खिड़की के पास खड़ी हो कर रुक्मिणी रीति बिटिया को आंखों से दूर जाते देख रही थी. ज्योंज्यों रीति नजरों से ओ?ाल होती गई उस के अतीत का पन्ना फड़फड़ा कर खुलता चला गया…

रीति बस 3 बरस की ही थी जब विनय ने उसे तलाकदे दिया था. उस के बाद कब और कैसे उस की बिटिया इतनी जल्दी सयानी हो गई, उसे पता ही न लगा. बचपन से ही गंभीरता की चादर ऐसे ओढ़ ली थी कि सारी चंचलता ही छूमंतर हो गई. उफ, एक गलत फैसले ने उस का जीवन बरबाद कर दिया. विनय जैसे रसिए को भला क्योंकर न पहचान सकी. उस केबिछाए जाल में फंस कर जीवनसाथी आदित्य को धोखा दे दिया. बदले में उसे क्या मिला आखिर धोखा ही न. साथ ही मिली तनहाई जो हाथपांव फैला कर उस के जीवन में दूर तक पसर गई.

आदित्य ने उस से प्रेमविवाह किया था.

पूरे समाज के सामने बरात ले कर आया था. शहर की सब से खूबसूरत शादी थी उन की. सालों तक लोग उस शादी का गुणगान करते न थकते थे. दोनों ही नौकरीशुदा थे. आदित्य ने नेवी जौइन की और रुकु ने एअरलाइंस. पति महीनों बाहर रहता और रुकु अंतर्राष्ट्रीय विमानों में अनेक यात्रियों की मनपसंद परिचारिका बनी रही.

दोनों एकदूसरे को पागलों की तरह चाहते थे. महीनों बाद जब भी मिलते तो

लवबर्ड्स की तरह घोंसले में घुस जाते पर मिलना कम ही हो पाता था. कहते हैं न दूरदूर रहने से दूरियां आ ही जाती हैं ऊपर से एअरहोस्टेस की ग्लैमरस दुनिया…

जब से नए पायलट विनय ने जौइन किया था तब से पूरा माहौल ही बदल गया था. हर वक्त उस से फ्लर्ट करता रहता. बालों का पोनी टेल, कानों में बालियां और जबान पर गाली तो ऐसे रखता जैसे कोई बड़ा रौक स्टार हो. पूरा क्रू उस के पीछे था और वह रुकु के पीछे. आदित्य के ठीक विपरीत स्वभाव के इस प्राणी को रुक्मिणी कभी भाव तक न देती थी. वह उसे जितना ही टालती वह उतना ही पीछेपीछे आता. उस रात जब घर लौटने में देर हो रही थी तो उस ने विनय की कार में लिफ्ट ले ली और वही उस के जीवन की सब से बड़ी गलती हो गई.

रात भी कमाल थी. तूफान के साथ बारिश जोरों पर थी. लगता था जैसे पूरे शहर को डुबो कर ही मानेगी. ऐसे में निर्दयता से उसे वापस कैसे भेज देती. कुछ औपचारिकता तो कुछ इंसानियत के नाते उसे रोक लिया. पहले कौफी, फिर वोदका और फिर ढेरों बातें करते न जाने कैसे वे खुलते चले गए यह पता ही नहीं लगा. नौकरानी खाना लगा कर अपने कमरे में सोने चली गई. महीनों से पति आदित्य से दूरी का असर था या फिर उस तूफानी रात का कहर कि न जाने कैसे 2 पैग के बाद वह उस की बांहों में थी. फिर क्या हुआ उसे कुछ भी याद नहीं.

कमली जब सुबह की चाय ले कर कमरे में आई तो मालकिन को निर्दोष बच्ची के समान विनय की छाती से लगा पाया. एक बार को तो उस का दिल धक से रह गया. महीनों की क्षुधा शांत हुई तो मुख पर अजीब सा भोलापन छाया था.

‘‘रुकु बेबी चाय…’’ कह कर वह निकल आई.

‘‘उफ, यह क्या हो गया?’’ बीती रात से लिपटी हर बात जैसे कानों में शोर मचाने लगी. उसे अपनी ही हालत पर बुरी तरह रोना आया तो विनय पर बिफर पड़ी पर वह तो मोटी चमड़ी का बना था. पूरी ढिठाई से बोला, ‘‘तुम ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं आदित्य की जगह होता तो तुम्हें अकेली कभी नहीं छोड़ता.’’

उस ने उलटी ही बात कहनी शुरु की. रुक्मिणी जानती थी कि वह गलत कर रही है पर कहते हैं न कोई गलती पहली बार ही गलती लगती है. बारबार की जाए तो वह आदत में शुमार हो जाती है. तब व्यक्ति में एक किस्म की ढिठाई आ जाती है. रुकु के साथ यही हो रहा था और विनय जैसा रसिक भला उसे कैसे सुधरने देता. पहले ही वह शराब की बोतल सी हसीन हसीना के नशे में डूबने को तरस रहा था. अब वह साथ ही रहने लग गया.

फिर वही हुआ जो अमूमन होता है. रुक्मिणी उलटियां करती परेशान हो रही थी. विनय बच्चे को हटाना चाहता था पर रुक्मिणी उसे जन्म देना चाहती थी. सब से पहले उस ने आदित्य को फोन पर यह बताया तो उसे गहरा सदमा लगा. चाहता तो लड़ सकता था. तमाम इलजाम लगा कर उस का अपमान कर सकता

था मगर रुक्मिणी से प्यार करता था. उस की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ़ कर उस ने खुद ही किनारा कर लिया. प्यार के लिए शादी की थी. जब प्यार ही न रहा तो फिर क्या कहतासुनता या प्रतिकार करता.

बच्चे को जन्म देने के लिए विवाह की अनिवार्यता थी. रुक्मिणी के पिता बचपन में ही गुजर गए थे. परिवार के नाम पर बस मां थीं. रुक्मिणी के दबंग व्यक्तिव के आगे मां की भी क्या चलती? विनय से शादी हो गई. शादी में आमंत्रित रिश्तेदारों के बीच कानाफूसी चलती रही. आखिर आदित्य से अचानक शादी टूटना और आननफानन में दूसरी शादी, लोगों को दाल में कुछ काला लग रहा था. बचाखुचा सस्पैंस 9वें महीने में खत्म हुआ जब दिन पूरे हुए और नन्ही रीति ने आंखें खोलीं.

रुक्मिणी अपनी बेटी को पा कर धन्य हो गई थी. नौकरी छोड़ कर पूरे मन से बेटी को बड़ा करने लगी. रातदिन बस एक ही धुन में लगी रहती जैसे जीताजागता खिलौना हाथ लग गया हो और विनय. उस जैसे भंवरे एक फूल पर कब टिकते हैं. आज यहां तो कल वहां. उस के पास हवाईजहाज उड़ाने का बहाना तो था ही, एक दिन ऐसा उड़ा कि लौट कर ही न आया. बस तलाक के कागज भिजवा दिए.

चोर जब तक चोरी करता है उसे लगता ही नहीं वह कुछ गलत कर रहा है पर जिस पल पछताता है उसे अपने सभी पाप याद आने लगते हैं. वह पश्चात्ताप की अग्नि में जलने लगता है. रुक्मिणी ने अनजाने में मन पर तन की इच्छा को महत्त्व दे दिया था. अब उसी अग्नि में तप रह थी. आदित्य जैसे भद्रपुरुष के ऊपर विनय जैसे तेजतर्रार लवर बौय को वरीयता दे कर पछताने

के सिवा और कुछ शेष न रहा था. उस के पास कुछ था तो एक 3 वर्षीय बच्ची, फ्लैट और कुछ बैंक बैलैंस जिस के सहारे उसे बेटी को बड़ा करना था.

रुक्मिणी याद है विदा होते वक्त आदित्य ने कहा था, ‘‘जब मन भर जाए तब लौट आना. मैं आजीवन तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

मगर रुक्मिणी किस मुंह से लौटती. अब उसे अपनी बेटी का भविष्य संवारना था. उस ने अपनी मां को अपने पास बुला लिया और वापस एअरलाइंस जौइन कर ली. बेटी बड़ी होने लगी थी. देखते ही देखते 20 वर्ष निकल गए. आज के जमाने जैसे कोई गुण न थे उस में. सादगीभरी सुंदर काया की स्वामिनी कला की अद्भुत पुजारिन थी. ब्लू जींस के ऊपर

ढीलेढाले सिल्क के कुरते और बालों को मोड़ कर बनाए गए जूड़े में अल्ट्रा मौडर्न मां नहीं बल्कि अपनी नानी जैसी संजीदगी की मूरत दिखाई देती. बेटी के खयालों में खोई थी कि फोन की घंटी बजी.

‘‘मां, आप और नानी घर से निकले क्या? आज का दिन मेरे लिए बहुत बड़ा है. मैं इसे आप दोनों के साथ महसूस करना चाहती हूं.’’

‘‘हां बेटा, बस निकल रहे हैं.’’

अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ऐग्जिबिशन में उस के कई चित्रों को स्थान मिला था. रुक्मिणी मां

के साथ सही वक्त पर हौल में दाखिल हुई. वहां उस की बेटी को विदेशी डैलीगेट्स के द्वारा सम्मानित किया जाना था. पहली पंक्ति के आरक्षित स्थान पर पहुंचते ही बढ़ी हुई दाढ़ी में आदित्य को देख कर ठिठक गई. वह उस की बेटी की आर्ट ऐग्जिबिशन की स्पौंसरशिप कर रहा था.

इस पूरे आयोजन के पीछे उसी का योगदान था. नानी के चेहरे पर विजयभरी मुसकान दिखी. उन्होंने ही तो रीति की जिम्मेदारियां आदित्य को सौंप कर, पितापुत्री को एकदूसरे के स्नेह का अवलंब बनाया. आज उन का काम पूरा हो गया.

‘‘ये सब क्या है मां?’’ बेटी रुक्मिणी ने मां से पूछा तो वे सकपका गई.

‘‘तेरे पिता के जाने के बाद उन के लौट कर आने की कोई गुंजाइश नहीं थी तो मन मजबूत करना पड़ा मगर आदित्य जैसे भले इंसान से जीते जी दूरी क्यों?’’

‘‘मगर मां किसी की अच्छाई का फायदा क्यों उठाना?’’ रुक्मिणी ने कहा.

‘‘बेटा गुरूर में जवानी कट जाएगी बुढ़ापा नहीं… वह तु?ा से प्यार करता है. तभी तो मेरे आते ही मु?ा से मिलने आया. कब से तेरी ‘हां’ का इंतजार कर रहा है. तुम ने खुद के लिए जो अकेलेपन की सजा तामील की थी अब तो उसे खत्म कर दे.’’

तभी माइक पर रुक्मिणी को पुकारा गया. पूर्व पति और बेटी के साथ मंच पर खड़ी इन खूबसूरत पलों को महसूस कर मुसकराई तो दबी जबान में आदित्य ने पूछ ही लिया, ‘‘रीति मु?ो अपना धर्मपिता मानती है.

इस नाते क्या तुम्हें अपनी धर्मपत्नी बुला सकता हूं?’’

सहज भाव से पूछे गए प्रश्न का जवाब सरलता से ‘हां’ में देती रुकु को सम?ाते देर न लगी कि जन्मदाता से कहीं ज्यादा रीति में अपने धर्मपिता के सधे व्यक्तित्व की ?ालक है. इस पिता की छत्रछाया में ही उस की बेटी इतने सुंदर व्यक्तित्व की स्वामिनी बन सकी है.

कौन कहता है रक्त संबंधी ही अपने होते हैं. प्रेम से बढ़ कर कोई संवेदना नहीं, निस्स्वार्थ सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं, अच्छाई से बड़ा कोई आदर्श नहीं. इन तीनों गुणों से युक्त आदित्य अपनी धर्मपत्नी व पुत्री के साथ एक आदर्श रिश्ता निभाता हुआ अंतत: अपने ही परिवार में लौट आया.

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