संजय कपूर की बेटी शनाया कपूर और फिल्म ’12वीं फेल’ से चर्चा में आए विक्रांत मैसी डाइरैक्टर संतोष सिंह के निर्देशन में एक रोमांटिक फिल्म ले कर हाजिर हुए हैं, जिस का नाम है आंखों की गुस्ताखियां.

फिल्म का नाम भले ही ‘आंखों की गुस्ताखियां’ है लेकिन इस रोमांटिक फिल्म की कहानी 2 नेत्रहीन लोगों के बीच प्यारमोहब्बत से शुरू होती है.

यह अलग बात है कि फिल्म का हीरो जहान जो सचमुच में नेत्रहीन है, फिल्म की हीरोइन शनाया कपूर यानि सबा के किरदार को परफैक्ट बनाने के लिए गांधारी की तरह आंख में पट्टी बांध कर बिना किसी के सहारे बिलकुल अंधी लड़की की तरह देहरादून जाने के लिए ट्रेन में ट्रैवल करना शुरू करती है, क्योंकि वह सचमुच अंधी नहीं होती, इसलिए उस से सब चीजें खराब होती रहती हैं, जबकि नेत्रहीन विक्रांत मैसी यानि जहान उस वक्त  हीरोइन सबा का सहारा बनता है, जो सही में अंधा है, लेकिन वह सबा को यह नहीं बताता कि वह खुद नेत्रहीन है.

रोमांटिक मुलाकात

सबा और जहान की यह रोमांटिक मुलाकात देहरादून जाने वाली ट्रेन में होती है, जहां दोनों ही अपनेअपने मकसद से जा रहे होते हैं. ट्रेन के इस सफर में इन दोनों को एकदूसरे से लगाव हो जाता है और दोनों ही अंधे होने की वजह से एक ही होटल के कमरे में पहुंच जाते हैं. उस के बाद बिन देखी बिन जानी और बिन पहचानी लवस्टोरी परवान चढ़ती है.

फिल्म की कहानी

सबा और जहान जिन्होंने एकदूसरे की शक्ल नहीं देखी है, इस प्यार में इतना ज्यादा पड़ जाते हैं कि एकदूसरे को बिना देखे ही अपना सबकुछ न्यौछावर कर देते हैं और शारीरिक संबंध भी बना लेते हैं, जिस के बाद सबा जहान को देखने के लिए अपना प्रण छोड़ कर आंखों से पट्टी हटाने का निर्णय लेती है ताकि वह जहान को देख सके. लेकिन सबा जहान को देखती इस से पहले ही जहान वहां से रफूचक्कर हो जाता है ताकि उसे अंधे होने का अपमान न सहना पड़े.

इस से सबा अपनेआप को छला हुआ महसूस करती है और हीनभावना का शिकार हो जाती है कि उस की शक्ल इतनी खराब है कि जहान उस की शक्ल देखे बगैर भाग गया.

इस बात को 3 साल बीत जाते हैं. इस बीच सबा न सिर्फ मूवऔन कर जाती है बल्कि सबा की जिंदगी में  दूसरे लड़के की ऐंट्री हो जाती है. लेकिन 3 साल बाद जहान एक बार फिर सबा की जिंदगी में लौट आता है. बाद में क्या क्या होता है, यह जानने के लिए आप को थिएटर तक जाना होगा.

और भी बनी हैं फिल्में

अगर कहानी की बात करें तो नेत्रहीन के बीच प्यार की कहानी पर आधारित कई फिल्में बनी हैं, जैसे अमिताभ बच्चन राखी की फिल्म ‘बरसात की एक रात’, आमिर खान और काजोल की फिल्म ‘फना’ आदि जोकि सफल फिल्मों की श्रेणियों में शामिल हैं, लेकिन फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां’ की कहानी कमजोर और ढीली नजर आती है. खासतौर पर फिल्म का प्रस्तुतीकरण, पटकथा कमजोर है. फिल्म का संगीत भी कर्णप्रिय नहीं लगता.

प्लस पौइंट

फिल्म में अगर कोई प्लस पौइंट है तो वह विक्रांत मैसी का बतौर नेत्रहीन अभिनय और शनाया कपूर की पहली फिल्म होने के बावजूद बेहतरीन परफौर्मेंस.

ओवर ऐंड औल फिल्म ‘आंखों की गुस्ताखियां‘ की शुरुआत काफी अच्छी हुई, लेकिन बाद में फिल्म का प्रस्तुतीकरण, फिल्म की कमजोर कहानी दर्शकों के गले नहीं उतरी.

बहरहाल, विक्रांत मैसी और शनाया कपूर के फैंस अपने पसंदीदा कलाकार को देखने के लिए सिनेमाघरों में जा कर ‘आंखों की गुस्ताखियां’ देख सकते हैं.

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