पेरैंट्स टीचर मीटिंग में अपनी बारी का इंतजार करती मैं टीचर पेरैंट्स संवाद सुनने लगी. अभिभावकों में अधिकांश महिलाएं ही थीं. मेरे कानों में पति महाशय के शब्द अट्टहास करने लगे, ‘‘तुम महिलाओं जितना कहनेसुनने का धैर्य हम बेचारे पुरुषों में कहां. हम बेचारे तो शौफर ही भले.’’

‘‘मैम, मेरा बच्चा दूध नहीं पीता. टिफिन भी रोजाना बचाकर ले आता है,’’ एक मां का शिकायती स्वर कानों में पड़ा तो मैं अपनी चेतना सहित क्लासरूम में लौट आई.

‘‘जी, इस में मैं क्या कर सकती हूं?’’ टीचर ने अपनी असमर्थता जाहिर की.

‘‘क्यों, सर्कुलर तो आप के स्कूल की तरफ से ही आया है न कि बच्चों को टिफिन में सब्जीपरांठा, पुलाव आदि हैल्दी फूड ही भेजा जाए?’’ शिकायत करती मां ने अचानक तीरकमान निकाल लिए तो सब भौंचक्के से उन्हें देखने लगे.

मैडम बेचारी इस अप्रत्याशित आक्रमण से थोड़ा सहम गई. बोली, ‘‘ठीक है, मैं

मैनेजमैंट तक आप की बात पहुंचा दूंगी… वैसे यश के हमेशा की तरह इस बार भी मार्क्स काफी कम आए हैं. आप को उस की पढ़ाई की ओर ज्यादा ध्यान देना होगा.’’

‘‘यह हुई न मंजे हुए राजनीतिज्ञों जैसी बात. जब भी जनता किसी बात पर बवाल मचाने लगे ध्यान बंटाने के लिए तुरंत दूसरा मुद्दा खड़ा कर दो,’’ मैं ने मन ही मन टीचर को दाद दी.

‘‘पढ़ाने की जिम्मेदारी तो आप की है. नंबर अच्छे नहीं आ रहे तो इस के लिए तो मुझे आप को जिम्मेदार ठहराना चाहिए. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे.’’

पंक्ति में खड़े अभिभावक द्वंद्व युद्ध का मजा लेते हुए मंदमंद मुसकरा उठे. मुफ्त का मनोरंजन किसे नहीं सुहाता.

तभी मेरा नंबर आ गया. बेटे पुनीत ने क्लास में टौप किया है, जान कर मैं खुशी से झूम उठी. मैडम ने मुझे बधाई दी तो आसपास खड़ी महिलाओं को भी मजबूरन मुझे बधाई देनी पड़ी.

क्लास से बाहर निकल कर मैं भी अन्य महिलाओं की तरह अपने शौफर महाशय का इंतजार करने लगी. पर बेटा तो कूदता हुआ खेलते हुए बच्चों के संग खेलने चला गया.

‘‘हुंह, इस बेवकूफ को तो अपने स्टेटस की कद्र ही नहीं है. फिसड्डी बच्चों के साथ खेल रहा हैं,’’ मैं अपना स्टेट्स मैंटेन रखते हुए अलगथलग खड़ी रही. हालांकि कान कुछ दूर खड़ी महिलाओं की बातों की ओर ही लगे थे.

‘‘हमारे राजस्थान की लड़की मिस इंडिया बन गई,’’ यश की मां का गर्वीला स्वर उभरा.

‘‘हुंह इतनी गर्वीली मुसकान तो मिस इंडिया की मां के चेहरे पर भी नहीं आई होगी. चलो बेटे पर नहीं किसी पर तो गर्व करे बेचारी,’’ मैं ने मुंह बिचकाया.

जवाब भी तो कितना लागलपेट वाला दिया था, ‘‘भई, मिस इंडिया का ताज पहनना हो तो मोरल साइंस की किताब रट कर चले जाओ,’’ दूसरी महिला ने तंज कसा.

‘‘क्यों क्या गलत कहा उस ने? मां की सेवाएं अनमोल नहीं होतीं क्या?’’ यश की मां ने यहां भी तलवार उठा ली.

‘‘इस महिला को पक्का चुनाव में खड़ा होना चाहिए. हर जगह भिड़ जाती है,’’ मैं बुदबुदाई.

‘‘अरे अनमोल, अतुल्य जैसे विशेषणों से नवाजनवाज कर ही बरसों से हम से बेगार करवाई जा रही है,’’ एक स्वर उभरा.

‘‘क्या मतलब?’’ एक अनाड़ी ने पूछा.

मेरे लिए अपना स्टेटस लैवल मैंटेन करना मुश्किल होता जा रहा था. खिसकतेखिसकते मैं इस ?ांड में शामिल हो ही ली थी.

‘‘इस का मतलब यह है मुहतरमा कि शब्दों का जामा मात्र पहना देने से न पाजामा जुटता है न पिज्जा. खाली तारीफ से न हम मांएं अच्छा पहन सकती हैं और न अच्छा खा सकती हैं. बरसों से हम ऐसे ही बेवकूफ बनती आ रही हैं,’’ सब प्रभावित लगीं तो अपनी बेसिरपैर की तुकबंदी पर मु?ो भी गर्व हो आया.

अब तो हर महिला अपना मत बेबाकी से सब के सामने रखने लगी. नारी सुधार आंदोलन अपने शबाब पर आ चुका था.

‘‘अपने काम का वेतन हम कैश में मांगने लग जाएं न, तो उसे चुकाने में ये पुरुष बिक ही जाएं,’’ एक ने मत रखा.

‘‘और क्या? 3 वक्त गरम खाना बनाना और वह भी भरेपूरे कुनबे का…’’

‘‘हाय दैया, इन का तो महीने का लाख से ऊपर का वेतन खाना पकाने, खिलाने का ही बन जाता है,’’ हमेशा होटल या मैस से खाना और्डर करने वाली एक नवविवाहिता ने पूरी सहानुभूति दर्शाई.

दूर खेल रहे बच्चों को देख कर मुझे खयाल आया, ‘अरी बहनो, हम अपना सब से महत्त्वपूर्ण टास्क और उस की सैलरी तो भूल ही रहे हैं. इन बच्चों को रखना, उन की देखभाल, होमवर्क, परीक्षा की तैयारी…’’

‘‘सखियो, हमें अपनीअपनी कार्यसूची और उस के अनुसार अपना वेतन तय करना है.’’

‘‘सिर्फ तय नहीं वसूल भी करना है.’’

अंतत: सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास हुआ कि घर जा कर हम अपनेअपने काम की सूची और उस का अनुमानित वेतन और वह भी कैश में लिख कर अपनेअपने घरवालों को सौंप देगीं तथा जब तक हमें लिखित में अपना वेतन मिलने की स्वीकृति नहीं मिल जाती है हम घर के कार्यों से हाथ खींचे रहेंगी. मिस इंडिया तो क्या कोई भी हमें अब और इमोशनल फूल नहीं बना सकता. सब के नाम और मोबाइल नंबर डाल कर मैं ने फटाफट एक व्हाट्सऐप ग्रुप भी बना डाला-जागरूक वेतनभोगी मांएं. एडमिन के रूप में मैं स्वयं को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही थी.

‘‘मैं इस के बारे में ट्विटर और फेसबुक पर डाल कर ज्यादा से ज्यादा मांओं को इस ग्रुप से जोड़ूंगी,’’ सब का जोश देखने लायक था.

तभी बच्चों के संग खेलता मेरा बेटा पुनीत भागता हुआ मेरी ओर आया, ‘‘ममा देखो, पापा क्या लाए. मेरे लिए इतनी बड़ी चौकलेट. पापा कह रहे थे मुझे पहले से पता था कि मेरा बेटा फर्स्ट आएगा,’’ उस ने गर्व से बताया, ‘‘और ममा, पापा आप की फैवरिट बटरस्कौच आइसक्रीम का बड़ा सा पैक भी लाए हैं. कह रहे थे तुम्हारे साथ पूरा साल मेहनत कौन करता है? हर साल तुम इतना अच्छा रिजल्ट ममा की बदौलत ही तो ला पाते हो. इसलिए तुम्हारी चौकलेट खरीदने से पहले मैं ने तुम्हारी गुरु की पसंदीदा आइसक्रीम खरीदी.’’

‘‘सच, उन्होंने ऐसा कहा?’’ मैं आइसक्रीम की मानिद पिघलने लगी. पुनीत के पीछे आते

उस के पापा मुझे धुंधले दिखाई देने लगे. मुझे लगा चश्मा लगाना भूल गई हं. पर इस की

वजह तो खुशी के आंसू थे. अंतत: उन के हाथ में पकड़े बड़े से आइसक्रीम पैक से मैं ने उन्हें पहचान लिया. मैं ने पैक पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि पीछे से सम्मिलित बुलंद स्वर गूंज उठा, ‘‘नो.’’

मैं ने घबरा कर हाथ पीछे खींच लिया तो सभी ने हंसते हुए आगे बढ़ कर पैक लपक लिया.

‘‘हम तो अकेले खाने के लिए नो कह रही थीं.’’

सब के संग आइसक्रीम उड़ाते मैं सोच रही थी मिस इंडिया का जवाब वाकई मिस वर्ल्ड बनने लायक था.

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