‘‘अ रे यार मुझे तो घर में रहना पसंद ही नहीं है, जब देखो दोनों चिकचिक करते रहते हैं. इसे घर नहीं कहते हैं, मुझे तो बाहर दोस्तों के साथ ही अच्छा लगता है या फिर अपना कमरा, जहां लैपटौप पर मूवी देखो व मोबाइल से गप्पें मारो, बस यही हमारी दुनिया है और हमारा सुकून. हमें जो पसंद है वही करेंगे,’’ गुडि़या अपनी सहेली से कह रही थी. वह हमेशा अपने घर से दूर भागती है, जहां मांबाप बातबात पर झगड़ते हैं. उस ने कभी उन्हें प्यार से बात करते ही नहीं सुना, वह घर से बाहर सुकून तलाशने लगी.

आज सुबहसुबह नीलेश का फोन आया, बहुत गुस्से में था, ‘‘दीदी, आज मैं पूरी तरह हार गया. इन का कुछ नहीं हो सकता. जब देखो भूखे शेर की तरह खाने को दौड़ते हैं. जरा सा भी चैन नहीं है. बातबात पर झगड़ा करते रहते हैं, एक भी चुप नहीं होना चाहता है,’’ नीलेश गुस्से में लालपीला हो रहा था.

‘‘हां सही बात है भाई कितना लड़ते हैं, हम  कितना भी अच्छा करें इन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है. कभी आपस में ?ागड़ेंगे तो कभी हमारे सिर पर तलवार लटकी रहती है,’’ निशा कुछ कहती कि तभी दूसरा भाई आ गया.

वह भी गुस्से में अपना आपा खोने लगा, ‘‘इस घर में कभी शांति नाम की चीज नहीं मिलेगी. घर का माहौल इतना खराब रहता है कि हम 2 पल चैन से बैठे नहीं सकते, नौकरी का  काम घर से ही चलता है, मन करता है दूसरे शहर चला जाऊं. इन के लिए हम करकर के मर जाएंगे तो भी इन को कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी, ?ागड़ने के लिए कुछ नहीं मिला तो सूई हमारी तरफ घूम जाती है. हम इतने बड़े पद पर काम करते हैं, इन के साथ खड़े होने में शर्म आती है.’’

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