रेटिंग: पांच में से एक स्टार

 निर्माताः रेड चिलीज एंटरटेनमेंट, जियो स्टूडियोज, राज कुमार हिरानी फिल्म्स

लेखकःअभिजीत जोषी,राजकुमार हिरानी व कनिका ढिल्लों

निर्देशकः राज कुमार हिरानी

कलाकारःशाहरुख खान,विक्रम कोचर, विक्की कौशल, बोमन ईरानी, अनिल ग्रोवर, तापसी पन्नू, देवेन भोजानी,ज्योति सुभाष, अरूण बाली, अमर दीप झा

अवधिः दो घंटा 41 मिनट

फिल्म ‘डंकी’ के लेखक व निर्देशक ने इस फिल्म में इतनी गलतियां की हैं कि यह यकीन ही नही होता कि इस फिल्म के निर्देशक व सह लेखक राज कुमार हिरानी ने ही इससे पहले मुन्ना भाई एमबीबीएस’’, ‘‘लगे रहो मुन्नाभाई’,‘थ्री ईडिएट्स’, ‘पीके’ और ‘संजू’ जैसी फिल्में निर्देशित की थी? फिल्म ‘डंकी’ देखने के बाद दिमाग में एक ही बात आती है कि ‘डंकी’ से पहले राज कुमार हिरानी ने जितनी भी फिल्में निर्देशित की थीं,उनमें परोक्ष या अपरोक्ष रूप से विधु विनोद चोपडा का बहुत बड़ा योगदान रहा है.विधु विनोद चोपड़ा से अलग होकर राज कुमार हिरानी ने शाहरुख खान जैसे स्टार के साथ फिल्म ‘डंकी’ बनाकर अपने व शाहरुख खान के कैरियर पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया.‘पठान’ व ‘जवान’ के बाद ‘डंकी’ में एक बार फिर शाहरुख खान आर्मीमैन की भूमिका में हैं.तो वहीं राज कुमार हिरानी ने ‘थ्री ईडिएट्स’ और ‘पीके’ के कुछ दृश्यो को चुराकर फिल्म ‘डंकी’ में भी जबरन ठॅूंस दिया है.यह फिल्म बहुत बडी टार्चर / सिरदर्द है.उपर से शाहरुख खान और राज कुमार हिरानी दोनों का अहम उन पर इतना हावी है कि वह भी देश की वर्तमान सरकार की ही तरह वितरकों,सिनेमाघर मालिकों को धमकाते हुए जिस तरह से देश को उस वक्त दक्षिण व हिंदी सिनेमा के तोर पर बांटा है,जब ‘पैन इंडिया सिनेमा’ की बात की जा रही हो,यह अति अशोभनीय कृृत्य है.

हम बता दें कि हरियाणा और पंजाब में ‘डंकी मारना’ बहुत प्रचलित शब्द है.लोग बिना आवश्यक कानूनी काजात के गलत राह से चलकर विदेश पहुॅचने का प्रयास करते हैं,जिसे ‘डंकी मारना’ कहा जाता है.ऐसा कृत्य करने वाले पचहत्तर प्रतिशत लोग इंग्लैंड या अमरीका पहुॅचने से पहले ही मौत की नींद सो जाते हैं,उनके बारे में किसी को कुछ पता चही चलता.बाकी 25 प्रतिशत जो पहुॅच जाते हैं, वह विदेशो में नारकीय जिंदगी ही जीते हैं.फिल्म ‘डंकी’ की कहानी इसी पर है,मगर विषयवस्तु के साथ निर्देशक, एडीटर व सह निर्माता राज कुमार हिरानी तथा अभिनेता व सह निर्माता शाहरुख खान किसी भी स्तर पर न्याय नहीं कर पाए.

कहानीः

यह कहानी पंजाब के एक काल्पनिक गांव ललाटू से शुरू होती हैं.जहां युवा पीढ़ी कठिन जीवन व गरीबी से छुटकारा पाने के लिए यूके जाना चाहते हैं.यह लोग यूके का वीजा पाने की समस्या को छोटे-मोटे एजेंटों के माध्यम से सुलझाने के लिए प्रयासरत हैं.इसी गांव में एक दिन पठानकोट निवासी पूर्व सैनिक हरदयाल सिंह ढिल्लों उर्फ हार्डी (शाहरुख खान) पहुंचता है.जहां उनकी मुलाकात  ललाटू,पंजाब निवासी मन्नू (तापसी पन्नू), बुग्गू (विक्रम कोचर) और बल्ली (अनिल ग्रोवर) हैं.इन सभी की अपनी अपनी समस्याएं हैं.यह सभी इग्लैंड जाने के लिए वीजा चाहते हैं,मगर इन्हे वीजा नही मिलता.बुग्गू तो अपनी मां की गाढ़ी कमाई के डेढ़ लाख रूपए भी गंवा बैठता है.ललाटू में सुखी मंगल (विक्की कौशल) भी हैं,जो लंदन के वीजा के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं.उन्हें अपनी प्रेमिका को वहां से सकुशल वापस लेकर आना है.पर उसे आत्महत्या करने का रास्ता अपनाना पड़ता है.उसके बाद यह चारों गांव के दो युवाओं व चमेली को भी अपने साथ लेकर डंकी के रास्ते इंग्लैंड पहुॅचने के लिए निकलते हैं.मगर पानी के अंदर व जमीन के खतरनाक रास्तों पर चल अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की होते हुए इंग्लैंड हार्डी,मन्नु,बुग्गूव बल्ली ही लंदन पहुॅच पाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

अंग्रेजी भाषा में बात करने की समस्याएँ, व्यंग्यपूर्ण साक्षात्कार, अस्वीकृतियाँ, क्लासिक सब कुछ परोसा गया है.राज कुमार हिरानी की पिछली सफल फिल्मों को देखकर सभी यही कहेंगे कि इस तरह की चीजों को सहजता से अपनी शानदार कहानी में गंूठने में राज कुमार हिरानी को तो महारत हासिल है.मगर अफसोस फिल्म ‘डंकी’ में राज कुमार हिरानी बुरी तरह से मात खा गए हैं.राजकुमार हिरानी ने अपनी खासियत के अनुरूप इस फिल्म में भी  क्लासरूम, इंटरव्यू, हास्य, सादगी में हास्य जैसे कई दृश्य रखे हैं,पर हर दृश्य बहुत ही उछला हुआ है.कहीं कोई गहराई नही है.पूरी फिल्म में कहीं भी राज कुमार हिरानी के लेखन व निर्देशन की छाप नजर नही आती.

राज कुमार हिरानी और शाहरुख खान जिस वक्त ‘डंकी’ लेकर आए हैं,उस पर भी उंगली उठ रही है.क्योंकि भारत में वर्तमान भाजपा सरकार सीएए (  नागरिकता संशोधन अधिनियम), सीएबी(नागरिकता संशोधन विधेयक   ) को पारित कराने के लिए उत्सुक है. इसने पूरी तरह से समावेशी नहीं होने के कारण हंगामा खड़ा कर दिया,जो भारत के संविधान के खिलाफ है.

इस बार राज कुमार हिरानी ने चोरी करने में सारी हदें पार कर दी.अपनी पुरानी फिल्मों के दृष्य चुराने के साथ ही दूसरे सर्जक के भी दृश्य चुरा लिए.जिन लोगों ने एफसी मेहरा के सीरियल ‘‘जबान संभाल के’’ को देखा है,वह इस फिल्म में अंग्रेजी की कक्षा चला रहे गीतू गुलाटी (बोमन ईरानी)के साथ वाले दृष्यों को देखकर ‘जबान संभाल के’ को ही याद कर रहे थे.

कितनी अजीब बात है कि राजकुमार हिरानी को अपनी फिल्म ‘डंकी’ के समापन दृश्यों में मृत प्रवासियों की दुःखद वास्तविक तस्वीरें दिखानी पड़ीं,जिससे थिएटर से बाहर जाते समय दर्शक भावुक हो जाए.

यह वही राज कुमार हिरानी हैं,जिन्होने उस वक्त फिल्म ‘‘थ््राी ईडिएट्स’’ में 45-वर्षीय स्टार कलाकार आमीर खान को 20-वर्षीय छात्र के रूप में प्रस्तुत किया था,मगर ‘डंकी’ में वह शाहरुख खान को युवा पेश नही कर पाए,जबकि 15 साल बाद वीएफएक्स वगैरह की काफी अत्याधुनिक तकनीक भी आ गयी है.इससे शाहरुख खान की अभिनय की कमजोरी सामने आती है.कितनी अजीब बात है.राज कुमार हिरानी को यह भी नही पता कि एक फौजी को पता होता है कि गैर कानूनी तरीके से किसी भी देश की सीमा में घुसना कितना बड़ा अपराध है और उसकी कितनी बड़ी सजा है.मगर वह मन्नू,बुग्गू व बल्ली के साथ इस कृत्य को करता है.दूसरे देष के सैंनिकों की हत्याएं करता है.लेकिन इंग्लैंड में पहुॅचने के बाद अचानक एक आदर्शवादी भारतीय की तरह पेश आने लगते हैं.अदालत में बयान भी देते हैं कि उन्हे उनके भारत देश में कहीं कोई खतरा नही है..वगैरह वगैरह..क्या एक आदर्शवादी, कानून में यकीन करने वाला फौजी गैर कनूनी तरीके से कई देशों की सीमाएं पार कर इंग्लैंड जाएगा? वास्तव में यह शाहरुख खान व राज कुमार हिरानी के दोहरे व्यक्तित्व का परिचायक है.परिणामतः ‘डंकी’ महज हवा में ही बहती है.इसकी कहानी में कहीं कुछ भी ठोस नहीं है.

‘डंकी’ में न तो कहानी है,न पटकथा और न ही ऐसे संवाद हैं,जो दर्शकों को बांध कर रख सकें.फिल्म के घटनाक्रम विश्वसनीय नही बन पड़े हैं.

अभिनयः

फिल्म ‘डंकी’ में हार्डी के किरदार में शाहरुख खान हैं,मगर वह किसी भी दृश्य में हार्डी नजर ही नही आते.‘पठान’ व ‘जवान’ में वह कुछ विश्वसनीय लगे थे,पर यहां तो न वह लार्जर देन लाइफ हीरो हैं और न ही जमीन से जुड़े हुए हीरो हैं.अदालत में जब हार्डी कहता है कि वह अपने ‘वतन’ में खतरे में नही है,तो इस संवाद में जो वजन होना चाहिए था,वह नही है.ऐसा लगता है कि किसी ने उनके सिर पर बंदूक रखकर उनसे यह बुलावाया है.खैर,दर्शकों को इस बात से खुश होना चाहिए कि ‘पठान‘ और ‘जवान‘ के बाद ‘डंकी’ में शाहरुख एक बार फिर देशभक्त हैं,जो अपने देश, मौसा और सभी को गले लगाएंगे.2023 में ‘पठान’ हो या ‘जवान’ हो या ‘डंकी’ हर फिल्म में शाहरुख खान अभिनेता कम व्यवसायी के रूप मंे ही ज्यादा सामने आए हैं.इसके अलावा उन पर अहम भी हावी है.परिणामतः उनके अभिनय में निरंतर गिरावत आती जा रही है.फिल्म मन्नू के किरदार में इंटरवल से पहले तापसी पन्नू अपने अभिनय से प्रभावित करती हैं,मगर इंटरवल के बाद तो वह महज कैरीकेचर ही हैं.तापसी पन्नू ने बेमन ही काम किया है.सुखी के किरदार में विक्की कौशल ने जरुर बेहतरीन परफार्मेंस दी हैं.मगर इंटरवल से पहले ही उनका किरदार गायब हो जाता है.गुलाटी के किरदार मे बोमन इरानी भी अपनी छाप नही छोड़ पाए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...