निशा को उस के पति नील ने औफिस में फोन किया और कहा उस के बचपन की मित्र स्मृति अपने पति के साथ दिल्ली में आई है. बेचारी का कैंसर लास्ट स्टेज पर है. प्लीज तुम उस से मिलने चलो मेरे साथ क्योंकि वह मेरी बचपन की मित्र है और हमारे ही शहर में बड़ी मुसीबत में है. बहुत सालों तक हम मिले ही नहीं. पापा का फोन आया था कि वह अपने पति के साथ इसी शहर में डाक्टर को दिखाने आ रही है. निशा को भी ठीक लगा कि उस का जाना जरूरी है. दोनों अस्पताल पहुंचे. वहा पहुंच कर निशा ने देखा राज को स्मृति के पति के रूप में.

उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह थोड़ी देर तक रुकी फिर स्मृति से कहा, ‘‘आप बिलकुल ठीक हो जाएंगी हौसल रखें और मैं शाम को फिर आप से मिलने आऊंगी. अभी मु झे निकलना होगा.’’ फिर उस ने अपने पति नील से कहा, ‘‘आप यहीं रुको. मैं गाड़ी से चली जाती हूं. शाम को हम दोनों साथ घर चलेंगे.’’ बाहर निकल कर निशा ने देखा कि आकाश में काले बादल छाए हुए हैं. निशा अपने औफिस लौट रही थी. सड़क खाली थी शायद बारिश की आशंका की वजह से लोग अभी बाहर नहीं निकल रहे थे. कार और मन दोनों तेज गति से दौड़ रहे थे… निशा का मन अपने बचपन में पहुंच गया था. वह स्कूल की होनहार विद्यार्थी थी. सभी टीचर्स उसे बहुत पसंद करती थीं.

सहपाठी भी उसे तवज्जो देते थे और निशा का जीवन अच्छा चल रहा था. वह अपने भविष्य की बहुत शानदार बुनियाद रख रही थी. वह जितनी तेज और कुशाग्रबुद्धि की थी उस की प्रिय सखी रोशनी उतनी ही सीधीसादी थी. शायद विपरीत गुणों में भी प्रगाढ़ मित्रता हो सकती है, उन दोनों को देख कर यह आसानी से सम झा जा सकता था. 12वीं कक्षा पास कर निशा आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गई थी किंतु रोशनी का विवाह हो गया था जिस में निशा शामिल नहीं हो सकी थी. बाद में निशा रोशनी से मिलने पहुंची और वहां उस की मुलाकात रोशनी के पति के मित्र राज से हुई और दोनों एकदूसरे से प्रभावित हो गए.

राज सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था और निशा पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम जौब भी कर रही थी. अत: रोशनी के साथसाथ निशा राज को भी कभीकभी गिफ्ट भेजती थी. उस को भी एसटीडी कौल लगा देती थी. निशा राज की हर छोटीबड़ी खुशी और दुख की सहभागी बनती थी. निशा राज के जीवन के महत्त्वपूर्ण दिनों को अपनी खुशी सम झ कर सैलिब्रेट करती थी. उस ने ऐसा कभी नहीं सोचा कि राज उस के लिए कभी कुछ नहीं करता क्योंकि शायद निशा प्रेम कर रही थी और प्रेम कभी प्रतिदान नही मांगता. समय बीत रहा था. निशा के पिता निशा का विवाह करना चाहते थे. एक अच्छा लड़का मिलते ही पिता ने निशा का रिश्ता तय कर दिया और ठीक इसी समय राज का भी चयन प्रशासनिक सेवा में हो गया. जब निशा ने राज को बताया कि उस की सगाई हो गई तो राज ने भरी आंखों से उसे बधाई दी और उस से मिलने दिल्ली आया. राज ने निशा से कहा कि वह उस के पिता से मिलना चाहता है.

बहुत अनुनयविनय कर निशा के पिता को राजी किया. निशा के पिता ने दोनों के प्रेम को देखते हुए ही शादी के लिए हां कर दी और निशा की सगाई तोड़ दी. कोई दिक्कत भी नहीं थी दोनों की धर्मजाति भी एक थी. किंतु कुछ महीनों के बाद राज जब ट्रेनिंग पर गया तो वहां उस की मुलाकात स्मृति से हुई. उस का भी चयन राज के साथ ही हुआ था. दोनों ने जीवनसाथी बन कर साथ रहने का फैसला किया. निशा राज के इस आकस्मिक बदलाव से बहुत आहत हुई. लेकिन उस की राज से अपने प्यार के लिए भीख मांगने की मंशा नहीं थी. किंतु वह सोचती थी आखिर राज ने ऐसा क्यों किया? क्या राज ने सफलता की चकाचौंध और शोर में अपने दिल की आवाज को दबा दिया? राज ने ट्रेनिंग से आने के बाद स्मृति से विवाह कर लिया. मगर निशा राज की स्मृति को मन से निकाल नहीं पा रही थी. खैर, वक्त कभी रुकता नहीं है. धीरेधीरे निशा भी जीवन में आगे बढ़ गई और उस का विवाह भी नील से हो गया.

नील एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था. आज अचानक राज के बारे में सुना कि उस की पत्नी कैंसर से जू झ रही है और 2 साल से बिस्तर पर है. वह सम झ नहीं पा रही थी कि राज की गलती की सजा स्मृति को मिल रही है या राज को उस के किए की सजा मिल रही है. निशा दिनभर औफिस में भी राज के ही बारे में सोच रही थी और उन्हीं विचारों में डूबी हुई शाम को वह वापस अस्पताल पहुंची नील को लेने. उस के विचारों को विराम लग तब जब निशा के पति नील ने राज से उसे मिलवाया और कहा, ‘‘आप हैं राज मेरी बचपन की मित्र स्मृति के पति.’’ उस ने राज की आंखों में कुछ देखा.

वह क्या था पता नहीं. शायद पछतावा या शर्मिंदगी या कायरता. किंतु निशा की आंखों में राज के लिए एक ही सवाल बरसों से था, ‘‘आखिर क्यों…’’ स्मृति की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ. वह अब शायद जीवन की आशा छोड़ चुकी थी. किंतु जब तक सांस है तब तक तो जीवन जीना ही होता है. वह सोच रही थी कि उस के पीछे राज कहीं अकेला न रह जाए. बस यही बात उसे दिनरात खा रही थी. नील भी स्मृति की देखभाल में लगा हुआ था. इसलिए निशा का भी आनाजाना होता रहता था. एक दिन निशा स्मृति के पास बैठी थी और थकावट के कारण उसे झपकी आ गई. तभी राज वहां आ गया. उस ने निशा से कहा, ‘‘आप बहुत थकी हुई लग रही हैं. ऐसे में ड्राइव कर के मत जाओ. इंतजार करो मैं नील को भी औफिस से यहीं बुला लेता हूं. आप दोनों साथ ही घर चले जाना.’’ निशा इतने सालों बाद अचानक नील को इस अधिकार वाले स्वर में अपने लिए कुछ कहते सुना तो असमंजस में पड़ गई कि राज की बात मान ले या टाल दे. खैर, जीत राज की हुई. अब दोनों चुप बैठे थे.

हालांकि अंदर भावनाओं का तूफान उठा था दोनों के ही. राज ने ही चुप्पी तोड़ी बोला, ‘‘निशा, मु झे माफ कर दो,’’ और फिर जो भावावेश में बोलना चालू हुआ तो उसे कुछ भी होश न रहा और उस ने अपनी गलती की स्वीकारोक्ति भी कर ली. उस ने मान भी लिया कि उस ने पदप्रतिष्ठा के लिए स्मृति से शादी की और शादी के बाद उसे पता चला कि उस की असली खुशी कहीं और थी. स्मृति जो पहले सो रही थी न जाने कब जाग गई थी और चुपचाप लेटी थी. उस ने सब सुन लिया और उसे लगा कि क्यों न मरते हुए भी वह एक अच्छा काम कर जाए और 2 सच्चे प्यार वाले दिलों को मिलवा कर इस दुनिया से जाए. बस वह मन ही मन कुछ सोचने लगी. नील जब शाम को निशा को लेने आया तो स्मृति ने उसे बातों में उल झा लिया. फिर राज से कहा कि वह निशा को घर ड्रौप कर दे. वह नील के साथ बचपन की बातें कर रही है… उसे कुछ राहत मिलती है अपने वर्तमान के दुखों से. निशा और राज के जाते ही स्मृति ने नील से कहा, ‘‘नील, तुम से कुछ मांगना चाहती हूं.’’ नील थोड़ा भावुक हो गया. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? बोलो मैं तुम्हें दूंगा.’’ स्मृति ने कहा, ‘‘नील मैं तुम से राज की खुशियां मांगती हूं,’’ और फिर उसे बताया, ‘‘राज और निशा बहुत पुराने प्रेमी हैं. राज ने पदप्रतिष्ठा के लिए मु झ से शादी की थी, किंतु प्रेम वह निशा से ही करता था. यह बात मु झे आज ही पता चली है.

देखो मैं तो इस दुनिया से जा रही हूं किंतु तुम निशा को वापस राज को दे देना, बस तुम से यही चाहिए.’’ नील के तो पैरों तले की जमीन खिसक गई. नील ने निशा की सहेली रोशनी से बात की तो उसे सारी सचाई पता चली. अब नील ने सोचा कि 2 सच्चे प्रेमियों को मिलाना ही होगा. उस ने जाते ही अपना रैज्यूम एक अमेरिकन आईटी कंपनी में भेजा जहां पर स्मृति का एक दोस्त पहले से ही काम कर रहा था. स्मृति के कहने पर नील का चयन उस कंपनी में हो गया. उसे 3 साल का कौंट्रैक्ट साइन करना था. नील ने निशा से कहा, ‘‘निशा, मु झे अमेरिका में जौब औफर हुई है.’’ निशा बहुत खुश हुई. किंतु नील ने कहा, ‘‘देखो निशा मु झे वहां अकेले ही बुलाया गया है. अब तुम जैसा कहो.’’ निशा ने कहा, ‘‘नील, मैं तुम्हारी खुशी में कभी रास्ते का रोड़ा नहीं बनूंगी. अगर तुम मु झ से दूर जा कर जिंदगी में कामयाबी हासिल करना चाहते हो तो मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं.’’ इस पर नील ने कहा, ‘‘निशा, मैं भी तुम्हें किसी बंधन में बांध कर नहीं जाना चाहता हूं. 3 साल का समय बहुत लंबा होता है.

तुम भी मेरी तरफ से आजाद हो,’’ नील थोड़ा भावुक हो गया था. निशा भी कुछ सम झ नहीं पा रही थी कि यह सब अचानक से क्या हो रहा है. खैर, वह चुप रही. 10 दिन बाद नील का वीजा और टिकट आ गया और वह चला गया. नील के जाते ही निशा काफी अकेली हो गई. ऐसे में राज ने उसे संभाला. अपनेपन की उष्णता पाते ही पुरानी भावनाएं पिघलने लगीं. उधर स्मृति की हालत बहुत तकलीफदेह हो गई थी. उस ने डाक्टर से पूछा, ‘‘उसे अब कितने दिन यह दर्द झेलना पड़ेगा?’’ डाक्टर ने कोई जवाब नहीं दिया. अब उस ने नर्स से एक कागज और पैन मांगा और राज को एक पत्र लिखा और साथ ही निशा से भी निवेदन किया कि वह राज को अपना ले और नील की कुरबानी को जाया न करे. जैसे ही स्मृति ने पत्र पूरा कर अपने तकिए के नीचे रखा वह एक संतोष लिए हमेशा के लिए सो गई और हर दर्द से आजाद हो गई. निशा एक बार फिर सोचने लगी कि नील और स्मृति ने ऐसा किया आखिर क्यों? द्य

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