Situationship: ‘कसमें वादे प्यार वफा सब बाते हैं बातों का क्या,,,’ फिल्म ‘उपकार’ का यह गीत ही सिचुएशनशिप रिलेशन है. इस प्यार को क्या नाम दूं, यह कहने और सोचने की जरूरत को ख़त्म करती है सिचुएशनशिप रिलेशन. इस में दो लोग एकदूसरे की जरूरत को पूरा करने के लिए साथ में रहते हैं. इस में दोनों एकदूसरे के साथ घूमने जा सकते हैं, लंच या डिनर कर सकते हैं. लेकिन इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया जाता है.
यहां आप बिना शर्त एकदूसरे के साथ हैं वह भी तब तक, जब तक आप का मन चाहे और जब मन भर जाए तो दूसरे पार्टनर के प्रति आप की कोई जवाबदेही नहीं होती. वे इस रिश्ते के बारे में न तो किसी को बताना चाहते और न ही इस को कोई नाम देना चाहते हैं. आइए जानें कैसा होता है यह सिचुएशनशिप रिलेशन.
एक समय ऐसा था जब लोग प्यार के लिए बगावत तो क्या, मरनेमारने पर आ जाते थे और उस के लिए अपना घरबार सब छोड़ देते थे जैसे कि ‘मैं ने प्यार किया’, ‘बागी’, ‘कयामत से कयामत तक’ जैसी कई फिल्मों में दिखाया गया है. वास्तव में ये फिल्में सही माने में समाज का आईना थीं. तभी तो हीररांझा और शीरींफरहाद जैसी जोड़ियां प्रचलित हुईं.
लेकिन अब प्यार ‘यों ही नहीं हो जाता’ बल्कि सोचसमझ कर, जांचपरख कर होता/किया जाता है. आज के युवा जोड़े एकदूसरे को कोई भी कमिटमैंट करने से पहले सौ बार सोचते हैं और कुछ समय रिलेशनशिप में साथ रह कर एकदूसरे को जज करते हैं. अगर बाद में सबकुछ सही लगा तो ठीक वरना रास्ता बदलने में देर नहीं लगाते. लेकिन बाद में रास्ता बदलने पर ब्रेकअप आदि को झेलने का दम भी उन में नहीं है, इसलिए एक बीच का रास्ता निकला है जहां न ब्रेकअप हो और न ही कमिटमैंट लेकिन साथ हो. इसे ही अब हमारी नई पौध सिचुएशनशिप रिलेशन कह रही है.
यानी, रिश्ता तो है लेकिन अपने नाम के अनुरूप ही यह 2 शब्दों ‘सिचुएशनशिप’ और ‘रिलेशन’ से मिल कर बना है. यह रिश्ता सिचुएशन पर डिपैंड करता है. मतलब, यहां रिश्ता चलाने का कोई प्रैशर एकदूसरे पर नहीं होता क्योंकि दोनों का ही कोई कमिटमैंट एकदूसरे के साथ नहीं होता. इस रिश्ते में लोग रोमांस और शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एकसाथ आते हैं.
कुछ लोग तो केवल टाइमपास के लिए भी इस रिश्ते में आ जाते हैं. इस में अलग होना बहुत आसान है. बिना किसी एक्सप्लेनेशन के आप अपने पार्टनर को छोड़ सकते हैं वह भी बिना किसी सवालजवाब के.
युवाओं को क्यों पसंद आ रहा है सिचुएशनशिप रिलेशन
इस बारे में प्रियांशु, जो कि अभी ग्रेजुएशन कर रहे हैं, का कहना है कि दरअसल, कई बार कुछ लोग अपने पुराने रिलेशनशिप में मिले धोखे या असफलता की वजह से भी इस तरह की रिलेशनशिप को पसंद करने लगते हैं.
दूसरे, ब्रेकअप के दर्द से एक बार गुजरने के बाद वह दोबारा उन परिस्थितियों में नहीं पड़ना चाहते जहां दिल टूटने जैसा कौन्सैप्ट हो. वहीं, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी लाइफ के गोल्स से भटके बिना रिलेशनशिप के फायदों को एंजौय करने के लिए इस में आ जाते हैं.
सिचुएशनशिप के फायदे
इस तरह के रिश्तों में इंटिमेसी का लैवल, एकसाथ बिताया गया समय आदि सभी अलगअलग लोगों के लिए अलगअलग होता है. इस में दो लोग केवल एकदूसरे के साथ लव रिलेशनशिप के फायदों को शेयर करने के लिए साथ होते हैं. यहां एकदूसरे के साथ कोई भी प्यारभरा वादा नहीं किया जाता.
इस रिश्ते में दोनों पार्टनरों के बीच फ्यूचर को ले कर भी कोई बात नहीं होती है. इस रिश्ते में दोनों लोग बिना किसी शर्त के एकसाथ रहते हैं और अच्छा समय बिताते हैं. सिचुएशनशिप रिलेशन में आ कर कई बार युवाओं को खुद के बारे में जाननेसमझने का मौका मिलता है. कई बार आप को अपनी प्रायोरिटीज के बारे में भी रिलेशनशिप में आने के बाद पता लगता है.
कैसे पता करें कि आप का रिलेशन सिचुएशनशिप है
इस रिलेशनशिप में पार्टनर पब्लिकप्लेस में मिलने से बचते हैं और एकदूसरे के घर पर जाना और रिलेटिव से मिलना भी अवौयड करते हैं. सोशल गैदरिंग में जाते ही अगर पार्टनर अनजान बन जाता है तो यह भी सिचुएशनशिप का ही एक लक्षण है. पार्टनर वैसे तो बहुत क्लोज है लेकिन बहुत ज्यादा इमोशनल अटैचमैंट और किसी तरह के कमिटमैंट से बच रहा है, तो यहां मामला क्लियर है कि आप सिचुएशनशिप में हैं. अगर दोनों रिश्ते को औफिशियली ऐक्सेप्ट करने से बचते हैं तो यह सिचुएशनशिप है.
सिचुएशनशिप के नुकसान
यहां पता तो है कि कोई कमिटमैंट नहीं है लेकिन फिर भी जब मनमुताबिक चीजें नहीं होतीं तो मन में खीझ उठना स्वाभाविक है. यदि एक व्यक्ति ज्यादा इमोशनल है तो सिचुएशनशिप उस के लिए भावनात्मक उतारचढ़ाव और असुरक्षा का कारण बन सकती है.
सिचुएशनशिप के कारण कई अच्छे पार्टनर आप के हाथ से निकल सकते हैं. आप रिलेशन में हैं, इसलिए दूसरे औप्शन पर भी ध्यान नहीं देते और सारी उम्र साथ निभाने वाले अच्छे पार्टनर से कई बार हाथ धो बैठते हैं.
ध्यान से परखें क्योंकि सिचुएशनशिप कोई एक्सक्लूसिव रिश्ता नहीं है
सिचुएशनशिप में अगर दोनों में से एक भी रिश्ते के प्रति सीरियस हो जाता है तो उसे इमोशनल कंफ्यूजन का शिकार होना पड़ता है. क्योंकि दोनों में से किसी को भी यह नहीं पता होता है कि वे रिश्ते के किस मोड़ पर खड़े हैं. इस तरह की इमोशनल टैंशन उन्हें मानसिक रूप से तनाव दे सकती है. साथ ही, सिचुएशनशिप में बहुत समय और ऊर्जा बरबाद हो सकती है. लोग अपने संबंध को समझने और उसे सही दिशा देने की कोशिश में बहुत सारा समय खर्च कर सकते हैं लेकिन अगर अंत में वह संबंध किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचता, तो यह समय और ऊर्जा की बरबादी साबित हो सकती है.
सिचुएशनशिप में भविष्य की कोई गारंटी नहीं होती. लोग एकदूसरे के साथ समय बिताते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि उन का संबंध आगे चल कर किसी ठोस आधार पर टिकेगा या नहीं. इसलिए इस तरह के रिश्ते में भी सोचसमझ कर आगे बढ़ना ही समझदारी है.
वैसे भी, रिश्ता कोई भी हो, समर्पण मांगता ही है. ऐसे में एकदूसरे के साथ सच्चे बने रहना जरूरी होता है. सिचुएशनशिप भी ऐसा ही रिश्ता है जो एकदूसरे से सच्चाई की अपेक्षा पूरी होने के साथ अच्छे से चल सकता है. इसलिए रिश्ता चाहे जो भी हो उस में आने से पहले कई बार सोचें कि क्या वाकई आप को उस रिलेशन की जरूरत है या फिर ऐसे ही दूसरों की देखादेखी इस में शामिल हो रहे हैं. एक बार खुद से यह सवाल करिएगा जरूर?