28 साल से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर चुके अभिनेता महेश ठाकुर से कोई अपरिचित नहीं. महेश ठाकुर की फिल्म ‘हम साथ साथ है’ काफी लोकप्रिय फिल्म रही. इस फिल्म में उन्होंने आनंद की भूमिका निभाई थी. इस ब्लाक-बस्टर हिट फिल्म के बाद उन्होंने कई टेलीविजन शो में काम किया है. हिंदी फिल्म के अलावा महेश ने तमिल, तेलगू और मलायलम फिल्मों में भी काम किया है.

महेश ने एमबीए की पढाई अमेरिका से की है, इसके बाद वे 80 की दशक में मुंबई आये और फिल्म इंडस्ट्री में काम करने की कोशिश करने लगे. महेश का फिल्मों में अभिनय के प्रति प्यार बचपन से था, यही वजह थी कि उन्होंने स्कूल, कॉलेज से थिएटर करना शुरू कर दिया था. उन्हें पहली फिल्म ‘जानेमन’ मिली जो फ्लॉप रही. इसके बाद उन्होंने टीवी का रुख किया और कई धारावाहिकों में काम किया. उस दौरान उन्हें फिल्म हम साथ साथ है में काम करने का ऑफर मिला. फिल्म हिट रही और महेश ठाकुर को इंडस्ट्री वालों ने पहचाना. इसके बाद वे आशिकी 2, सत्या 2, जय हो आदि कई फिल्मों में दिखाई पड़े. उन्होंने जीवन में जो चाहा, उन्हें मिला और वे इससे बहुत खुश है, उनके इस जर्नी में उन्हें पत्नी सपना मिली और वे दो बेटों के पिता बने. उनके अभी वे सोनी सब की धारावाहिक आंगन..अपनों का में एक पिता की भूमिका निभा रहे है. उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बात की पेश है, कुछ खास अंश.

पिता बनना है गर्व  

धारावाहिक में एक बेटी की पिता की भूमिका निभाना महेश के लिए गर्व की बात है, क्योंकि एक बेटी परिवार में पेरेंट्स की सबसे अधिक नजदीक होती है और माता – पिता के मानसिक स्ट्रेंथ को बढाती है. वे कहते है कि बेटे हो या बेटी पिता बनना ही अपने आप में एक बड़ी बात होती है, क्योंकि बच्चे के जन्म के बाद ही कोई माता – पिता बन पाता है. इस तरह की कहानी मैंने पहले नहीं किया है, ये एक अलग कहानी है, जो टीवी पर दिखाई जा रही है. मुझे ऐसी कहानी का हिस्सा बनना अच्छा लग रहा है. इसमें कई इमोशनल सीन्स है, जिसमे मुझे चरित्र में घुसना पड़ता है, जो मुश्किल नहीं होता, क्योंकि अभिनय मैं काफी समय से कर रहा हूँ. एक्टिंग से अधिक ये स्किल होता है, जिसे करने के लिए मैं तैयार हूँ. इसे हर किसी के लिए आसान नहीं होता. इसमें सारे सीन्स बहुत ही इमोशनल है, जिसे करते हुए अनायास ही मेरे आँखों में आंसू आ जाते है.

सोच में बदलाव जरुरी

आज भी लड़कियों के जन्म होने पर कई पेरेंट्स दुखी होते है, क्या ऐसी किसी घटना को आपने अपने आसपास देखा है? महेश कहते है कि आर्थिक रूप से कमजोर या कुछ को बेटी की शादी में दहेज़ देना पड़ता है, ऐसे में उन्हें बेटी बोझ लगती है. ये मानसिकता है और इसे बदलना है. इसके अलावा लोगो की मानसिकता है कि शादी के बाद बेटी की जिम्मेदारी केवल ससुराल के लिए होनी चाहिए और कुछ नहीं. इस सोच को मैंने आसपास के लोगों में देखा है, इसे भी बदलना बहुत जरुरी है. एक बार शादी होने के बाद पेरेंट्स को छोड़कर बेटी की पूरी फोकस ससुराल पर चली जाती है, क्योंकि परिवार वाले यही चाहते है, इस सोच को बदलना है. समाज में इसे बैलेंस करने की जरुरत है. शादी होने के बाद बेटी को पराई कहने वालों के सोच को बदलना जरुरी है.

लड़की को न समझे कम  

कुछ परिवारों में आज भी लड़की पैदा होने पर पेरेंट्स दहेज़ जोड़ना शुरू कर देते है, जबकि आज की लड़की पढ़ी लिखी और कमाऊ होती है, क्या उसे व्याह कर ले जाने वाला पति और ससुराल वाले उसे ही दहेज़ समझे, क्या ऐसा होना संभव नहीं? इसमें जिम्मेदारी किसकी बनती है, समाज, परिवार या धर्म ? इस प्रश्न के जवाब में महेश कहते है कि आज लड़की ही दहेज़ होनी चाहिए, क्योंकि आज की लड़की हर क्षेत्र में पुरुषों की तरह ही काम करती है. साथ ही वह शादी के बाद प्यार को घर में लाती है. लड़की को कम समझना, ये परिवार और समाज की सोच है, जो काफी समय से चला आ रहा है, जिसे पूरी तरह से बदलना मुश्किल हो रहा है, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव अवश्य आएगा.

मिला है सम्मान

महेश का जब अपना परिवार शुरू हुआ था, तो परिवार वाले इस काम को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते थे. उन्हें इस बात की हमेशा चिंता रहती थी, लेकिन अब इंडस्ट्री में जीएसटी के आने पर उन्हें ऐसा महसूस नहीं होता. वे इसे एक अच्छा कदम मानते है. इस बदलाव के बारें में महेश कहते है कि पहले बड़े कलाकार को छोड़कर, बाकी कलाकारों को सम्मान नहीं मिलता था, लेकिन अब सभी एक्टर्स इनकम टैक्स के अलावा जीएसटी भी भरते है. मैं भी एक इंटरटैनर के रूप में सर्विस टैक्स भरता हूँ, जिससे मुझे ख़ुशी महसूस होती है, क्योंकि सरकार मेरे काम और मेरी इंडस्ट्री को रिकॉगनाइज कर रही है. अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, सलमान खान जैसे कलाकार को ही पहले रेस्पेक्ट मिलता था, लेकिन अब मुझे भी एक कलाकार के रूप में सम्मान मिलता है. अब कलाकार के काम को सम्मानपूर्वक माना जाने लगा है. मेरे दोनों बेटे मेरे काम से प्रभावित है और अगर वे चाहे, तो पढ़ाई पूरी कर इस क्षेत्र में आ सकते है.

नकारात्मक चीजो की भरमार

इतने सालों में इंडस्ट्री में कहानी में आये बदलाव के बारें में महेश का कहना है कि आजकल चारों तरफ कहानियां ही कहानियां है. चीजे जो चल रही है, वे प्रोग्रेसिव नहीं है, अधिकतर रिग्रेसिव ही है, इसकी वजह टीआरपी है और उसके पीछे भागने पर कोई भी चीज रिग्रेसिव ही दिखेगी. आज जो भी शोज चल रहे है, सारे निगेटिव विचार वाले है, कुछ पोजिटिव नहीं है. निर्माता मानते है कि सकारात्मक चीजे नहीं चलती, क्योंकि दर्शकों के विचार को समझ पाना आज मुश्किल हो चुका है. नकारात्मक फिल्में और वेब सीरीज ही आज सुपर डुपर हिट हो रही है. इसमें अगर सभी निर्माता निर्देशक कहानीकार समूह में सकारात्मक चीजे आज की जेनरेशन को परोसेंगे, तो शायद ऐसी नकारात्मक माहौल से यूथ निकल पायेंगे और समाज में बदलाव आएगा. आपस में कॉम्पिटीशन करने पर कुछ नहीं बदल सकेगा. मेरे धारावाहिक की कहानी आज के परिवेश की है, जिसे हर कोई रिलेट कर सकता है.

वायलेंस है हिट  

वेब सीरीज का प्रचलन पिछले कुछ सालों में अधिक बढ़ा है. पहले और आज की कहानियों में बदलाव अधिक है. महेश कहते है कि वेब की भी कहानियां दर्शकों के अनुसार ही चल रही है. दो – तीन फिल्में जिसमे वायलेंस अधिक होने पर भी हिट हुई है. अभी आगे आने वाली फिल्मों को बनाने वाले सोच रहे होंगे कि इसमें 90 प्रतिशत वायलेंस है, तो आगे हम 100 प्रतिशत वायलेंस दिखायेंगे, क्योंकि दर्शकों को यही पसंद है, ऐसे में मनोरंजन गायब हो जायेगा और पैसा केसे बनाया जाय, उसके बारें में फिल्म निर्माता सोचने लगेंगे. मेरी शो में भी अगर टीआरपी नहीं आएगी, तो ये भी बंद हो जायेगी.

मीडिया को लेनी है जिम्मेदारी

महेश मानते है कि अच्छी मनोरंजक कहानियों को बढ़ावा देने के लिए सभी मीडिया पर्सन को समवेत रूप में आगे आने की जरुरत है. नकारात्मक शो हमेशा ही सबका ध्यान खींचती है और उसका असर समाज और परिवार पर पड़ता है. यही वजह है कि आज के यूथ की सहनशीलता में कमी आ चुकी है. न्यूज़ एजेंसियां भी इस दिशा में कम नहीं, हर चैनल पर युद्ध और उससे जुड़े न्यूज़ ही देखने को मिलते है, जिसमे कुछ भयावह तस्वीरों को दिखाकर लोगों को डराया जाता है. सभी चैनल इसे दिखाने की होड़ में रहते है.

किताबें पढ़ना जरुरी  

वे आगे कहते है कि देखा जाय तो किसी भी देश में, कही भी, किसी भी  बुद्धिजीवी की लिखी किताब में नकारात्मक बातें नहीं लिखी होती. रोज सुबह उठकर अगर एक अच्छी किताब केवल 15 मिनट के लिए कोई पढ़ लें, तो उसका दिन सुखद जायेगा. पर्सनल जीवन में किसी की भी इतनी तनाव नहीं होती, लेकिन दूसरों की जिंदगी में झांकना सबको पसंद होता है. मीडिया भी इसी को बढ़ावा देती है. पड़ोस में चोरी होने पर व्यक्ति खुद की ताले को मजबूत करता है और चोरी करने वाले की छानबीन नहीं करता, क्योंकि उन्हें किसी के बारें में नहीं, खुद के बारें में सोचना पसंद है. ये प्रभाव आज की यूथ पर गहरा हो रहा है, जिसका अंजाम कुछ सालों बाद सबको दिखेगा. इसलिए सभी को जागरूक होने की जरुरत है.

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