खनक बहुत देर तक शून्य में ताक रही थी. आज फिर उसे बहुत देर तक उसकी मम्मी समझ रही थी क्योंकि आज फिर उस के लिए रिश्ता आया था.

खनक बैंक में नौकरी करती थी वहीं पर गर्व अपना बैंक अकाउंट खुलवाने आया था. खनक की उदासीनता गर्व को बहुत भा गई थी. गर्व ने अब तक अपने चारों ओर बस झनझन बजती लड़कियों को ही देखा था, जो हवा से भी तेज बहती थी. ऐसे में खनक की चुप्पी, उदासीनता, सादगी भरा शृंगार सभी कुछ गर्व को अपनी ओर खींच रहा था. इधरउधर से पता कर के गर्व ने खनक का पता खोजा और एक तरह से अपने परिवार को ठेल कर भेज ही दिया.

खनक के मम्मीपापा जानते थे कि खनक का जवाब न ही होगा मगर गर्व जैसा अच्छा रिश्ता बारबार नहीं आएगा इसलिए खनक की मम्मी खनक को समझ रही थी, ‘‘खनक बेटा क्या प्रौब्लम है, कब तक तुम शादी से भागती रहोगी. बचपन में हुई एक छोटी सी बात को तुम कब तक सीने से लगा बैठी रहोगी?’’

खनक अपनी मम्मी को गहरी नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘छोटी सी बात मम्मी… मेरा पूरा वजूद छलनी हो गया है और आप को छोटी सी बात लग रही.’’

खनक की मम्मी बोली, ‘‘बेटा, अगर मैं तब चुप्पी न लगाती तो मेरा मायका सदा के लिए मुझ से छूट जाता.’’

खनक मन ही मन सोच रही थी कि और जो एक घुटन भरा तूफान सदा के लिए मेरे अंदर कैद हो गया है उस का क्या. आज भी खनक को जून की वह काली शाम रहरह कर याद आती है. खनक अपनी नानी के घर गई हुई थी. मामी भी अपने मायके गई हुई थी. मगर खनक का ममेरा भाई हर्ष नहीं गया था क्योंकि उस के कालेज के ऐग्जाम चल रहे थे. खनक तब 12 साल की और हर्ष 20 साल का था. खनक को हर्ष से बातें करना बड़ा पसंद था क्योंकि हर्ष उस की बातें बड़े आराम से सुनता था और कभीकभी उस की तारीफ भी कर देता था, जो खनक के लिए उस उम्र में नई बात थी. खनक सदा हर्ष के आसपास बनी रहती थी. हर्ष जब मन करता खनक को एकाध धौल भी जमा देता था. कभीकभार उस के हाथ सहला देता था जो खनक को अजीब लगने के साथसाथ रोमांचित भी करता था.

एक दिन खनक की नानी सत्संग में गई हुई थी. मामा औफिस के काम से गए हुए थे. खनक और हर्ष घर पर अकेले थे. हर्ष ने उस शाम खनक के लिए उस की पसंदीदा मैगी बनाई और फिर न जाने कैसे हर्ष ने खनक को किस कर दिया.

खनक को थोड़ा अजीब लगा, मगर वह कुछ समझ नहीं पाई. फिर हर्ष और खनक बिस्तर पर लेट कर बात करने लगे. खनक छोटी थी मगर उस की छठी इंद्री उस से कह रही थी कि कुछ ठीक नहीं है इसलिए जैसे ही खनक बाहर जाने लगी तो हर्ष ने उस का हाथ पकड़ लिया और बिस्तर पर गिरा दिया. खनक एकाएक घबरा गई पर तब तक हर्ष के अंदर का जानवर जाग उठा था. खनक बस छटपटाती रही मगर कुछ न कर पाई. जब तक हर्ष को होश आया तब तक काफी देर हो चुकी थी. खनक का दर्द और डर के कारण बुरा हाल था.जब खनक की नानी आई तो वहां का नजारा देख कर सिर पकड़ कर बैठ गई. उन्होंने हर्ष को 3-4 तमाचे जड़ दिए और खनक को अपने साथ कमरे में बंद कर लिया.

अगले दिन सुबहसवेरे ही खनक की मम्मी आ गई. खनक अपनी मम्मी के गले लग कर खूब रोई. मम्मी उस के सिर पर धीमेधीमे हाथ फेर रही थी.

तभी नानी फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘यह बात बस नहीं खत्म कर दे, हर्ष को मैं ने अच्छे से डांट लगा दी है. इस बात को इधरउधर करने की जरूरत नहीं है. कल को खनक की ही बदनामी होगी. फिर अगर तू अपने भाभी से बात करेगी तो वह कभी इस बात पर विश्वास नहीं करेगी. तेरे और तेरे भाई का रिश्ता जरूर टूट जाएगा और सच कहूं तो असलियत क्या है किसे पता. दोनों ही उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रहे हैं. हो सकता है खनक भी बहक गई हो मगर फिर डर गई हो.’’

खनक बारबार सोच रही थी कि क्या उस की मम्मी भी उस पर विश्वास नहीं कर रही है. मगर इस पूरे प्रकरण में किसी ने खनक के बारे में नहीं सोचा. खनक की नानी को अपने पोते हर्ष के भविष्य और अपने बुढ़ापे की चिंता थी. खनक की मम्मी को अपने मायके की इज्जत की, उन्हें लग रहा था कि अगर यह बात ससुराल तक पहुंची तो मायके की बदनामी के साथसाथ उन का रिश्ता भी मायके से टूट जाएगा जो वह नहीं चाहती थी. खनक उस समय इतनी छोटी थी कि उसे लग रहा था कि शायद वही गलत है, शायद उसे ही हर्ष से बात नहीं करनी चाहिए थी.

बहरहाल जो भी हो चिडि़या जैसी चहचहाती और फुदकती हुई खनक उस दिन के बाद से मार्बल जैसी ठंडी और पत्थर बन गई थी. उस समय वह इतनी छोटी थी कि अपनी नानी या मम्मी से कोई सवालजवाब नहीं कर पाई थी. मगर इस घटना ने उस के अंदर की भावनाओं को पथरीला बना दिया था. खनक अपने पापा की छाया से भी बचने लगी थी.

खनक की मम्मी इस बात को यह कह कर टाल देती, ‘‘खनक बड़ी हो रही है… यह नौर्मल है.’’

खनक हर समय एक वहम में रहती थी. उसे किसी पर विश्वास नहीं था, इसलिए उस का कोई दोस्त भी नहीं था.

खनक ने अपनी सारी ऊर्जा उस घटना के बाद पढ़ाई में लगा दी थी. जब खनक कालेज के प्रथम वर्ष में थी तो उस के आगेपीछे लड़कों की लंबी लाइन थी, मगर उस की उदासीनता देख कर ही कालेज में उस का नाम मार्बल पड़ गया था. संगमरमर की तरह खूबसूरत, शांत मगर पथरीली और ठंडी.

खनक को काउंसलर की जरूरत थी मगर खनक की मम्मी काउंसलर के बजाय खनक के लिए पंडितों के चक्कर काटने लगी थी. कभी शांति पाठ तो कभी सिद्धि पाठ मगर कोई भी पाठ या कोई भी पूजा खनक के घाव पर मलहम नहीं लगा पा रही थी.

खनक अपने में सिमटती चली गई, सब के साथ हो कर भी वह अकेली और उदासीन रहती थी.बस पहले उस की पढ़ाई और अब उस का काम उस को सुकून देता था. पहले पढ़ाई के कारण और फिर नई नौकरी के कारण मार्बल शादी से इनकार करती रही पर अब उस के पास कोई कारण नहीं रह गया था सिवा इस के कि उस का मन नहीं है.

उस घटना के बाद से मार्बल का अपने ननिहाल से नाता टूट गया था, मगर मां के कारण उसे वहां की खबरें मिलती रहती थीं. हर्ष की शादी हो गई थी और उस के पास एक बेटी भी थी. बहुत बार मार्बल का मन किया कि वह सबकुछ जा कर हर्ष की बीबी को बता दे. मगर घुटने के अलावा खनक कुछ नहीं कर पाई थी.

शाम को जब खनक औफिस से घर आई तो गर्व अपने परिवार के साथ पहले से ही बैठा था. खनक की इस बार कुछ नहीं चल पाई, गर्व न जाने क्यों खनक के मन को भी भा गया था. मगर खनक गर्व से कुछ छिपाना नहीं चाहती थी.

गर्व और खनक का रिश्ता तय हो गया था. खनक की मम्मी इस शादी को जल्द से जल्द करना चाहती थी. खनक विवाह से पहले 3 बार गर्व से मिली थी और तीनों ही बार जब भी खनक ने अपने अतीत की बात बतानी चाही तो गर्व ने बोल दिया, ‘‘तुम्हारे और मेरे बीच में बस आज रहेगा जो बेहद खूबसूरत है.’’

खनक गर्व से जितनी बार शादी से पहले मिली, उस के व्यवहार से खनक का डर काफी कम हो गया. उस ने पहली बार किसी लड़के को अपनी जिंदगी में शमिल किया था, मार्बल की ठंडक धीरेधीरे कम हो रही थी. ऐसा लग रहा था मार्बल अब सुंदर मूर्ति का रूप ले रही है जिस में गर्व ने जान डाल दी है.

पूरे परिवार में हंसीखुशी का माहौल था. खनक ने फिर से खनखनाना शुरू कर दिया था. विवाह संपन्न हो गया और पहले के कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. गर्व को आभास था कि खनक थोड़ी सैंसिटिव है, इसलिए उस ने शुरुआत के कुछ दिनों तक नजदीकी के लिए कोई जल्दबाजी नहीं करी. उस ने 1 हफ्ते बाद घूमने के लिए टिकट करा रखे थे. खनक बेहद खुश थी. उस रात गर्व और खनक दोनों ने ड्रिंक लिया, मगर ड्रिंक करने के बाद गर्व एकाएक नजदीकी के लिए आतुर हो उठा.

खनक ने प्यार से कहा, ‘‘गर्व मैं अभी तैयार नहीं हूं.’’

गर्व लड़खड़ाती आवाज में बोला, ‘‘क्यों पहले भी तो तुम्हारे संबंध रहे होंगे और मैं तो तुम्हारा पति हूं,’’ यह कह कर वह खनक के ऊपर बल का प्रयोग करने लगा.

खनक की घिग्घी बंध गई और न जाने उस के हाथ में कैसे एक ब्रास का गुलदस्ता आ गया जो उस ने गर्व के सिर पर दे मारा.

गर्व दर्द से तिलमिला उठा. खनक घबरा गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस ने सही किया या गलत. अगली सुबह गर्व ने खनक से समान बांधने के लिए कह दिया. पूरे रास्ते गर्व ने खनक से कोई बात नहीं करी. गर्व और खनक को इतनी जल्दी लौटा देख कर सब का माथा ठनक गया.

गर्व ने मगर एक झूठी कहानी बता कर सब का मुंह तो बंद कर दिया मगर उन के रिश्ते में तनाव के बादल ऐसे घिरे जैसे जम से गए. गर्व चाहे कितना भी खनक को पसंद करता हो मगर उस की भी कुछ जरूरतें थी. खनक का उस से दूर रहना और नजदीक आते ही पत्थर बन जाना सबकुछ उसे तनाव दे रहा था.

उधर खनक भी शादी को बचाने के लिए कोशिश कर रही थी. मगर रात होते ही वह बेचैन हो उठती थी. हर रात उसे सजा जैसी महसूस होती थी. उधर गर्व को ऐसा लगता था मानो खनक कोई औरत नहीं है बल्कि एक ठंडा पत्थर है मार्बल की तरह.

गर्व को समझ नहीं आ रहा था कि वह मार्बल के साथ पूरा जीवन कैसे गुजारेगा. दोनों पढ़ेलिखे थे. अगर वे चाहते तो आराम से एक डाक्टर और काउंसलर के पास जा सकते थे मगर हमारे समाज में आज भी सैक्स को ले कर इतना खुलापन नहीं है, इसलिए दोनों एकदूसरे से खुल कर बात नहीं कर पा रहे थे.

मार्बल बहुत बार कोशिश करती मगर उस की जबान तक बात ही नहीं आ पा रही थी.

उधर गर्व को समझ नहीं आ रहा था कि क्या उस का कोई दोष है या खनक उस से प्यार ही नहीं करती है.

गर्व ने जब यह बात अपने एक बेहद नजदीकी दोस्त के साथ शेयर करी तो उस ने उस की मर्दानगी पर ही ताना कसा कि वह अपनी बीवी को काबू में नहीं कर पाया है. मार्बल जब अपने घर गई और उस ने अपनी मम्मी को यह बात बताई तो वे भी डाक्टर को नहीं, ज्योतिषियों को चुना.

जन्मपत्री देखते हुए आनंदमणि पंडितजी ने खनक को मूंगा और सोमवार का व्रत बता दिया.

इसी आंखमिचौली में 3 माह बीत गए. गर्व और खनक के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं. 4 माह के पश्चात गर्व ने खनक को बोल दिया कि वह इस तरह से वो आगे की जिंदगी नहीं बिता सकता है, खनक एक बार शांति से अपने घर जा कर सोच ले कि उसे करना क्या है?

गर्व ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘मुझे नहीं पता खनक कि गलती किस की है, मगर तुम्हारा मार्बल जैसा ठंडापन मुझे बेहद नर्वस कर देता है. हो सकता हैं मैं तुम्हारे अंदर वह प्यार जगाने में नाकामयाब रहा हूं, मगर इस तरह तो हम जिंदगी नहीं गुजार पाएंगे.’’

खनक फिर से पुरानी उदासीन खनक बन गई थी जिस की रुनझन कहीं खो गई थी. घर आ कर खनक बेहद रोई. अपनी मम्मी के गले लग कर खनक बोली, ‘‘मम्मी, मेरा यह अभिशाप, मेरा यह नाम मार्बल शायद मेरे जीवन का सत्य बन गया है.’’

खनक बोली, ‘‘मम्मी वह रात मेरी जिंदगी में एक अंधी सुरंग बन कर रह गई है, जो खत्म ही नहीं हो रही है. जब भी गर्व मेरे करीब आने की कोशिश करता है मैं मार्बल जैसी ठंडी और पत्थर बन जाती हूं. मैं गर्व को अपनी सचाई बताना चाहती हूं मम्मी मगर फिर आप का और पापा का रिश्ता सामने आ जाता है. मेरी सचाई से आप और पापा के रिश्ते में दरार आ जाएगी.’’

खनक की मम्मी खनक की बात सुन कर बुत सी बन कर बैठ गई. वह काली रात खनक के भविष्य को इतना काला कर देगी, मां ने सपने में भी नहीं सोचा था. अब अगर वह यह सच अपने पति को बता देगी तो न जाने क्या होगा, मगर खनक उस के भविष्य का क्या.

क्या एक मां हो कर इतनी स्वार्थी हो सकती, पहले अपने मायके का मोह और अब अपनी शादी का मोह. पूरी रात न खनक और न ही उस की मम्मी सो पाई.

अगले दिन जब खनक औफिस के लिए तैयार हो रही थी तो उस की मम्मी ने खनक से कहा, ‘‘आज औफिस मत जा, हम दोनों बात करेंगे और बाहर ही लंच भी कर लेंगे.’’

खनक और उस की मम्मी शायद जीवन में पहली बार इतना पारदर्शी हो कर बातचीत कर रही थीं. खनक का दर्द था कि उस की मां ने उस के लिए कभी स्टैंड नहीं लिया. यह सच है कि खनक की मम्मी उस रात में जो भी हुआ वह उसे रोक नहीं सकती थी, मगर मां की चुप्पी, सब से इस बात को छिपाना के कारण खनक अंदर से संवेदनहींन हो गई है. काश, हर्ष को भी उसी दर्द से गुजरना पड़े, जिस से वह गुजर रही है, मगर हर्ष से तो किसी ने आज तक इस बात का जिक्र भी नहीं किया. उस के मम्मीपापा को भी नहीं पता कि उन के बेटे ने कैसे उस की आत्मा को रौंद कर पत्थर बना दिया है.

अभी खनक ये सब बातें कर ही रही थी कि गर्व आ कर बैठ गया. खनक की मम्मी ने धाराप्रवाह उस रात की आपबीती गर्व को बता दी और फिर बोली, ‘‘बेटा, इस सब के लिए खनक नहीं मैं जिम्मेदार हूं, मेरे ही कारण खनक तुम से कुछ कह नहीं पा रही थी.’’

खनक गर्व को देख कर सुबकने लगी और बोली, ‘‘गर्व, पहली बार मुझे किसी पुरुष के साथ अपनेपन का अनुभव हुआ है, मगर मैं कुछ भी जानबूझ कर नहीं करती हूं.’’

गर्व खनक के हाथों को सहलाते हुए बोला, ‘‘इतने सालों तक इतना दर्द अकेले ही पीती रही हो? खनक को ज्योतिषों या व्रत की नहीं खुल कर बोलने की जरूरत है.’’

खनक की मम्मी बोली, ‘‘बेटा, जो सच था उसे कहने का साहस मैं आज कर पाई हूं.’’

खनक ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘गर्व, शादी से पहले मैं परिवार की बदनामी के कारण तुम्हें कुछ नहीं बता पाई थी. मगर तुम्हें पूरा हक है कि तुम्हें जो खुशी दे वही फैसला करो. गलती मेरी है, तुम क्यों अपनी खुशियों के साथ सम?ाता करोगे.’’

गर्व खनक और उस की मम्मी से बोला, ‘‘मुझे थोड़ा समय चाहिए कोई भी फैसला करने से पहले. मगर मेरा जो भी फैसला होगा, उस का आप या आप के परिवार पर कोई असर नहीं होगा.’’

खनक को इतने सालों बाद ऐसा लगा जैसे उस के अंदर कुछ पिघल रहा है. गर्व को समझ नहीं आ रहा था

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