Safe Drive : अकसर दौलतमंद मांबाप दौलत के नशे में हमेशा चूर रहते हैं. उन को यह भी नहीं पता होता कि उन्हें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे कर देश का अच्छा नागरिक बनाना चाहिए या नहीं. वे तो अपनी संतान को पैसे के बल पर बड़ा कर के छोड़ देते हैं और कह देते हैं, ‘जा बेटा तू भी ऐश कर और हमें भी ऐश करने दे.’
अब बेटा तो बेटा उसे क्या गरज पड़ी है, मेहनत जैसी फालतू चीज करने की. बेटा तो भलीभांति जानता है कि उस का बाप कमा रहा है, 7 पीढि़यों के लिए धन जुटा रहा है तो हम क्यों कोई कामधाम करें. हम तो दोनों हाथ खोल कर धन लुटाएंगे.
बचत और सद्व्यवहार जैसी दकियानूसी चीज तो गरीबों के बच्चे सीखते हैं. लायक बनना और फर्ज निभाना ये तो गरीब के बच्चों की जिम्मेदारी है. बेचारे दौलत तो कभी खुली आंखों से देखे नहीं होते तो बंद आंखों से क्या देखेंगे. गरीब बच्चे ही रातदिन भूखे प्यासे शरीर को तपा कर काबिल बनते हैं. तब जा कर चार पैसे उन्हें देखने को मिलते हैं. यही इन की नियति भी है.
स्टाइल ही इन का जीवन
रईसजादे तो अकसर पेरैंट्स बाप के बेटे हैं इसलिए उन के शौक भी करोड़पतियों वाले होते हैं. ये जब घर से निकलते हैं तो अपनी सवारी पर सवार हो झूमतेगाते, मोबाइल से बतियाते और शौर्ट कट मारते ऐसे निकलते हैं जैसे इन का काम ही काम है बाकी सब बेकार हैं. बीच सड़क पर कहीं भी गाड़ी पार्क कर देते हैं क्योंकि सड़क तो इन के बाप की संपत्ति है न.
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