‘‘वृंदा गर्भ में शिशु का आना अगर कुदरत की कृपा है तो उस की देखभाल करना मातापिता का परम कर्तव्य सम झी,’’ अहिल्या देवी ने सम झाते हुए अपनी बेटी वृंदा से कहा.

वृंदा अपने उभरे हुए पेट को आंचल से ढकते हुए प्रतिउत्तर में इतना ही कह पाई, ‘‘दरअसल, पेट के अंदर गर्भाशय के आसपास बड़ी आंत, छोटी आंत एवं

किडनियां होती हैं. ऐसे में मान के चलिए वे सभी आपस में पड़ोसियों की तरह रहते हैं एवं अपना दुखसुख बांटते हैं.’’

गर्भ में पल रहा शिशु मांबेटी की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था.

‘‘बड़ी आंत दीदी, यह वृंदा कौन है?’’ गर्भाशय में पल रहे शिशु ने अपनी पड़ोसिन बड़ी आंत से पूछा.

‘‘बुद्धू, वृंदा तुम्हारी मां का नाम है,’’ बड़ी आंत ने इठलाते हुए कहा.

‘‘अभी बुलाने से कुछ नहीं होगा ,जब तुम बाहर निकलोगी तब वह सुनेगी,’’ छोटी आंत ने बीच में ही टोका.

‘‘बाहर कब निकलूंगा?’’ शिशु ने फिर पूछा.

‘‘और 3 महीने के बाद,’’ दोनों आंतों ने एकसाथ कहा.

रसोई में मेथी का साग पक रहा

था जिस की महक से वृंदा को उलटी

आने लगी.

‘‘कोई मु झे ऊपर खींच रहा है… मु झे बचाओ छोटी आंत दीदी, बड़ी आंत दीदी बचाओ,’’ शिशु छटपटाने लगा.

‘‘लो कर लो बात हम तो खुद ही परेशान रहते हैं तुम्हारी वजह से. हम क्या बचाएं तुम्हें. तुम्हारी वजह से तुम्हारी मां कभी खट्टा खाती है तो कभी मीठा और

कभी तीखी मिर्ची.’’

‘‘खट्टामीठा तक तो ठीक लेकिन उफ यह मिर्ची तो दम निकल देती है,’’ बड़ी आंत ने शिकायत करते हुए कहा.

जैसे ही उलटियां खत्म हुईं, ‘‘अब जा कर कहीं जान में जान आई,’’ शिशु ने राहत की सांस ली.

‘‘दीदी, सुना आप लोगों ने… कुछ सुरीला सा सुनाई दे रहा है मु झे, बहुत अच्छा लग रहा है.’’

‘‘तुम सुनो हम तो यह सब सुनते ही रहते हैं हमेशा,’’ छोटी आंत ने इठलाते हुए कहा.

‘‘यह मंदिर की घंटी की आवाज है तुम्हारी मां तुम्हारे लिए भगवानजी से प्रार्थना कर रही होगी,’’ बड़ी आंत ने कहा.

‘‘प्रार्थना क्या होती है,’’ शिशु ने जानना चाहा.

‘‘बुद्धू, कुछ नहीं जानता,’’ शिशु द्वारा बारबार प्रश्न पूछे जाने से तंग आ कर किडनी ने कहा जिसे मुश्किल से आराम करने का मौका मिला था.

‘‘मैं जानता नहीं… जानती हूं,’’ शिशु ने गरदन टेढ़ी कर जवाब दिया.

‘‘तुम्हारी मां तुम्हारी सलामती के लिए भगवानजी से प्रार्थना कर रही होगी,’’ बड़ी आंत ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘मैं तो सही से ही हूं मु झे क्या हुआ है,’’ शिशु ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

तभी वृंदा ने डाक्टर द्वारा दी गई विटामिन की गोलियां खाईं.

‘‘आ छि:.. छि:… मां ने क्या खाया पता नहीं मु झे तो बहुत कड़वी लगी,’’ शिशु ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘दवाइयां खाई होंगी तभी तो तुम स्वस्थ और तंदुरुस्त रहोगे,’’ किडनी ने सफाई का काम करते हुए कहा.

‘‘उफ, मु झे सांस लेने में दिक्कत हो रही है,’’ शिशु ने शोर मचाया.

‘‘अरे बावले, वह कोई काम कर रही होगी जिस में उन को मेहनत लग रही होगी इसीलिए ऐसा हो रहा है तुम चिंता मत करो,’’ छोटी आंत ने अपना दिमाग

लगाया.

वृंदा रोज रात को केसर वाला दूध पीती थी ताकि उस का बच्चा सुंदर और स्वस्थ पैदा हो.

‘‘रोज रात को जो मां पीती है न वह मु झे बहुत अच्छा लगता है,’’ शिशु ने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा.

छोटी आंत बड़ी आंत दोनों हंसने लगीं.

‘‘हां, वह तो हमें भी अच्छा लगता है और हमें ही क्यों किडनी दोनों जुड़वां भाइयों को भी अच्छा लगता है. दूध पीने से शरीर स्वस्थ और पाचनतंत्र भी ठीकठाक

रहता है. तभी तो हम दूध को बैलेंस डाइट कहते हैं यानी संतुलित आहार.’’

‘‘वाह… वाह… आज तो मेरी पड़ोसिन बड़े ज्ञान की बातें कह रही हैं,’’ दाईं किडनी ने जो छोटी आंत की प्रशंसक थी ने मुसकराते हुए कहा.

रविवार का दिन था. वृंदा के पति मोहन ने टीवी पर डरावनी फिल्म चला रखी थी जिसे देख वृंदा बारबार डर रही थी, जिस का असर शिशु पर हो रहा था. बच्चा

सहम कर शांत हो गया.

थोड़ी देर बाद बड़बड़ाने लगा, ‘‘यह किस की हथेली का स्पर्श है… यह स्पर्श तो

थोड़ा अलग है मां जैसा कोमल नहीं है.’’

‘‘यह अवश्य तुम्हारे पिता होंगे.’’

‘‘अच्छा हां पहले भी कई बार इस स्पर्श को मैं ने महसूस किया है,’’ शिशू मुसकराने लगा है और हाथपैर चलाने लगा, जिसे महसूस कर वृंदा मोहन की हथेली

पकड़ कर पेट पर यहांवहां रखने लगी.

‘‘बेबी किकिंग, किकिंग,’’ बोल कर दोनों हंसने लगे.

थोड़ी देर बाद.

‘‘इतना शोर तो कभी नहीं होता है आज क्या हो गया है,’’ शिशु ने सहमते हुए कहा.

‘‘मु झे भूख लगी है. लगता है कई दिन से मां ने खाना नहीं खाया.’’

‘‘सही कह रहे हो शायद तुम्हारी मां किसी बात से दुखी है.’’

‘‘यह दुख क्या होता है दीदी?’’

‘‘दुख, दुख का मतलब अब इसे कैसे सम झाऊं,’’ छोटी आंत ने हैरान होते हुए कहा.

‘‘देखो जब तुम्हारी मां कड़वी दवाई पीती है तुम कैसा मुंह बना लेते हो, उदास हो जाते हो वही दुख है और जब तुम्हारी मां मीठा दूध पीती है तब तुम कितने

खुश हो जाते हो वही खुशी है. जब तुम बाहर निकलोगे तो और भी कई बातों का ज्ञान होगा तुम्हें,’’ बड़ी आंत ने बाखूबी मोरचा संभाला.

‘‘बाहर की दुनिया तो हम ने कभी नहीं देखी. हम तो हमेशा ही इस कोठरी में बंद रहते हैं लेकिन तुम तो नसीब वाला हो तुम्हें बाहर जाने का मौका मिलेगा…’’

‘‘हमें भूल मत जाना,’’ दोनों किडनियों ने एकसाथ कहा.

‘‘नहीं भूलूंगा,’’ शिशु ने आश्वासन दिया और सोने की कोशिश करने लगा.

‘‘मां इतनी तेज क्यों चल रही हो… मैं… मैं गिर जाऊंगा न.’’

और तभी बाहर में…

‘‘वृंदा, तुम्हें कई बार कहा है मु झे गंदे कपड़े पसंद नहीं. देखो मेरे सारे कपड़े गंदे पड़े हैं. क्या पहन कर मैं आफिस जाऊं बताओ?’’ मोहन ने चिल्लाते हुए

कहा.

‘‘कल तबीयत थोड़ी ठीक नहीं लग रही थी इसीलिए नहीं धो पाई लाइए आज धो देती हूं.’’

‘‘बस बस तुम्हें तो बहाना चाहिए, तुम औरतों को केवल बहाना चाहिए. बहाना काम से छुट्टी मिलने का वरना 4 कपड़े धोने में क्या जाता है? बच्चा तो अभी

पेट में है तब तुम्हारे इतने नखरे हैं. बाहर आ जाए तो पता नहीं,’’ मोहन ने गुस्से से लाल होते हुए कहा.

वृंदा रोतेरोते कपड़े उठा कर जाने लगी.

‘‘बसबस रहने दो,’’ कहते हुए मोहन ने धक्का दे दिया, वृंदा लड़खड़ा कर गिर पड़ी.

गिरते वक्त उस का पेट ड्रैसिंग टेबल के कोने से टकराया जोर से चीख निकल गई और वृंदा बेहोश हो गई.

वृंदा को इस हालत में देख मोहन का गुस्सा छूमंतर हो गया. गले में घिघी बंध गई.

ओह, ‘‘सौरी वृंदा सौरी.’’

‘‘मैं भी कितना बेवकूफ हूं, छोटी सी बात को इतना बड़ा कर दिया,’’ मोहन बेहोश वृंदा को होश में लाने की कोशिश करते हुए बोला.

‘‘मां, मां, देखो वृंदा को क्या हो गया?’’ मोहन लगभग रोते हुए बोला.

तब तक अंदर बच्ची निस्तब्ध हो चुकी थी.

‘‘बड़ी दीदी, देखो न इस में कितनी देर से कुछ हलचल नहीं हुई,’’ छोटी आंत ने परेशान होते हुए कहा.

‘‘कोई न, सो रही होगी.’’

‘‘नहीं जीजी सोती भी है न तो करवट बदलती रहती है. मैं ने कई बार देखा है. देखो न जीजी देखो न.’’

‘‘अरे हां, क्या हुआ इसे. किसी अनहोनी की आशंका से दोनों सहम जाती हैं. बेहोश वृंदा को हौस्पिटल ले जाया गया. वस्तुस्थिति जान कर डाक्टर ने गुस्सैल

निगाह से मोहन की ओर देखा.’’

‘‘सिस्टर, पेशेंट को इमरजेंसी वार्ड में ले चलो,’’ डाक्टर ने चीखते हुए कहा.

‘‘ठीक तो हो जाएगा न मेरा बच्चा सही सलामत तो होगा न,’’ मोहन ने गिड़गिड़ाते हुए डाक्टर से पूछा.

डाक्टर ने उस की एक न सुनी और भागते हुए इमरजेंसी वार्ड में पहुंची.

बच्चा अंदर में निस्तेज पड़ा हुआ था किसी प्रकार की कोई हलचल न थी. काफी कोशिश करने के बाद वृंदा को होश आया.

‘‘मेरे बच्चे को बचा लीजिए मेरे बच्चे को बचा…’’ वृंदा इतना बोल कर रोने लगी.

‘‘हम कोशिश कर रहे हैं. हम अपनी

पूरी कोशिश कर रहे हैं. तुम बस अच्छा सोचो, तुम्हारे अच्छा सोचने से बच्चे पर अच्छा असर पड़ेगा. तुम्हारे पेट में चोट लगने की वजह से बच्चा अपने जगह से

अलग हो चुका है, इनफैक्ट उल्टा हो चुका है,’’ डाक्टर ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘अब क्या होगा?’’ पतिपत्नी ने एकसाथ कहा.

‘‘देखती हूं कुछ सीनियर डाक्टर आ रहे हैं. हो सकता है हमें आज ही बच्चे को बाहर निकालना पड़े या हो सकता है स्थिति सामान्य

हो जाए.’’

अल्ट्रासाउंड कर बच्चे की स्थिति देखी गई. उचित

उपचार हुआ और बच्चे के दिल की धड़कने सुनाई देने लगी.

‘‘जीजी देखो न मुन्नी वापस आ गया गई,’’ छोटी आंत जो बारबार उसे निहार रही थी खुश हो कर बोली.

‘‘कुछ बोलती क्यों नहीं? क्या हुआ था तु झे,’’ बड़ी आंत ने दुलारते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं, किसी ने मु झे जोर से धक्का दे दिया और उस के बाद क्या हुआ मु झे पता नहीं,’’ शिशु ने रोआंसा होते हुए कहा.

‘‘आप को पता है उस के बाद क्या हुआ?’’ शिशु ने दोनों से पूछा.

‘‘ज्यादा कुछ तो नहीं लेकिन बस तुम एकदम शांत हो गई थी.’’

‘‘मु झे याद आ रहा है इन दिनों कई हाथों

ने मु झे अजीब तरीके से सहलाया और न जाने

मेरे ऊपर किस किस तरह की दवा लगाई गई,

तब जा कर सब ठीक हुआ,’’ शिशु ने आपबीती सुनाई.

इस घटना के बाद हर छोटेछोटे आहट पर वह सहम जाती थी, शांत हो जाती थीं और आखिर में वह दिन आया जब उसे गर्भ से बाहर निकलना था. छोटी आंत

और बड़ी आंत ने मुसकरा कर उसे विदा किया.

 

किडनी भाइयों ने, ‘‘अलविदा मेरे नन्हे दोस्त,’’ कह कर रुखसत किया.

मुन्नी अब एक नए संसार में आ चुकी थी. आज वह अपने मां के गोद में लेटी हुई थी जो चिरपरिचित थी, लेकिन जैसे ही मोहन के गोद में गई तो नैपी बदलवाने

की फरमाइश कर बैठी.

सभी ने एक साथ हंसते हुए कहा, ‘‘अब हुए असल में कपड़े गंदे.’’

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