Zoned Out: मुंबई की 23 वर्षीय सिमरन को शर्मिंदगी का सामना उस वक्त करना पड़ा, जब उन के मैनेजर ने उन्हें मीटिंग की कोर विषय को अपने औफिस कलीग्स को समझाने की बात कही. असल में सिमरन ने मीटिंग की पूरी बात को ठीक से सुना ही नहीं, क्योंकि वह जोन आउट की शिकार हो गई थी. ऐसे में उस का अपने कलीग्स के साथ चर्चा करना मुश्किल लग रहा था. इस के लिए उस ने पूरी मीटिंग की रिकौर्डिंग को फिर से सुनी और चर्चा की.
पिछले कुछ दिनों से वह महसूस कर रही है कि वह सिर्फ आधे से 1 घंटा भी किसी मीटिंग में अपना ध्यान लगा नहीं पा रही है. बातें सुनतेसुनते अचानक बीच में वह कहीं खो सी जाती है. यह अधिकतर 4 से 5 मिनट के लिए होता है, लेकिन उस दौरान हुई बातचीत को वह सुनती नहीं, बाद में कुछ पूछने पर वह खुद को ब्लैंक महसूस करती है.
वह खुद को ले कर कई बार परेशान हो चुकी है, क्योंकि उस का इस तरह से बेमन हो जाना, उस के कैरियर ग्रोथ में ठीक नहीं. इसलिए वह कई बार मनोवैज्ञानिक के पास जा कर सलाह ले चुकी है.
जोन आउट कोई बड़ी समस्या नहीं
असल में जोन आउट का मतलब होता है मानसिक रूप से ध्यान का इधरउधर भटक जाना या अपने आसपास हो रही चीजों से ध्यान हट जाना. यह केवल सिमरन के साथ ही नहीं, स्कूल या कालेज जाने वाले छात्र भी जोन आउट के शिकार हो जाते हैं और अकसर क्लास में अपना ध्यान नहीं लगा पाते. कहां क्या चर्चा हो रही है, वे ठीक से नहीं सुनते और टीचर के कुछ पूछने पर वे ब्लैंक फेस कर क्लासरूम में खड़े हो जाते हैं.
इस बारें में नवी मुंबई की मदरहुड हौस्पिटल्स की कंसल्टेंट साइकोलौजिस्ट सिद्धि एन यादव कहती हैं कि यह तब होता है, जब आप किसी काम से थक गए हों, बोर हो गए हों, तनाव में हों या ज्यादा सोच में हों. इस दौरान आप सामने देख कर भी कुछ नहीं समझते, बातों पर ध्यान नहीं देते या किसी बातचीत का हिस्सा मिस कर देते हैं. ऐसे समय में दिमाग थोड़ी देर के लिए औफ हो जाता है, जैसे औटोमेटिक मोड पर चला गया हो. यह अकसर लंबी मीटिंग, क्लास या मोबाइल चलाते समय होता है.
आप वहां मौजूद होते हैं, लेकिन मन कहीं और होता है. कभीकभी ऐसा होना ठीक है, लेकिन अगर यह बारबार हो रहा है, तो यह थकावट, चिंता या ध्यान की समस्या का संकेत हो सकता है.
मनोवैज्ञानिक कारण
मनोचिकित्सक सिद्धि कहती हैं कि जब तनाव, चिंता या भावनाएं अधिक हो जाती हैं, तब दिमाग खुद को बचाने के लिए कुछ देर के लिए डिसकनैक्ट कर लेता है. इसे आमतौर पर डिसोसिएशन भी कहते हैं, क्योंकि हमारा मन परेशान करने वाली बातों से खुद को दूर कर लेता हैं. यह समस्या एसीएचडी (अटैंसन डेफिसिट हाइपर अक्ट्रिव्ह डिसऔर्डर) और पीटीएसडी (पोस्ट ट्रोमैटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर) या डिप्रैशन जैसी स्थितियों में देखी जाती है. इसलिए अगर ऐसा बारबार होता है, तो किसी मनोचिकित्सक से सलाह लेना जरूरी होता है.
बदली है सोच
यहां यह समझना जरूरी है कि पहले लोग दूसरों को खुश करने के लिए न नहीं कह पाते थे और खुद को परेशानी में डालते थे. उन के कहीं बुलाने पर वे बेमन वहां पहुंच जाते थे और वहां हो रही बातचीत को वे अनसुना करते रहते थे, लेकिन अब लोग अपने मन की सुनते हैं और न बोलने से कतराते नहीं, अपनी खुशी को वे समझते है, ऐसा होने के वजह कई होते है.
जोन आउट को कम करने के तरीके
- मानसिक स्वास्थ्य को ले कर जागरूकता.
- सेल्फ केयर यानि खुद की देखभाल को अहमियत.
- थेरैपी और काउंसलिंग की सुविधा.
- काम और जीवन में संतुलन की समझ आदि.
मल्टीटास्किंग कुछ हद तक जिम्मेदार
साइकोलौजिस्ट कहते हैं कि मल्टीटास्किंग भी इस का एक कारण हो सकता है. एकसाथ कई काम करने से मानसिक थकावट और तनाव बढ़ सकता है, जिस से लोग अपनी सीमाओं को समझ नहीं पाते. बर्नआउट के मामलों में बढ़ोत्तरी के चलते अब बहुत से लोग समझने लगे हैं कि धीमा चलना न कहना और एक समय में एक काम पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है.
यह स्वार्थ नहीं है, बल्कि यह आत्मसम्मान, माइंडफुलनैस और सेल्फ केयर का संकेत है. जोन आउट होना दर्शाता है कि आप का दिमाग ब्रेक चाहता है और किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा है.
रोकने के उपाय
-अच्छी नींद लें.
-बीचबीच में थोड़ा आराम करें.
-गहरी सांस लें, मैडिटेशन करें.
-खूब पानी पिएं और स्क्रीन टाइम कम करें.
-एक समय में एक ही काम करें.
-ध्यान भटकने लगे, तो वापस लाने की कोशिश करें.
-नियमित वर्कआउट करें आदि.
जोन आउट से बाहर निकलने के तरीके
- माइंडफुलनैस और व्यायाम करें.
- सांस पर ध्यान दें या आसपास की चीजों का नाम लें.
- डायरी लिखें.
- पजल गेम्स खेलें.
- बातचीत में हिस्सा लें.
- फोकस बढ़ाने वाली ऐक्टिविटी करें आदि.
प्रैगनेंसी के दौरान जोन आउट
मनोचिकित्सक सिद्धि कहती हैं कि प्रैगनैंसी के दौरान जोन आउट होने की संभावना अधिक होती है, जिस से अधिकतर स्त्रियां घबरा जाती हैं, जबकि यह सामान्य है, यह कोई कमजोरी नहीं.
कुछ वजह निम्न हैं :
गर्भावस्था के दौरान ध्यान भटकना, भूलना या मन का सुस्त होना आम बात है, जिसे प्रैगनैंसी ब्रेन या मौमनेशिया भी कहा जाता है.
हार्मोनल बदलाव
ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन में तेज वृद्धि दिमाग के कार्य में और न्यूरोट्रांसमीटर संतुलन में बदलाव लाती है, जिस से थकावट और फोकस में कमी आती है.
नींद में बाधा
प्रैगनैंसी में अच्छी नींद में कठिनाई हो सकती है, जिस से दिन में नींद और ध्यान की कमी होती है.
मानसिक भार और व्याकुलता
गर्भवती महिलाएं स्वास्थ्य, भविष्य और बच्चे को ले कर चिंतित रहती हैं. सर्वेक्षण के अनुसार प्रैगनैंसी मस्तिष्क की ग्रे मैटर को प्रभावित करती है, खासकर उन हिस्सों को जो भावनाओं और सामाजिक समझ से जुड़ी होती हैं. अगर यह ज्यादा समय तक हो रहा हो या डिप्रैशन जैसी समस्या लगे तो डाक्टर की सलाह लें.
प्रैगनैंसी के दौरान माइंड को ऐक्टिव रखें
* मूड को ठीक रखने के लिए हर दिन टहलना जरूरी.
* ध्यान और याददाश्त बढ़ाने के लिए ब्रैन गेम्स.
* रंग भरना या आर्ट बनाना.
* संगीत सुनना.
* गहरी सांस लेना.
* बर्थ प्लान बनाना वगैरह.
अगर अधिक समय तक समस्या चल रही है, तो जिस में काम या घर की जिम्मेदारी निभाने में समस्या का होना, बारबार भूलने की आदत से परेशानी का होना, ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन या थकावट महसूस हो रही है, तो काउंसलर की सलाह अवश्य लें.
इस प्रकार जोन आउट कोई मानसिक बीमारी नहीं, अपने लाइफस्टाइल में बदलाव कर इसे हटाया जा सकता है. इस के बावजूद भी अगर समस्या है, तो सायकोलौजिस्ट की सुझाव लेने से कतराएं नहीं, क्योंकि अधिक बढ़ जाने पर यह किसी अन्य मानसिक रोग को जन्म दे सकती है.