भारत और पाकिस्तान के बीच पुन: एक दोस्ती का पैगाम. एक बार फिर से दिल्लीलाहौर बस सेवा शुरू होने जा रही है. जैसे ही रात के समाचारों में यह खबर सुनाई दी, रसोई में काम करतेकरते मेरे हाथ अचानक रुक गए. दिल में उठी हूक के साथ मां की ओर देखा तो उन का सपाट व शांत चेहरा थोड़ी देर के लिए हिला और फिर पहले जैसा शांत हो गया. आज के समाचार ने मुझे 2 साल पीछे धकेल दिया. वे सारी घटनाएं, जिन्होंने इस परिवार की दुनिया ही बदल दी, मेरी आंखों के सामने सिनेमा की तसवीर की तरह घूमने लगीं.

हम 2 बहन और 1 भाई थे. मातापिता का लाड़प्यार हर पल हमें मिलता रहता था. मैं सब से छोटी थी. भैया व दीदी जुड़वां थे. दीदी मात्र 4 मिनट भैया से बड़ी थीं. बचपन से ही वे आपस में काफी घुलेमिले थे पर झगड़े भी दोनों में खूब होते थे.

मैं उन दोनों से 7 साल छोटी होने के कारण दोनों की लाड़ली थी. मुझे तो शायद याद भी नहीं कि मेरी लड़ाई उन दोनों से कभी हुई हो. संजय भैया पढ़ाई में काफी होशियार थे. यद्यपि दीदी भी पढ़ने में तेज थीं किंतु उन का मन खेलकूद की ओर अधिक लगता था. जिला स्तर पर खेलतेखेलते कई बार उन का चुनाव राज्य स्तर पर भी हुआ जोकि मां को कभी अच्छा नहीं लगा क्योंकि मुझे व दीदी को ले कर मां की सोच पापा से थोड़ी संकरी थी. खासकर तब जब दीदी को खेलने के लिए अपने शहर से बाहर जाने की बात होती थी, तब भैया का साथ ही मां और पापा के प्रतिरोध को हटा पाता था और इस तरह दीदी को बाहर जा कर खेलने का मौका मिलता था.

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