Hindi Drama Story: कंगना ने जो अपने कानों से सुना उस का उस पर विश्वास करने का मन नहीं कर रहा था. क्या ये उस के अपने बच्चे हैं, उस की अपनी बेटियां हैं जो उसे खलनायिका मानती हैं? क्या वह वास्तव में खलनायिका है?

जब कंगना के पति आदेश बिजनैस में डूब रहे थे तब कंगना ने ही दौड़भाग कर के आदेश के बिजनैस को संभाला था. हां यह सही है इस के लिए कंगना को सक्षम की थोड़ीबहुत जी हुजूरी करनी पड़ी थी. मगर क्या करती वह, अपने परिवार को हारते हुए नहीं देख सकती थी. कंगना को अपनी बेटियों को भी वही जिंदगी नहीं देनी थी जिसे कंगना खुद अब तक जीती हुई आई है.

एक ही तो जिंदगी है. कंगना उसे खुल कर जीना चाहती थी और अगर उस के लिए थोड़ाबहुत एडजस्टमैंट करना पड़े तो कंगना को इस में कोई गुरेज नहीं था.

कंगना एक निम्नवर्ग के पंजाबी परिवार से आती थी. पिता की छोटीमोटी नौकरी थी जिस से बड़ी मुश्किल से गुजर होती थी. उन दिनों कंप्यूटर का नयानया आगाज हुआ था. कंगना ने भी एक डिप्लोमा कोर्स कर लिया था. जल्द ही एक स्थानीय कंपनी में कंगना की नौकरी लग गई थी. नौकरी के 1 हफ्ते के भीतर ही कंगना को एक बात सम झ आ गई कि थोड़ीबहुत अदाओं और कुछ हंसीमजाक कर के दफ्तर में आराम से काम किया जा सकता है.

खूबसूरती की थोड़ी सी जमापूंजी से ही कंगना ने अपनी अदाओं के

जरीए एक महल खड़ा कर लिया था.

जल्द ही कंगना दफ्तर की धड़कन बन गई थी.हर वर्ग और उम्र का पुरुष कंगना का साथ पाने को लालायित रहता था. यह 90 के दशक के शुरुआती सालों की बात है. उन दिनों डेटिंग कल्चर का रिवाज नहीं था मगर चोरीछिपे कंगना ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया. जल्द ही कंगना पूरे महल्ले में चर्चा का विषय बन गई थी. हर बार की मुलाकात के बाद कंगना के पास एक न एक उपहार अवश्य रहता था. एक क्लर्क की बेटी के नित नए ठाट को देख कर लोग हैरान थे. 1 साल के भीतर ही घर की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी तो कंगना के मातापिता ने सबकुछ जान कर भी अपनी आंखें बंद कर ली थीं. कंगना दफ्तर के साथसाथ आसपास भी चालू, आइटम के नाम से जानी जाती थी.

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