Festival Celebration: 24 वर्षीय नेहा आस्ट्रेलिया में नौकरी करती है, लेकिन हर दीवाली घर आती है ताकि सब के साथ मिल कर त्योहार मना सके. इस बार भी उस ने टिकट पहले से कर लिया है और आने वाली है क्योंकि इस दीवाली पर उस की बड़ी बहन भी अपने परिवार के साथ मुंबई आ रही है. इस में सब के साथ मिलना संभव हो सकेगा.

नेहा का हर साल त्योहार में मुंबई आने के पीछे का मकसद सब से मिलना होता है. इस से उस की पूरे परिवार और रिश्तेदारों के साथ अच्छी बौडिंग हो जाती है. घर आने के लिए उस की तैयारी भी उसे 2-3 महीने पहले से ही कर लेनी पड़ती है.

केवल नेहा ही नहीं बैंगलुरु में रहने वाला 25 वर्षीय संदीप भी हर साल दीवाली पर अपने पेरैंट्स और रिश्तेदारों से मिलने दिल्ली आता है, जिस की तैयारी वह काफी पहले से कर लेता है ताकि उसे वहां आने पर सैलिब्रेशन में किसी प्रकार की बाधा न हो, हर बार उसे घर जा कर बहुत अच्छा लगता है और खुद को रिजूविनेट कर वापस काम पर लौटता है. वह पिछले 10 सालों से घर से बाहर है क्योंकि उस ने पढ़ाई भी बैंगलुरु में ही की है और अब जौब भी वहीं करने लगा है.

परिवार के साथ होता था लगाव

असल में पहले लोगों में भाईचारे की भावना अधिक होती थी क्योंकि लोग साथ रहते थे और वहीं रोजीरोटी कमाते थे. घर से अधिक दूर जा कर काम करना किसी के वश में नहीं था, इसलिए परिवार के साथ लगाव ज्यादा होता था. सभी त्योहारों को वे परिवार के साथ मना सकते थे. सुविधाएं कम होती थीं लेकिन तब लोगों में आपसी मेल अधिक रहता था.

आधुनिकता ने की परिवार में दूरी

आधुनिकता के दौर में सुविधाएं बढ़ी हैं. लोग घरों से दूर जा कर अच्छे लाइफस्टाइल के लिए शिक्षा या जौब करने लगे हैं, इस से लोग आर्थिक रूप से मजबूत तो हुए लेकिन उन लोगों के पास समय की कमी होने लगी, जिस वजह से परिवार से दूरी बढ़ गई.

लोग काम के कारण परिवार से दूर रहने लगे हैं. यहां तक कि त्योहार भी परिवार के साथ मनाना मुश्किल होने लगा है. काम करने के लिए दूसरे शहर या देश में जाना पसंद कर रहे हैं. ऐसे में त्योहार पर भी परिवार के साथ समय नहीं बिता पाते. इसलिए त्योहारों की रौनक पिछले कुछ दशकों से कम होने लगी थी.

व्यवस्थित जीवन, समय की कमी लोगों को परिवार से दूर करती जा रही थी, जिस से हमारे त्योहार भी प्रभावित हुए हैं. लोग त्योहार भी परिवार के सदस्यों के साथ मिल कर नहीं बल्कि वीडियो काल के माध्यम से मनाने लगे थे, लेकिन इस सब में अच्छी बात यह हुई है कि पिछले कुछ सालों से हमारी नई पीढ़ी आर्थिक रूप से मजबूत हो चुकी है और कहीं से भी त्योहारों पर घर आना उस के लिए बो झ नही बनता.

बदली है युवाओं की सोच

आज के माहौल में युवाओं की सोच में काफी परिवर्तन दिख रहा है, आज के युवा त्योहारों को परिवार के साथ मनाना ही पसंद कर रहे हैं, इस की वजह उन का काफी समय तक अपने पेरैंट्स और रिश्तेदारों से अलग रहना और खुद को संभालना है. आज वे परिवार के महत्त्व को भी सम झने लगे हैं. यही वजह है कि त्योहारों में परिवार के सदस्यों का एकसाथ आना एक स्वाभाविक और बढ़ता हुआ ट्रेंड हो रहा है, जिसे यूथ आकर्षक मान रहे हैं जो लोगों को दैनिक जीवन की भागदौड़ से दूर ले जा कर भावनात्मक जुड़ाव और रिश्तों को मजबूत करने का अवसर देता है.

इस के अलावा यह आधुनिक जीवन की भागदौड़ में भी परिवार और प्रियजनों के साथ रहने की भारतीय संस्कृति को दर्शाता है और परिवार में एकता, प्रेम और मानसिक सुकून लाता है. त्योहार परिवार को साथ रखने और आपसी सा झेदारी बढ़ाने का एक संस्कार है यानी यह मधुर संबंधों की एक सौगात है.

त्योहार साथ मनाने के फायदे

तनाव से मुक्ति और मानसिक सुकून: रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव और थकान से दूर रहने और परिवार के साथ समय बिताने का एक अच्छा मौका त्योहार देता है, जिस से तनाव कम होता है और मानसिक सुकून मिलता है. ऐसे समय में लोग शौपिंग कर के न सिर्फ अपनेआप को फ्रैश करते हैं बल्कि मानसिक रूप से भी तनावमुक्त होते हैं.

सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्त्व: हर त्योहार संस्कृति का एक अभिन्न अंग होता हैं जो परिवार को एकजुट करने और भाईचारे को बढ़ाने का काम करता है. लोग त्योहारों पर पुरानी यादों को ताजा करते हैं और उपहारों का आदानप्रदान करते हैं, इसीलिए सभी बेसब्री से त्योहार के मौसम का इंतजार करते हैं.

बड़ेबुजुर्गों से मिलना संभव होता है: त्योहारों पर परिवार के बुजुर्गों के साथ समय बिताना युवाओं को मानसिक सुकून देता है, जो उन्हें पारिवारिक मूल्यों और एकता का महत्त्व बताता है.

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