उन्होंने बताया कि उन का इलाज बेहद इंटेंस था. नीओ एडजुवेंट कीमोथेरैपी के बाद मौडिफाइड रैडिकल मास्टेक्टौमी (एमआरएम) और लैटिसिमस डौर्सी फ्लैप (एलडी फ्लैप) रीकंस्ट्रक्शन सर्जरी हुई. उस के बाद रैडिएशन थेरैपी दी गई. उन्होंने कुल 19 राउंड कीमोथेरैपी झेली, जिस में उन का शरीर थक कर चूर हो गया. लेकिन इस के बाद एक दुर्लभ और दर्दनाक स्थिति विकसित हो गई थी-कीमो इंड्यूस्ड ग्लैंजमैन थ्रोंबेस्थीनिया (टाइप 2), एक ब्लीडिंग डिसऔर्डर, जिस से कीमो रोकनी पड़ी.
इस झटके के बावजूद रोजलिन का हौसला नहीं टूटा और आज वह इन सभी से उबर चुकी हैं और नौर्मल जिंदगी जी रही हैं. इन सभी से गुजरने में उन्हें परिवार और दोस्तों का सहयोग मिला, जिस से वे अंदर से स्ट्रौंग हो पाईं और इस स्थिति को झेल पाईं.
यह सही है कि कैंसर का इलाज किसी भी व्यक्ति के जीवन को अचानक बदल देता है, लेकिन स्त्रियों के लिए यह बदलाव और भी गहरा होता है. वे अकसर एकसाथ कई भूमिकाएं मसलन केयर गिवर, पेशेवर, साथी और मां की होती है. ऐसे में रोजमर्रा की जिंदगी से अस्पताल के चक्कर, चिकित्सकीय निर्णय और शारीरिक बदलावों की ओर बढ़ना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है.
इस बारे में बैंगलुरु के फोर्टिस अस्पताल की क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट दिव्या रेड्डी कहती हैं कि कैंसर की चिकित्सा मुख्य रूप से शारीरिक बीमारी पर केंद्रित होता है, लेकिन कैंसर उपचार के दौरान और उस के बाद मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि जब एक महिला भावनात्मक रूप से खुद को स्ट्रौंग महसूस करती है, तो वह इलाज का सामना अधिक मजबूती और आशा के साथ कर पाती है.
कैंसर थेरैपी का इमोशनल इफैक्ट
कैंसर का इलाज शारीरिक रूप से कठिन होता है, लेकिन यह मानसिक रूप से भी गहरी छाप छोड़ता है. महिलाएं अकसर डर, चिंता, उदासी और कभीकभी अकेलेपन जैसी भावनाओं का अनुभव करती हैं.
शारीरिक रूप में हुए बदलाव जैसे बालों का झड़ना या सर्जरी के निशान आदि उन के आत्मविश्वास और पहचान की भावना को प्रभावित करते हैं.
अपराधबोध से ग्रस्त
कैंसर के बाद अधिकतर महिलाएं अपराधबोध महसूस करती हैं कि वे अब परिवार का पहले जैसा ध्यान नहीं रख पा रही हैं. ये सभी भावनाएं बिलकुल स्वाभाविक हैं. इन का होना कमजोरी नहीं, बल्कि एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है. इन भावनाओं को जल्दी पहचानना और उन के बारे में बात करना लंबे समय तक मानसिक तनाव से बचा सकता है और स्वास्थ्य की जल्दी रिकवरी में मदद करता है, जैसा अभिनेत्री रोजलिन खान के साथ हुआ.
काउंसलिंग की भूमिका
इस समय काउंसलिंग एक अहम भूमिका निभाती है. ऐक्सपर्ट काउंसलिंग में महिलाओं को अपनी भावनाएं खुल कर व्यक्त करने, स्थिति को स्वीकारने और स्वस्थ मुकाबला करने के तरीके सीखने में मदद करता है, जो इस अवस्था में बहुत जरूरी होता है. माइंड फुलनैस, गाइडेड ब्रीदिंग, रिलैक्सेशन थेरैपी और कौग्निटिव बिहेवियरल थेरैपी (सीबीटी) जैसी तकनीकें मन को शांत करने और चिंता को कम करने में सहायक होती हैं.
काउंसलिंग महिलाओं को शारीरिक बदलावों को स्वीकारते हुए आत्मसम्मान फिर से प्राप्त करने और दृढ़ता विकसित करने की दिशा में प्रेरित करती है.
परिवार और दोस्तों की भूमिका अहम
इस समय परिवार का सहयोग बहुत जरूरी होता है. अपनापन भरे शब्द, धैर्यपूर्वक सुनना और रोजमर्रा के कामों में मदद करना भावनात्मक बोझ को हलका कर सकता है. सपोर्ट ग्रुप्स, जहां स्त्रियां एकदूसरे के साथ अपने अनुभव साझा कर सकती हैं उन्हें प्रेरणा, आश्वासन और अपनापन का एहसास दिलाती हैं. यहां यह समझना जरूरी होता है कि आप अकेली नहीं हैं और यही सोच आत्मबल को मजबूत करता है.
स्वयं की देखभाल है जरूरी
काउंसलर आगे कहती हैं कि कैंसर उपचार के दौरान सैल्फ केयर कोई विलासिता नहीं, बल्कि आवश्यकता है. कुछ सुझाव निम्न हैं :
-हलकी सैर, ऐक्सरसाइज, किताबें पढ़ना, संगीत सुनना या दोस्तों के साथ समय बिताना मन को हलका कर सकता है.
-अपने विचारों को लिखना या किसी रचनात्मक कार्य में मन लगाना तनाव कम करने के अच्छे तरीके हैं.
-संतुलित आहार, पर्याप्त पानी और नींद का ध्यान रखना मानसिक स्थिरता के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.
-यदि किसी महिला को लंबे समय तक उदासी, चिड़चिड़ापन, नींद न आना या निराशा महसूस हो रही हो, तो उसे बिना झिझक पेशेवर मदद लेने की जरूरत होती है. जल्दी मनोवैज्ञानिक सहायता लेना मानसिक स्वास्थ्य सुधार का पहला कदम होता है.
-सब से जरूरी बात है कि किसी से मदद मांगने में संकोच न करें. यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत की निशानी है.
-कैंसर एक चिकित्सीय यात्रा है और भावनात्मक उपचार इस यात्रा का अहम हिस्सा है.
इस प्रकार उचित देखभाल, सहानुभूति और सही मार्गदर्शन के साथ स्त्रियां इस कठिन दौर से साहस, आशा और आत्मविश्वास के साथ गुजर सकती हैं और एक खुशहाल जिंदगी जी सकती हैं.
