स्नेहाका मोबाइल दोबारा बजने लगा. स्नेहा बाथरूम से अभी नहीं निकली थी. अत: सलिल को मोबाइल उठाना पड़ा. सलिल के हैलो कहते ही दूसरी ओर से एक लड़की ने सिसकते हुए पूछा, ‘‘स्नेहा
दीदी हैं?’’

‘‘हां, अभी बाथरूम में है.’’ ‘‘आप उन्हें बता देना कि शरणा दीदी नहीं रहीं.’’ यह सुनते ही सलिल सकते में आ गया. शरणा यानी शरणवती उर्फ शन्नो. स्नेहा की बचपन की अभिन्न सहेली. शन्नो के वर्षों बाद अचानक स्नेहा से मिलने पर सलिल की जिंदगी बेहद सहज हो गई थी. उस की सब से बड़ी समस्या थी स्नेहा और बच्चों को बोरियत से बचाने के लिए सप्ताह में 1 बार बाहर ले जाने की वजह से छुट्टी के दिन भी आराम न कर पाना. शन्नो के मिलते ही इस समस्या का समाधान हो गया था. शन्नो एक टीवी चैनल में न्यूज ऐडिटर थी.

वह फुरसत मिलते ही स्नेहा और बच्चों को घुमाने ले जाती थी. स्नेहा के कहने पर गाड़ी भी भेज देती थी, जिस से स्नेहा वे सभी काम कर लेती थी जिन्हें करने के लिए सलिल को आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़ती थी. सब से अच्छी बात यह थी कि दोनों सहेलियों ने अपनी दोस्ती कभी सलिल पर नहीं थोपी थी. न तो स्नेहा उसे शन्नो के घर चलने को कहती थी और न ही जबतब शन्नो को अपने घर बुलाती थी. यदाकदा शन्नो से मिलना सलिल को भी अच्छा लगता था. दोनों में सालीजीजा वाली नोक झोंक हो जाती थी.

कुछ महीने पहले स्नेहा ने उसे बताया था कि शन्नो दिल की मरीज है और पेसमेकर के सहारे जी रही है, लेकिन उस का इतनी जल्दी और इस तरह चले जाना अप्रत्याशित था. न जाने स्नेहा इस आघात को कैसे झेलेगी?

चूंकि वह कल रात ही टूअर से लौटा था, इसलिए आज औफिस जाना जरूरी था. लेकिन उस से भी ज्यादा स्नेहा के साथ रहना, जरूरी है सलिल ने सोचा. फिर उस ने दबी जबान स्नेहा को यह बताया.

‘‘यह तो होना ही था,’’ स्नेहा ने उसांस ले कर कहा, ‘‘1 सप्ताह से असपताल में थी. डाक्टरों के यह कहते ही कि पेस मेकर कभी भी साथ छोड़ सकता है, मैं ने आप से बगैर सलाह किए बच्चों को छुट्टियां मनाने राधिका भाभी और उन के बच्चों के साथ पंचमढ़ी भेजना बेहतर सम झा.’’

‘‘ठीक किया स्नेहा, बच्चों को शन्नो मौसी से कितना स्नेह हो गया था. उसे अस्पताल में देख कर व्यथित हो जाते,’’ सलिल बोला, ‘‘दुखी तो खैर अभी भी बहुत होंगे.’’

‘‘वह तो स्वाभाविक है,’’ कह कर स्नेहा ने मोबाइल उठा लिया, ‘‘माधवी, कब हुआ यह सब… बौडी को और्गन डोनेशन के लिए भिजवा दिया… तो तुम भी घर चली जाओ… मैं कुछ देर में वहीं आ रही हूं… जिसे भी खबर करनी है उस की लिस्ट बना लो. मैं आने के बाद फोन कर दूंगी,’’ और फिर स्नेहा मोबाइल बंद कर किचन की ओर बढ़ गई.

‘‘बस 1 कप चाय दे दो स्नेहा, नाश्ते के चक्कर में मत पड़ो,’’ सलिल ने धीरे से कहा.

‘‘नाश्ता बनाने में कुछ देर नहीं लगती. लंच नहीं बना सकूंगी, औफिस की कैंटीन से ही कुछ मंगवा लेना.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रहा. तुम्हारे साथ चल रहा हूं स्नेहा… कितनी भी सादगी से करो अंतिम संस्कार फिर भी बहुत काम होते हैं.’’

‘‘उन्हें संभालने के लिए रमण भैया हैं.’’

‘‘रमण भैया शन्नो को जानते हैं?’’ सलिल ने हैरानी से पूछा.

राजस्व विभाग का उच्चाधिकारी राधारमण स्नेहा का फुफेरा भाई था. इसलिए अकसर मुलाकात होती रहती थी. लेकिन शन्नो के बारे में दोनों भाईबहन को कभी बात करते नहीं देखा था.

‘‘आप को बताया तो था कि रमण भैया एम.कौम. और फिर प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षा की पढ़ाई के लिए 3 साल तक हमारे ही घर में रहे थे. फिर सामने की कोठी में रहने वाली मेरी अभिन्न सहेली शन्नो को कैसे नहीं जानेंगे?’’

‘‘फिर तुम ने कभी रमण भैया के परिवार के साथ चाय या खाने पर शन्नो को क्यों नहीं बुलाया? कभी उन लोगों से शन्नो के बारे में बात भी नहीं की. मु झे भी यह तो नहीं बताया कि उन दोनों में भी इतनी अभिन्नता है कि अपने सब कामधाम छोड़ कर अतिव्यस्त रमण भैया उस के अंतिम संस्कार का ताम झाम
संभालने को मौजूद हैं?’’ सलिल ने शिकायती स्वर में पूछा.

स्नेहा हैरान हो कर कुछ देर चुप रही, फिर गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘किसी के जीवन के बंद परिच्छेद खोलने का मु झे हक तो नहीं है. मगर अब जब तुम्हारी जिज्ञासा जगा ही दी है तो चलो, आज पूरी कहानी सुना देती हूं…

‘‘रमण भैया और शन्नो को पहली नजर में ही प्यार हो गया था और मेरे सहयोग से वह प्यार परवान चढ़ने लगा. जातपांत का लफड़ा नहीं था. फिर मेधावी भैया प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर ही रहे थे.
‘‘शन्नो पूरी तरह आश्वस्त थी कि उस के घमंडी आला अफसर पिता को प्रशासनिक अधिकारी रमण भैया से उस की शादी करने में कोई एतराज नहीं होगा. अत: वह बेखटके भैया के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही थी. 3 साल तक बगैर किसी को पता चले सब कुछ मजे में चलता रहा.

‘‘हमारी एम.ए. की और भैया की प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी. उस के बाद भैया का हमारे घर रुकने और दोनों की शादी 2 वर्षों तक होने का सवाल ही नहीं था. यह सोच कर भैया खासकर शन्नो बहुत परेशान रहती थी.

‘‘इसी बीच एक दिन बूआजी ने फोन कर बताया कि उन्होंने रमण भैया की छोटी बहन का रिश्ता उस की पसंद के लड़के से तय कर दिया है. भैया को लगा कि जब बहन का रिश्ता उस की पसंद से हो सकता है तो उन का क्यों नहीं और फिर छोटी बहन की शादी के बाद तो उन की शादी में कोई अड़चन भी नहीं रहनी चाहिए. इस सब से आश्वस्त हो कर भैया ने होली पर गुलाल के बजाय शन्नो की मांग में सिंदूर भर दिया. हालांकि शन्नो ने उस सिंदूर को सिर पर ढेर सा गुलाल डलवा कर छिपा दिया, लेकिन वह उस की मां की पैनी नजरों से नहीं छिप सका और यह भी कि यह भरा किस ने.

‘‘शन्नो की जितनी लानतमलानत होनी थी हुई और उस के हमारे घर आने और फोन करने पर रोक लग गई. शन्नो के यह कहने पर कि भैया उस के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं और प्रतियोगी परीक्षा दे रहे हैं उस के पिता ने व्यंग्य से कहा कि दूसरों के घर रहने और लड़कियों से आंख लड़ाने वाले लड़के का इस परीक्षा में पास होने का सवाल ही नहीं उठता. न ही बिजनौर में वकालत करने वाले रमण के बाप की हैसियत उन का समधी बनने लायक है. अत: शन्नो पर रमण की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए.

‘‘परीक्षा दिलवाने के लिए भी शन्नो की मां उसे छोड़ने और लेने आती थीं. लेकिन परीक्षा हौल से बाहर निकलने के पहले मैं और शन्नो बात कर लिया करती थीं. उसे भैया का पत्र दे देती थी और उस से भैया का ले लेती थी. शन्नो ने बताया था कि पापा ने वहां से बदली करवा ली है. उस की परीक्षा खत्म होते ही वहां से चले जाएंगे. कहां जाएंगे, यह किसी को नहीं बता रहे. भैया ने उसे आश्वस्त कर दिया कि किसी भी सरकारी अफसर का पताठिकाना खोजना मुश्किल नहीं होता. कहीं भी चले जाएं, प्रशासनिक सेवा में चयन होते ही वह उस के पिता से मिलने आएंगे. शन्नो बस तब तक अपनी शादी टाल दे.

‘‘शन्नो ने भी आश्वासन दिया था कि व्यावसायिक कोर्स करने के बहाने 2 वर्ष आसानी से शादी टाली जा सकती है. ‘‘शन्नो की परीक्षा खत्म होने की अगली सुबह ही उन की कोठी पर ताला लगा हुआ दिखा. कुछ रोज के बाद भैया भी अपने घर चले गए और मैं दीदी के पास छुट्टियों में पुणे. वहां जीजू के कहने पर मैं ने कंप्यूटर सीखा तो समय गुजारने को था, लेकिन उस में मु झे इतना मजा आया कि मैं ने उसी में स्पैशलाइजेशन करने का फैसला किया और उस के लिए दीदी के पास ही रहने लगी. फिर वहीं तुम से मुलाकात हो गई. कुछ समय बाद पता चला कि रमण भैया का चयन राजस्व सेवा में हो गया है और उन की शादी हो रही है. सुन कर धक्का तो लगा था, लेकिन तब तक मेरी दुनिया तुम्हारे नाम से शुरू और खत्म होने लगी थी. अत: न तो मैं ने रमण भैया से संपर्क किया, न ही उन की शादी में गई और न ही वे मेरी शादी में आए. शन्नो ने भी मु झ से संपर्क नहीं किया. मेरे पास तो उस का अतापता भी न था.

‘‘कई वर्षों बाद रमण भैया की पोस्टिंग यहां होने पर मुलाकात हुई. वह राधिका भाभी और बच्चों के साथ खुश थे. अत: मैं ने भी पुरानी बातों का जिक्र करना मुनासिब नहीं सम झा. लेकिन एक दिन भाभी और बच्चों की गैरहाजिरी में भैया ने मु झे बताया कि पढ़ाई पूरी कर के उन के घर लौटने से पहले ही उन के मातापिता ने उन का सौदा राधिका भाभी के साथ कर के उन के दहेज में मिलने वाली राशि के बल पर छोटी बहन का उस की पसंद के लड़के से धूमधाम से रोका भी कर दिया था. छोटी बहन की खुशी की खातिर भैया के पास चुपचाप बिकने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.’’

गनीमत यह थी कि राधिका भाभी उन के सर्वथा अनुकूल थीं. फिर भी वे आज तक अपने पहले प्यार शन्नो को नहीं भूल सके थे. उन्होंने ही मु झे बताया कि शन्नो यहीं एक चैनल में न्यूज ऐडिटर है. शादी तो नहीं की थी, लेकिन अपनी उपलब्धियों और परिवेश में पूर्णतया संतुष्ट लगती थी. इसलिए वे उस से मिल कर अपने और उस के स्थिर जीवन में उथलपुथल नहीं मचाना चाहते. लेकिन चाहते थे कि मैं उस से मिलूं, शन्नो से मिलने को तो मैं स्वयं भी तड़प रही थी. शुरू में तो शन्नो भी मु झे खुश ही लगी और मैं ने भी रमण भैया या उस के व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात नहीं की, लेकिन एक दिन अचानक तबीयत खराब होने पर उस ने मु झे बताया कि उसे अब तक 2 बार हार्टअटैक हो चुका है और वह पेसमेकर के सहारे जी रही है.’’
‘‘लेकिन अब मु झ से मिलने के बाद वह चैन से मरेगी. उसे विश्वास है कि मैं उसे उस के सिंदूर का हक जरूर दिलवा दूंगी यानी रमण के हाथों अग्निदाह. मु झे स्तब्ध देख कर उस ने कहा कि उस ने हमेशा रमण की खोजखबर रखी है. उसे रमण से कोई शिकायत नहीं है. उस के द्वारा मांग में भरे गए सिंदूर और यादों के सहारे जिंदगी तो गुजार ली है, लेकिन मरने के बाद अपने सिंदूर का हक जरूर चाहेगी, यानी एक सुहागिन जैसी मौत और मौत बारबार तो होगी नहीं.’’

‘‘मेरे यह कहने पर कि भैया उसे भूले नहीं हैं और वह जब चाहे मेरे घर पर रमण भैया से बेखटके मिल सकती है तो शन्नो ने यह कह कर मिलने से मना कर दिया कि कितने भी सतर्क रहो, ऐसी बातों को छिपाना आसान नहीं होता है और इस से रमण की सुखी गृहस्थी बरबाद हो सकती है.

‘‘अंतिम संस्कार के लिए भी मु झे रमण को बुलाने के लिए शन्नो को अपनी दूर की रिश्तेदार बनाना पड़ेगा, शन्नो को तो मैं ने आश्वस्त कर दिया, लेकिन रमण भैया को सब बातें बता दीं और दुखी विह्वाल तो खैर होना ही था और बहुत हुए भी. उन्होंने भी मु झ से वादा लिया कि जब भी शन्नो की तबीयत खराब हो मैं उन्हें खबर कर दूं. वे उस के अंतिम दिनों में बगैर किसी की परवाह किए उस के साथ रहेंगे और राधिका को उस समय जो ठीक सम झेंगे वह बता देंगे.

‘‘पिछले सप्ताह शन्नो की तबीयत के बारे में पता चलते ही मैं ने रमण भैया को खबर कर दी फिर सब बच्चों को उकसाया कि उन्हें छुट्टियों में बाहर घूमने जाना चाहिए. फिर किसी तरह राधिका भाभी को उन के साथ पचमढ़ी भिजवा दिया ताकि रमण भैया इतमीनान से शन्नो के पास रह सकें.’’

‘‘मु झे तसल्ली है कि मैं ने अपनी सहेली को उस के अंतिम दिनों में रमण भैया का भरपूर सान्निध्य और उस के सिंदूर का हक दिलवा दिया. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे साथ चल कर रमण भैया को अपने कर्तव्य निर्वहन से रोको,’’ स्नेहा ने अनुरोध किया.

‘‘बेफिक्र रहो स्नेहा, जितना हक शन्नो का अपने सिंदूर पर था उतना ही कर्तव्य रमण भैया का भी उस सिंदूर की लाज रखने का है,’’ सलिल ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मैं रमण भैया से वह कर्तव्य निभाने का सुख और उन की गोपनीयता नहीं छीनूंगा.’’

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