रमोला और अक्षत के प्रेमविवाह को करीब 4 वर्ष हो चुके थे. दोनों की एक छोटी बेटी भी थी, पर ऐसा लगता था कि दोनों के बीच प्रेम कपूर बन उड़ गया हो. दोनों ही गरममिजाज थे. उन का झगड़ा कहीं भी कभी भी, किसी भी जगह शुरू हो जाता. जब दोनों गुस्से में होते तो उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहता कि वे किस के सामने झगड़ रहे हैं. जब वे एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे होते तो बेटी उन्हें सहमी सी देखती.

एक बार रमोला की मम्मी बेटीजमाई के घर गई हुई थी. आएदिन दोनों आदत के अनुसार उन के समक्ष भी बहस कर लेते. ज्यादातर बहस घरेलू कामों को ले कर होती थी. चूंकि रमोला भी नौकरी थी तो उसे लगता अक्षत उस की मदद करे. मगर अक्षत मनमौजी सा इंसान था. जब मन होता करता वरना हाथ नहीं बंटाता.

उन के घर के कलहयुक्त वातावरण से घबरा कर रमोला की मम्मी एक दिन बोल पड़ीं, ‘‘यदि नहीं पटती है तो दोनों अलग हो जाओ. जबरदस्ती साथ रह कर दुखी मत रहो. बच्ची पर भी इस का गलत असर पड़ रहा है.’’

‘‘पर पहले जरा यह सोचो कि एकदूसरे की किन खूबियों को देख कर तुम दोनों ने प्रेमविवाह किया था. हमें तो लगा था एकदूजे को पसंद करते होंगे पर तुम दोनों के व्यवहार से तो ऐसा नहीं लगता है. ऐसे में ?अच्छा है कि अलग ही हो जाओ.’’

फिर उन्होंने विपरीत मानसिकता से दोनों को हैंडल किया. कहना नहीं होगा कि उस के बाद दोनों के व्यवहार में एकदूसरे के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी, दोनों एकदूसरे का ध्यान रखने लगे.

छोटीछोटी बातों पर झगड़ा

यहां तो खैर दोनों ही एक स्वभाव के थे और संयोग से बात बन गई पर कई बार एक नए जोड़े में कोई एक बहुत गुस्सैल स्वभाव का होता है. यह गुस्सैल व्यवहार किसी का भी हो सकता है. ऐसे व्यवहार वाले दूसरे पर हावी हो जाते हैं.  छोटीछोटी बातों पर उन का पारा गरम हो उठता है. ऐसे लोग अपने जीवनसाथी के प्रति बेहद कटु होते हैं. प्रेम, इज्जत, संवेदनशीलता इन के शब्दकोश से नदारद रहते हैं.

कई बार ऐसे पति या पत्नी दूसरों के समक्ष अच्छा व्यवहार करते हैं. दूसरों के प्रति भी उन का व्यवहार प्यारभरा रहता है. गुस्सैल जीवनसाथी 2 तरह के होते हैं. एक जो हमेशा अपने जीवनसाथी से नाराज रहते हैं और दूसरे वे जिन की नाराजगी अप्रत्याशित होती है. वे कभी भी तिल का ताड़ बनाने लगते हैं. माना कि जहां 2 बरतन रहेंगे वहां थोड़ीबहुत टकराहट तो होगी ही पर जब थोड़ी दोहराव कम हो और बहुत का ज्यादा तो बात चिंतनीय होती है.

रम्या और संदीप की शादी को 4-5 वर्ष होने को थे. रम्या पढ़ीलिखी युवती थी पर ससुराल वालों की इच्छा का सम्मान करते हुए उस ने नौकरी नहीं की और संयुक्त परिवार में तालमेल बैठाने की कोशिश करने लगी. संदीप की तो जैसे नाक पर गुस्सा बैठा रहता था. इकलौता होने के कारण बड़ा ही नकचढ़ा भी था. आएदिन खाने की थाली पटक देता तो कभी पार्टी में जाने को तैयार रम्या को बदसूरत कह देता. कभी औफिस की भड़ास निकाल देता. एकाध मौके पर संदीप ने रम्या पर हाथ भी उठा दिया था. उस पर रम्या की सास कहतीं, ‘‘मर्द है न, आखिर हक बनता है तुम पर. सहना तो हम स्त्रियों के हिस्से में लिखा है.’’

रम्या ने अपने व्यवहार से बहुत कोशिश की कि संदीप सम?ो कि वह उस के पैरों की जूती नहीं है पर संदीप पर इस का कोई असर नहीं होता. अंत रम्या ने चुपकेचुपके नौकरी के लिए आवेदन भेजना शुरू कर दिया और नौकरी लगने पर वह बिना किसी की आज्ञा लिए जाने लगी. आत्मविश्वास के साथसाथ उस ने प्रतिकार करना भी सीख लिया. अब खाने की थाली पटकने पर वह उसे साफ करना तो दूर दूसरा कुछ खाने के लिए भी नहीं पूछती और वहां से हट जाती.

विवाह की नींव

कुछ मनोरोगी ऐसे भी होते हैं जिन्हें क्षणिक आवेश में शक और नाराजगी का दौरा पड़ता है और फिर दूध के उफान की तरह उतर जाने पर पछतावा करते हैं और माफी भी मांगने लगते हैं. कई बार मैरिज काउंसलिंग या मनोचिकित्सकों से मिलने पर भी समस्या का समाधान मिल जाता है.

इस तरह हर जोड़े का अलग समीकरण होता है. हर की कहानी दूसरे से भिन्न होती है. कोई एक फौर्मूला नहीं है कि गुस्सैल जीवनसाथी से कैसे निबटा जाए. विवाहविच्छेद एक दुखद प्रक्रिया है. जहां तक संभव हो इसे टालना ही उचित है. मगर शादी के नाम पर जिंदगी को जहन्नुम बना कर ढोना भी बहुत गलत है.

विवाह की नींव आपसी प्यार और तालमेल पर टिकी होती है. 2 लोग चाहे वे पूर्वपरिचित हों या सर्वदा अपरिचित जब साथ रहने लगते हैं तो कुछ शुरुआती दिक्कतें आती ही हैं. कई बार शादी के कुछ सालों के बाद जब रोमांस का ज्वार उतरता है तो पार्टनर का एक अलग ही स्वरूप दिखने लगता है. इसीलिए कहा जाता है कि इतने कड़वे भी न बनो कि लोग थूक दें और इतने मीठे भी न बनो कि कोई निगल जाए.

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