स्वास्थ्य में सुधार और लंबी आयु तक जीना अब नई समस्याएं पैदा कर रहा है. घर में पला बेटा बड़ा होने के बाद विवाह और बच्चों के बाद घर में और ज्यादा जगह चाहता है, तो मातापिता जिन्होंने अपने पैसे से मकान बनाया हो अपने क्षेत्र को खाली करने को तैयार नहीं होते. दिल्ली के तिलक नगर इलाके में पहली मंजिल पर रह रहे बेटे बहू के खिलाफ एक 65 वर्षीय मां को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा कि बेटेबहू को घर से निकालो.

अदालत ने थोड़ा समय तो लिया पर फिर फैसला दिया कि बेटाबहू मकान खाली करें, पिछले सालों का किराया दें और आगे हर माह क्व10 हजार मां को दें. यह निर्णय निचली अदालत का है और हो सकता है कि अपील में बेटेबहू को रहने की अनुमति मिल ही जाए.

ऐसे मामले नए नहीं हैं. सदियों से चले आ रहे हैं जब बेटाबहू वृद्ध मातापिता या दादादादी को घर से बाहर निकालते रहे हैं. अब ऐसे मामले चौंकाने वाले बन रहे हैं, क्योंकि अब मिल्कीयत निकाले गए की होती है. हिंदू अविभाजित संपत्ति कानून में बेटे का पैतृक संपत्ति पर हक पैदा होते ही हो जाता था और पिता के मरने के बाद वह हक बेटों में बंट जाता था और तब न तो मां को कुछ मिलता था न ही बहनों को.

अब संपत्ति पर मां का भी हक है और बहनों का भी. बहुत मामलों में जो मकान, शेयर, जमापूंजी होती ही मां के नाम है और बेटा बहू लालच में सेवा करते हैं, फर्ज या प्यार में नहीं. मांबेटे का प्यार तो स्वाभाविक होना चाहिए पर कई बार बहू की जिद के तो कई बार मां के अहम के कारण मनमुटाव बहुत बढ़ जाता है. आज के युग में मांओं को अनपढ़ नहीं माना जा सकता. उन्हें ही समझना होगा कि व्यवहार ऐसा हो कि चाहे बेटाबहू उन के घर में रहते हों, वे मिल्कीयत का सवाल ही न उठाएं.

खानेपीने में, घूमने में, रीतिरिवाजों पर आदरसम्मान के सवालों को ले कर सवाल खड़ा करना गलत होगा. बड़ा होता बेटा एक बिछुड़े रिश्तेदार की तरह हो जाता है. उस की अपनी जिंदगी होती है, अपनी जिम्मेदारियां होती हैं, अपनी परेशानियां होती हैं. बेटे को मां और पत्नी की चक्की में न पीसा जाए, क्योंकि बेटा वैसे ही आर्थिक व सामाजिक चक्कियों का शिकार होता है.

समर्थ मांओं को बेटेबेटियों पर सीमित ही विश्वास करना चाहिए, क्योंकि वे अपनी जिंदगी में क्या कर रहे हैं और कौन से जोखिम ले रहे हैं, यह आमतौर पर पता नहीं चलेगा.

आज आयु 85-90 साल तक की हो गई है और 60 के बाद प्लानिंग कर ली जानी चाहिए, केवल वृद्धों को ही नहीं, बच्चों को भी.

बच्चों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब वे अपने बुढ़ा रहे मातापिता से झगडे़ंगे तब तक उन के अपने बेटेबेटियां भी समझदार हो गए होंगे और इतिहास दोहराया जा सकता है. परिवार में एक स्वस्थ परंपरा बनी रहे, उस की जिम्मेदारी सब की है.

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