Dr. Kiruba Munusamy : डा. किरुबा मुनुसामी का जन्म 1986 में तमिलनाडु में एक दलित परिवार में हुआ. सदियों से हाशिए पर पड़े समाज में पैदा होने का दंश वही सम झ सकता है जो दलित के घर पैदा हुआ हो. दलित समाज में लड़की के रूप में जन्म लेना तो और भी बुरी बात है.
किरुबा ने बचपन से ही दलितों के साथ ऊंची जातियों के गलत बरताव को देखा और दलित समाज में औरतों की पीड़ा को महसूस किया. यही कारण है कि किरुबा मुनुसामी ने कानून के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का प्रण किया लेकिन दलित समाज की लड़की के लिए इतना ऊंचा ख्वाब देखना आसान नहीं था. इस के लिए उन्होंने कई सामाजिकआर्थिक चुनौतियों का सामना किया.
सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध
किरुबा को स्कूल से ले कर कालेज तक में जातिवाद को झेलना पड़ा. हर कदम पर मिले तिरस्कार और अपमान को वे अपनी ताकत बनाती रहीं. आज किरुबा मुनुसामी एक प्रतिष्ठित मानवाधिकार वकील और अंबेडकरवादी कार्यकर्ता हैं और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए विश्वभर में अपनी पहचान बना चुकी हैं. भारत में जातिगत भेदभाव और लैंगिक हिंसा के विरुद्ध किरुबा ने लंबी लड़ाई लड़ी है और आज भी वे इस मानसिकता के विरुद्ध लड़ रही हैं.
किरुबा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक स्वतंत्र वकील हैं. वे जातिगत अत्याचार, लिंग आधारित हिंसा और सामाजिक अन्याय जैसे मामलों में पीडि़तों का केस लड़ती हैं.
किरुबा, ‘लीगल इनिशिएटिव फौर इक्वैलिटी’ की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक भी हैं. किरुबा की यह संस्था हाशिए पर पड़े लोगों को कानूनी सहायता देने का काम करती है. किरुबा ने संयुक्त राष्ट्र सहित विभित्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जातिगत भेदभाव और मानवाधिकारों के मामले उठाए हैं.
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