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अंधेरे भविष्य के काले बादल मेरी आंखों के आगे गरजतेघुमड़ते रहे और मेरी आंखें बरसती रहीं. करीब 2 घंटे बाद जब दरवाजा खटखटाने की आवाज आईर् मेरी तंद्रा टूटी.

उठ कर मैं ने दरवाजा खोल दिया. सामने सुवीर खड़े थे और उन के बाल बिखरे हुए थे. जी तो हुआ कि उन्हें बाहर ही रहने दूं और एक ?ाटके से दरवाजा बंद कर दूं पर तभी सुवीर कमरे में आ गए थे और उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

सुवीर पहले तो मेरे गुस्से भरे चेहरे और अस्तव्यस्त वेशभूषा को देखते रहे. फिर बोले, ‘‘माफ करना, मीनू, मुझसे आज गलती हो गई. असल में मैं उसे जानता था. उस का नाम सविता है. तुम से पहले मैं सविता को बहुत प्यार करता था, उस से शादी भी करना चाहता था. वह हमारे पड़ोस में ही रहती थी. अकसर हमारे घर आयाजाया करती थी.

‘‘किंतु मैं अपना प्यार उस पर जाहिर करता, शादी का पैगाम भिजवाता, उस से पहले ही उस के पिताजीका यहां से तबादला हो गया और वह कहीं चली गई —-बिना मिले, बिना कुछ कहे ही. मैं कितनी रातें तड़पा, कितनी रातें मैं ने जागजाग कर काटीं, यह मैं ही जानता हूं.

‘‘जी तो चाहता था कि आत्महत्या कर लूं पर मांबाप का खयाल कर के रह गया. मु?ो

हर वक्त लगता जैसे उस के बिना मेरी जिंदगी बेकार हो गई है. ‘‘सोचा था, कभी शादी नहीं करूंगा, जब वह मिलेगी तभी करूंगा पर मांबाप ने शादी कर लो… शादी कर लो की इतनी रट लगाई कि मैं चुप लगा गया.

‘‘और फिर मैं ने सोचा जब मैं लड़की को पसंद ही नहीं करूंगा तो कैसे शादी होगी पर तभी तुम पसंद आ गईं. तुम्हें देख कर मु?ो लगा कि तुम्हारी जैसी पढ़ीलिखी, कामकाजी और सुंदर लड़की के साथ मैं फिर से जीवन शुरू कर सकूंगा और वास्तव मैं तुम ने मेरे बिखरे जीवन को समेट लिया, मेरे घाव भर दिए.

‘‘शादी के बाद मैं तुम्हें बताना भी चाहता था पर यही सोच कर नहीं बताया कि इस से शायद तुम्हें दुख होगा, जीवन में व्यर्थ ही कड़वाहट आ जाएगी, सो टाल गया और आज अचानक उसे देख कर…’’

और सुवीर मानो इतना ही कह कर हलके हो गए थे. वाक्य अधूरा छोड़ कर पलंग पर बैठ कर यों जूते खोलने लगे जैसे मैं ने उन की बात पर विश्वास कर लिया हो.

सुवीर के एक ही सांस में बिना रुके इतना कुछ कह जाने की मु?ो आशा नहीं थी. उन की शक्ल देख कर उन की बात पर विश्वास कर लेना भी कोई बड़ी बात नहीं थी. पर मुझे अभिमानिनी के दिल के एक पक्ष ने धीमे से मुझसे से कहा था कि सब बकवास है. 2 घंटे में सुवीर कोई कहानी गढ़ लाए हैं और तुझे भोली समझ कर ठग रहे हैं. यदि इतनी ही बात थी तो ? सवाल पर ही मुझे हाथ पकड़ कर रोक क्यों नहीं लिया? वहीं सारी दास्तां क्यों नहीं सुना दी?

और पता नहीं कैसे मेरे मुंह से यह विष भरा वाक्य निकल गया, ‘‘ज्यादा सफाई देने की जरूरत नहीं. ऐसी कई कहानियां मैं ने सुन रखी हैं.’’

मेरे यह कहते ही सुवीर मुझे घूर कर फिर से जूते पहन कर कमरे से बाहर चले गए थे. उस पूरी रात न सुवीर मुझसे बोले और न मैं. बस अनकहे शब्द हम दोनों के बीच तैरते रहे. मुझे लगा था सुवीर अभी हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुला लेंगे और मुझे मना कर ही छोडे़ंगे पर जैसे ही सुवीर ने खर्राटे लेने शुरू किए तो मेरा गुस्सा और भी भड़क उठा. यह भी कोई बात हुई? फिर से बातों का क्रम जोड़ कर मुझे  मना तो सकते थे या अपनी एकतरफा प्रेमकथा की सचाई का कोई सुबूत तो दे सकते थे.

मगर नहीं सुवीर को अकेले सोते देखकर मेरा विद्रोही भावुक मन तरह-तरह की कुलांचें भरने लगा. पूरी रात आंखों में ही कट गई. सुबह कहीं जाकर आंख लगी तो बड़ी देर बाद नींद खुली. सुवीर फैक्टरी जा चुके थे. मन के कोने ने फिर कोंचा, देखा, तेरी जरा भी परवाह नहीं. रात को भी नहीं मनाया और अब भी मिल कर नहीं गए. मन तो वैसे ही खिन्न हो रहा था. देर से सोने और धूप चढ़े उठने की वजह से सिर भी भारी हो रहा था.

मैं ने चुपचाप कैंटीन से 1 कप चाय मंगाई और स्कूल पहुंचतेपहुंचते देर हो गई. एक बार मन में आया था कि जो हुआ, अब मुझे सुवीर को संभालना चाहिए पर दूसरे ही पल कमजोर मन का पक्ष बोलने लगा कि यदि यह बात सच थी तो सुवीर ने या सास ने बातोंबातों में मुझे पहले क्यों नहीं बताया? आखिर छिपा कर क्यों रखा? जब भेद खुल गया तब कहीं… और इस विचार के आते ही मन फिर अजीब सा हो गया.

शाम को मैं सुवीर का बेचैनी से इंतजार कर रही थी पर सुवीर रोज शाम के 5 बजे के स्थान पर रात के 9 बजे आए और बजाय देर से आने का कोई बहाना बनाने या कुछ कहने के वे सीधे अपने कमरे में चले गए और पलंग पर लेट गए. उन की लाललाल आंखों ने मुझे भयभीत कर दिया और मेरा शक ठीक निकला. वे पीकर आए थे. पहले कभी उन्होंने पी थी मुझे मालूम नहीं. हमारे दोस्त उन्हें हमेशा कहते पर वे कभी हाथ नहीं लगाते थे.

सुवीर के मांबाप भी परेशान थे और मैं तो थी ही. एक ही दिन में मेरी दुनिया इस तरह बदल जाएगी, इस का मुझे कभी खयाल भी न आया था. मैं कुछ कहने के लिए भूमिका बांध ही रही थी कि सुवीर के खर्राटों की आवाजें आने लगीं. मेरी रुलाई फूट कर वह निकली. दिनभर के उपवास और मौन ने मुझे तोड़ दिया. मैं भाग कर दरवाजे पर खड़ी सास के गले जा लगी और खूब रोई.

सास ने इतना ही कहा, ‘‘मेरे बेटे की खुशी में ही सारे घर की खुशी है. हां, एक बात का खयाल रखना, सुवीर बेहद जिद्दी है, उसे प्यार से ही जीता जा सकता है और किसी चीज से नहीं,’’ और यह कह कर उन्होंने जबरन मु?ो अपने कंधे से अलग कर दिया. मैं कंधे से अलग हो कर कुछ निश्चय करती हुई गुसलखाने में जा कर हाथमुंह धो आई.

सुवीर जूतों समेत ही सोए थे. उन के जूते, मोजे खोले, टाई की गांठ खोली और चादर डाल कर चुपचाप बिस्तर पर आ कर न जाने कब सो गई. सुबह उठी तो सुवीर लगभग तैयार ही थे. मैं यंत्रवत उन के बचे हुए काम करती रही और उन के चलते समय बोली, ‘‘शाम को वक्त पर घर आ जाना.’’ सुन कर सुवीर मु?ो कुछ देर देखते रहे, फिर चले गए. उन के जाने के बाद मुझे लगा कि मेरे कहने का ढंग प्रार्थना वाला न हो कर आदेश वाला था. और सुवीर वास्तव में ही शाम को वक्त पर नहीं लौटे. इंतजार करतेकरते मु?ो लगने लगा कि  ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मैं कैद हूं और ये दीवारें बेहद संकरी होहो कर मुझे दबा देंगी.

सुवीर पिछले दिन से भी ज्यादा देर से लौटे, पीकर रात के 10 बजे और पिछले दिन की ही तरह बिस्तर पर जूतों समेत सो गए. मन किस कदर बिखर गया था तब. मैं माफी मांगने के कितने-कितने शब्दजाल दिनभर बुनती रहती और सुवीर थे कि बात भी करना पसंद नहीं कर रहे थे. मैं क्लास में भी ढंग से पढ़ा नहीं सकी और बेमतलब में 1-2 स्टूडैंट्स को डांट दिया.

मैं सोचा करती, यदि उस लड़की को उस के चले जाने के कारण वे पहले नहीं पा सके तो अब मैं क्या कर सकती हूं? ऊपर से शराब पी कर और नजारे पेश कर रहे हैं. इस का साफ मतलब है कि अभी भी उसी को चाहते हैं और यदि मैं चली जाऊं तो उसी को ला कर अपनी भूल का प्रायश्चित्त करेंगे. अचानक लगने लगा कि हमारा संबंध बहुत उथला है और इन चुकते जाते संबंधों को जोड़ने के लिए स्वयं को टुकड़ों में बांटने की आवश्यकता नहीं. सुवीर के रवैए ने मुझे निरपेक्ष बने रहने के लिए मजबूर कर दिया. मन के उसी कोने ने फिर कहा,  यदि उस लड़की को ये भुलाना ही चाहते तो मेरे साथ ऐसा व्यवहार कदापि न करते और फिर क्या पता फैक्टरी के बाद का तमाम समय कहां बिताते हैं?

मन की रिक्तता ने मेरी अजीब दशा कर दी थी. दिनभर मेरी जबान पर ताला जड़ा रहता और मन ही मन मेरे और सुवीर के बीच की खाई चौड़ी होती रहती.

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