Cult Movies: कल्ट फिल्म उन लोगों को पसंद आती है, जो फिल्म को अलग या असामान्य पाते हैं और जिन के पास फिल्म के प्रति एक समर्पित प्रशंसक आधार होता है, जो इसे बारबार देखते हैं और इस में भाग लेते हैं. ये फिल्में अकसर शुरुआत में मुख्यधारा में सफल नहीं होतीं या अच्छी प्रतिक्रिया नहीं पातीं, लेकिन समय के साथ एक खास पंथ वाले दर्शक वर्ग प्राप्त कर लेती हैं.

बौलीवुड कल्ट फिल्मों को पसंद करता है, खासकर उन फिल्मों को जिन्हें समय के साथ समर्पित प्रशंसकों का समूह मिला है. कल्ट फिल्में ऐसी होती हैं, जो मुख्यधारा से हट कर होती हैं और जिन में एक खास तरह की लोकप्रियता होती है. इन में कुछ फिल्में अकसर कल्ट क्लासिक्स मानी जाती हैं, मसलन फिल्म ‘शोले’, को कल्ट फिल्म माना जाता है, क्योंकि समय के साथ इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर बहुत बड़ी कमाई की और कल्ट क्लासिक फिल्म कहलाई.

ऐसे समझें

असल में कुछ फिल्मों की स्टोरीलाइन को आप सहज रूप से समझ जाते हैं. मोबाइल चलाते हुए या घर का कामकाज करते हुए इन फिल्मों को देख लेते हैं. ये फिल्में ऐसी होती हैं, जिन का एकएक सीन, एकएक डायलाग रोमांचित कर देता है. ऐसी फिल्मों को मनमस्तिष्क पर जोर दे कर देखना पड़ता है. इन फिल्मों के कैरेक्टर थिएटर्स से निकलने के बाद भी आप का पीछा करते हैं और आप के मनमस्तिष्क में लंबे समय तक बने रहते हैं.

अलग और दिल को छूने वाली कहानी

इस बारे में फिल्म लेखक और गीतकार स्वानंद किरकिरे कहते हैं कि फिल्म तभी चलती है, जब उस की कहानी अलग हो और दर्शकों के दिल को छू जाए. अगर ऐसा नहीं हो रहा है, तो आप कोई भी फिल्म बना लें, वह नहीं चलती. अभी भूत की स्टोरी, 1-2 लवस्टोरी और कंटारा जैसी फिल्में चल रही हैं, क्योंकि ये फिल्में बाकी फिल्मों की कहानी से अलग हैं. इन में कहानीकार और फिल्ममेकर को यह समझना मुश्किल होता है कि कौन सी फिल्म चलेगी कौन सी नहीं. एक पैमाना बनाना मुश्किल होता है.

दर्शकों का जुङना जरूरी

सिनेमा भावनाओं का खेल है और उस के साथ दर्शकों का जुड़ना जरूरी होता है. हर फिल्म का अपना एक औडियंस होता है. मसलन, रोज पालक पनीर किसी को भी पसंद नहीं आती. कभी चटनी, कभी राजशाही डिश लोग खाते हैं. फिल्मों के साथ भी यही होता है.

कम अटैंशन स्पैन

स्वानंद आगे कहते हैं कि नई जैनरेशन की चौइस बहुत बदली है और इस की वजह कुछ हद तक ओटीटी है. देखा जाए तो रील देखने की वजह से नई जैनरेशन के टैस्ट में भी काफी बदलाव आया है. कमाल की फिल्म अगर नहीं होगी, तो फिल्म अपने यूथ को होल्ड नहीं करवा सकती, क्योंकि ये लोग रील के आदी हो चुके हैं. फिल्म देखने के दौरान भी अगर फिल्म बोरिंग है, तो रील देखने लग जाते हैं. अटैंशन स्पैन यूथ में कम होता जा रहा है, 1 मिनट की रील भी वे पूरी नहीं देखते. वह भी अगर उन्हें अच्छी नहीं लगी, तो वे आगे बढ़ जाते हैं. मैं तो वही लिखता हूं जो मुझे पसंद आता है.

दरअसल, इन फिल्मों के प्रशंसक इन के प्रति बेहद समर्पित होते हैं. वे अकसर एक निश्चित सब कल्चर का हिस्सा बन जाते हैं. दर्शक इन फिल्मों को बारबार देखते हैं और उन के संवादों को दोहराते हैं. कुछ कल्ट फिल्मों की स्क्रीनिंग में दर्शक एक खास तरीके से भाग लेते हैं, जैसेकि वेशभूषा पहन कर या संवाद दोहरा कर वे इसे ऐंजौय करते हैं.

खराब फिल्में भी हो सकती हैं कल्ट

कई बार कल्ट फिल्में अकसर अपरंपरागत या मुख्यधारा से हट कर होती हैं. वे अजीब, विवादास्पद या दार्शनिक हो सकती हैं. दर्शक इन फिल्मों को जानबूझ कर देखते हैं और पता करते हैं कि फिल्म कितनी खराब है.

वर्ष 2013 में लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में 625 स्क्रिप्ट लिखने का रिकौर्ड दर्ज करने वाले फिल्म लेखक राज शांडिल्य कहते हैं कि कल्ट फिल्म कोई सोचसमझ कर बनाई नहीं जाती, समय के साथ हो जाती है.

किसी भी फिल्म के लिए अच्छी कहानी, स्क्रिप्ट, डाइरैक्टर, संगीत, परफौर्म करने वाले कलाकार आदि सभी का योगदान होता है. ऐसे में दर्शकों के लिए भी कल्ट फिल्म का मापदंड अलगअलग होती है, जैसेकि कुछ के लिए फिल्म ‘शोले’ कल्ट है, तो कुछ के लिए ‘दीवार’ या ‘खोसला का घोंसला’ कल्ट है.

कल्ट या डिफिकल्ट

असल में फिल्म 2 तरह की होती हैं, एक कल्ट और दूसरी डिफिकल्ट. डिफिकल्ट फिल्में कल्ट बनने से रह जाती हैं. आइडियल फिल्म कोई नहीं होती, ऐसे में आज की जैनरेशन की एक मूड होती है. उन्हें अलग तरीके की फिल्म पसंद आती है. फिल्म ‘सैयारा’ ऐसी ही थी. इसे अधिक लोगों ने देखा और सालों बाद यह भी कल्ट बन सकती है.

समय के साथ बनती हैं फिल्में कल्ट

इस के आगे राज कहते हैं कि मैं ने जो पहली फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ लिखी वह अलग थी. दूसरी बनाई ‘जनहित में जारी’ वह एक अलग कौंसेप्ट था. विकी विद्या का वह वाला वीडियो, जिसे परिवार वालों ने पसंद किया, मैं हमेशा अलग कौंसेप्ट पर कहानी लिखने की कोशिश करता हूं. फिल्म ‘गदर’ और ‘लगान’ जब एकसाथ आई और दोनों सुपरहिट हुई, ऐसी फिल्म जिस के दर्शक थोड़े समय तक बने रहने पर लगता है कि यह फिल्म कल्ट है, क्योंकि ऐसी फिल्में करीब 10 साल तक नहीं आती.

वे कहते हैं कि बहुत सारी ऐसी भी फिल्में हैं, जो थिएटर हौल में नहीं चलतीं, लेकिन समय के साथ कल्ट हो जाती हैं, क्योंकि धीरेधीरे लोग ऐसी फिल्मों को पसंद करने लगते हैं. अभी मैं ने एक कौमेडी फिल्म लिखा है, उसे आगे लाने वाला हूं, जिस में मनोरंजन के साथ एक मैसेज रहेगा. मुझे कल्ट फिल्म ‘कथा’, ‘चुपके चुपके’ बहुत पसंद है. मैं जेन जी को रिस्पौंसबिलटी वाली फिल्में दिखाना चाहता हूं, ताकि वे परिवार, काम, दोस्त, देश, समाज आदि के प्रति जिम्मेदार बनें. सिनेमा के द्वारा ही इसे हम दिखा सकते हैं.

सालों से रहा प्रचलन

वैसे तो कल्ट फिल्मों का प्रचलन बौलीवुड में सालों से रहा है, लेकिन पिछले 3 साल के अंतराल में बौलीवुड में ऐसी ही 4 फिल्में आईं, जो बौक्स औफिस पर तो फ्लौप रहीं लेकिन आज इन की गिनती कल्ट फिल्मों में होने लगी हैं. ये फिल्में थीं ‘कंपनी’, ‘पिंजर’, ‘मकबूल’ और ‘सहर’.

कुछ कल्ट फिल्में जिन्हें पहले दर्शकों ने नकारा मगर बाद में पसंद की जाने लगीं :

कंपनी : 12 अप्रैल, 2002 में आई रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘कंपनी’ थी, जो मुंबई अंडरवर्ल्ड पर बनी थी. यह फिल्म आज कल्ट मूवी का स्टेटस ले चुकी है. इस फिल्म की कहानी, किरदार, घटनाएं, लोकेशन बहुत ही रियलिस्टिक थी. इस फिल्म के 2000 के दशक की बैस्ट मूवी में से एक माना जाता है. रामगोपाल वर्मा ने वर्ष 1998 में ‘सत्या’ बनाई. भीखू म्हात्रे का किरदार इतना पौपुलर हुआ था कि मनोज बाजपेयी की पहचान जुड़ गई.

‘सत्या’ के बाद रामगोपाल वर्मा ने मुंबई अंडरवर्ल्ड पर और काम किया. इस दौरान उन्हें मुंबई अंडरवर्ल्ड कैसे काम करता है, कैसे फिल्मों में पैसा लगाता है, कैसे सुपारी ली जाती है, इन सब के बारे में जानकारी जुटाई. फिर एक प्लौट तैयार किया.

अजय देवगन, विवेक ओबेराय, मनीषा कोइराला, अंतरामाली, मलयालम सिनेमा के दिग्गज स्टार मोहनलाल, सीमा विश्वास और आकाश खुराना जैसे सितारों से सजी ‘कंपनी’ फिल्म की कहानी जयदीप साहनी ने लिखी थी. फिल्म की कहानी काफी हद तक अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन से इंस्पायर थी, जो 90 के दशक में मुंबई पर राज करते थे. दाऊद के मुंबई से विदेश भागने के बाद छोटा राजन मुंबई का बिजनैस संभालने लगा. बाद में दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन बन गए.

दाऊद ने छोटा राजन पर 2000 में बैंकाक में जानलेवा हमला भी करवाया था. दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन के बीच दोस्ती-दुश्मनी की यह कहानी प्रोड्यूसर हनीफ कड़ावाला ने रामगोपाल वर्मा को बताई थी.

कड़ावाला को साल 1993 में मुंबई बम धमाकों के केस में 5 साल की सजा सुनाई गई थी. वर्ष 2001 में हनीफ कड़ावाला की हत्या उस के औफिस में कर दी गई थी, जिस का आरोप छोटा राजन पर लगा था. फिल्म में इसी दुश्मनी को अजय देवगन और विवेक ओबेराय के बीच दिखाया गया था.

पिंजर : 24 अक्तूबर, 2003 को एक फिल्म बौक्स औफिस पर आई थी, जिस में मनोज बाजपेयी, उर्मिला मांतोडकर, संजय सूरी, ईशा कोप्पिकर, फरीदा जलाल, संदाली सिन्हा, प्रियांशु चटर्जी और कुलभूषण खरबंदा अहम भूमिकाओं में थे. फिल्म थी ‘पिंजर’. यह एक हिस्टोरिकल ड्रामा फिल्म थी, जिसे चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने डाइरैक्ट किया था. भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी को फिल्म में दिखाया गया था. फिल्म में किसी एक समुदाय को हीरो-विलेन नहीं दिखाया गया. विभाजन के समय महिलाओं की स्थिति को फिल्म बखूबी दिखाती है. म्यूजिक उत्तम सिंह का था. गीत गुलजार ने लिखे थे.

यह फिल्म मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के उपन्यास ‘पिंजर’ पर बेस्ड थी. फिल्म का बजट ₹12 करोड़ के करीब का था. फिल्म ने करीब ₹6 करोड़ का वर्ल्डवाइड कलैक्शन किया था. यह एक डिजास्टर फिल्म साबित हुई थी. यह फिल्म आज कल्ट मूवी में शामिल है. फिल्म को 3 अवार्ड में एक बैस्ट फीचर फिल्म का अवार्ड भी मिला था. मनोज बाजपेयी को नैशनल फिल्म अवार्ड मिला था.

‘पिंजर’ फिल्म में मनोज बाजपेयी की ऐक्टिंग देख कर ही यश चोपड़ा ने उन्हें ‘वीरजारा’ में रजा शराजी का रोल दिया था.

मकबूल : कल्ट फिल्मों की कड़ी में तीसरी मूवी का नाम है ‘मकबूल’, जिसे बौलीवुड की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है. 30 जनवरी, 2004 को रिलीज हुई इस फिल्म का स्क्रीनप्ले, डायलाग, ऐक्टिंग में जबरदस्त परफैक्शन था.

विशाल भारद्वाज के निर्देश में बनी यह फिल्म बौक्स औफिस पर औसत ही रही थी, लेकिन इस की गिनती आज कल्ट मूवी में होती है. पंकज कपूर, नसीरुद्दीन शाह, इरफान खान, ओम पुरी, पीयूष मिश्रा और तब्बू ने लाजवाब ऐक्टिंग से दर्शकों को मोहित किया था. मकबूल ही वह फिल्म थी, जिस ने इरफान खान को बड़े परदे पर पहचान दिलाई. फिल्म शेक्सपियर के उपन्यास ‘मैकबेथ’ पर बेस्ड थी लेकिन कहानी को मुंबई के अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि में दिखाया गया था.

सहर : 29 जुलाई, 2005 में कबीर कौशिक के निर्देशन में पावरफुल मूवी ‘सहर’ ने सिनेमाघरों में दस्तक दी थी. इस फिल्म की कहानी यूपी के गोरखपुर जिले के मामखोर गांव के दुर्दांत गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की लाइफ से इंस्पायर्ड थी. यह ऐसी फिल्म है, जिस में रील और रियल सिनेमा का अंतर ही खत्म हो गया था. हर सीन ऐसा लगता है, जैसे रियल हो. फिल्म को अश्विन पटेल ने प्रोड्यूस किया था. फिल्म का बजट करीब ₹4 करोड़ का था. फिल्म ने करीब ₹2 करोड़ का कलैक्शन किया था और यह एक फ्लौप फिल्म साबित हुई थी. जुलाई, 2005 में जब फिल्म रिलीज हुई तो मुंबई शहर भीषण बाढ़ की चपेट में था.

बिजनैस कैपिटल मुंबई में बारिश ने तबाही मचा दी थी. ऐसे में दर्शक फिल्म को देखने ही नहीं जा पाए.

‘सहर’ फिल्म में अरशद वारसी, पंकज कपूर, महिमा चौधरी, सुशांत सिंह, राजेंद्र गुप्ता जैसे दिग्गज दिग्गज कलाकार रहे और सब से ज्यादा उत्तर भारत में पसंद किया गया.

लगभग 20 साल पहले रिलीज हुई इस फिल्म को देख कर लगता ही नहीं कि यह मूवी इतनी पुरानी है. अरशद वारसी ने लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार का रोल निभाया था, जिन्होंने श्रीप्रकाश शुक्ला का खात्मा करने के लिए यूपी एसआईटी का गठन तत्कालीन सीएम से स्पैशल परमिशन ले कर करवाया था. इस फिल्म को उस समय लोगों ने रिजैक्ट कर दिया था, लेकिन समय के साथ इसे पसंद किया जाने लगा और आज यह फिल्म कल्ट फिल्म बन चुकी है.

इस प्रकार कल्ट फिल्म की कोई परिभाषा नहीं होती. समय के साथ, जिस फिल्म को दर्शक अधिक पसंद करने लगते हैं, वही फिल्म सालों बाद कल्ट बन जाती है और हर जैनरेशन के दर्शक उसे देखना पसंद करने लगते हैं.

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