राजनीति और सिनेमा अलग अलग ध्रुव हो ही नही सकते. क्योंकि दोनों का संबंध आम जनता से है.आम लोग ही जेब से पैसे खर्च कर फिल्म देखकर फिल्म को सफल बनाते हैं,एक कलाकार को स्टार बनाते हैं,तो दूसरी तरह आम लोग ही अपना कीमती वोट देकर किसी को भी नेता चुनकर उसे मंत्री या प्रधानमंत्री तक बनाते हैं.2014 से पहले तक समाज का दर्पण होते हुए भी सिनेमा मनेारंजन का साधन ही ज्यादा रहा है.राजनीति से जुड़े लोग ‘शह’ और ‘मात’ की लड़ाई में सिनेमा को हथियार के तौर पर उपयोग नही करते थे.मगर 2014 के बाद हालात इस कदर बदले कि अब कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार अपनी केंद्रीय एजंसियो के साथ ही कुछ दिग्गज नेता अपने प्रतिद्वंदी को मात देने के लिए ‘सिनेमा’ का उपयोग कर सकते हैं.इस धारणा को उस वक्त बल मिला,जब केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी की बायोपिक फिल्म ‘‘गड़करी’’ का ट्रलेर गड़करी के ही गृहनगर नागपुर,जहां आर एस एस का मुख्यालय है,उसी शहर में सार्वजनिक किए जाने के साथ फिल्म केे प्रदर्शन की तारीख तक घोषित की गयी.

जी हाॅ! केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की मराठी भाषा में बनी बायोपिक फिल्म ‘गडकरी‘ का अचानक नागपुर में ट्रेलर रिलीज के साथ ही फिल्म के 27 अक्टूबर को पूरे देश में प्रदर्शित होने के ऐलान से राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी शुरू हो चुकी है. फिल्म के ट्रेलर लॉन्च ईवेंट में स्वयं नितिन गड़करी मोजूद नही थे,मगर इस ईवेंट में नागपुर के विदर्भ के सभी शीर्ष भाजपा नेताओं के साथ महाराष्ट् राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस भी मौजूद रहे. इन नेताओं ने दावा कि उनका एकमात्र इरादा युवा फिल्म निर्माताओं को प्रोत्साहित करना है.मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘गड़करी’ मराठी भाषा में है,मगर ट्रेलर से अहसास होता है कि इसमें ज्यादातर संवाद हिंदी में हैं.

यह पहला मौका है,जब प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में किसी बीजेपी नेता और वह भी उनकी ही कैबिनेट के किसी मंत्री की बायोपिक बन गई और रिलीज भी होने वाली है.ऐसे में सवाल यह भी है कि गडकरी पर बायोपिक के मायने क्या हैं? क्या राजनीति में उनका कद बड़ा करने की तैयारी है या फिर कुछ फिल्मकारों की एक फिल्म बनाने की दिलचस्पी भर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की शुरूआत

यूं तो किसी जीवित राजनेता पर फिल्म बनना कोई नई बात नही है.पर इस परंपरा की नींव तो 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही डाली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 24 मई 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक फिल्म ‘‘पी एम नरेंद्र मोदी’ प्रदर्शित हुई थी, जिसे मैरी काॅम पर बनी बायोपिक फिल्म निर्देशत करने वाले उमंग कुमार ने निर्देशित किया था और नरेंद्र मोदी का किरदार अभिनेता विवेक ओबेराय ने निभाया था. इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी नही मांगा था.पर अब इसे एमएक्स प्लेअर पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

जबकि दो भागों में उन पर वेब सीरीज ‘‘मोदीः जर्नी आफ ए काॅमन मैन’ भी 2019 में ही आयी थी. उमेश शुक्ला निर्देशित इस वेब सीरीज के पहले हिस्से में नरेंद्र मोदी का किरदार अभिनेता अशीश शर्मा ने निभायी थी,जो कि इससे पहले सीरियल ‘सिया के राम’’ में राम का किरदार निभा चुके हैं. यह सीरीज दो भागों में बनी थी. इसे दर्शक नही मिले.कुछ दिन पहले हमसे बात करते हुए अशीश शर्मा ने कहा था कि उन्हे इसमें अभिनय करने के एवज में पूरे पैसे अब तक नहीं मिले.दूसरे सीजन में प्रधानमंत्री मोदी का किरदार महेश ठाकुर ने निभाया.अब इस सीरीज के दोनों भाग ‘टाइम्स नाउ’ के यूट्यूब चैनल पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

कहने का अर्थ यह कि अब तक माना जा रहा था कि जिंदा रहते हुए सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मांदी पर ही फिल्म बन सकती हैं.हम याद दिला दें कि नरेंद्र मोदी पर दो अन्य फिल्में बनी हुई हैं.इनमें से एक फिल्म श्रवण तिवारी निर्देशित ‘‘टू जीरो वन फोर’’ और दूसरी पवन नागपाल निर्देशित फिल्म ‘ बाल नरेन’ है.ज्ञातब्य है कि अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनी जो फिल्में सामने आयी हैं,उन सभी के निर्माता या निर्देशक का संबंध गुजरात राज्य से ही है.

फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ क्या है?

इस फिल्म की कहानी गुजरात से दिल्ली तक के सियासी सफर की तरफ इषारा करती है.जनवरी 2014 से शुरू होती है.जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत नरेंद्र मोदी अपने भाजपा दल पर खुद को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के रूप में लड़ाने का दबाव बना रहे थे.भाजपा के लाल कृष्ण अडवाणी सहित कई वरिष्ठ नेता मोदी जी के खिलाफ थे.उसी पृष्ठभूमि में श्रवण तिवारी ने फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ का लेखन,निर्माण व निर्देशन किया है. फिल्म ‘टू जीरो वन फोर’ में सवाल उठाया गया है कि क्या 2014 में देश के प्रधानमंत्री बढ़ने की तरफ अग्रसर राजनीतिक शख्सियत के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय साजिश रची गई थी? क्या इस शख्सियत को एक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर ही समेट देने की कोई योजना बनी थी?

जी हाॅ! श्रवण तिवारी द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म की कहानी का प्लॉट बहुत ही दिलचस्प हैं.फिल्म की कहानी शुरू होती हैं 2014 में, जब देश के एक राज्य के मुख्यमंत्री को देश के आगामी प्रधानमंत्री में रूप में देखा जा रहा है. फिल्म के मुताबिक, देश के दुश्मन साजिश करके उन्हें रोकना चाहते हैं.और, विदेशी एजेंसियों की इन साजिशों को रोकने का बीड़ा उठाता है एक रिटायर्ड कैप्टन खन्ना (जैकी श्राफ ). जानकारी के मुताबिक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी कैप्टन खन्ना की इस कहानी का मुख्य आधार वह खबरें हैं, जो 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले खूब चर्चा में रहीं. कैप्टन के जीवन में तब बदलाव आता है,जब उसे एक प्रमुख पाकिस्तानी आतंकवादी फिरोज मसानी से पूछताछ का काम सौंपा जाता है. यह पूछताछ भारतीय और विदेशी गुप्त एजेंटों से जुड़ी एक बड़ी साजिश को उजागर करता है.जैसे ही खन्ना साजिश के इस जाल को उजागर करता है,वह खुद एक नई मुसीबत में फंस जाता है.

फिल्म ‘‘बाल नरेन’ क्या है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’’ पर आधारित इस फिल्म का निर्माण दीपक मुकुट ओर निर्देशन पवन नागपाल ने किया है.इसमें बाल कलाकार यज्ञ भसीन के अलावा बिदिता बाग,रजनीश दुग्गल,गोविंद नामदेव,विंदू दारा सिंह,लोकेश मित्तल ने अभिनय किया है.

क्या है फिल्म ‘गड़करी

नितिन गड़करी की बायोपिक फिल्म ‘‘गड़करी’’ के लेखक, निर्माता व निर्देशक अनुराग राजन भुसारी हैं.राहुल चोपड़ा ने  गडकरी और ऐश्वर्या डोर्ले ने गड़करी की पत्नी कंचन गडकरी का किरदार निभाया है.फिल्म की कहानी नागपुर में नितिन गड़करी के बचपन से शुरू होती है.फिर आएसएस से,जुड़ना,पार्टी कार्यकर्ता के रूप मंे काम करना,आपातकाल में जेल जाना, चुनाव जीतना,मंत्री बनने से लेकर एक्सप्रेस वे बनवाने से लेकर अब तक के उनके जीवन व कृतित्व की पूरी कहानी है.

शह और मात का खेलः

सूत्रों पर यकीन करने के साथ ही पिछले दिनों राजनीतिक गलियारों में जो कुछ हुआ,उसके अनुसार 2024 के लोकसभा चुनाव और पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव से ठीक पहले तीन नवंबर को श्रवण तिवारी निर्देशित फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ के प्रदर्शन का ऐलान कर दिया.सूत्रों पर यकीन किया जाए तो ऐसे में नितिन गड़करी ने भी अपनी बायोपिक फिल्म ‘गड़करी’ का ट्रलेर रिलीज करवाने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी पर बनी फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’’ से एक सप्ताह पहले 27 अक्टूबर को ही निर्माताओं से अपनी फिल्म ‘गड़करी’ को प्रदर्शित करने का ऐलान करवा दिया. (गडकरी के एक सहयोगी का दावा है कि पहले नितिन गडकरी इस तरह की फिल्म के पक्ष में नही थे. पर कुछ लोगों की सलाह पर वह तैयार हुए.) इससे राजनीतिक गलियारों में गजब का माहौल पैदा हो गया है. पर अब फिल्म ‘‘टू जीरो वन फोर’ को मार्च 2024 में रिलीज किया जाएगा.खुद इस फिल्म के निर्देशक श्रवण तिवारी कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म ‘टू जीरो वन फोर’ की कहानी जासूसी थ्रिलर है,जो जासूसी की रिस्क वाली दुनिया की एक झलक भी पेश करती है.यह साहस, साजिश और न्याय की कभी भी खत्म  नहीं होने वाली कहानी है, एक दिलचस्प रहस्य, जासूसी और अंतरराष्ट्रीय साजिश पर आधारित हमारी यह फिल्म मार्च 2024 में रिलीज होने वाली है.हम इसे तीन नवंबर 2023 को कभी भी रिलीज नहीं करने वाले थे.’’

उधर भाजपा से जुड़े कुछ लोग दावा कर रहे है कि इस फिल्म की परिकल्पना और निर्माण 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले ही कर लिया गया था.इसे अस्पष्ट कारणों से रोक दिया गया था.कुछ भाजपा नेताओं का मानना है कि गडकरी की फिल्म को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.जबकि कुछ नेताओ की राय में यह फिल्म एक ऐसे समूह का ईमानदार काम है,जो गडकरी के जीवन की बारीकियों को पकड़ना चाहता था.‘‘

क्या आरएसएस ने मोदी से दूरी बना गड़करी पर दांव खेलने का लिया है फैसला

बहरहाल,केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के गृह नगर नागपुर में फिल्म ‘गड़करी’ के ट्रेलर की रिलीज ने कई सवालों के जवाब दे दिए. महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के नेतृत्व में और स्थानीय पार्टी विधायकों सहित नागपुर से भाजपा की स्टार ब्रिगेड बड़ी संख्या में मौजूद थी.सर्वविदित है कि देवेंद्र फड़नवीस भी अंदर ही अंदर अमित शाह से नाराज चल रहे हैं.क्योकि वह बार बार कहते रहे हैं कि वह उपमुख्यमंत्री नही बनेंगे,पर सूत्रो के अनुसार उन्हे अमित शाह के आदेश पर उप मुख्यमंत्री की शपथ लेनी पड़ी.तो दूसरी तरफ वह भी विदर्भ से ही आते हैं.लेकिन न तो गडकरी, न ही कोई अन्य नागपुर यानी कि विदर्भ से बाहर का भाजपा नेता मौजूद नही हुआ.लोगों की राय में मोदी-अमित शाह जगत में गडकरी की हैसियत को देखते हुए, कई लोगों के लिए सभी संकेत, कहानी में एक मोड़ की ओर इशारा करते हैं.

वैसे खुद पर बनी फिल्म ‘‘गडकरी’ के ट्रलेर लांच से कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने पार्टी नेतृत्व से अपनी दूरी का एक संकेत देते हुए सामान्य गुप्त शैली में टिप्पणी कहा था-‘‘इस लोकसभा चुनाव के लिए,मैंने फैसला किया है कि कोई बैनर या पोस्टर नहीं होंगे.लोगों को चाय नहीं दी जाएगी. मुझे दृढ़ता से लगता है कि जो लोग वोट देना चाहते हैं वह वोट देंगे, जो नहीं करना चाहते वह नहीं करेंगे.” उसी दिन से महाराष्ट् के राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दूरी बनाते हुए नितिन गड़करी पर हाथ रख दिया है.

देवेंद्र फड़नवीस ने राज कपूर से की नितिन गड़करी की तुलना

नागपुर में फिल्म ‘गड़करी’ के ट्रेलर लॉन्च पर बोलते हुए नितिन गड़कर की तुलना राज कपूर से करते हुए देवेंद्र फड़नवीस ने कहा-“गडकरी राज कपूर की तरह हैं.वह बड़े सपने देखते हैं, और वह अपने सपनों को उनके तार्किक अंत तक पूरा भी करते हैं… उनका नवोन्वेषी और दूरदर्शी नेतृत्व हमारे लिए प्रेरणा है.‘‘

फड़नवीस ने लोगो को याद दिलाया कि गडकरी ने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे के लिए रिलायंस के 3,600 करोड़ रुपये के टेंडर को खारिज कर इस परियोजना को 1,600 करोड़ रुपये में पूरा किया था.

देवेन्द्र फड़णवीस ने आगे कहा -‘‘केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की बायोपिक में दिखाया गया है कि एक नेता कैसे बनता है और एक ‘कार्यकर्ता‘ (पार्टी कार्यकर्ता) कैसे काम करता है और नई पीढ़ी को ‘दूरदर्शी और अभिनव‘ भारतीय जनता पार्टी नेता, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के बारे में अधिक जानने के लिए प्रेरित करेगा.जीवन में किसी भी संघर्ष की बात आने पर गडकरी का कभी न हार मानने वाला रवैया है, जो हम जैसे कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा है. वह एक दूरदर्शी नेता हैं और सिर्फ एक मंत्री नहीं बल्कि एक प्रवर्तक हैं.‘‘

यूं भी नितिन गडकरी पिछले कुछ महीनों में खरी-खरी बातें कहने के लिए सुर्खियों में रहे हैं.करीब एक पखवाड़े पहले ही लोकसभा चुनाव को लेकर उनके दिये गए बयान ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं.

गत वर्ष गड़करी ने एक कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जमकर तारीफ करते हुए कहा था-‘‘उदार अर्थव्यवस्था के कारण देश को नई दिशा मिली, उसके लिए देश मनमोहन सिंह का ऋणी है.मनमोहन सिंह के द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों की वजह से ही मैं महाराष्ट्र में मंत्री रहते हुए सड़कों के निर्माण के लिए धन जुटा सका था.’’नितिन गड़करी का यह बयान  भाजपा में किसी को भी पसंद नहीं आया.

लोग तो अब यह भी कह रहे हैं कि इस बार लोकसभा चुनाव से पहले कई फिल्में आने वाली हैं.तो क्या अब फिल्मों के माध्यम से राजनीतिक दल और राज नेता अपने प्रतिद्वंदियों का मात देने का प्रयास करेंगें ? क्या अब सिनेमा का यही उपयोग होना बाकी रह गया है?..खैर,हमें जिस तरह की सूचना मिल रही है,उसके अनुसार कई राजनीतिक फिल्में बन रही हैं और हो सकता है कि फिल्म ‘गड़करी’ के प्रदर्शन के बाद कई दूसरे नेता भी अपने जीवन व कृतित्व पर फिल्में बनवा सकते हैं.वैसे भी कहा जाता है कि अपने उपर लगे सभी कीचड़ों को आपन अपने जीवन पर फिल्म बनवा कर धेा सकते हैं… कम से कम कई क्रिकेटर अब तक ऐसा कर चुके हैं,यह अलग बात है कि अब तक गलत मकसद से बनी एक  भी क्रिकेट आधारित फिल्म को दर्शक सिरे से खारिज करते आए हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...