Family Get Together: आजकल हम सब बहुत बिजी हो गए हैं. सुबह से शाम तक या तो औफिस में काम या घर की टैंशन या बच्चों के स्कूल और ऐक्टिविटी की भागदौड़, ऊपर से ट्रैफिक, मीटिंग, मोबाइल और सोशल मीडिया. इस रेस में हम सब से जरूरी चीज अपने परिवार और रिश्तों को भूलते जा रहे हैं.
एक समय था जब दादीनानी के घर सब भाईबहन इकट्ठा होते थे. चचेरा, ममेरा, फुफेरा, सब रिश्तेदार शामिल होते थे. अब तो हालत यह है कि सालों तक कोई किसी से नहीं मिलता. कजिंस को फेसबुक या इंस्टा पर लाइक करते हैं, लेकिन असल में मिलना कब हुआ था याद भी नहीं.
रिश्ते अब फौरमैलिटी बनते जा रहे हैं
‘‘बूआजी कैसे हैं?’’
‘‘अरे क्या बताऊं, अभी 2 साल से तो मुलाकात ही नहीं हुई.’’
‘‘कब मिलेंगे?’’
‘‘बस देखो बच्चों की पढ़ाई है, तुम्हारे फूफा का औफिस, जल्द ही मिलेंगे डौंट वरी.’’
ऐसी बातें आजकल बहुत आम हैं. एक दौर था जब रिश्तेदारों के बिना त्योहार अधूरे लगते थे. अब अगर भाई की शादी भी होती है तो लोग वीडियो कौल से शामिल होते हैं. सबकुछ बस ‘काम खत्म करो और निकलो’ वाली सोच पर चलने लगा है. रिश्तों में जो मिठास और अपनापन हुआ करता था वह अब सिर्फ फौरमैलिटी बन कर रह गया है.
खून के रिश्तों का कोई मुकाबला नहीं
आजकल लोग सोशल क्लब, गु्रप्स और औनलाइन कम्युनिटी को ही अपने रिश्तों का दायरा मानने लगे हैं. रोटरी, लौयंस या राउंड टेबल जैसे क्लब में जाना बुरा नहीं है लेकिन यह मान लेना कि वहीं आप की दुनिया बस गई है गलतफहमी है.
ये सब रिश्ते समय और स्वार्थ पर टिके होते हैं. जब तक काम है साथ हैं वहीं आप के रिश्तेदार चाहे जैसे भी हों खून या शादी से जुड़े होते हैं और वक्त पड़ने पर सब से पहले वही साथ खड़े मिलते हैं. दोस्ती अपनी जगह है लेकिन परिवार और रिश्तेदारों से जुड़ाव कहीं ज्यादा गहरा होता है. इन से लड़ाई हो सकती है अनबन हो सकती है, लेकिन जब जरूरत पड़े तो भरोसा भी इन्हीं पर होता है. इसलिए सोशल नैटवर्किंग के चक्कर में अपने असली रिश्तों को मत भूलिए. जो रिश्ते बिना बनावटीपन के बने हैं उन्हीं की असली कीमत होती है.
ऐसे में ग्रैंड फैमिली डिनर क्यों जरूरी है
जब सब लोग सालों तक नहीं मिलते तो आपसी रिश्ते कमजोर हो जाते हैं. मनमुटाव हो तो सुलझाने का टाइम नहीं होता. प्यार हो तो जताने का मौका नहीं मिलता. ऐसे में ग्रैंड फैमिली डिनर या लंच एक ऐसा मौका बन सकता है जहां सब एक टेबल पर बैठें, खाना खाएं, और दिल से बातचीत करें.
यह सिर्फ एक ‘खाना’ नहीं होता बल्कि एक नौस्टैल्जिया का फ्लैशबैक भी होता है. जब सब एकसाथ मिलबैठ बचपन की पुरानी यादें ताजा करते हैं, भाईबहन एकदूसरे की खिंचाई करते हैं.
गुप्ता परिवार की परंपरा
दिल्ली में रहने वाले गुप्ता परिवार के 4 भाईबहन अलगअलग शहरों में रहते हैं. एक अमेरिका में, एक पुणे में, एक गुरुग्राम में और चौथी बहन दिल्ली में. पहले हर त्योहार पर सब साथ होते थे. लेकिन पिछले 6 सालों में वे साथ एक बार भी पूरे नहीं मिल पाए.
तब सब से बड़ी बहन सीमा ने एक आइडिया दिया कि हर साल जून में एक फैमिली गैटटुगैदर करेंगे. अब हर साल सब 1 हफ्ते के लिए अपनेअपने काम से छुट्टी ले कर मिलते हैं.
कभी मसूरी, कभी गोवा, कभी घर पर. जहां सब 15-16 लोग एकसाथ बैठते हैं, खाना खाते हैं, पुराने किस्से सुनते हैं और ढेरों हंसीठिठोली करते हैं.
सीमा कहती हैं, ‘‘यही एक वक्त होता है जब हम सब फिर से छोटे बच्चे बन जाते हैं.’’
यह सिर्फ मिलना नहीं हीलिंग भी है
जब हम किसी अपने के पास बैठते हैं तो कई सालों की थकान उतर जाती है. कोई पूछे कि कैसा चल रहा है? तो लगता है कि कोई वाकई जानना चाहता है.
फैमिली डिनर में ऐसी बातें होती हैं
कौन क्या कर रहा है, कौन किस से नाराज है, कौन किसे मिस करता है और फिर इन सब के बीच हंसी, रोना, मजाक और ढेर सारा प्यार भी होता है. यह एक इमोशनल डिटौक्स होता है.
जोर अनबन खत्म कराने पर नहीं साथ बैठने पर हो
परिवार में अगर 2 लोगों के बीच अनबन है तो इस का मतलब यह नहीं कि उन्हें पारिवारिक मिलन से दूर रखा जाए. हमें यह समझना चाहिए कि किसी की सब के साथ नहीं बन सकती, यह बिल्कुल सामान्य बात है. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि किसी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाए.
परिवार में कुछ ऐसे लोग तो जरूर होते हैं, जिन से मिलने की खुशी होती है, जिन से बात कर के दिल हलका लगता है.
पहले के समय में जब बच्चों की संख्या ज्यादा होती थी और शादियां अकसर जल्दी होती थीं तो न चाहते हुए भी सभी का मिलना हो ही जाता था. ऐसे मौकों पर दिल की दूरियां थोड़ी कम हो जाती थीं.
जरूरी नहीं कि जब भी कोई साथ आए, उस पर अनबन खत्म करने का दबाव बनाया जाए. बस इतना काफी है कि सब एक जगह हों, बिना किसी उम्मीद या जबरदस्ती के. यही धीरेधीरे रिश्तों को ठीक करने की शुरुआत बन सकता है.
बच्चों के लिए भी सीख
आजकल के बच्चे अपने कजिंस को ठीक से जानते भी नहीं. उन्हें सिर्फ स्कूल, मोबाइल गेम और नैटफ्लिक्स की दुनिया दिखती है. लेकिन जब वे दादी के हाथ का खाना, मामा के जोक्स, चाची की नाराजगी और बूआ के लाड से रूबरू होते हैं तो उन्हें असली फैमिली कनैक्शन का मतलब समझ में आता है.
नौकरी, पढ़ाई, या शादी के बाद लोग अलगअलग शहरों या देशों में बस जाते हैं. इस दूरी ने हमारे रिश्तों में भी एक तरह की खाई बना दी है. बच्चे अपने दादादादी की कहानियों से अनजान रहते हैं, और बड़ों को नई पीढ़ी की सोच समझने का मौका ही नहीं मिलता.
एक तारीख तय कीजिए
कोई वीकैंड या छुट्टी. जरूरी नहीं होटल में हो, घर पर ही एक बड़ा खाना रखिए.
क्या परोसें ग्रैंड फैमिली डिनर में
– दादी के टाइम के स्पैशल पकवान जैसे आलू की पूरी, कढ़ी, पकौड़े, खीर.
– हर सदस्य की पसंद की एक आइटम: कोई बहन चाइनीज पसंद करती है तो एक कौर्न मंचूरियन भी रख दे.
– बच्चों के लिए कुछ स्पेशल: मैकरोनी, पिज्जा या आइसक्रीम.
यह खाना सिर्फ पेट के लिए नहीं दिल के लिए होता है क्योंकि लंच या डिनर गैदरिंग ही एक ऐसा औप्शन है जब सब एकसाथ बिना किसी अवसर के इकट्ठा हो सकते हैं.
Family Get Together