Mobile Addiction: जब से लोगों ने मोबाइल को एंटरटेनमैंट के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया है, उन्हें इस की लत लग गई है. स्मार्टफोन की यह लत कब हमारी लाइफ का अहम पार्ट बन जाती है हमें पता भी नहीं चलता. दिन में 4 घंटे मोबाइल पर चिपके रहना लाइफस्टाइल का हिस्सा बन गया है.

स्मार्टफोन यूज करना अच्छा तो बहुत लगता है लेकिन इस की अच्छीखासी कीमत हमें अपनी सेहत के जरीए चुकानी पड़ती है. इस बारे में बता रही हैं जनरल फिजिशन डाक्टर रिया अग्रवाल :

रील्स देखनेसुनने के लिए घंटों ईयरफोन का यूज खतरनाक है

कहीं आप को भी तो रातों में जाग कर फोन पर रील्स देखनेसुनने की आदत तो नहीं? अब रात में मोबाइल स्पीकर पर भी नहीं कर सकते इसलिए कहीं आप भी तो इस के लिए ईयरफोन का यूज तो नहीं कर रहे. अगर ऐसा कर रहे हैं तो हम आप को बता दें कि हेडफोन या ईयरफोन लगातार लगाने से कानों में हीट पैदा होती है, जिस से ईयर इन्फैक्शन का खतरा बढ़ सकता है. ज्यादा समय तक ईयरफोन लगाने से कानों की नसों पर भी दबाव पड़ता है. उन में सूजन भी आ सकती है. कानों में वाइब्रेशन से हियरिंग सेल्स भी प्रभावित होती है. ईयरफोन सुनने की क्षमता ही नहीं सिरदर्द को भी बढ़ा सकता है. ईयर स्पेशलिस्ट का कहना है कि है कि ईयरफोन की 100 डीबी तक आवाज भी कानों को डैमेज कर सकती है.

टेक्स्ट नेक सिंड्रोम

टेक नेक वह स्थिति है, जब व्यक्ति लंबे समय तक मोबाइल या लैपटौप का उपयोग करते हुए गरदन झुका कर बैठता है. सामान्य स्थिति में सिर का वजन 4-5 किलोग्राम होता है, लेकिन जैसे ही हम सिर को आगे की ओर झुकाते हैं, यह वजन कई गुना बढ़ कर गरदन और रीढ़ पर अतिरिक्त दबाव डालता है. सिर्फ यही नहीं बल्कि घंटों सिर झुकाए रहने से स्पाइनल कौर्ड की डिस्क में खराबी आने लगती है, जिस से कंधा जाम हो जाता है और हाथ घुमाने, उठाने में तकलीफ हो जाती है.

गरदन झुका कर बैठने से सर्वाइकल डिस्क पर लगातार दबाव पड़ता है. यह स्थिति डिस्क बल्ज या हर्निएशन का कारण बन सकती है. लंबे समय तक स्क्रीन पर झुक कर बैठने से गरदन की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं, जिस से अकड़न और दर्द होता है. गरदन पर तनाव बढ़ने से सिरदर्द, आंखों में थकान और हाथों में झनझनाहट या कमजोरी भी महसूस हो सकती है.

डिजिटल आई स्ट्रेन या कंप्यूटर विजन सिंड्रोम की प्रौब्लम हो सकती है

मोबाइल ऐडिक्शन से आंखों में थकान, सूखापन, सिरदर्द, धुंधली दृष्टि, आंखों में जलन और लालिमा जैसी दिक्कतें हो सकती हैं, जिसे डिजिटल आई स्ट्रेन या कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं. इस के मुख्य कारण स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट और कम पलकें झपकाना हैं, जिस से आंखों में तनाव आता है.

एक ताजा रिसर्च में खुलासा हुआ है कि रोजाना सिर्फ 1 घंटे मोबाइल, टैबलेट या स्मार्टफोन जैसी डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल करने से मायोपिया (नजदीक की चीजें साफ दिखना, दूर की चीजें धुंधली लगना) का खतरा 21% तक बढ़ सकता है. सामान्यतया 1 मिनट में 12 से 14 बार पलक झपकनी चाहिए, लेकिन लगातार मोबाइल स्क्रीन पर नजरें गड़ाने से यह कम हो जाती है, जिस से आंखों की नमी खत्म होती है और जलन, खुजली व लालिमा जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. आंखों पर पड़ने वाले तनाव के कारण चीजें धुंधली दिखाई देने लग सकती हैं.

डिजिटल डिमेंशिया तो नहीं हो गया आप को

लगातार मोबाइल को देखना अपनेआप में एक गंभीर बीमारी है. इस कंडीशन में दिमाग में ब्लड सप्लाई कम हो जाती है जिस से सेल्स को नुकसान पहुंचता है और वे डैमेज होने लगते हैं. इस से आप चीजें भूलने लगते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फोन पर घंटो स्क्रोल करने पर ढेरों फोटोज, एप्स, वीडियोज सामने आते हैं जिस से आप के दिमाग के लिए सबकुछ याद रखना मुश्किल हो जाता है. परिणामस्वरूप आप की याद्दाश्त, कंसंट्रेशन और सीखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है.

अगर आप का बच्चा याद किया हुआ भूल जाए या फिर किसी चीज पर फोकस न कर पाए या फिर उस की परफौर्मेंस घटने लगे, तो उसे डांटने से कुछ नहीं होगा बल्कि आप समझ लीजिए कि वह डिजिटल डिमेंशिया से जूझ रहा है.

डिजिटल डिमेंशिया सिर्फ बच्चों पर ही नहीं बल्कि बड़ों पर भी अटैक कर रहा है.

ब्रिटेन में हुई स्टडी के मुताबिक, दिन में 4 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम से वैस्कुलर डिमेंशिया और अल्जाइमर का जोखिम बढ़ जाता है. सिर्फ यही नहीं बल्कि इस से न्यूरोडीजैनेरेशन का रिस्क भी हो जाता है.

दरअसल, 18-25 साल की उम्र में ज्यादा स्क्रीन पर देखते रहने से  दिमाग की सब से बाहरी परत सेरेब्रल कौर्टेक्स पतला हो सकता है. यही परत मेमोरी, कौग्निटिव फंक्शंस को बेहतर बनाने में मदद करता है. जब यह पतली होती जाती है तो समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं.

टेक्स्टिंग टेंडनाइटिस भी हो सकता है

घंटों मोबाइल चलाने से कलाई, हाथ और उंगलियों में दर्द और अकड़न महसूस हो सकती है, जिसे टेक्स्टिंग टेंडनाइटिस कहा जाता है. घंटों तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल शारीरिक दर्द और थकान को बढ़ा सकता है. यह स्थिति लंबे समय तक रह सकती है और यदि उचित उपचार न लिया जाए तो यह स्थायी समस्या बन सकती है. जैसेकि मोबाइल चलाने में लगातार अंगूठे का इस्तेमाल करने से कापल टर्नल सिंड्रोम भी हो सकता है जिस में अंगूठे में इतना दर्द रहने लगता है कि आप उसे हिला भी नहीं पाते, काम करना तो दूर की बात है.

दरअसल, लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से कलाई की मेडियन नस पर दबाव पड़ सकता है, जिस की वजह से दर्द, झनझनाहट, सुन्नपन और कमजोरी जैसे लक्षण दिखते हैं.

सिर्फ यही नहीं बल्कि ज्यादा स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से टेंडन में सूजन हो सकती है, जिस में कलाई में दर्द और स्टिफनैस भी होती है, जिस से हाथ हिलाना कठिन हो जाता है, जिसे टेंडिनाइटिस कहते हैं. बारबार उंगली का इस्तेमाल करने से टेंडन डिस्टल पाम के पास चिपक सकती है, जिस से डिसकंफर्ट होने के साथ ही आप का मूवमैंट भी प्रभावित हो सकता है. इसे ट्रिगर फिंगर भी कहते हैं. यह सब दिक्कतें मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से होती हैं.

मोबाइल ऐडिक्शन से ओबेसिटी

मोबाइल ऐडिक्शन से ओबेसिटी हो सकती है क्योंकि यह शारीरिक गतिविधियों को कम करती है, नींद की कमी पैदा करती है और अस्वस्थ खानपान की आदतों को बढ़ावा देती है. लोग घंटों फोन पर बैठे रहते हैं, जिस से बैठने का जीवनशैली बढ़ती है और शारीरिक गतिविधियां जैसे व्यायाम या खेलकूद छूट जाते हैं, जो वजन बढ़ने का एक प्रमुख कारण है.

मोबाइल देखने के चलते हम देर रात तक जागते हैं और इस से नींद की कमी हो जाती है और भूख को नियंत्रित करने वाले हार्मोन प्रभावित होते हैं, जिस से हम अनहैल्दी चीजों जैसे चिप्स, नमकीन, बिस्कुट जैसे क्रेविंग बढ़ती है और हमें पता भी नहीं चलता कि हम कितना और कब खा रहे हैं. यह मोटापे का कारण बन सकता है.

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