे तो पहले से ही हलकी कर दी गई हैं.

हम ने जब यह बात श्रीमतीजी को बताई तो वे बोलीं, ‘‘अरे, जेबें ही तो हलकी हुई हैं, गला तो सलामत है न? आजकल कब क्या साफ हो जाए, क्या हलका हो जाए, कुछ नहीं कह सकते. गले से चेन साफ हो जाती है, औफिसों से फाइलें हलकी हो जाती हैं. चलो, कोई बात नहीं, अब तुम औफिस में चाय मत पीना और औफिस पैदल जाना, सब ठीक हो जाएगा.’’

हम ने अपनी परेशानी कम करने के लिए एक दिन टीवी चै?नल पर बाबाजी को फोन लगाया और कहा, ‘‘बाबाजी, हर भविष्यवाणी हमारे खिलाफ रहती है मगर श्रीमतीजी के पक्ष में… हम तो हर बात पर चोट खाखा कर परेशान हो गए. कोई उपाय बताएं.’’

बाबाजी ने फौरन अपना कंप्यूटर खोला, हमारा नाम, जन्मतिथि पूछी और फिर पिटारा खोलते हुए कहा, ‘‘आप की शादी के लिए जब लड़की तलाशी जा रही थी उस समय राहु की सीधी दृष्टि आप के ऊपर थी. जब शादी की रस्में चल रही थीं, उस समय केतु की दृष्टि और शादी के बाद से शनि की दशा चल रही है. इसलिए आप की श्रीमतीजी उच्च स्थान पर हैं और आप निम्न स्थान पर. खैर, आप परेशान न होइए. बस थोड़े से उपाय करने होंगे. सुबहसुबह अपने हाथ से 4 रोटियां बना कर काली गाय को खिलाएं. इस के अलावा आप को ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ पहनना होगा और उसे खरीदने के लिए नीचे दिए नंबर पर काल करें. इस की कीमत है क्व5,000, लेकिन यदि आप अभी काल करेंगे तो आप को यह सिर्फ क्व4,500 में मिल जाएगा टिंग टांग…’’

हम ने सोचा कि जिंदगी सलामत रहे तो बहुत कमा लेंगे और बाबाजी ने हमें इतना डरा दिया था कि अब हमें हमेशा सुंदर, सुमुखी लगने वाली श्रीमतीजी से डर लगने लगा था. इसलिए ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ का तुरंत और्डर दे दिया. अब बात रही रोटियां बना कर काली गाय को खिलाने की, तो हम ने जिंदगी में अभी तक कभी रोटियां नहीं बनाई थीं. श्रीमतीजी की जलीकटी रोटियां और बातें खा कर जिंदगी काट रहे थे.

अगली सुबह हम जल्दी उठे. नहा कर किचन में जा कर रोटियां बनाने के लिए आटा गूंधने लगे. जब आटे में पानी मिलाया तो वह ज्यादा गीला हो गया. फिर जब हम ने उस में फिर से आटा मिलाया तो वह कड़ा हो गया. इसी चक्कर में थाली आटे से भर गई.

इसी बीच श्रीमतीजी जाग गईं और बोलीं, ‘‘मैं इतने दिनों से कह रही थी कि जरा घर के काम सीख लो तो मु  झ से मना करते रहे और मेरे से छिपा कर अपने हाथों से रोटियां बना कर औफिस ले जाते हो… कौन है वह सौतन?’’

हम ने कहा कि भागवान ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन वे कहां मानने वाली थीं. वे तो कोप भवन में पहुंच चुकी थीं और हम से संभाले नहीं संभल रही थीं.

खैर, काली गाय को रोटियां तो खिलानी ही थीं, इसलिए औफिस जाते समय रखी गई रोटियों में से 1 रोटी हम ने निकाल ली और रास्ते में काली गाय को तलाशने के चक्कर में एक गड्ढे में पैर पड़ने से उस में मोच आ गई.

शाम को हम लंगड़ाते हुए घर पहुंचे तब श्रीमतीजी ने फिर चुटकी ली, ‘‘तो उस नाशपीटी ने सींग मार ही दिए…’’

हम फिर परेशान हो गए. अगले दिन फिर बाबाजी को फोन लगाया और उन्हें अपनी दास्तां सुनाई.

बाबाजी ने कहा, ‘‘बेटा, मंगल पर शनि की दृष्टि पड़ने से ‘पत्नी प्रलय योग’ शुरू हो गया है, इसलिए रक्षा लौकेट के साथसाथ ‘श्रीमतीजी प्रलय नाशक लौकेट’ भी पहनना जरूरी है. इस के क्व10 हजार और भेज दो.’’

रमाबाई छिपछिप कर हमारी और बाबाजी की बातें सुन रही थी. उस ने श्रीमतीजी को सब बता दिया.

एक दिन हम ने बाबाजी को बताया, ‘‘हम जैसेजैसे इलाज कर रहे हैं, वैसेवैसे बीमारी और बढ़ती जा रही है.’’

इस बार हम ने महसूस किया कि बाबाजी भी कुछ परेशान लग रहे हैं. वे बोले, ‘‘बेटा, तुम तो श्रीमतीजी के योग से परेशान हो, परंतु हमारे पीछे श्रीमतीजी महायोग लग गया है.’’

हम ने कहा, ‘‘बाबाजी, मैं कुछ सम  झा नहीं?’’

तभी हमारी श्रीमतीजी आ गईं और बोलीं, ‘‘बाबा तुम हमारे सीधेसाधे पति को भड़का रहे हो. कहने को तो महिलाएं अंधविश्वासी होती हैं, परंतु ऐसा लग रहा है कि पुरुष हम से ज्यादा अंधविश्वासी हैं…’’ ‘श्रीमतीजी रक्षा लौकेट’ की हमारे पति को नहीं तुम्हें ज्यादा जरूरत है, जरा पीछे मुड़ कर तो देखो.’’

बाबाजी ने पीछे मुड़ कर देखा, तो स्टूडियो में बाबाजी के पीछे उन की श्रीमतीजी बेलन लिए खड़ी थीं. अब तो बाबाजी का चेहरा देखते ही बनता था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...