Mental Stress In Youth : 20 से 22 साल की उम्र जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है. इस दौरान शिक्षा, कैरियर और रिश्तों में कई बड़े बदलाव आते हैं. इस उम्र में खुशी, रोमांच और उत्साह आदि सबकुछ साथसाथ होता रहता है, साथ ही अनिश्चितताओं और स्ट्रैस की वजह से बहुत अधिक तनाव भी होता है.
नवी मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल की मनोचिकित्सक डाक्टर पार्थ नागडा कहते हैं कि कम उम्र में कोई भी समस्या युवाओं के लिए तनाव बन जाता है, क्योंकि वे छोटीछोटी चीजों से घबरा जाते है. इस का असर उन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, इसलिए उन पर नियंत्रण रखना, सही समय पर उपचार कराना जरूरी है.
तनाव से गंभीर मानसिक और शारीरिक बीमारी
डाक्टर पार्थ कहते हैं कि इतनी कम उम्र में लंबे समय तक तनाव में रहने से मानसिक स्वास्थ्य की बड़ी समस्याएं हो सकती हैं. इस दौरान शिक्षा में आगे बढ़ने, एक स्थिर कैरियर हासिल करने और एक अच्छी रिलेशनशिप को बनाए रखने का दबाव हमारे नैचुरल कोपिंग मैकेनिज्म को प्रभावित कर सकता है, जिस से चिंता या निराशा जैसे डिसऔर्डर दिखाई पड़ सकते हैं, मसलन घर से दूर रहना, नए रिश्ते बनाना, वित्तीय निर्णय लेना आदि जैसी कई वजहों से तनाव बढ़ता है.
जर्नल औफ क्लिनिकल मैडिसिन में प्रकाशित, वर्ष 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि जीवन के बदलावों से होने वाला तनाव इस आयु वर्ग में मनोवैज्ञानिक संकट को दर्शाता है, जिस का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना होती है.
इस के अलावा लगातार तनाव से युवाओं में कई शारीरिक गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं, जिन में हृदयरोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अवसाद और चिंता विकार आदि शामिल हैं, जिसे समय रहते पहचान लेना जरूरी होता है.
- ऐसा देखा गया है कि अत्यधिक तनाव से हृदय गति और रक्तचाप बढ़ सकता है, जिस से हृदयरोग का खतरा बढ़ जाता है.
- तनाव इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकता है, जिस से मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है.
- तनाव से रक्तचाप बढ़ सकता है, जिस से उच्च रक्तचाप और हृदयरोग का खतरा बढ़ सकता है.
- अधिक स्ट्रैस से डिप्रैशन बढ़ सकता है, खासकर जब इसे ठीक से मैनेज न किया या हो.
- लगातार स्ट्रैस में रहने पर चिंता और घबराहट हो सकती है, जो चिंता कई प्रकार के डिसऔर्डर को जन्म देती है.
- पाचन संबंधी समस्याएं भी अधिक तनाव की वजह से आज की यूथ में कौमन हो चुका है, जैसेकि इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) और अल्सर हो सकते हैं.
- अधिक तनाव से इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है, जिस से अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.
परिवार में मानसिक बीमारी का होना
तनाव से ग्रस्त हर युवा को मानसिक बीमारी हो यह जरूरी नहीं, लेकिन जिन में कुछ कमजोरियां पहले से मौजूद हैं, मसलन परिवार में पहले किसी को मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं होना, आघात या सामाजिक समर्थन की कमी, उन के लिए रिस्क हो सकती है. ऐसे में बीमारी का जल्दी पता लग जाने से उसे इलाज कर ठीक किया जा सकता है.
कुछ लक्षण निम्न हैं :
- लगातार चिंता, चिड़चिड़ापन, उदासी या निराशा, रोज के काम करने में असमर्थता, भविष्य के बारे में बहुत अधिक सोचना.
- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, याद्दाश्त की समस्या.
- थकान, सिरदर्द, नींद की समस्या, भूख में बदलाव या बिना किसी कारण के दर्द और पीड़ा का होना.
- लोगों से खुद को अलग कर लेना, अकेले रहना, नशे का आदि होना, खुद को नुकसान पहुंचाना या लापरवाह ड्राइविंग जैसे जोखिमभरे काम करना.
- आत्महत्या के विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार का होना आदि.
पेरैंट्स के लिए
डाक्टर आगे कहते हैं कि पेरैंट्स को यूथ के अलगअलग व्यवहारों को नोटिस करना जरूरी होता है, ताकि समय रहते उन का इलाज किया जा सकें.
कुछ सुझाव इस प्रकार हैं :
- यूथ से पेरैंट्स खुल कर बातचीत करें, एक सुरक्षित और नौन जजमैंटल माहौल बनाएं, जहां यूथ अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकें, तुरंत समाधान सुझाने के बजाय उन की बातों को पूरा और ध्यान से सुनें.
- किसी भी स्थिति, समस्या का सामना स्वस्थ तरीके से करने को प्रोत्साहित करें, जिस में संतुलित दिनचर्या, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद को बढ़ावा देने से तनाव कम होता जाता है.
- उन की भावनाओं को समझें और स्वीकार करें. उन के तनाव वास्तविक और महत्त्वपूर्ण हैं. किसी प्रकार की सलाह देने से बचें.
- उन्हें फ्रीडम दें, मार्गदर्शन करें. उन्हें उन के निर्णय लेने में सहायता करें. अपनी अपेक्षाओं को उन पर न थोपें, अगर संभव हो, तो उन्हें कैरियर या शिक्षा के विकल्प तलाशने में मदद करें.
इलाज जरूरी
कुछ मातापिता ऐसे में पूजापाठ, हवन का सहारा लेते है, जो उन्हें अधिक कमजोर बनाती है तनावग्रस्त व्यक्ति को निरंतर प्रयास और धैर्य बनाए रखने की जरूरत होती है. अगर ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है, तो डाक्टर की सलाह अवश्य लें. शुरुआती दौर में कुछ थेरैपी से तनाव कम हो जाता है, जबकि अधिक समस्या होने पर दवा की जरूरत पड़ती है.
अधिक प्रतियोगी होना
अपने अनुभव के बारे में डाक्टर पार्थ कहते हैं कि आज की युवाओं में तनाव और अवसाद अधिक मात्रा में बढ़ने की वजह उन्हें हर मोड़ पर कंपीटिशन का सामना करना पड़ता है.
वे बताते हैं कि 23 वर्षीय एक युवती युनिवर्सिटी में पढ़ते हुए अचानक हुए ब्रेकअप से परेशान थी. उस का मन पढ़ाई में बिलकुल भी नहीं लग पा रहा था. उन्हे नींद न आना, चिंता और लोगों से अलग, अकेले रहने जैसे लक्षण विकसित हो चुके थे, जिससे वह बहुत परेशान रहती थी और कुछ भी आगे सोचने में समर्थ नहीं थी. मैं ने मैडिसिन, जीवनशैली में बदलाव, आरईबीटी थेरैपी और परिवार की मदद से उस स्थिति का मुकाबला स्वस्थ तरीके से करने के बारें में सिखाया और आत्मविश्वास हासिल किया.
22 वर्षीय एक युवा ग्रैजुऐट होने के बाद कैरियर की अनिश्चितताओं से जूझ रहा था, जिस से उसे नशे की लत लग गई थी. ऐंटीक्रेविंग दवाओं, स्ट्रैस मैनेजमेंट तकनीकों और कैरियर परामर्श ने उसे तनाव को दूर करने और शराब पीने की आदतों को कम करने में मदद किया.
लड़कियों में तनाव अधिक
ऐसा देखा गया है कि 20 से 22 वर्ष की युवा महिलाओं में पुरुषों की तुलना में चिंता और अवसाद अधिक होती है. इस की वजह अकसर रिश्तों और शैक्षणिक सफलता से जुड़े सामाजिक दबाव का होना है, जिस में एक लड़की को उतनी आजादी नहीं मिलती, जितना एक लड़के को मिलती है.
36% महिलाओं के लिए खुद की लाइफस्टाइल जिसे वे चाहती हैं, उन्हें करने की आजादी नहीं मिलती. इसलिए वे खुदखुशी, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती हैं जबकि 25% लड़के किसी नशे का आदी बन कर घर से बाहर जा कर तनावमुक्त होने की कोशिश करते हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
वैश्विक स्तर पर 7 में से 1 किशोर (लगभग 166 मिलियन) में मानसिक विकार होते हैं. इस आयु वर्ग में चिंता और अवसाद के 40% मामले पाए जाते हैं, जबकि 66% छात्रों में खराब ग्रेड की वजह से तनाव होते हैं. 55% छात्र तैयारी के बावजूद भी परीक्षाओं को ले कर चिंता में रहते हैं.
लड़कों की तुलना में लड़कियां शिक्षा को ले कर अधिक तनाव में रहती हैं. इस के अलावा सोशल मीडिया और साइबरबुलिंग भी तनाव का कारण हैं.
यह सही है कि आज के अर्ली ऐज में यूथ तनाव का शिकार स्वाभाविक रूप से अधिक हो रहे हैं, जिसे समय रहते दूर किया जाना चाहिए. इस में लक्षणों को जल्द से जल्द पहचानना, परिवार और दोस्तों का मजबूत समर्थन और समय पर ऐक्सपर्ट से इलाज महत्त्वपूर्ण होता है. इसलिए तनाव एक प्रतिक्रिया है, जिसे प्रैक्टिस से दूर करना असंभव नहीं.